नीट पेपर धांधली
10 साल, 89 पेपर लीक, 48 री-टेस्ट: केंद्र हो या राज्य, सुधार कहीं भी नहीं
सड़कों, अदालतों और संसद में शोर के बावजूद, मोदी सरकार की देश भर में पेपर लीक पर प्रतिक्रिया में नकारने का भाव दिखाई देता है.
पिछले दो महीनों से केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कम से कम तीन बार इस बात से इनकार किया है कि विवादास्पद नीट-यूजी परीक्षा में पेपर लीक होने का कोई सबूत था. उन्होंने यहां तक कहा कि पिछले सात वर्षों में वास्तव में कोई पेपर लीक ही नहीं हुआ था. यह तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि झारखंड के हजारीबाग और बिहार के पटना में पेपर लीक हुआ था.
पिछले सप्ताह संसद में केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने तीन अलग-अलग सवालों का जवाब दिया. राज्यसभा में विभिन्न अवधियों में पेपर लीक के विवरण मांगने को लेकर किए सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसी विशिष्ट घटनाओं का डाटा "रखा नहीं गया". इनमें पहला सवाल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के राज्यसभा सदस्य हारिस बीरन द्वारा, दूसरा कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन एवं इमरान प्रतापगढ़ी और टीएमसी सांसद प्रकाश चिक बराइक द्वारा किया गया था. वहीं, तीसरा सवाल कांग्रेस सांसद फूलो देवी नेताम द्वारा किया गया था.
क्या इसकी वजह से सरकार का अपना रिकॉर्ड खराब हो सकता है?
पिछले एक दशक में करीब 89 ऐसे संदिग्ध मामले मीडिया में रिपोर्ट हुए जहां पेपर लीक पर या तो मामला दर्ज किया गया या परीक्षा रद्द कर दी गई. इसके चलते इन परीक्षाओं में शामिल होने वाले कम से कम 6.5 करोड़ उम्मीदवार प्रभावित हुए. जिनमें से 21 केंद्र में भाजपा सत्ता के दौरान केंद्रीय संस्थानों की निगरानी में हुए थे.
केंद्रीय निकायों द्वारा आयोजित इन 21 के अलावा बाकी के 68 मामले 17 राज्यों में थे. जिनमें से 41 या ये कहा जाए कि सबसे ज्यादा मामले उन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में थे, जहां एनडीए सत्ता में थी.
लेकिन कुछ ही पार्टियां इसमें साफ-सुथरे इतिहास का दावा कर सकती हैं.
कांग्रेस के कार्यकाल में ग्यारह संदिग्ध पेपर लीक हुए. जिनमें से सात राजस्थान में तब हुए जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. उत्तर प्रदेश में तीन घटनाएं तब दर्ज की गयीं जब समाजवादी पार्टी सत्ता में थी. तेलंगाना में बीआरएस के तहत तीन, महाराष्ट्र में जब उद्धव ठाकरे सरकार थी तब दो, आंध्र प्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन से पहले जब टीडीपी सत्ता में थी तब दो, जब आरजेडी कांग्रेस और जेडीयू के साथ गठबंधन में थी तब दो, पश्चिम बंगाल में टीएमसी सरकार के तहत एक, झारखंड में जेएमएम के तहत एक, केरल में सीपीएम के तहत एक और ओडिशा में बीजेडी सरकार के तहत एक घटना दर्ज की गई.
राज्यवार पेपर लीक
इस बीच विपक्ष ने इस मुद्दे पर एनडीए सरकार को घेरने की कोशिश की है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले का राजनीतिकरण करने और भारत के भविष्य को खतरे में डालने के प्रयासों पर पलटवार किया है.
इन 89 मामलों में से ज्यादातर मामलों में एफआईआर दर्ज की गई थी. इनमें से कम से कम 48 पेपर के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित की गई थी. 22 मामलों में परीक्षा आयोजित होने से पहले ही रद्द कर दी गई. वहीं, 18 मामलों में न तो परीक्षा रद्द की गई और न ही दोबारा परीक्षा कराई गई. बस केवल एफआईआर दर्ज की गई. ज्यादातर मामले शिक्षक और पुलिस की नौकरियों के लिए ली गई परीक्षा के थे.
केंद्र
केंद्रीय संस्थानों या विभागों में से सबसे बड़ा चूक करने वाला केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या सीबीएसई था. इसके द्वारा 2014 से 2023 के बीच आयोजित परीक्षाओं में से आठ बार कथित रूप से पेपर लीक हुआ. इससे करीब लगभग 67 लाख छात्र प्रभावित हुए. सीबीएसई सबसे बड़ा शैक्षणिक बोर्ड है. जिसके भारत और विदेशों में 24,000 से अधिक संबद्ध स्कूल हैं. सीबीएसई ने इन आठ मामलों में से केवल पांच में ही दोबारा परीक्षा आयोजित की.
आठ में से चार बार 2015, 2016 और 2017 के दौरान प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं का पेपर लीक हुआ. अन्य चार में कक्षा 12 का भौतिकी का पेपर शामिल था, जो कथित रूप से 2014 में मणिपुर में लीक हुआ था. कक्षा 10 का गणित का पेपर और कक्षा 12 का अर्थशास्त्र का पेपर जो कथित रूप से 2018 में लीक हुआ था. इसके अलावा शैक्षणिक नौकरियों की पात्रता के लिए ली जाने वाली सीटेट परीक्षा का पेपर कथित रूप से 2021 में लीक हुआ.जिससे 28 लाख से अधिक उम्मीदवार प्रभावित हुए थे.
सीबीआई ने इन आठ में से छह मामलों की जांच की. उसकी सभी जांचों में परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों और कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत का शक था.
हर मामले में दोबारा परीक्षा नहीं कराई गई. उदाहरण के लिए, नीट चरण 2 की परीक्षा, जिसमें सीबीएसई ने 2016 में पेपर लीक के आरोपों से इनकार किया. जबकि इसी मामले में उत्तराखंड पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया था.
या फिर 2018 में कक्षा 10 की गणित की परीक्षा. जिसमें बोर्ड ने लाखों छात्रों पर पड़ने वाले असर को देखते हुए दोबारा परीक्षा कराने के अपने फैसले को रद्द कर दिया था. या 2021 में सीटेट की परीक्षा, जिसमें बोर्ड ने यूपी एसटीएफ द्वारा आगरा में कई संदिग्धों को गिरफ्तार करने के बावजूद पेपर लीक के आरोपों से इनकार किया था.
इस बीच, सीबीएसई का बोझ कम करने के लिए 2017 में गठित एनटीए भी मूल्यांकन की गुणवत्ता में सुधार नहीं कर पाया है. एजेंसी को सालाना आठ परीक्षाएं आयोजित करने का काम सौंपा गया है लेकिन 2021 से पांच परीक्षाएं पेपर लीक के आरोपों से प्रभावित हुई हैं.
इनमें 2021 में जेईई मेन्स, 2021 और 2024 में नीट-यूजी के अलावा 2021 और 2024 में यूजीसी- नेट की परीक्षाएं शामिल हैं.
यूजीसी नेट 2024 की परीक्षा को छोड़कर, जिसकी जांच CBI द्वारा की जा रही है, क्योंकि इसके पेपर कथित तौर पर टेलीग्राम पर प्रसारित किए गए थे, एनटीए ने किसी भी परीक्षा को रद्द या स्थगित नहीं किया है.
एनटीए परीक्षाओं से जुड़े अन्य सभी मामलों में सीबीआई की जांच से पता चलता है कि परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों, कोचिंग सेंटरों और बिचौलियों की मिलीभगत थी. लेकिन एनटीए ने यह कहते हुए दोबारा परीक्षा लेने से इनकार कर दिया कि गड़बड़ की गुंजाइश सीमित थी.
यूजीसी नेट परीक्षा भारत भर के विश्वविद्यालयों में जूनियर रिसर्च फेलो या सहायक प्रोफेसर की भूमिका के लिए पात्रता को परखने के लिए एक कंप्यूटर-आधारित परीक्षा है. 11 लाख से अधिक उम्मीदवारों के लिए जून में होने वाली परीक्षा को सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.
सीबीआई 2021 जेईई मेन्स मामले की भी जांच कर रही है, जिसमें परीक्षा शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद सोशल मीडिया पर कथित तौर पर परीक्षा के प्रश्न प्रसारित किए गए थे और पिछले साल छापेमारी में कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया था.
जयपुर के एक केंद्र से जुड़ी गिरफ्तारियां होने के बावजूद प्रधान ने 2021 में नीट परीक्षा से जुड़े आरोपों को भी खारिज कर दिया था. हालांकि, उन्होंने चार अन्य मामलों में पेपर लीक की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन किया. लेकिन इन पैनलों के परिणामों को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. न्यूज़लॉन्ड्री ने इन परिणामों के बारे में पूछने के लिए एनटीए से संपर्क किया है. अगर कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
आठ भर्ती परीक्षाओं में भी पेपर लीक के आरोप लगे थे. जिनमें से दो कर्मचारी चयन आयोग द्वारा, दो केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा, एक-एक यूपीएससी, भारतीय सेना, ओएनजीसी और कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड द्वारा आयोजित की गई थीं.
इन सभी मामलों में परीक्षा रद्द कर दी गई. जिसकी वजह से दो से आठ महीने की देरी हुई.
राज्य
पेपर लीक का मुद्दा, 2023 में हुए राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में एक चुनावी मुद्दा था. लेकिन देखा जाए तो सबसे खराब रिकॉर्ड वाला राज्य उत्तर प्रदेश है. यहां 11 मामले सामने आए हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान का नंबर आता है. यहां नौ-नौ मामले सामने आए हैं.
यूपी में 11 में से सात मामले नौकरियों से जुड़े थे जबकि बाकी मामले दाखिलों से जुड़े थे.
2014 से 2017 तक समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल में ऐसे तीन मामले सामने आए. इनमें सबसे बड़ा मामला उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा का था. यह कथित तौर पर व्हाट्सएप पर लीक हो गई थी और जिससे 4.5 लाख से ज़्यादा उम्मीदवार प्रभावित हुए थे.
योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में कथित तौर पर आठ पेपर लीक हुए हैं. 2018 से प्रत्येक पेपर लीक के लिए आदित्यनाथ ने जीरो टॉलरेंस की नीति की घोषणा की है. इसके तहत, जांच एसटीएफ को सौंपी गई है. साथ ही घोषणा की गई है कि दोषियों पर गैंगस्टर एक्ट और रासुका के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि, इससे भी राज्य में पेपर लीक होने नहीं रुके हैं.
इन सभी परीक्षाओं में सबसे लोकप्रिय राज्य के बेसिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित यूपी शिक्षक पात्रता परीक्षा है. यह पूरे यूपी के सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षक बनने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए अनिवार्य है. 2018 और 2021 में, केवल 70,000 रिक्त पदों के लिए 40 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा के लिए आवेदन किया था. लेकिन दोनों ही सालों में कथित तौर पर पेपर लीक हो गए थे. लेकिन केवल 2021 की परीक्षा ही रद्द की गई थी.
2021 में विधानसभा चुनावों से पहले, परीक्षा का प्रश्न पत्र नवंबर में परीक्षा के दिन मथुरा, गाजियाबाद और बुलंदशहर के व्हाट्सएप ग्रुपों पर भेजा जाता पाया गया..
विपक्षी नेताओं ने तुरंत भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने टिप्पणी की, "भाजपा शासन में पेपर लीक, परीक्षा और परिणाम रद्द करना आम बात है. यूपी शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के चरम पर है."
आदित्यनाथ सरकार ने तुरंत कार्रवाई की. परीक्षा रद्द कर दी. एसटीएफ द्वारा जांच शुरू की गई और 10 दिनों के भीतर 23 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. मुख्यमंत्री ने टिप्पणी की, "जो लोग इस कुकृत्य में शामिल हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है और एनएसए लगाने के साथ-साथ उनकी संपत्ति जब्त की जाएगी."
आरोपियों में बिहार भाजपा विधायक रश्मि वर्मा के भाई राय अनूप प्रसाद भी शामिल थे. उनकी प्रिंटिंग प्रेस को परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र छापने का ठेका दिया गया था. परीक्षा रद्द होने के बाद 22 लाख से अधिक उम्मीदवारों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित करने में दो महीने तक का समय लग गया.
इसी साल जून में समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी के पदों के लिए हुई एक और परीक्षा का पर्चा लीक हुआ. जिससे 5.6 लाख उम्मीदवार प्रभावित हुए थे. इसमें सरकार ने छह महीने में दोबारा परीक्षा कराने का वादा किया है.
यूपी काॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा रद्द होने के मामले में पांच महीने से ज़्यादा वक्त बीत गया है लेकिन दोबारा परीक्षा नहीं कराई गई है. इतना ही नहीं इस परीक्षा के रद्द होने के कारण यूपी में एक आत्महत्या की खबर भी आई थी. फिरोजाबाद की मृतक उम्मीदवार के परिवार ने मीडिया को बताया कि वह परीक्षा बार-बार रद्द होने से अवसादग्रत थी.
कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षाओं से जुड़े तीन पेपर लीक भी हुए हैं. जिससे पूरे यूपी में 60 लाख से ज़्यादा छात्र प्रभावित हुए हैं.
इस बीच, राजस्थान में सभी नौ संदिग्ध पेपर लीक मामले नौकरी भर्ती परीक्षाओं से जुड़े थे. जिनमें फॉरेस्ट गार्ड और पुलिस कॉन्स्टेबल की नौकरियां भी शामिल हैं. पांच पेपर राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित किए गए थे. दूसरा दोषी विभाग राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड था. जिसका शिक्षकों की भर्ती का पेपर 2021 और 2023 में दो बार लीक हो चुका है. कथित तौर पर 2022 में लीक हुई दो अन्य परीक्षाएं डीजीपी कार्यालय द्वारा आयोजित पुलिस कॉन्स्टेबल की पोस्टिंग और राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड द्वारा आयोजित फॉरेस्ट गार्ड की नौकरियों के लिए थीं.
राजस्थान में इन कथित नौ लीकों में से सात कांग्रेस नेता अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान हुई थीं.
ये सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गईं. जिससे 98,000 से ज़्यादा रिक्तियों के लिए बैठने वाले 80 लाख आवेदक प्रभावित हुए. उल्लेखनीय है कि 2023 में शिक्षकों के लिए भर्ती परीक्षा के मामले में दोबारा परीक्षा कराने में 10 महीने तक का समय लग गया.
2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान, भाजपा ने गहलोत सरकार से जवाबदेही की मांग करते हुए राज्य भर में विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पेपर लीक की साजिश "पेपर लीक माफिया" द्वारा की गई थी. भाजपा ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने का भी वादा किया.
लेकिन 2024 में जैसे ही भाजपा सत्ता में आई, राज्य में पुलिस उप निरीक्षकों की भर्ती का एक पेपर लीक हो गया. केवल 859 रिक्त पदों के लिए 1.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों को इसमें शामिल होना था. परीक्षा रद्द कर दी गई और अभी तक दोबारा परीक्षा नहीं हुई है.
राजस्थान पुलिस का विशेष अभियान समूह (एसओजी) अभी भी मामले की जांच कर रहा है. 20 प्रशिक्षु उप निरीक्षकों सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन सिर्फ यह दिखाने के लिए कि सरकार इस मामले में हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठी है. वहीं, नगर निगम ने एक आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाया है.
वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में नौ पेपर लीक मामले सामने आए. इनमें से छह मामले नौकरियों से जुड़े थे. इनमें ज्यादातर कृषि विभाग या स्वास्थ्य विभाग के पदों के लिए नौकरियां शामिल थीं. जबकि तीन मामले कक्षा 10वीं और 12वीं की परीक्षा के थे.
कांग्रेस ने भाजपा पर भर्ती प्रक्रियाओं की प्रामाणिकता को कमजोर करने के लिए इन लीकों को “सुनियोजित” रूप से करने का आरोप लगाया. पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ ने तो 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान मध्य प्रदेश में पेपर लीक को मुद्दा बना दिया.
गुजरात में सभी पांचों संदिग्ध पेपर लीक भर्ती परीक्षाओं से जुड़े थे.
बिहार, असम और कर्नाटक से चार-चार पेपर लीक घटनाओं की सूचना मिली. इनमें से ज्यादातर राज्य चयन आयोगों द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं से जुड़ी थीं.
नए कानून
2014 से 2018 के बीच, पेपर लीक से प्रभावित नौकरी भर्ती और शैक्षणिक परीक्षाओं की हिस्सेदारी लगभग बराबर थी. शैक्षणिक परीक्षाओं में 21 और भर्ती परीक्षाओं में 18 बार पेपर लीक हुआ. 2019 से भर्ती परीक्षाओं में लीक की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है जबकि शैक्षणिक परीक्षाओं में लीक की घटनाओं में कमी आई है.
इस रिपोर्ट में बताई गई घटनाओं में से अधिकांश घटनाएं, ऑफ़लाइन परीक्षाओं से जुड़ी थीं.
फरवरी में, सभी राजनीतिक दलों के व्यापक समर्थन के साथ सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित व्यवहार को रोकने के लिए एक नया विधेयक, सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 पारित किया गया. यह अधिनियम यूपीएससी, एसएससी, आरआरबी और एनटीए जैसी केंद्र सरकार की संस्थाओं द्वारा आयोजित परीक्षाओं पर लागू होता है. इसमें तीन साल से 10 साल तक के कारावास का प्रावधान किया गया है. साथ ही 10 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. यह अधिकारियों को 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने के साथ जवाबदेह भी बनाता है.
कम से कम आठ राज्यों ने सार्वजनिक परीक्षाओं में पेपर लीक से निपटने के लिए 10 करोड़ रुपये तक के भारी जुर्माने के साथ कानून बनाए हैं. उत्तर प्रदेश ने 1998 में पहली बार इसे लागू किया था.
2022 में, राजस्थान ने राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम को लागू किया. उसके बाद 2023 में गुजरात और इस साल उत्तर प्रदेश और बिहार ने भी इसे लागू किया. मध्य प्रदेश, फिलहाल इस तरह के कानून के अपने संस्करण को पारित करने की प्रक्रिया में है.
लेकिन यह कानून कितने असरदार होंगे, इसको लेकर संदेह है. मिसाल के तौर पर, राजस्थान में कानून लागू होने के बाद चार पेपर लीक होने की सूचना मिली थी.
एक सवाल यह भी है कि क्या यह कानून, संदिग्ध रिकॉर्ड वाली मूल्यांकन कंपनियों को परीक्षा आयोजित करने के लिए काम पर रखने से रोक पाएगा? न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले रिपोर्ट किया था कि कैसे गैर-पेशेवर आचरण के आरोपों वाली पांच कंपनियों को एक के बाद एक ठेके दिए गए थे.
नीट परीक्षा दोबारा कराए जाने की मांग कर रहे 22 वर्षीय मेडिकल उम्मीदवार हरिंदर ने कहा, “नीट मामले में, सीबीआई जांच अभी भी जारी है. तो फिर हम कैसे मान सकते हैं कि लीक व्यापक नहीं था?. मुझे नहीं पता कि ये कानून काफी हैं या नहीं… क्योंकि सरकार को सिस्टम में उन खामियों को दूर करने की जरूरत है जो पेपर लीक का कारण बनती हैं.”
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