Media
संसद टीवी: कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर, ‘एक-एक महीने के कॉन्ट्रैक्ट’ ने बढ़ाई चिंता
लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के प्रसारण के लिए बने टीवी चैनल ‘संसद टीवी’ के कर्मचारियों में इन दिनों नौकरी खोने का डर समाया हुआ है. दरअसल, बीते 30 जून को यहां एक आदेश जारी हुआ था. जिसमें यहां कार्यरत 186 कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट आगामी एक महीने यानि जुलाई के लिए बढ़ाया गया था.
संसद टीवी के डायरेक्टर (एडमिन) ए. के. मौलिक द्वारा जारी इस ऑर्डर की कॉपी न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है. इसमें उन्होंने बताया, “सक्षम प्राधिकारी ने संसद टीवी के 186 पेशेवरों की नियुक्ति की अवधि एक जुलाई, 2024 से एक महीने की अवधि या अगले आदेश तक बढ़ाने की मंजूरी दी है.”
इस आदेश में जिन कर्मचारियों का एक महीने का कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाया गया है उनमें संसद टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय और राजेश कुमार झा भी शामिल हैं. इसके अलावा एंकर, सीनियर प्रोड्यूसर्स, प्रोड्यूसर्स, प्रोडक्शन मैनेजर, एसोसिएट प्रोड्यूसर्स, ग्राफिक टीम, वीडियो एडिटर्स, इंजीनियर और कैमरापर्सन्स शामिल हैं.
इसमें से एक कमर्चारी ने बताया कि जुलाई खत्म हो चली है. अब कहा गया है कि अपना पास एक महीने के लिए बढ़वा लें यानी अब एक और महीने का कॉन्ट्रैक्ट? उल्लेखनीय है कि इसबार कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने या खत्म करने को लेकर कोई लिखित आदेश नहीं आया है. सिर्फ मौखिक तौर कर्मचारियों को पास बढ़वाने के लिए बोला गया है.
‘एक महीने’ के कॉन्ट्रैक्ट ने बढ़ाई चिंता
अभी संसद टीवी में सीनियर प्रोडूसर के रूप में काम कर रहे एक कर्मचारी ‘अ’ कहते हैं, ‘‘एक साल का कॉन्ट्रैक्ट होता तो मन में रहता है कि चलो एक साल के लिए निश्चिंत हैं. अभी एक-एक महीने का कॉन्ट्रैक्ट हो रहा है. ऐसे में चिंता तो रहती ही है कि आगे क्या होगा. नौकरी बचेगी ये जाएगी? परिवार का खर्च है, बच्चों की स्कूल फीस देनी है. अब यहां अफरा-तफरी का माहौल है.’’
राज्यसभा से जुड़े रहे एक कर्मचारी, जिन्होंने कुछ महीनों के लिए संसद टीवी में भी काम किया है, उनकी मानें तो ऐसी स्थिति तब आती है जब कर्मचारियों को हटाने की कवायद चल रही होती है. एक-एक महीने के कॉन्ट्रैक्ट एक्सटेंशन से लोग अनिश्चितता के शिकार होते हैं और नौकरी की तलाश करने लगते हैं.
ये कर्मचारी याद करते हुए बताते हैं, ‘‘मैंने राज्यसभा और संसद टीवी में कुल मिलाकर पांच साल तक काम किया. हमारे सामने तीन महीने, छह महीने और एक साल कॉन्ट्रैक्ट होता था. जब राज्यसभा के सीईओ गुरदीप सप्पल संस्थान से अलग हुए तब एक-एक महीने का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाने लगा. क्योंकि बदला हुआ मैनेजमेंट, देखना और विचार-विमर्श करना चाहता था कि किसे हटाया जाए और किसे रखा जाए. उस वक्त कई लोगों को हटाया भी गया था.’’
इस बार भी कमर्चारियों को यही डर सता रहा है कि छंटनी न हो क्योंकि जब से संसद टीवी बना है तब से यहां लगातार छंटनी ही हो रही है.
हालांकि, सीनियर प्रोड्यूसर ‘अ’ बताते हैं, ‘‘इस बार उस स्तर की छंटनी का आसार नहीं दिख रहा है. जहां तक मेरी जानकारी है, कुछ प्रॉसिजरल बदलाव चल रहा है. इससे पहले भी ऐसे बदलाव के वक्त लोकसभा टीवी में 15-15 दिन का एक्सटेंशन हुआ है. हालांकि, राज्यसभा टीवी में कम से कम तीन महीने का ही कॉन्ट्रैक्ट होता था.’’
बता दें कि संसद टीवी, मार्च 2021 में लोकसभा और राज्यसभा टीवी के विलय के बाद बना था. उस समय भी राज्यसभा टीवी के कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. साल 2022 में भी कुछ कर्मचारियों को हटाया गया. वहीं, बीते साल जून महीने में ही संसद टीवी ने 25 स्थायी, अस्थायी और फ्रीलांस कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म कर दिया गया था.
यहां काम करने वाले एक कर्मचारी यहां से नौकरी से हटाए जाने और छोड़ कर जाने वालों की स्थिति बयान करते हुए कहते हैं, ‘‘संसद टीवी बनने के समय 300 के करीब मीडियाकर्मी और प्रसारण से जुड़े कर्मचारी यहां थे. धीरे-धीरे छंटनी शुरू हुई. फिर यहां के माहौल देखकर लोग खुद भी नौकरी छोड़ने लगे. अब यहां कुल 185 लोग ही काम कर रहे हैं. जिसका असर यहां बनने वाले शो पर भी पड़ रहा है. कई शो यहां बंद हो गए हैं, जैसे- अपना आसमान, प्रोस्पेक्टिव, ग्लोबल डिबेट, आपका मुद्दा, आवाज़ देश की आदि. उसके बाद से यहां भर्ती नहीं निकली है. हालांकि हाल ही में दो लोगों ने जरूर ज्वाइन किया है.
कर्मचारी आगे जोड़ते हैं कि छंटनी वाले ज़्यादातर लोग राज्यसभा टीवी से जुड़े रहे थे. वहीं, लोकसभा से जुड़े कर्मचारियों को जब भी निकालने की बात आती तब लोकसभा अध्यक्ष ऐसा करने से रोक देते हैं. दूसरा कारण यह है कि लोकसभा में काम करने वालों की सैलरी भी ज़्यादा नहीं थी.
एक महीने के कॉन्ट्रैक्ट एक्सटेंशन और कमर्चारियों की चिंताओं को लेकर हमने संसद टीवी के सीईओ राजित पुन्हानी से बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी दफ्तर से बताया गया कि वो अभी राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ से मिलने गए हैं. ऐसे में हमने उन्हें स्टोरी से जुड़े तीन सवाल भेजे हैं. खबर प्रकाशित किए जाने तक उनका जवाब नहीं आया है.
न्यूज़लॉन्ड्री पूर्व में संसद टीवी पर विस्तृत रिपोर्ट कर चुका है.
Also Read
-
2006 Mumbai blasts are a stark reminder of glaring gaps in terror reportage
-
How money bills are being used to evade parliamentary debate on crucial matters
-
Protocol snub, impeachment motion: Why Dhankhar called it quits
-
In a Delhi neighbourhood, the pedestrian zone wears chains
-
Fake press cards, forged govt seals: Self-styled envoy of ‘West Arctica’ held in UP