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अप्रशिक्षित शिक्षकों को कोर्स कराने के नाम पर सरकार ने कमाए 16 अरब 64 करोड़ रुपए, कोर्स करने वाले सड़कों पर
नीट और नेट परीक्षा में हुई गड़बड़ियों को लेकर देशभर में बवाल मचा है. देशभर में लाखों छात्र सड़कों पर हैं. एक तरफ जहां छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ लाखों की संख्या में शिक्षक भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
इस कहानी की शुरुआत साल 2017 से होती है. भारत सरकार ने सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों में पहली से आठवीं तक पढ़ाने वाले लाखों अप्रशिक्षित शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए डीएलएड कोर्स लॉन्च किया. यह कोर्स नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन की ओर से राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय (एनआईओएस) के जरिए कराया गया.
तब इसके तत्कालीन अध्यक्ष चंद्र भूषण शर्मा ने वीडियो जारी कर बताया था, ‘‘कोर्स को करने वाले अभ्यर्थियों को देश भर में निकलने वाली शिक्षक भर्तियों में प्राथमिकता दी जाएगी.’’
कोर्स को लेकर अख़बारों में विज्ञापान भी जारी किए गए थे. जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर लगी हुई थी. विज्ञापन में इस कोर्स की अवधि दो साल बताई गई थी. साथ ही तुरंत रजिस्ट्रेशन कराने की अपील की गई थी. विज्ञापन में आगे बताया गया कि एक साल का शुल्क 4500 रुपए है, जो कि ऑनलाइन भरना है.
20 अगस्त 2017 को दैनिक जागरण अख़बार में प्रकाशित विज्ञापन में साफ तौर पर लिखा गया कि यह डीएलएड करने का अंतिम मौका है. 31 मार्च 2019 के बाद ऐसे अप्रशिक्षित शिक्षक जिनके पास यह योग्यता नहीं होगी वे पढ़ा नहीं सकेंगे. यह कोर्स एनसीटीई यानी नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन और एमएचआरडी (मानव संसधान विकास मंत्रालय) से स्वीकृत है. कोई भी इस योग्यता के साथ देश में कहीं भी नौकरी कर सकता है.
रजिस्ट्रेशन कराने वाले अभ्यर्थियों की सूची
न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक करीब 15 लाख अभ्यर्थियों ने इस कोर्स के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था. वहीं, तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक, 12 लाख 80 हज़ार शिक्षकों ने फीस जमा कर दी थी. अभ्यार्थियों के मुताबिक इस कोर्स की कुल फीस 13,000 रुपए थी. जिसमें पहले साल का कोर्स शुल्क 4500, दूसरे साल का छह हज़ार और परीक्षा पेपर शुल्क (250*10)- 2500 रुपए था. इस तरह सरकार ने इन अभ्यर्थियों से कुल 16 अरब 64 करोड़ रुपए जमा करा लिए. कोर्स भी पूरा हुआ.
3 अक्टूबर 2017 को प्रेस कॉन्फ्रेस में ख़ुशी जाहिर करते हुए जावेड़कर कहते हैं कि 2009 में आरटीई (शिक्षा का अधिकार) कानून बना और तब छह साल दिए गए थे कि जो अप्रशिक्षित शिक्षक हैं, उनको 2015 तक प्रशिक्षित करना है. ये बात कानून में लिखी थी, लेकिन 6 साल में 4 लाख शिक्षकों का भी प्रशिक्षण नहीं हुआ. हमने पाया कि आज भी 15 लाख शिक्षक अप्रशिक्षित हैं तो हमने ये राइट टू एजुकेशन एक्ट में संशोधन किया. दोनों सदनों में इस बिल को पास कराया.
जावेड़कर आगे कहते हैं, ‘‘जब हमने यह शुरू किया तो 12 लाख 80 हजार छात्रों के रुपए हमारे पास पैसे जमा हो गए जबकि 15 लाख ने रजिस्ट्रेशन करवाया है. यह अद्भत सफलता है. इनता बड़ा रजिस्ट्रेशन किसी एक कोर्स के लिए कभी नहीं हुआ है. यह एक विश्व रिकॉर्ड है.’’
सबने इस कोर्स की वाहवाही की, लेकिन आज इसे करने वाले लोग सड़कों पर हैं. आंदोलन कर रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. कोर्ट के आदेश के बाद इसमें से कुछ की नौकरी लगी है बाकी इस दफ्तर से उस दफ्तर भटक रहे हैं.
प्रदर्शन करने अभ्यर्थियों ने एक संघ बनाया है. जिसके उत्तराखंड के अध्यक्ष नंदन बोहरा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि भारत सरकार व राज्यों सरकारों द्वारा सफलतापूर्वक डीएलएड का प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद हमारे प्रशिक्षित साथियों को कई राज्यों में अपने मान्यता हेतु माननीय उच्च न्यायालयों की शरण लेनी पड़ी. जिसके बाद लगभग दो लाख एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थी न्यायालयों के आदेश के उपरांत अन्य राज्यों में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
यानी कुल मिलाकर 15 लाख में से सिर्फ 2 लाख को इस सर्टिफिकेट का फायदा मिला बाकि आज भी इसको लेकर कोर्ट और सड़कों पर भटक रहे हैं. प्रदर्शन करते-करते थक गए, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
33 वर्षीय अभिषेक कुमार, बिहार के पटना जिले के गांव बख्तियारपुर के रहने वाले हैं. इन्होंने एनआईओएस से डीएलएड और उसके बाद 2021 में सीटेट (केन्द्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा) भी पास की.
अभिषेक एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं. उनको मेहनताना के तौर पर महीने के पांच हजार रुपए मिलते हैं. आर्थिक परेशानी से जूझ रहे कुमार कहते हैं, ‘‘हम चार भाई हैं. दोनों छोटे भाइयों की पढ़ाई का खर्च भी मुझे ही देखना पड़ता है. पिताजी अब इस स्थिति में नहीं हैं कि वो कुछ कमा पाएं. पांच हजार में आज कल क्या हो पाता है.’’
कुमार आगे कहते हैं कि हमारे कोर्स को 18 महीने का बता दिया गया है, जबकि हमारे सर्टिफिकेट और फॉर्म से लेकर रिजल्ट तक में दो साल लिखा है. अगर ये 18 महीनों का है तो इसे आगे बढ़ा सकते थे, हमने किसी ने मना थोड़ी किया था. जैसे हमने 18 महीनों की पढ़ाई की है, आगे भी कर लेते. सब कुछ करने के इतने दिनों बाद हमारी इस डिग्री को बेकार बता दिया गया है.
आखिर कहां आई परेशानी
2019 में यह कोर्स पूरा हुआ था. अगस्त 2019 निजी संस्थानों से रेगुलर डीएलएड कोर्स कर रहे अभ्यर्थी एनआईओएस के इस कोर्स पर सवाल खड़े करते हुए पटना हाईकोर्ट चले गए.
उनका तर्क था कि जो यह कोर्स 18 महीनों का है, वह 24 महीनों की जगह कैसे ले सकता है. वास्तव में यह कोर्स सिंतबर 2017 से शुरू होकर मार्च 2019 में खत्म हुआ. ऐसे में 18 महीने बताकर इसे अवैध बताया गया.
हालांकि, अभ्यर्थियों को मिले सर्टिफिकेट पर या सरकारी विज्ञापन पर सभी जगहों पर इसकी अवधि दो साल अंकित है.
तब एनआईओएस के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्र भूषण शर्मा ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि कुछ लोग ऐसा भ्रम फैला रहे हैं कि यह डिप्लोमा सिर्फ उन स्कूलों में ही मान्य होगा जहां वे पढ़ा रहे हैं. जबकि ऐसा नहीं है. ये डिप्लोमा भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के आग्रह पर और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन यानी एनसीटीई के अप्रूवल पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) चला रहा है. इसकी मान्यता पूरे देश में होगी. इस डिप्लोमा को प्राप्त करने के बाद आप अगर चाहेंगे तो किसी दूसरे राज्य में भी नौकरी के लिए अप्लाई कर सकते हैं और नौकरी पा सकते हैं.
वे यहां इस बात को भी क्लियर करते हैं कि इस कोर्स की अवधि पूरे दो साल की है. परंतु हम लोगों ने ऐसा किया है कि 31 मार्च 2019 तक आप इसे पूरा कर लें. कोर्स के दरम्यान आपको कुछ स्कूल बेस्ड और क्लास रूम बेस्ड एक्टिविटी करनी होंगी और वर्कशॉप भी अटेंड करनी होगी जिसकी व्यवस्था राज्य सरकार करेगी. उन्हीं से आपको इसकी सूचना मिलेगी.
एनआईओएस के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्र भूषण शर्मा न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं कि हमने इस कोर्स के लिए बहुत मेहनत की है, जान लगाई है. मैं बहुत आहत हूं क्योंकि जो सोचकर हमने इस कोर्स को बनाया था, चलाया था, जो देश हित को लेकर हम काम कर रहे थे उस पूरी तरह से उलट दिया गया. ये गलत है. जो लोग दो से ढाई लाख में इस कोर्स को कर रहे थे उन्हें प्रकाश जावड़ेकर ने मौका दिया था कि वे 10 हजार रुपए में सरकारी संस्था से ये कोर्स करें. ये उनकी बड़ी सोच थी."
वे आगे कहते हैं, "निश्चिततौर पर ये जांच का विषय है कि किसने ये निर्णय ले लिया कि ये कोर्स अमान्य होगा. कौन जाकर के सुप्रीम कोर्ट में सही तर्क नहीं दे रहा है. इसका हल है कि सुप्रीम कोर्ट में जाकर सही तर्क दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट को फिर कहना चाहिए कि यह डिग्री मान्य होगी, कहीं भी मान्य होगी क्योंकि यह भारत सरकार की एक सरकारी संस्था से डिग्री ली गई है. जहां भी ये अप्लाई करें इनको नौकरी में रखा जाए. इन बच्चों को गलत तरीके से परेशान किया जा रहा है."
आखिर में वे कहते हैं कि जो एनसीटीई ने किया है उस पर जितना कम बोलूं उतना ठीक है.
पटना हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए एनसीटीई ने इस कोर्स को वैध बताया. वहीं, एक लेटर जारी करते हुए कहा कि इसमें कहीं कोई खामी नहीं है. जिसके बाद जनवरी 2020 में पटना हाईकोर्ट ने भी कोर्स को वैध मान लिया. इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए त्रिपुरा हाईकोर्ट, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कोर्स धारकों के पक्ष में फैसला सुनाया था.
इसके बाद अलग-अलग राज्यों में इस कोर्स के आधार पर नौकरियां मिलने लगी. सितंबर 2023 में उत्तराखंड के निजी संस्थानों से रेगुलर डीएलएड कर रहे अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में इसे 18 महीने का कोर्स बताते हुए अवैध घोषित कर दिया.
नंदन बोहरा सुप्रीम कोर्ट में कोर्स के अवैध करार दिए जाने की पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं, ‘‘इसका कोर्स प्रशासनिक त्रुटियों के कारण भारत के राजपत्र से छूट गया. जो सुप्रीम कोर्ट में हमारी हार का कारण बना.’’
बोहरा ने दिसंबर 2023 में देश की राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस कोर्स को राजपत्र में प्रकाशित कराने की मांग की थी.
अवध किशोर पासवान भी इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए बिहार के जिला समस्तीपुर से दिल्ली में चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पहुंचे हैं. उनकी पत्नी रोमा कुमारी ने भी एनआईओएस से डीएलएड कोर्स किया है. वे कहते हैं कि सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है.
वहीं एक अन्य बिहार के सहरसा जिला निवासी आशुतोष कुमार झा कहते हैं, “मैं 10 साल से एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था. जब भारत सरकार की ये नीति आई कि सभी शिक्षकों का प्रशिक्षण होना जरूरी है तो मैंने भी इस योजना का लाभ पाने के लिए इस कोर्स को किया. लेकिन जब अब मैं किसी भी नई भर्ती के लिए आवेदन कर रहा हूं तो मुझे पता चल रहा है कि भारत सरकार द्वारा अब यह डिग्री ही अमान्य हो चुकी है. इसके चलते मैं न अब किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा पा रहा हूं और न ही किसी सरकारी स्कूल में. अब हमारे पास न ही उम्र बची है और न ही कुछ करने लायक बचे हैं. भारत सरकार ने हमारे साथ नाइंसाफी की है.”
उत्तर प्रदेश लखीमपुर खीरी निवासी अंजली खरे कहती हैं कि केंद्रीय विद्यालय संगठन के बाहर और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के घर के बाहर समेत कई अन्य जगहों पर प्रदर्शन करके अब वह थक गई हैं. कोई सुनवाई नहीं होती देख अब वह अपने घर लौट चुकी हैं.
वह कहती हैं कि जिस दिन मेरा ज्वाइिंग लेटर मिलना था उसी दिन मुझे पता चला कि जिस डिग्री के बल पर मैं सरकारी नौकरी पाने जा रही थी वह अमान्य है.
आगे कहती हैं कि केंद्रीय विद्यालय की नौकरी के लिए फरवरी 2023 में परीक्षा हुई और 26 अक्टूबर 2023 को रिजल्ट आया. इसके बाद 3 नवंबर से 8 नवंबर तक इंटरव्यू हुए. 28 नवंबर 2023 को शाम करीब 6 बजे हमारा इंटरव्यू का रिजल्ट आया जिसमें हम पास हो गए. उसी दिन करीब दो घंटे बाद ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसमें हमारी डिग्री अमान्य कर दी गई.
बावजूद इसके हमें रोजगार मेले में ज्वाइनिंग पत्र देने के लिए बुलाया गया था. जब हम वहां पहुंचे तो सारे मामले का पता चला. मेल और फोन के जिरए ज्वाइनिंग पत्र देने की बात कही गई थी. मुझे यह पत्र लखनऊ में मिलना था. दिनभर इंतजार करने के बाद मुझे ज्वाइनिंग लेटर देने से मना कर दिया गया.
वह कहती हैं कि जब हमारा दो साल का एंग्रीमेंट हुआ था तो सरकार ने हमारे साथ धोखा क्यों किया. हम न्याय के लिए कई दिनों तक दिल्ली की सड़कों पर दौड़ते रहे मगर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया.
ये कहानी सिर्फ अंजली की ही नहीं है ऐसे कई युवाओं की है, जिन्हें रोजगार मेले में ज्वाइनिंग लेटर देने के लिए बुलाया गया था लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटा दिया गया.
किरन बारला झारखंड राचीं की रहने वाली हैं. उनके साथ भी यही हुआ कि रोजगार मेला में उन्हें अपाइंटमेंट देने के लिए बुलाया गया था लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.
वह कहती हैं कि आप सोचिए कि आपको अपाइंटमेंट लेटर लेने के लिए बुलाया जाए और फिर आपके साथ ऐसा मजाक हो जाए तो क्या गुजरती है? मैंने सोचा भी नहीं था कि कभी मेरे साथ ऐसा होगा. हमारी गलती नहीं थी फिर भी हम भुगत रहे हैं. हमें बहुत बुरा लग रहा है, क्योंकि बहुत कम लोग होते हैं कि जो यहां पहुंच पाते हैं. सोचिए जहां मैं कॉन्टैक्ट पर पढ़ा रही थी मुझे अब वहां से भी हटा दिया गया है. जब केंद्र सरकार हमारे साथ ऐसा कर रही है तो फिर बाकी से क्या ही उम्मीद कर सकते हैं. मैं अब बेरोजगार हूं. जो नौकरी थी वह भी चली गई.
इसको लेकर हमने एनआईओएस की अध्यक्ष प्रो. सरोज शर्मा से भी बात की. हालांकि उनकी ओर से हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
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