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प्रधानमंत्री इंटर्नशिप प्रोग्राम: सरकार के दावे पर कई सवाल, कितनी कंपनियां दे पाएंगी 4000 युवाओं को हर साल इंटर्नशिप?
मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश किया. बजट के मुख्य विषय में रोजगार पहले और कौशल विकास दूसरे स्थान पर है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार सरकार की प्राथमिकता क्या है. बजट में रोजगार को लेकर कई नई घोषणाएं की गईं. जिसमें प्रधानमंत्री इंटर्नशिप प्रोग्राम महत्वपूर्ण है.
इस योजना के तहत सरकार अगले पांच साल में एक करोड़ यानी हर साल 20 लाख युवाओं को इंटर्नशिप का अवसर देगी. यह इंटर्नशिप देश की शीर्ष 500 कंपनियों में करने को मिलेगी. इसमें कंपनियों की भागीदारी स्वैच्छिक रखी गई है.
वहीं, इसके लिए युवाओं को पांच हज़ार रुपये हर महीने और एक मुश्त छह हज़ार रुपये दिए जाएंगे यानि कोई युवा इस इंटर्नशिप को करता है तो उसे कुल 66 हज़ार रुपये एक साल में मिलेंगे.
कांग्रेस ने इस योजना को अपने ‘न्याय पत्र’ से चोरी का नाम दिया. बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने ‘न्याय पत्र’ में हर शिक्षित युवा को सालाना एक लाख रुपये अप्रेंटिसशिप देने का वादा किया. जिसके मुताबिक, युवाओं को 8500 रुपये महीने का मानदेय मिलता.
इंटर्नशिप के पैसे युवाओं को कौन देगा? सरकार या कंपनी? इस योजना का लाभ किन युवाओं को मिलेगा? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
बता दें कि एक युवा पर सालाना इंटर्नशिप के दौरान 66 हज़ार रुपये खर्च होंगे. जिसमें से 60 हज़ार केंद्र सरकार बाकी के छह हज़ार कंपनी देगी. बजट के मुताबिक, प्रशिक्षण और इंटर्नशिप लागत का 10 प्रतिशत हिस्सा कंपनियां अपनी सीएसआर निधियों से वहन करेंगी. सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड. सीएसआर का पैसा कंपनियों द्वारा जनहित, स्वच्छता और पर्यावरण के लिए खर्च किया जाता रहा है.
बजट में बताया गया है कि इस प्रोग्राम का लाभ 21 से 24 साल के वो युवा उठा सकते हैं, जिन्हें पहले से रोजगार प्राप्त नहीं है और जो पूर्णकालिक आधार पर शिक्षा प्राप्त नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा वो छात्र जो आईआईटी, आईआईएम, आईआईएसईआर, सीए, सीएमए आदि से पढ़ें हों, जिनके परिवार का कोई भी सदस्य आयकर के दायरे में आता हो या परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी कर्मचारी हो, वो इस योजना के दायरे में नहीं आएगा.
योजना में कहा गया है कि इसमें जिन छात्रों का चयन किया जाएगा. उनकी ट्रेनिंग कम से कम आधा समय वास्तविक कार्य अनुभव/नौकरी के माहौल में होनी चाहिए, कक्षा में नहीं.
योजना के बारे में विस्तार से लिखने के बाद नीचे कोने में एक नोट भी है. जिसमें लिखा है कि योजनाओं में स्वीकृति के वक्त बदलाव हो सकता है.
साफ है कि अभी इस योजना को धरातल पर उतरने में वक़्त लगेगा. हालांकि भाजपा और उसके नेताओं के सोशल मीडिया हैंडल से इस योजना का प्रचार शुरू हो गया है. मीडिया संस्थानों ने भी इसको लेकर हेडलाइन बनाई है.
योजना पर उठते सवाल
हर साल 20 लाख युवाओं को 500 कंपनियों में इंटर्नशिप का मौका मिलेगा. इसका मतलब है कि हर कंपनी में करीब 4 हज़ार युवाओं को इंटर्नशिप का मौका मिलेगा. यह बड़ी संख्या है.
2023 में फार्च्यून इंडिया ने नेट इनकम के हिसाब से भारत की 500 बड़ी कंपनियों की लिस्ट जारी की थी. जिसमें पहले नंबर पर मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस लिमिटेड है. वहीं, 500 नंबर पर जेडएफ कमर्शियल व्हीकल कंट्रोल सिस्टम लिमिटेड है. कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर जानकारी दी है कि इसके यहां भारत में 15,400 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें इसके संयुक्त उद्यम साझेदार भी शामिल हैं.
इसमें कई ऐसी कंपनियां भी हैं, जिसकी नेट इनकम ज़्यादा है लेकिन वहां कर्मचारी कम काम करते हैं. जैसे 499 नंबर पर मौजूद बाटा कंपनी. यहां कुल 4 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि कौन सी कंपनी हर साल 4 हज़ार युवाओं को अपने यहां इंटर्नशिप पर रखेगी? वो भी उन युवाओं को जो स्किल्ड नहीं हैं. जिन्हें ट्रेनिंग देने की ज़रूरत है.
रोजगार के मुद्दे पर लंबे समय से काम करने वाले ‘युवा हल्ला बोल’ के प्रमुख अनुपम कहते हैं, ‘‘जो सरकार 2014 में हर साल 2 करोड़ रोजगार का वादा करके आई थी, वो अब पांच साल में एक करोड़ इंटर्नशिप पर आ गई है. इसमें भी तरह-तरह के घालमेल हैं. युवाओं को इंटर्नशिप का अधिकार नहीं दिया जा रहा है. इसे कंपनियों की मर्जी पर छोड़ा जा रहा है. इसलिए संदेह है कि यह योजना धरातल पर कैसे उतर पाएगी.’’
वह आगे कहते हैं, “दरअसल, भारत में 1961 से ही अप्रेंटिस एक्ट है. जिसमें कई बार संसोधन हुआ लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ. ऐसे में मुझे लगता है कि यह योजना भी टेकअप नहीं करेगी जब तक युवाओं के लिए इसे अधिकार नहीं बनाया जाएगा.’’
अनुपम कहते हैं, ‘‘10 साल में पहली बार केंद्र की भाजपा सरकार ने रोजगार पर बात की है. यह लोकसभा में आए नतीजों का परिणाम है. लेकिन रोजगार को लेकर जो बात की गई वो हेडलाइन मैनेजमेंट की बात है.’’
इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व संपादक और आर्थिक मामलों के जानकार अंशुमान तिवारी का भी ऐसा ही मानना है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए तिवारी कहते हैं, ‘‘इन योजनाओं से लगता है कि सरकार की कोशिश है कि उद्योगों को किसी तरह से रोजगार देने के लिए राजी किया जाए. बेरोजगारी की समस्या इतनी विकट है कि सरकारें तरह-तरह के प्रयोग कर रही हैं. यहां सरकार पहली बार एम्प्लॉयमेंट सब्सिडी लेकर आई है. यह सब्सिडी कंपनियों को दी जाएगी, लेकिन इसमें इतनी शर्तें हैं कि देखना होगा कि कितनी कंपनियां इसके लिए मानेंगी. इसपर संदेह है. कितनी कंपनियों के पास इतने लोगों को रखने की क्षमता होगी.’’
योजना में इसका भी जिक्र नहीं है कि कंपनियां जिन युवाओं को इंटर्नशिप देगी क्या आगे चलकर उसमें से किसी को रोजगार भी मिलेगा. एक सवाल यह भी उठता है कि कंपनी को सरकार क्या मुफ्त में मज़दूर मुहैया करा रही हैं? क्योंकि कंपनी का तो युवाओं के प्रशिक्षण पर कोई खर्च भी नहीं हो रहा है. वह जो पैसे खर्च करेगी वो सीएसआर का है, जो लोगों पर ही खर्च होता है.
अनुपम इसको लेकर कहते हैं, ‘‘सबसे ज़रूरी सवाल यह है कि सरकार सीएसआर का पैसे कंपनियों को इंटर्नशिप में खर्च करने को क्यों कह रही है? वहीं, मान लेते हैं कि कोई कंपनी इतनी बड़ी संख्या में इंटर्न रख भी लेती है तो वो उन्हें सिखाएगी या काम लेगी? अगर कोई बाध्यता होती है कि इन्हें सिखाकर काम पर रखना है तो कंपनी उन पर अपना समय और संसाधन खर्च करती लेकिन ऐसी तो कोई बाध्यता अभी नहीं दिख रही है. ऐसे में कंपनी जितना हो पायेगा इन युवाओं से काम लेगी.’’
बता दें कि सरकार इस योजना का पहला चरण 2 वर्षों के लिए और दूसरा चरण 3 वर्षों के लिए शुरू करेगी. देखना होगा कि यह योजना कैसे धरातल पर उतरती है. विशेषज्ञों की जो चिंता है उसे कैसे दूर करती है.
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