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पटियाला में परनीत कौर की मुश्किलें: भाजपा कार्यकर्ताओं का मनमुटाव और किसान आंदोलन का असर
पंजाब की राजनीति में कांग्रेस का लंबे समय तक चेहरा रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह अब भाजपा के साथ हैं. सिंह पटियाला के राजा हैं. उनकी पत्नी परनीत कौर, पटियाला से 1999 से 2014 तक लगातार सांसद रही हैं. 2014 में आम आदमी पार्टी (आप) के धरमवीर गांधी ने कौर को मात दी थी.
2019 लोकसभा चुनाव में गांधी ‘आप’ से अलग होकर चुनाव लड़े. कौर एक बार फिर चुनाव जीतीं. अब तक कौर कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही थीं लेकिन इस बार भाजपा की तरफ से मैदान में हैं, वहीं गांधी कांग्रेस के टिकट पर फिर से उनके सामने हैं.
आप ने यहां से सूबे के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर बलवीर सिंह को उतारा है तो शिरोमणि अकाली दल ने नरिंदर कुमार शर्मा को, जो अकाली दल के खजांची हैं.
पटियाला लोकसभा क्षेत्र के इतिहास की बात करें तो यहां से अब तक भाजपा कभी चुनाव नहीं जीत पाई है. 1952 से लेकर 2019 तक के हुए लोकसभा चुनावों में 11 बार कांग्रेस, तीन बार अकाली दल, एक-एक बार आप और निर्दलीय सांसद बने हैं. भाजपा के चुनाव नहीं जीतने के पीछे वजह है कि अकाली दल-भाजपा के गठबंधन में यह सीट अकाली के पास रही है. लेकिन क्या कौर के सहारे इस बार भाजपा यहां जीत दर्ज करा पायेगी? इसका जवाब हमें 4 जून को मिलेगा.
भाजपा के पुराने कार्यकर्ता बनाम नए कार्यकर्ता
अमरिंदर सिंह और परनीत कौर के साथ कांग्रेस में शामिल होने के बाद कई नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए है. सालों से भाजपा कार्यकर्ता जिस राजपरिवार के खिलाफ प्रचार करते थे, अब उन्हें उनके ही पीछे घूमने के लिए मज़बूर होना पड़ा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने भाजपा के कई कार्यकर्ताओं से बात की. वो कहते हैं, ‘‘पार्टी हाईकमान का आदेश ही भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए आखिरी आदेश होता हैं. वहां से जिसे चुन लिया गया हमें उनके लिए काम करना होता है. हमारी ट्रेनिंग इसी तरह से होती है. लेकिन अभी यहां जो पुराने भाजपा कार्यकर्ता हैं, वो उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.’’
पटियाला के फव्वारा चौक के पास भाजपा का लोकसभा चुनाव कार्यालय बना हुआ है. इसके बाहरी हिस्से में चार नेताओं की बड़ी-बड़ी तस्वीर लगी हुई हैं. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, पीएम नरेंद्र मोदी, परनीत कौर और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ की. मालूम हो कि जाखड़ भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. वह पार्टी प्रदेशाध्यक्ष भी थे.
जब हम यहां पहुंचे तो भाजपा नेताओं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 23 मई को पटियाला में होने वाली रैली को लेकर बैठक चल रही थी. भाजपा के स्थानीय नेता अनिल श्री यहां बैठे पार्टी के सदस्यों से बात कर रहे थे. श्री ने कहा, ‘‘किसान फिरोजपुर दोहराना चाहते थे लेकिन हमारे कार्यकर्ताओं की कोशिश से ऐसा नहीं हो पाया.’’
2022 में पीएम नरेंद्र मोदी पंजाब के फिरोजपुर आए थे. जहां किसानों ने विरोध किया था. यहां कथित तौर पर उनकी सुरक्षा में चूक हुई थी. यहां से लौटकर मोदी ने कहा था, ‘‘मैं जिन्दा लौट आया’’.
बीते 3 महीने से पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान 23 मई को पटियाला में पीएम की रैली में पहुंचकर एमएसपी पर कानून समेत अपने अन्य मुद्दों पर सवाल पूछना चाहते थे, लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोक दिया गया. हालांकि, अनिल श्री यहां दावा कर रहे थे कि भाजपा के कार्यकर्ताओं के कारण ‘फिरोजपुर’ नहीं दोहरा पाया.
यहां हमारी मुलाकात वीरेंद्र कुमार गुप्ता से हुई. मूलतः गोरखपुर के रहने वाले गुप्ता का परिवार सालों पहले पटियाला आ गया. इनका जन्म यहीं हुआ है. शुरू से भाजपा से जुड़े रहे और वर्तमान में जिला महामंत्री हैं.
पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और नाराजगी के सवाल पर गुप्ता कहते हैं, ‘‘देखिए नाराजगी तो 100 प्रतिशत है. महारानी जी के आने से हमें तो कोई परेशानी नहीं है लेकिन पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है. उससे परेशानी है. भाजपा ने कोई भी उम्मीदवार दे दिया, उससे कार्यकर्ताओं को कोई परेशानी नहीं होती है. लेकिन कार्यकर्ताओं को अनदेखा किया जाएगा तो उससे दिक्कत है. जैसे अभी प्रधानमंत्री जी आए थे. मैं जिले का महामंत्री हूं. मुझे ही कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई. जो लोग उनके (कौर के) साथ आए हैं, उन्हें ही सारी जिम्मेदारी दी गई है. चाहे पीएम का स्वागत करना हो या उन्हें विदा करना हो. चाहे व्यवस्था का मामला हो. कहीं हमें पूछा नहीं गया. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पुराने कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं किया जाएगा?’’
गुप्ता आगे कहते हैं, ‘‘पटियाला में भी भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को सिर्फ मूकदर्शक बनाकर रख दिया गया है. बिना उनके (कौर के) लोगों के कहे पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता है. वो पुराने कार्यकताओं पर भरोसा नहीं कर रहे हैं. हम तो काम कर रहे हैं क्योंकि हमें कमल के फूल के अलावा कुछ नजर नहीं आता है. महारानी जी हमें कोई परेशानी नहीं है लेकिन उनके साथ जो लोग आए हैं, वो माहौल खराब कर रहे हैं.’’
गुप्ता ही नहीं यहां मिले कई अन्य कार्यकर्ता भी इस तरह की बातें करते नजर आते हैं. अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए हरदेव सिंह बल्ली अभी पार्टी में जिला महामंत्री के पद पर हैं. बल्ली पटियाला के राज परिवार के करीबी माने जाते हैं.
पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के आरोपों को बल्ली सिरे से नकारते हैं. वो कहते हैं, ‘‘ऐसी बात नहीं है. भाजपा में जो कार्यकर्ता काम करना चाहता है, चाहे वो पुराना हो या नया हो. अगर वो मन से करता है तो वो (राज परिवार) सीने से लगाते हैं और अगर मन से नहीं करता तो वो काम नहीं देते हैं. जो बंदा काम करना चाहता है, उसे आगे लेकर आना चाहते हैं. मगर जो काम करना ही नहीं चाहता, नुक्स ही निकालना चाहता है. तो क्या किया जा सकता है. यहां इज्जत-मान सबका ही है. चाहे वो नया हो या पुराना हो. शर्त यह है कि वो काम करे.’’
हालांकि, शहर के अन्य भाजपा कार्यकताओं के मन असंतोष साफ दिखता है. हाईकमान की बात मान वो पार्टी के लिए काम तो कर रहे लेकिन बेमन से जुड़े नजर आ रहे हैं.
अमरिंदर सिंह भी अभी तक चुनाव प्रचार से दूर हैं. वो ना तो कौर के नॉमिनेशन में शामिल हुए थे और ना ही नरेंद्र मोदी की रैली में आए. शहर में लगे पोस्टरों पर उनकी तस्वीर तो दिखती है लेकिन अभी तक सिंह ने कौर के लिए कोई सभा या प्रचार नहीं किया जबकि चुनाव में अब छह दिन ही बचे हैं.
बल्ली, सिंह के चुनाव प्रचार में शामिल होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘उनकी तबीयत भी ठीक नहीं है. कुछ दिन पहले ही जांच हुई है. चलने में उन्हें तकलीफ है. पीएम नरेंद्र मोदी की रैली में वो शामिल होना चाहते थे लेकिन स्टेज पर चढ़ने-उतरने में परेशानी होती तो नहीं आए. स्वास्थ्य ही कारण है.’’
कांग्रेस कमज़ोर हुई?
कैप्टन अमरिंदर सिंह, पटियाला ही नहीं प्रदेश कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे. उनके पार्टी से जाने का क्या असर हुआ? कांग्रेस के लोकसभा चुनाव के लिए बने कार्यालय में मौजूद नेता किसी भी तरह का नुकसान होने से इनकार करते हैं. वो उंगलियों में उन नेताओं का नाम गिनाने लगते हैं जो अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं.
कांग्रेस के चुनावी कार्यालय के इंचार्ज प्रदीप दीवान बताते हैं, ‘‘हमें भी भाजपा में आने का न्यौता मिला था. लेकिन हम कट्टर कांग्रेसी है. हमारे घरों में बच्चे जन्म लेते हैं तो रोते नहीं, कांग्रेस ज़िंदाबाद के नारे लगाते हैं. अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस के पांच-सात लोग ही गए हैं. जिसमें यहां के प्रधान (जिला अध्यक्ष) के के मलहोत्रा, यहां के मेयर संजीव शर्मा और एकाध लोग गए हैं. राजा साहब के जाने से कांग्रेस यहां कमजोर नहीं हुई बल्कि मज़बूत ही हुई है क्योंकि वो महल से निकलते नहीं थे.’’
न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के तीन पूर्व विधायक मदन लाल जलालपुर, हरदयाल सिंह और राजिंदर सिंह कांग्रेस से दूरी से बनाकर भाजपा का सहयोग रहे हैं. हालांकि, दीवान इससे इनकार करते हैं और कहते हैं कि हरदयाल सिंह को छोड़कर बाकी दोनों पूर्व विधायक पार्टी के प्रचार में शामिल हैं. वो यहां दफ्तर में भी आते हैं. हरदयाल सिंह नहीं आ रहे क्योंकि वो टिकट मांग रहे थे. नहीं मिला तो नाराज़ हैं.’’
48 साल से कांग्रेस सेवा दल में काम करने वाले रंजीत सिंह भी दीवान की बातों से इत्तेफ़ाक़ रखते हुए कहते हैं कि यहां कांग्रेस की जमीनी पकड़ मजबूत रही है. अमरिंदर सिंह तो कभी कांग्रेस में रहे कभी अकाली दल में चले गए. फिर कांग्रेस में लौटे और अब भाजपा में चले गए हैं. वो पार्टी बदलते रहे हैं. उन्हें सत्ता से मतलब रहा न कि कांग्रेस कैडर से. हालांकि, पटियाला में कांग्रेस का कैडर शुरू से ही मज़बूत रहा है. उनके जाने के बाद भी ज़्यादा असर पार्टी पर नहीं पड़ा है.’’
रंजीत सिंह बताते हैं कि उल्टा महारानी को कांग्रेस छोड़ने का नुकसान हो रहा है. क्योंकि यहां कांग्रेस का वोट था किसी एक व्यक्ति का नहीं.
हालांकि, एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं, ‘‘यहां लोग शाही महल को बहुत मानते हैं. खासकर पटियाला शहर में. तो ये कहना कि महारानी के जाने से कांग्रेस पर असर नहीं पड़ेगा यह थोड़ा अजीब होगा."
क्या पार्टी बदलने का नुकसान महारानी को हो रहा है, जब हमने यह सवाल स्थानीय लोगों से पूछा तो वो भी इसका हां में जवाब देते हैं. यहां मिले संदीप शर्मा बताते हैं, ‘‘कांग्रेस का पक्का वोटर तो पार्टी बदलने से नाराज़ है. लेकिन मुझे लगता है कि महारानी ही फायदे में हैं. शहर का वोट जो भाजपा को मिलता है वो उन्हें मिल जाएगा. हिन्दू वोट भाजपा के साथ ही है. ऐसे में वो आसानी से जीत सकती हैं.’’
पटियाला में हिंदू वोटर बड़ी तादाद में है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, पटियाला जिले की कुल जनसंख्या 18 लाख 95 हज़ार 686 है. इसमें से 55.91 प्रतिशत सिख, 41.32 % प्रतिशत हिंदू और 2.11 प्रतिशत मुस्लिम हैं और बाकी धर्मों के लोग हैं. यहां अन्य राज्यों से आकर बसने वालों की संख्या भी ठीक-ठाक है.
हिंदू मतदाताओं का भाजपा के प्रति झुकाव यहां साफ नजर आता है. कांग्रेस दफ्तर के बगल में ही एक बैंक में काम करने वाले रितेश शर्मा से हमारी बात हुई. वो आम आदमी पार्टी की सरकार के बिजली माफ़ करने और अस्पताल बनाने से खुश हैं लेकिन इनके लिए राम मंदिर का निर्माण भी महत्वपूर्ण है. शर्मा न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मोदी ने राम मंदिर बनवाया है. यह सबसे ज़रूरी चीज़ है. मेरे घर पर जब चुनाव को लेकर बात होती है तो मेरी पत्नी राम मंदिर के पक्ष में बात करती हैं. वह ज़रूरी था जो मोदी जी पूरा कर दिया.’’
शहर के ही रहने वाले बुजुर्ग दीनानाथ पान-सिगरेट की दुकान चलाते हैं. महंगाई को लेकर परेशान हैं. कहते हैं कि मोदी जी ने महंगाई बढ़ा रखी है. खाने-पीने की चीजें महंगी हो गई हैं. गेहूं पंजाब में ही पैदा होता है और यहीं के लोगों को महंगा आटा खरीदना पड़ रहा है. सरकार कहती है कि ये मुफ्त दिया, वो मुफ्त दिया, मेरा कहना है कि कुछ भी मुफ्त न दें लेकिन कम से कम राशन सस्ता कर दें. गैस भी सस्ता नहीं मिल रहा है. बच्चों को नौकरी तक नहीं मिल रही है.’’
महंगाई और रोजगार को लेकर अपना दुःख कहने के बाद दीनानाथ कहते हैं, ‘‘धरमवीर गांधी भी अच्छे व्यक्ति हैं. बीते दिनों मैं उनके यहां अपनी पत्नी को इलाज कराने ले गया था तो 20 दिन की दवाई उन्होंने फ्री में दे दी थी. लेकिन हम भाजपा को ही वोट करेंगे. क्योंकि हम महारानी के वोटर हैं. यहां की नदी में जब भी बाढ़ की स्थिति होती है तब राज परिवार नथ चूड़ा चढ़ाता है. और नदी शांत हो जाती है. एक बार राज परिवार अमेरिका में था और नदी को नथ चूड़ा नहीं चढ़ा तो बाढ़ आ गई थी.’’
दीनानाथ से हम बात कर रहे होते हैं तभी पास में ही गार्ड का काम करने वाले एक शख्स हमारे बातचीत में शामिल हो जाते हैं. वो कहते हैं, ‘‘यहां का 80-90 प्रतिशत हिंदू वोटर भाजपा के साथ है. कोई बोल नहीं रहा क्योंकि लोग डरे हुए हैं. अमृतपाल यहां कितना उल्टा-सीधा बोल रहा था. भाजपा ने धारा 370 को हटा दिया, देश एक संविधान से चल रहा है. विदेश के नेता अब मोदी जी से फोन पर सलाह लेते हैं. विदेश अब भारत पर निर्भर हो गया है. राम मंदिर बनवाकर उन्होंने हिंदुओं का मान बढ़ाया है.’’
हालांकि, यहां अकाली दल के उम्मीदवार भी हिंदू ही हैं. ऐसे में हिंदुओं का वोट अकाली, भाजपा और कांग्रेस में बंटने की उम्मीद है.
गांवों में भाजपा की नो एंट्री
शहरों में भाजपा हमेशा से बढ़त में रही है लेकिन गांवों में भाजपा के नेताओं को वोट मांगने जाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. किसान आंदोलन में पटियाला जिले के किसानों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. अब वो भाजपा नेताओं को गांवों में नहीं आने दे रहे हैं. काले झंडे दिखा रहे हैं.
बल्ली इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘हम गांव में जाते थे तो विरोध होता था लेकिन अब इसमें कमी आई है. हमने ग्रामीणों से कहा कि वोट का अधिकार आपको है. आपको किसे वोट करना है, यह आपका अधिकार है. विरोध करना, काले झंडे दिखाना यह अच्छी बात नहीं है. आप वोट नहीं देना चाहते हमें ना दो. आप यह न कहो कि भाजपा को मीटिंग नहीं करने देंगे, जलसा नहीं करने देंगे. वोट न डालो आपको मर्जी है.’’
धरेरी जट्टां गांव में हमारी मुलाकात 70 वर्षीय प्रभु सिंह से हुई. गांव पटियाला शहर से करीब 15 किलोमीटर है. सिंह भी किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से भूमिका निभा चुके हैं.
चुनावी मुद्दा पूछने पर सिंह बताते हैं, ‘‘हमारा पहला मुद्दा एमएसपी पर गारंटी का कानून ही है. पंजाब में भाजपा नहीं आएगी.’’ यहां भाजपा से महारानी खड़ी हैं, उनका परिवार तो यहां लंबे समय से जीतता रहा है? इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘‘वो दलबदलू हैं. उसके साथ हम थोड़ी जाएंगे. हम अपनी जगह पर रहेंगे. हमारे गांव में 900 के करीब वोट हैं. पहले यहां अकाली दल का जोर रहता था लेकिन अब कांग्रेस का जोर है. झाड़ू वाले से भी हमारे गांव वाले दुखी हैं. उसने भी कोई काम नहीं किया है.’’
इनके साथ ही बैठे सेवा सिंह पीएम नरेंद्र मोदी पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘इन्होंने बुरा हाल कर दिया हम लोगों का. पहले दिल्ली में 13 महीने तक सड़कों पर बैठे रहे. उन्होंने हमारी बात मानी लेकिन अब उससे ही मुकर गए हैं. पटियाला में भाषण देने आए थे, किसान वहां जाना चाहते थे, जाने नहीं दिया. किसान तो वहां सवाल ही पूछने जा रहे थे.’’
परनीत कौर को लेकर जब हमने सवाल किया तो सेवा सिंह कहते हैं, ‘‘इन्हें जनता की चिंता नहीं है. इन्हें अपनी कुर्सी की चिंता है. इन्हें राज चाहिए. कौर अभी भाजपा में गई. यहां से वो 15 साल सांसद रही है. इनका पटियाला में बुरा हाल है. लोग पिंड (गांव) में नहीं आने दे रहे हैं. मेरे गांव में अभी तक वोट मांगने नहीं आई हैं और अगर आती हैं तो हम अंदर नहीं आने देंगे. लोग इनसे सवाल पूछते हैं. इनसे पूछा जा रहा है कि पहले किसान आंदोलन के समय जो वादा भाजपा ने किया वो क्यों भूल गए. 13 फरवरी को हम दोबारा दिल्ली जाने के लिए निकले तो सड़कों पर कीले क्यों गाड़ दी और दीवारें क्यों बना दी. जिसका ये जवाब नहीं दे पाते हैं.’’
हम दो-तीन गांव और गए जहां के किसानों ने लगभग यही बातें दोहराई हैं.
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