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अयोध्या: विकास की भेट चढ़ी दुकानें, दुकानदारों पर रोजी रोटी का संकट
22 जनवरी को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है. जिसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है. वहीं, राम मंदिर से करीब पांच सौ मीटर दूर ठेले पर दुकान लगाने वाली 60 वर्षीय राम कुमारी को चिंता है कि 22 जनवरी के बाद उनका क्या होगा. उनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी? प्रशासन उनका ठेला हटा देगा तो वो क्या करेंगी?
ऐसा नहीं है कि कुमारी शुरू से ही ठेले पर दुकान लगाती थीं. नवनिर्मित राम मंदिर के गेट से करीब दो सौ मीटर दूर स्थित राम गुलेला मंदिर की जमीन पर 36 दुकानें थीं, जिसमें दो दुकान कुमारी के परिवार के पास थीं. एक इनके पति परशुराम और दूसरी एक अन्य सदस्य शिवशंकर के नाम पर थीं. जहां यह बीते 27 सालों से दुकान चला रही थीं.
रामगुलेला मंदिर, हनुमानगढ़ी से राम मंदिर जाने के रास्ते पर पड़ता है. यहां आने वाले श्रद्धालु पहले हनुमानगढ़ी में दर्शन करते हैं और इसी रास्ते से होकर राम मंदिर जाते हैं. साल 2022 में जब इसका चौड़ीकरण शुरू हुआ तो हनुमानगढ़ी मंदिर के ठीक सामने 28 दुकानों और राम गुलेला मंदिर के पास से 36 दुकानों को तोड़ दिया गया.
राम कुमारी की तरह पुरुषोत्तम झा की भी राम गुलेला मंदिर की जमीन में बनी एक दुकान थी. उनकी भी दुकान तोड़ दी गईं. मूलतः बिहार के रहने वाले झा का परिवार लंबे समय से अयोध्या में रहता है. उनका यहीं पर घर हैं. पहले यह दुकान इनके पिता चलाते थे, उनकी तबीयत खराब होने के बाद ये चलाने लगे. झा भी अब ठेले पर दुकान लगाते हैं. कुमारी की तरह ये भी भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं.
राम कुमारी और पुरुषोत्तम झा ही नहीं अयोध्या में सैकड़ों दुकानदार आजकल इसी चिंता से गुजर रहे हैं. कुमारी बताती हैं, ‘‘सड़क में दुकान लगाते हैं तो प्रशासन के लोग मारते हैं. भगाते हैं. ठेला नहीं लगाने देते हैं. खेती बाड़ी है नहीं. कमाना खाना है. अगर कमाएंगे नहीं तो घर में चूल्हा नहीं जलेगा. जब से यह (हनुमानगढ़ी से राम मंदिर) खुली है तब से यहां हमारी दुकान थी. देर रात को हमारी दुकान तोड़ दी गई. हमारा समान भी उठाकर ले गए थे. हालांकि, बाद में वापस कर दिया.’’
कुमारी आगे बताती हैं, ‘‘सरकार की तरफ से एक लाख रुपए मिले हैं. उससे मैं इंकार नहीं कर सकती हूं. तब सरकार ने वादा किया था कि आपको दुकान देंगे. अब सरकार दुकान दे भी रही है लेकिन उसके लिए 25-30 लाख रुपए मांग रही है. हम इतने रुपए कहां से लाएं. इतना पैसा तो हमारे पास नहीं है.’’
अयोध्या में तो वैसे कई मार्गों का चौड़ीकरण हुआ है लेकिन तीन मार्गों के चौड़ीकरण ने काफी दुकानदारों को प्रभावित किया. पहला भक्ति पथ, यह रास्ता हनुमानगढ़ी से राम मंदिर को जाता है. इसकी लम्बाई तकरीबन 900 मीटर है. यह सड़क पहले करीब 7 मीटर चौड़ी हुआ करती थी और अब 14 मीटर है. दूसरी सड़क जो बिरला धर्मशाला से राम मंदिर को जाती है- जन्मभूमि पथ. इसकी भी दूरी 800-900 मीटर है. यह सड़क आज 30 मीटर तक चौड़ी है. पहले बेहद छोटी गलीनुमा होती थी. तीसरी सड़क राम पथ, यह 13 किलोमीटर लंबी है, फैज़ाबाद से लता मंगेशकर चौराहे तक की यह सड़क पहले 10-12 मीटर चौड़ी हुआ करती थी और अब 20 मीटर है.
चौड़ीकरण के दौरान प्रभावित होने वाले व्यापारियों के लिए संघर्ष करने वाले समाजवादी पार्टी के नेता और अयोध्या उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष नंदू गुप्ता न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं कि इस चौड़ीकरण से चार हज़ार से ज़्यादा दुकानदार प्रभावित हुए हैं. वहीं, 1600 के करीब लोगों की दुकानें चली गईं. प्रशासन यह आंकड़ा आठ सौ बताता है. जिसको लेकर हमारी बहस हुई और हमने उन्हें प्रभावितों की पूरी लिस्ट दी थी.
भक्ति मार्ग और जन्मभूमि मार्ग पर धवस्त दुकानों के निशान आपको दिखाई नहीं देंगे क्योंकि यहां रंगरोगन किया जा चुका है. लेकिन राम पथ पर जगह-जगह टूटी दीवारों के निशान अब भी हैं.
नंदू गुप्ता कहते हैं, “जब इन दुकानदारों की दुकानें गिराई जा रही थी तब सरकार की तरफ से तत्काल एक लाख की पुनर्वास सहायता राशि दी गई. साथ ही कहा गया कि सरकार आने वाले समय में आपको दुकान भी देगी लेकिन तब यह नहीं बताया गया था कि सरकार दुकान के बदले पैसे भी लेगी.”
अयोध्या विकास प्राधिकरण ने यहां के टेढ़ी बाजार पर दो बड़े कॉम्पलेक्स बनवाए हैं. जिसका नाम अरुंधति बहुमंजिला पार्किंग एवं व्यावसायिक कॉम्लेक्स है. इसके अलावा एक ऐसा कॉम्लेक्स रेलवे स्टेशन के पास बना हुआ. यहां इन दुकानदारों को दुकान तो अलॉट हो रही हैं लेकिन बदले में प्राधिकरण मोटी रकम वसूल रहा है. वहीं, इसके साथ कई अन्य शर्ते भी हैं.
भक्ति मार्ग से ही हटाए गए दुकानदार मनोज कनक मंदिर रोड पर एक छोटी किराए की दुकान चला रहे हैं. आने वाले समय में इस मार्ग का भी चौड़ीकरण होना है. उन्हें डर है कि यह दुकान भी ना चली जाए. आखिर आप प्राधिकरण से दुकान क्यों नहीं लेते, इस सवाल पर मनोज कहते हैं, ‘‘हमें सरकार विस्थापित मानती है. विस्थापित का मतलब क्या होता है? सरकार हमसे दुकान के बदले 20-22 लाख रुपए ले रही है. अधिकारियों ने तब कहा था कि आपको लागत मूल्य पर दुकान दी जाएगी. तो ऐसी कौन सी दुकान है जिसकी बीस लाख लागत है? वो भी सरकार 30 साल की लीज पर दे रही है. जब वो हमसे पूरा पैसा ले रही है तो लीज पर देने का क्या मतलब है.
मनोज एक और चिंता की तरफ इशारा करते हैं जिसका जिक्र हमसे कई दुकानदारों ने किया. वो कहते हैं, ‘‘हमारी दुकान चालू हालत में थी. राम मंदिर के बेहद पास थी. अभी जो दुकान बनी है वो राम मंदिर से करीब दो किलोमीटर दूर है. वहां नीचे पार्किंग बनी है, ऊपर दुकाने हैं. जो श्रद्धालु आएंगे वहां गाड़ी पार्क कर मंदिर दर्शन के लिए जाएंगे. अब आप बताएं आते ही कोई खरीदारी शुरू नहीं कर देता है. वो पहले दर्शन के लिए आएंगे. अगर कोई दर्शन करने आएगा तो मंदिर के आसपास से खरीदारी कर लेगा या वहां जाकर करेगा. पैसे के साथ-साथ यह भी एक बड़ी वजह है कि कोई वहां दुकान नहीं लेना चाहता है.’’
महंतों ने उठाया फायदा
राम कुमारी, मनोज या पुरुषोत्तम झा, इन तीनों की दुकान रामगुलेला मंदिर की जमीन में थीं. मंदिर ने दुकान तोड़े जाने का कोई विरोध नहीं किया. जब हम इसके केयरटेकर से बात करने गए तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया.
वहीं, कुछ लोग इसके पीछे मंदिर का मौन समर्थन भी बताते हैं. इसकी वजह बताते हुए वो कहते हैं कि ये दुकानदार लम्बे समय से मंदिरों की दुकानों में किराये पर रहते थे. जिसके बदले वो बेहद मामूली रकम अदा करते थे. कोई दो हज़ार रुपए महीना तो कोई चार हज़ार रुपए देता था.
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर फैसला आने से पहले तक कभी कभार किराये को लेकर बहस हुई. मामला कोर्ट में गया लेकिन फैसला आने के बाद यहां ज़मीन की कीमतें तेजी से बढ़ी. ऐसे में दुकान का किराया भी बढ़ा. सड़कों का चौड़ीकरण बढ़िया मौका था जब इन दुकानदारों को हटा दें. इन दुकानों के पीछे मंदिर की और भी जमीन है जिसपर वो दुकानें बनाकर भविष्य में किसी को किराए पर देने और मोटी रकम वसूलेंगे.
इस तरह से अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण से चारों तरफ-चमक ही चमक है लेकिन कुछ लोग ऐसे है जिनका भविष्य अंधकारमय हो गया है. डर के मारे वो कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं. जैसे कि राम कुमारी कहती हैं, ‘‘सरकार जो चाहे कर सकती है. हम तो चाहते है कि हमें बस एक दुकान मिल जाए.’’
देखिए ये रिपोर्ट.
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