हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव
हरियाणा: आपसी फूट या जाट-नॉन जाट, क्या है कांग्रेस की हार की वजह
लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव में ज़्यादातर एग्जिट पोल असफल रहे. लगभग हर एग्जिट पोल में कांग्रेस को बहुमत मिल रहा था. लेकिन जब नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 48 सीटें जीतकर सत्ता में तीसरी बार वापसी की. कांग्रेस 37 और इंडियन नेशनल लोकदल 2 सीटों तक सिमट गई. जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का खाता तक नहीं खुला. इसके तीन निर्दलीय उम्मीदवार जीतें हैं.
अगर वोट शेयर की बात करें तो कांग्रेस को 39.07 तो भाजपा को 39.89 प्रतिशत वोट मिले. वोटिंग प्रतिशत लगभग बराबर होने के बावजूद कांग्रेस की सीटें कम रही.
इस चुनाव में कई दिग्गज हार गए. कई रिकॉर्ड टूटे. आदमपुर विधानसभा क्षेत्र जहां साल 1968 से लगातार भजनलाल परिवार के सदस्य ही जीत रहे थे, यहां से भव्य विश्नोई को हार का सामना करना पड़ा. अभय चौटाला, ऐलनाबाद से चुनाव हार गए है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान चुनाव हार गए. पिछले चुनाव में किंगमेकर बनकर उभरे जेजेपी के दुष्यंत चौटाला की पार्टी का खाता तक नहीं खुला. खुद वो पांचवें नंबर पर रहे है.
कांग्रेस का मिस मैनेजमेंट और भाजपा का माइक्रोमैनेजमेंट
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस आत्मविश्वास में थी. खुद भाजपा के कार्यकर्ता मान रहे थे कि चुनाव उनके लिए मुश्किल होगा. लेकिन भाजपा ने हर एक सीट पर माइक्रोमैनेजमेंट की. जानकारों की माने तो कई जगहों पर भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार भी उतारे थे.
ऐसा ही एक सीट हिसार है. यहां भाजपा के विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री कमल गुप्ता की स्थिति मज़बूत नहीं थी. स्थानीय पत्रकारों की मानें तो आरएसएस में अपनी पकड़ की वजह से वो टिकट लेने में सफल रहे. इसी बीच कुरुक्षेत्र से भाजपा के सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतर गईं.
आठ अक्टूबर को जब नतीजे आए तो सावित्री जिंदल 18 हजार वोटों से चुनाव जीती. वहीं भाजपा उम्मीदवार गुप्ता को कुल 17 हजार 385 वोट मिले. नवीन जिंदल, अपनी मां के चुनाव प्रचार से दूर रहे लेकिन जीतने के बाद जनता को धन्यवाद दिया.
ऐसे ही गन्नौर में भाजपा ने देवेंद्र कौशिक को चुनाव लड़ाया. वहीं, भाजपा से टिकट मांग रहे देवेंद्र कादियान को निर्दलीय मैदान में उतार दिया. जानकारों की मानें तो भाजपा को अंदेशा था कि यहां अगर कादियान को पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ाया जाएगा तो जाट वोट नहीं मिलेगा. कादियान जाट समुदाय से हैं. आज जब नतीजे आए तो कादियान 35 हजार मतों से चुनाव जीते हैं. वहीं, भाजपा उम्मीदवार कौशिक तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें कुल 17 हजार वोट मिले हैं.
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस इससे अनजान थी. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता यह कहते नजर आए कि कई वोट काटने वाले आपके बीच मौजूद हैं. उनसे सावधान रहना.
इसके अलावा भाजपा ने सिरसा में गोपाल कांडा के समर्थन में अपने उम्मीदवार का नामांकन वापस ले लिया था. जबकि गोपाल कांडा की पार्टी से भाजपा का कोई गठबंधन भी नहीं था. हालांकि, कांडा चुनाव हार गए हैं. ऐसे ही ऐलनाबाद और रानिया से भाजपा ने कमजोर उम्मीदवार दिया था. ऐलनाबाद में कांग्रेस को जीत मिली और रानियां से इनेलो के अर्जुन चौटाला को. ऐलनाबाद में भाजपा उम्मीदवार को 13 हजार और रनिया में 15 हजार वोट मिले है.
वहीं, कांग्रेस की बात करें तो उसकी उचाना कलां विधानसभा सीट से सबसे कम मतों से हार हुई. महज 32 वोट से बृजेन्द्र सिंह चुनाव हार गए हैं. यहां रिपोर्टिंग के दौरान लोगों ने बताया कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे वीरेंद्र घोघड़ियां तो कांग्रेस के ही हैं और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी हैं. उन्हें हुड्डा ने ही चुनाव लड़ने के लिए कहा है. कांग्रेस की इस आपसी खींचतान में भाजपा के उम्मीदवार देवेंद्र अत्री यहां से 32 वोट से चुनाव जीत गए.
चुनावी नतीजों के बाद बृजेन्द्र सिंह के पिता और दिग्गज नेता बीरेंद्र सिंह ने भी कहा कि निर्दलीयों के कारण उन्हें चुनावी हार मिली है.
कांग्रेस का टिकट बंटवारा भी सवालों के घेरे में हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 90 सीटों में से 72 भूपेंद्र हुड्डा ने खुद बांटी थी. कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया गया, जिनके खिलाफ ग्राउंड में नाराजगी थी. हरियाणा के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, ‘‘कांग्रेस के चुनाव हारने की एक मात्र वजह हुड्डा हैं. उनकी जिद के कारण पार्टी की ऐसी स्थिति हुई. उनके अलावा पार्टी में किसी की चली नहीं.’’
नेताओं में आपसी तनाव
वहीं, कांग्रेस के मिस मैनेजमेंट की बात करें तो पार्टी के अंदर नेताओं की फूट जमीन पर साफ-साफ दिख रही थी. हुड्डा गुट के उम्मीदवारों के बैनर पोस्टर में कुमारी सैलजा नदारद थी तो सैलजा समर्थित उम्मीदवारों पर भूपेंद्र हुड्डा की तस्वीर नहीं होती थी. दोनों ही जगहों पर कार्यकर्ता अपने-अपने नेता को भावी सीएम बताते नजर आ रहे थे. कांग्रेस के एक और नेता रणदीप सुरजेवाला अपने बेटे के विधानसभा क्षेत्र से बाहर चुनाव प्रचार करने नहीं निकले.
कुमारी सैलजा तो खुलकर अपना विरोध दर्ज करा रही थी. कई दिनों तक वो प्रचार करने नहीं निकली. इसी बीच भाजपा ने इस मुद्दे को हवा दी कि कांग्रेस में दलितों का सम्मान नहीं है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने तो उन्हें भाजपा में शामिल होने का ऑफर भी दे दिया. हालांकि, वो कहतीं नजर आई कि मेरे खून में कांग्रेस है लेकिन इसी बीच वो नाराजगी भी जाहिर करती रहीं.
राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा एक साथ मंच पर आए, उनके हाथ तो मिले लेकिन दिल नहीं. इसका असर दलित वोटरों में भी नजर आया. भाजपा घर-घर में यह बात पहुंचने में सफल रही कि कांग्रेस में दलितों का सम्मान नहीं है.
पत्रकार सुनील कश्यप कहते हैं, ‘‘कांग्रेस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि दलित वोटर उन्हें छिटक रहे हैं. इसी लिए चुनाव प्रचार के आखिरी दिन अशोक तंवर को पार्टी में शामिल किया गया लेकिन उसका खास फायदा नजर नहीं आया.’’
बता दें कि हरियाणा में 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. उसमें से 9 सीटों पर कांग्रेस जीती है और 8 पर भाजपा. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान खुद होडल से चुनाव हार गए हैं.
जाट बनाम गैर जाट की राजनीति
भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 के विधानसभा चुनाव में जाट बनाम गैर जाट की राजनीति शुरू की थी. इस चुनाव के नतीजे भी बता रहे है कि कुछ ज़्यादा नहीं बदला है. हालांकि, कांग्रेस नेता चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार कहते नजर आ रहे थे कि 36 बिरदारी उनके साथ है लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इसको लेकर कारवां के पत्रकार सुनील कश्यप कहते हैं, ‘‘यह चुनाव पूरी तरह से जाट बनाम गौर जाट ही रहा. जाट में भी सिर्फ भूपेंद्र हुड्डा की ही चली. दूसरे जाट नेता बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला की भी नहीं चली.’’
कश्यप कांग्रेस के टिकट बंटवारे को भी एक वजह मानते हैं. वो बताते हैं, ‘‘कांग्रेस ने 29 जाटों को टिकट दिया था. इसके अलावा दलितों में भी रविदास और जाटवों को 13 , यादव समुदाय से 6, गुर्जर और पंजाबी समुदाय के 7-7 लोगों को टिकट दिया. ऐसे में देखें तो पांच जातियों में ही 64 सीटें बंट गई. इस तरह से कांग्रेस जाति को मैनेज नहीं कर पाई.
कुमार आगे कहते हैं, ‘‘भाजपा ने हर जाति को ध्यान में रखा. चुनाव से पहले से ही भाजपा इसपर काम कर रही थी. पुजारी कल्याण बोर्ड बनाकर 30 से ज़्यादा लोगों को महीने का 3 हजार रुपये दिए जाने लगे. जिसमें योगी, गोसाई और बैरागी समाज के लोग थे. इसके अलावा नाई सुमदाय को लेकर भी बोर्ड बनाया गया. उनको बोर्ड के तहत लोन देते थे. दोनों बार गैर जाट सीएम बनाया गया. भाजपा ने बीसी-ए और बीसी-बी पर ज़्यादा फोकस किया. कश्यप वोटों को साधने के लिए भाजपा ने पानीपत के पॉलीटेक्निक कॉलेज का नाम महर्षि कश्यप के नाम रखा. सैनी ने कहा था कि अनुसूचित जाति कोटे के आरक्षण में बंटवारा करेंगे. इसके कारण गैर जाटव वोटर एकतरफा भाजपा की तरफ हो गए. उन्होंने इसका वादा किया था. करनाल में गडरिया समुदाय की पंचायत की. जिसमें धर्मेंद्र प्रधान भी गए थे. यह छोटी-छोटी चीजें करके भाजपा ने इन जातियों के बीच जगह बनाई लेकिन कांग्रेस ऐसा कुछ करती नजर नहीं आई.’’
रोजगार
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में रोजगार की बुरी स्थिति है, लेकिन भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान बिना खर्ची-बिना पर्ची का जिक्र किया. ग्राउंड पर भी इसका असर दिख रहा था. लोग बात कर रहे थे कि उनके गांव में कई लोगों को नौकरी मिली है, जिन्होंने किसी को एक रुपया नहीं दिया है.
इसी बीच कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहना शुरू किया कि जिस क्षेत्र से जितना वोट वहां से उतनी नौकरी मिलेगी.
फरीदाबाद एनआईटी से कांग्रेस के उम्मीदवार नीरज शर्मा ने एक चुनावी सभा के दौरान कह दिया, ‘‘इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा 2 लाख नौकरी देने जा रहे हैं. इसमें से 2 हजार का कोटा हमें मिलेगा. जिस गांव से जितनी ज्यादा वोट मिलेंगे उतनी नौकरी मिलेगी.’’ इसका भाजपा ने जमकर प्रचार किया कि उन्हें ही नौकरी मिलेगी जिनकी पर्ची जाएगी. कांग्रेस को चुनाव में इसका भी नुकसान हुआ.
इसके अलावा भी कई पहलू और हैं जो कि धीरे-धीरे सामने आएंगे. फिलहाल, भाजपा प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है तो कांग्रेस एक बार फिर से विपक्ष में होगी.
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
South Central 34: Karnataka’s DKS-Siddaramaiah tussle and RSS hypocrisy on Preamble
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar