Know Your Turncoats
आया राम गया राम, भाग 19: कांग्रेस के 5 दलबदलू नेता
2019 में कांग्रेस के कद्दावर नेता कृपाशंकर सिंह ने जब पार्टी छोड़ी थी तब उन्होंने कहा था कि वे भाजपा में शामिल नहीं होंगे. लेकिन रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय एजेंसियों के दायरे में आए सिंह ने 2 साल बाद भाजपा का दामन थाम ही लिया. अब उनका सोशल मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों से अंटा पड़ा है. वे उत्तर प्रदेश के जौनपुर से भाजपा के प्रत्याशी हैं.
छठे चरण में 58 लोकसभा क्षेत्रों में 23 दलबदलू उम्मीदवार अपने जीतने की आस लगाए बैठे हैं. इनमें सिंह समेत 5 प्रत्याशी कांग्रेस से आए हैं. इनमें नेहरू-गांधी परिवार के करीबी से लेकर कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के परिजन शामिल हैं.
आइए इन पर एक नजर डालते हैं.
अशोक तंवर: 5 साल में पांचवीं बार पार्टी बदली
अशोक तंवर हरियाणा की आरक्षित सीट सिरसा से भाजपा के उम्मीदवार हैं. 48 वर्षीय तंवर ने 1999 में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के सचिव पद से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. आगे चलकर, वे भारतीय युवा कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बन गए.
तंवर 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव लड़े. वे हरियाणा की सिरसा सीट से 3.5 लाख मतों से जीत गए. लेकिन उन्हें 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सफलता नहीं मिली.
2019 विधानसभा चुनावों के पहले उन्होंने यह कहकर पार्टी छोड़ दी कि मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा पार्टी की चुनाव समिति को प्रभावित कर रहे थे. उनके इस्तीफा देने के महीनों पहले, लोकसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस के शून्य पर सिमट जाने पर उन्हें कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष से हटाकर कुमारी सैलजा को यह पद दे दिया गया था. इस बार सिरसा से वे सेलजा के खिलाफ मैदान में हैं.
2019 में उनका हटाया जाना एक बड़ा झटका था. वे उन चुनिंदा लोगों में से एक थे, जिनका प्रदेशाध्यक्ष पद 2019 के चुनावों में पार्टी के बुरे प्रदर्शन के बावजूद बचा रहा था. एक वक्त में राहुल गांधी के खास माने जाने वाले तंवर ने अपने त्यागपत्र में कांग्रेस के “आस्तित्विक संकट” से गुजरने और “राहुल द्वारा बढ़ाए जा रहे युवा नेताओं को रास्ते से हटाने की साजिश” का आरोप लगाया. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में “सामंती मानसिकता वाले लोग भर” गए थे. 2014 में भी तंवर ने टिकट वितरण के मसले पर इस्तीफा देने की धमकी दी थी.
2019 से 2024 के बीच तंवर ने पांच बार पार्टी बदली. कांग्रेस छोड़ने के बाद विधानसभा चुनावों में उन्होंने दुष्यत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी के समर्थन में प्रचार किया. उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई.
छह महीने बाद, वे आम आदमी पार्टी में चले गए जो उनके समर्थकों की नजर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. लेकिन इस साल जनवरी में वे भाजपा में आ गए. उन्होंने आप के कांग्रेस के साथ गठजोड़ होने का आरोप लगाया. कथित तौर पर, उनकी नाराजगी आप से राज्यसभा टिकट न मिलने की वजह से थी.
दिलचस्प बात यह है कि 2019 में तंवर के कांग्रेस छोड़ते वक्त भाजपा से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि दलित नेता तंवर भाजपा में नहीं आएंगे क्योंकि भाजपा में केवल साफ छवि वाले लोगों का ही स्वागत होता है. इसी साल मार्च में भाजपा और जेजेपी के बीच दरार पड़ने के बाद खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
इन चुनावों के दौरान ही तंवर ने कहा था, “जब आपको एहसास हो कि पार्टी में कपटी लोग भरे पड़े हैं तो पार्टी बदलने में गलत क्या है?
तंवर ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक और पीएचडी की है. उनपर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में एक मुकदमा चल रहा है. पिछले पांच साल में उनकी संपत्ति में बेहद मामूली वृद्धि देखने को मिली है. 2019 में उनके पास 6.73 करोड़ रुपयों की संपत्ति थी जो 2024 में 6.44 करोड़ रुपयों की हो गई है.
मन्मथ कुमार राउत्रे: पूर्व विमानचालक, कद्दावर कांग्रेसी नेता के बेटे
मन्मथ कुमार राउत्रे उड़ीसा के भुवनेश्वर से बीजू जनता दल के सदस्य हैं. 42 वर्षीय पूर्व एयर इंडिया विमानचालक राउत्रे के पिता सुरेश कुमार राउत्रे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और 6 बार विधायक रह चुके हैं.
मन्मथ कथित तौर पर पिछले साल ही कांग्रेस में आए थे. लेकिन कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने में अनिच्छुक होने की वजह से सितंबर में उन्हें “अनुशासनहीनता” के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया.
राजनीति में नए मन्मथ लोकसभा चुनाव के ठीक पहले बीजू जनता दल में चले गए. उनके पार्टी बदलने पर उनके पिता नाराज थे. उन्होंने कहा कि मन्मथ उनकी मर्जी के खिलाफ गए. 80 वर्षीय राउत्रे आखिरकार अपने बेटे के समर्थन में आ गए पर उनके बड़े बेटे सिद्धार्थ राउत्रे ने मन्मथ को परिवार तोड़ने वाला कहा. उन्होंने कहा, “मेरे पिता द्वारा पिछले 60 सालों में कमाई प्रतिष्ठा और सौहार्द मेरे छोटे भाई ने बर्बाद कर दिया है. सत्ता की भूख ने उसे अंधा कर दिया है.”
पहली बार चुनाव लड़ रहे मन्मथ ने हलफनामे में अपने पास 15.57 करोड़ रुपयों की संपत्ति बताई है. उनपर विश्वासघात और आपराधिक धमकी के दो मामले भी हैं.
ललितेश पति त्रिपाठी: उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस के इकलौते प्रत्याशी
ललितेश पति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के भदोही से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 46 वर्षीय ललितेश, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परपोते हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत कांग्रेस से की थी. वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष भी बने. 2012 विधानसभा चुनावों में उन्हें मिर्जापुर से जीत हासिल हुई थी पर 2017 में वे हार गए.
ललितेश, कांग्रेस की प्रियंका गांधी के पूर्व में सहयोगी रह चुके हैं. 2021 में वे टीएमसी में यह कहकर चले गए कि वे पार्टी में रहने का अधिकार खो चुके हैं. उन्होंने पार्टी पर ‘निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी’ का आरोप भी लगाया. हालांकि, उन्होंने यह साफ किया कि कांग्रेस की विचारधारा इस देश की आत्मा है और उनके साथ हमेशा रहेगी.
त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस के इकलौते उम्मीदवार हैं. वे पेशे से उद्यमी हैं. उनके पास ब्रांडफोर्ड विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री है. हलफनामे में उन्होंने अपने ऊपर महिलाओं पर हमला, धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी के तीन मुकदमे होने की जानकारी दी है. उनकी संपत्ति 2019 से अबतक 32 प्रतिशत बढ़ी है. 2019 में उनके पास 7.79 करोड़ रुपये की संपत्ति थी जो अब 10.32 करोड़ रुपये की हो गई है.
कृपाशंकर सिंह: ईडी के दायरे में, धारा 370 पर कांग्रेस के रुख के खिलाफ पार्टी छोड़ी
कृपाशंकर सिंह उत्तर प्रदेश के जौनपुर से भाजपा के उम्मीदवार हैं. 73 वर्षीय सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत 1990 में रोजगार की तलाश में जौनपुर छोड़कर मुंबई जाने के बाद की.
आगे चलकर, सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए. 1999 के विधानसभा चुनावों को जीतकर एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार में 15 साल तक वे कैबिनेट मंत्री रहे. वे कलीना से 2009 का लोकसभा चुनाव जीते पर 2014 में हार गए. 2019 में यह कहकर कांग्रेस से अलग हो गए कि “वे जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने पर कांग्रेस के रुख से सहमत नहीं हैं”.
वह लंबे समय तक विवादों में उलझे रहे. 2012 में मुंबई महानगरपालिका चुनावों में पार्टी के बुरे प्रदर्शन के बाद उन्होंने पार्टी के मुंबई अध्यक्ष पद पर चार साल सेवा देने के बाद इस्तीफा दे दिया था. उसी साल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस को सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक अवचार के मामले में मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था.
2012 में उनपर कई मुकदमे हुए. इनमें भ्रष्टाचार के आरोप, 320 करोड़ की आय से अधिक संपत्ति, रिश्वत और आयुध अधिनियम के तहत अनुमति से अधिक कारतूस रखने के मामले थे. 2015 में उनपर एक आरोपपत्र भी दाखिल हुआ था लेकिन 3 साल बाद एक अदालत ने उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में राहत दे दी क्योंकि अभियोजन पक्ष उपयुक्त अधिकारी से उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति पाने में नाकाम रहा था.
आय से अधिक संपत्ति और आयुध अधिनियम के मामलों में ईडी और सीबीआई के रडार में रहते हुए, जुलाई 2021 में, उन्होंने भाजपा का हाथ थाम लिया. उन्होंने 2019 में कहा था कि “सही वक्त” आने पर वे अपने राजनीतिक रुख का खुलासा करेंगे. उन्होंने साथ ही ये भी कहा था कि वे “भाजपा में नहीं जाएंगे”. इसके बावजूद वे भाजपा में चले गए. अब उनके एक्स अकाउंट पर योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी की तस्वीरों की बाढ़ आई है. वे राहुल गांधी पर “महाराजा की तरह दिखावा” करने का आरोप लगाती पोस्ट करते दिखते हैं.
उन्होंने कक्ष 12वीं तक पढ़ाई की है. उन पर 2 मामले लंबित हैं. पिछले 10 साल में उनकी संपत्ति 135 प्रतिशत बढ़ी है. अप्रैल 2024 में उनकी संपत्ति 7.68 करोड़ रुपये की है.
महाबल मिश्रा: 3 बार के विधायक, पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासित सांसद
महाबल मिश्रा पश्चिमी दिल्ली से आप के उम्मीदवार हैं. 70 वर्षीय महाबल ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत दिल्ली महानगर पालिका के सदस्य के तौर पर 1990 के अंत में कांग्रेस से की थी. वे नसीरपुर से 1998, 2003 और 2008 के तीन विधानसभा चुनावों में जीते. वे कांग्रेस की ही टिकट पर पश्चिमी दिल्ली से 2019 लोकसभा चुनाव भी जीते.
वे 26 साल तक कांग्रेस के साथ रहे. 2020 दिल्ली विधानसभा चुनावों के ठीक पहले उन्हें “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए निष्काषित कर दिया गया था. दरअसल, उन्होंने अपने बेटे विनय मिश्रा के लिए चुनाव प्रचार किया था जो आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे.
खबरों के मुताबिक, विनय मिश्रा को कांग्रेस द्वारा टिकट नहीं देने पर वे अरविंद केजरीवाल की पार्टी में आ गए थे. वे द्वारका विधानसभा सीट से जीत भी गए. एक साल बाद महाबल मिश्रा भी आप में आ गए.
महाबल मिश्रा की संपत्ति पिछले पांच सालों में मामूली तौर पर घट गई है. पांच साल पहले उनके पास 45 करोड़ रुपयों की संपत्ति थी, जो 2024 में 43 करोड़ रुपये की रह गई है. वे 10वीं कक्षा तक पढ़े हैं. उनपर दो मुकदमे लंबित हैं. इनमें धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी के मामले हैं.
शोध सहयोग : दृष्टि चौधरी
अनुवाद- अनुपम तिवारी
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
इस श्रृंखला के अन्य भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back