निष्कासन के बाद संसद के बाह महुआ मोइत्रा.
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एथिक्स कमेटी की जांच एक ‘फिक्स्ड मैच’: दर्शन हीरानंदानी को पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुलाया गया?

शुक्रवार को लोकाचार समिति (एथिक्स कमेटी) की रिपोर्ट के आधार पर पैसों के बदले सवाल पूछने (कैश-फॉर-क्वेरी) के मामले में लोकसभा ने महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता खत्म कर दी. मोइत्रा, पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर से सांसद थीं. 

महुआ मोइत्रा पर इसी साल 14 अक्टूबर को आरोप लगा था कि उन्होंने अपना लॉगिन पासवर्ड मशहूर व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी को दिया.  इस लॉगिन पासवर्ड का इस्तेमाल कर सांसद लोकसभा में सत्र के दौरान सवाल पूछते हैं. आरोप लगाया गया कि हीरानंदानी अपने व्यवसायिक हित से जुड़े सवाल लोकसभा में पूछते थे. इसके बदले उन्होंने मोइत्रा को कई गिफ्ट्स भी दिए हैं.

यह शिकायत निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई के आरोपों के आधार पर की थी. उसके बाद मामला 16 सदस्यीय एथिक्स कमेटी में गया. भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर के नेतृत्व वाली एथिक्स कमेटी ने 495 पन्ने की रिपोर्ट सौंपी, जिसे शुक्रवार दोपहर संसद के पटल पर रखा गया और दोपहर बाद उस पर बहस शुरू हो गई. जिसकी विपक्ष ने आलोचना की. 

बहस के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा,  ‘‘मैं पेशे से वकील हूं. कई बार ऐसा मौका आया कि जल्दी में बहस करनी पड़ती है. लेकिन शायद आज पहली बार किसी कागज को बगैर संज्ञान में लिए मैं बहस करने के लिए खड़ा हुआ हूं. यह बड़ी विडंबना है कि 12 बजे सदन के पटल पर रिपोर्ट रखी जाती है और 2 बजे उसकी बहस लगा दी जाती है. आसमान नहीं गिर जाता, अगर तीन-चार दिन हमें दे दिए जाते कि इस कागज (रिपोर्ट) को पढ़कर अपनी बात एक अच्छे ढंग से सदन के समक्ष रख सकते. क्योंकि बहुत ही संवेनशील मामले के ऊपर ये सदन फैसला लेने जा रहा है.’’ 

कमेटी ने अपनी जांच के दौरान सबसे पहले 02 नवंबर को जय अनंत देहाद्राई को पूछताछ के लिए बुलाया. उसके बाद निशिकांत दुबे को बुलाया गया. जय अनंत जहां सवालों का जवाब देने बचते और बार-बार ‘‘मैंने अपने एफिडेविट में लिखा है’’, कहते नजर आए. वहीं, दुबे हरेक सवाल का लंबा-लंबा जवाब देते दिखे. इसके बाद महुआ मोइत्रा को बुलाया गया.  इसके अलावा किसी और को नहीं बुलाया गया.

आखिर हीरानंदानी को पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुलाया गया? 

इस पूरे मामले में सबसे ज़रूरी शख्स दर्शन हीरानंदानी हैं. उनके द्वारा घूस दिए जाने और अपने प्रतिद्वंद्वी गौतम अडाणी के खिलाफ सवाल पूछे जाने का आरोप लगा है. लेकिन इन्हें पूछताछ के लिए कमेटी ने नहीं बुलाया. हीरानंदानी का एफिडेविट, जो मीडिया में भी मौजूद था, वही उनका पक्ष रहा.  

इस मामले में कमेटी के अध्यक्ष सोनकर एक जगह कहते हैं, ‘‘महुआ मोइत्रा चाहती है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर उनको जय अनंत और हीरानंदानी से जिरह करने का अवसर दिया जाए. इस संदर्भ में मैं महुआ जी और हमारे सभी साथियों से यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि वर्ष 1951 में यानी आज के करीब 72 वर्ष पूर्व ऐसा ही एक अनैतिक आचरण का प्रकरण उजागर हुआ था, जो संसद रिकॉर्ड में मुद्गल केस के नाम से प्रख्यात है. उस समय के स्पीकर श्री मावलंकर ने अपना जो निर्णय दिया था, उसमें कहा था कि किसी सदस्य के आचरण पर जो समिति गठित की गई है, वास्तव में वह सम्मान की अदालत है न कि कानून की अदालत है.’’

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मावलंकर के कहे को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, ‘‘इसलिए यह तकनीकी नियमों से बंधी नहीं है. इसे अपनी प्रक्रियायों को इस प्रकार ढालना होगा कि न्याय के उद्देश्य को पूरा किया जा सके और मामले के सही तत्वों का पता लगाया जा सके. कानून की अदालतों में अत्यधिक जिरह अंतत: बुद्धि की लड़ाई में बदल जाती है और सम्मान की अदालत का माहौल ऐसा नहीं होना चाहिए.’’

आगे सोनकर कहते हैं, ‘‘मालवंकर जी के उस निर्णय के हिसाब से गवाह, शिकायकर्ता, आरोपी संसद या उसके वकील से जिरह अर्थात क्रॉस एग्जामिन की स्वीकृति समिति के चेयरमैन पर छोड़ दी गई है.’’

‘‘यह लड़ाई कुत्ते को लेकर हैं’

"महुआ मोइत्रा के कथित 'अनैतिक आचरण' की जांच" शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि तृणमूल सांसद 1 जनवरी, 2019 से 30 सितंबर 2023 के बीच चार बार दुबई गई हैं. जहां व्यवसायी और अडाणी के व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी दर्शन हीरानंदानी रहते हैं.

इसमें दावा किया गया कि पार्लियामेंट पोर्टल पर उनके लॉगिन क्रेडेंशियल्स का दुबई से 47 बार उपयोग किया गया, आरोप लगाया कि आईपी एड्रेस एक ही था.

पूछताछ के दौरान महुआ मोइत्रा अपने और जय अनंत के बीच के रिश्तों को लेकर बोलती नजर आती हैं. वह बार-बार कहती हैं कि यह सब बदले की भावना से किया गया है. वो और जय तीन साल रिश्ते में थे. बाद में वो अलग हो गए. यह लड़ाई कुत्ते को लेकर हैं. मैं उस कुत्ते को अपने बच्चे जैसा मानती हूं. उन्होंने यह भी बताया कि वो दुबई अपने काम से गईं थीं.

वहीं, लॉगिन-आईडी हीरानंदानी को देने के सवाल पर महुआ कहती हैं, ‘‘जैसा कि बताया जा रहा है कि ईमेल पासवर्ड दे दिया. यह राष्ट्रविरोधी काम हुआ है. मेरा ईमेल पासवर्ड मैंने कहीं नहीं दिया. वह सिर्फ मैं इस्तेमाल करती हूं.’’

‘‘जहां तक पोर्टल आईडी की बात है, यह सबके ऑफिस में कई लोगों के पास होता है. मैंने पहले साल में ही किस से सवाल टाइप करवाए वो तो मैं भूल गई हूं. लेकिन उसके बाद मैंने यह दर्शन को दे दिया. साल 2019 से मेरी लॉगिन आईडी, पासवर्ड और मेरे सारे सवाल उसी के ऑफिस में टाइप हुए हैं. बाकी चार साल में मैंने 61 सवाल पोर्टल पर डाले हैं. ज्यादातर उनके ऑफिस से टाइप हुए हैं. इस दौरान ओटीपी फोन पर आया और मेरी स्वीकृति के बाद ही सवाल सबमिट हुए. कड़वा सच तो यही है.” मोइत्रा ने कहा. 

एथिक्स कमेटी के चेयरमैन सोनकर ने हीरानंदानी से मिले गिफ्ट को लेकर भी सवाल किया. जिस पर महुआ बताया कि वह हीरानंदानी को काफी समय से जानती हैं. 

वो कहती हैं, ‘‘उन्होंने (हीरानंदानी) तीन या चार बार मेरे लिए दुबई एयरपोर्ट से लिपस्टिक, काजल और मेकअप का सामान लिया है. उन्होंने मेरे दोस्त के नाते ऐसा किया है. मेरे सांसद बनने से पहले भी लिया है, आज भी लिया और अगर मैं कल भी कहूं तो वह ले आएगा.’’

आगे अपना पक्ष रखते हुए महुआ ने कहा है कि मैं एक दो बार दुबई गई हूं. उन्होंने अपनी कार और ड्राइवर मुझे दे दिया. कुल मिलाकर ये चार चीजें उसने मुझे दी हैं. 

एक स्कार्फ, बेबी ब्राउन का मेकअप, मेरे घर का वास्तु डिजाइन एवं मुंबई और दुबई जाने के बाद कार और ड्राइवर देना, बस यहीं चीजें हैं. लोकसभा में मैंने जो भी सवाल किए हैं वो मेरे सभी प्रश्न मेरे अपने हैं. मेरे द्वारा ओटीपी दिए जाने के बाद ही वो अपलोड हुए हैं.’’

‘फिक्स्ड मैच’

कमेटी ने 9 नवंबर को अपनी सिफारिशों पर अंतिम फैसला लिया था, जिसमें पांच सांसदों ने असहमति दर्ज कराई थी. इसमें बसपा के कुंवर दानिश अली, जदयू के गिरधारी लाल यादव, कांग्रेस के वी वैथिलिंगम, उत्तम कुमार रेड्डी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के पीआर नटराजन शामिल हैं. वहीं, जिन लोगों ने कमेटी के फैसले से सहमति जताई, उसमें कांग्रेस की निष्काषित सांसद परनीत कौर भी शामिल हैं. 

कमेटी के फैसलों से असहमति दर्ज कराने वाले सांसदों ने पूछताछ में इस पूरी जांच को फिक्स मैच बताया है. 

बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने असहमति जताते हुए लिखा कि पहले दिन से यह जांच देखी और कंगारू कोर्ट की तरह चली है. विपक्षी दल के सांसद जब शिकायतकर्ता जय अनंत से पूछताछ के समय सवाल पूछना चाह रहे तब आप (चेयरमैन) उनके बचाव में उतर जा रहे थे और सवाल नहीं पूछने दे रहे थे. 

ड्राफ्ट रिपोर्ट कमेटी के सामने आने से पहले एनडीटीवी (अडाणी के स्वामित्व वाला) और मीडिया में पहुंच गई. यह संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन है. इस जांच के निष्कर्ष और इस मसौदा रिपोर्ट में पहले दिन से ही एक निश्चित मेल था.

अली आगे लिखते हैं, ‘‘एथिक्स कमेटी के सदस्य के रूप में मैं केवल मसौदा रिपोर्ट पर ही नहीं, बल्कि समिति के कामकाज के पूरी तरह से अवैध और अभूतपूर्व तरीके पर भी अपनी मजबूत असहमति व्यक्त करने के लिए लिख रहा हूं.’’

इसके बाद दानिश अली छह बिंदु के जरिए अपनी असहमति दर्ज कराते हैं.  जिसमें मुख्यत वहीं बिंदु हैं जो वो पूछ्ताछ के दौरान भी सवाल उठाते नजर आए थे. उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता ने ना तो लिखित रूप से और ना मौखिक रूप से कैश या किसी तरह की घूस लेने का सबूत पेश नहीं किया. यह कानून के मूल के खिलाफ है. 

उन्होंने महुआ मोइत्रा से चेयरमैन द्वारा सवाल पूछने और कमेटी के बाकी सदस्यों को सवाल पूछने देने का मौका नहीं देने का भी सवाल उठाया है. दानिश लिखते हैं, ‘‘2 नवंबर को महुआ मोइत्रा से हुई पूछताछ अधूरी थी. चेयरमैन के पास पहले से लिखे हुए सवाल थे जो पूरी तरह से पूर्वाग्रहित, अप्रासंगिक, अपमानजनक और एक महिला सांसद की गरिमा को नुकसान पहुंचाने वाले थे. कमेटी के दस लोगों में से पांच ने तब इसका विरोध किया था.” 

बता दें कि महुआ मोइत्रा से पूछताछ के दौरान एक सवाल पर विपक्ष के सांसद नाराज़ हो गए थे और बैठक से बाहर निकल गए थे. 

अपने असहमति नोट में दानिश खान ने महुआ मोइत्रा की मांग कि हीरानंदनी से मौखिक पूछताछ नहीं हुई, पर भी सवाल उठाये हैं.

दानिश अली की तरह पी आर नटराजन ने भी कमेटी की रिपोर्ट को पूर्व निर्धारित और जांच को ‘सो कॉल्ड’ बताया है.

9 नवंबर को अपना असहमति पत्र लिखते हुए नटराजन पूछते हैं, “8 नवंबर को कमेटी की ड्राफ्ट रिपोर्ट एनडीटीवी के पास कैसे पहुंच गई? यह रूल 275 का पूरी तरह से उल्लंघन है.” इनकी आपत्ति और दानिश अली की आपत्ति एक ही है. 

यही नहीं बाकी तीन की भी असहमति के बिंदु एक जैसे ही हैं. सबने इस जांच के नतीजे को पहले से ही तय बताया है.

जदयू सांसद गिरधारी लाल यादव अपने असहमति पत्र में लिखते हैं कि कमेटी निष्कासन की सिफारिश नहीं कर सकती है. इसका अधिकार निलंबन सिफारिश करने तक ही सीमित है. वे सवाल उठाते हैं कि किस साक्ष्य के तहत यह कमेटी निष्कासन की सिफारिश कर सकती है. वह इसे पूरी तरह से राजनीतिक फैसला बताते हैं और कहते हैं कि यह खतरनाक मिसाल कायम करेगा.

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में भी यादव ने अपने कहे को दोहराया और इस फैसले को गलत बताया है.

निष्काषन के बाद क्या बोली मोइत्रा     

निष्काषन के बाद महुआ मोइत्रा ने संसद के बाहर मीडिया से बातचीत की. इस दौरान सोनिया गांधी समेत विपक्ष के तमाम नेता उनके पीछे खड़े थे. नाराज़ मोइत्रा ने कहा, 'मैं 49 साल की हूं, मैं अगले 30 साल तक संसद के भीतर, संसद के बाहर, और सड़क पर आपसे लड़ती रहूंगी. एथिक्स कमेटी के पास निष्कासित करने का कोई अधिकार नहीं है. यह आपके (भाजपा के) अंत की शुरुआत है.’’

मोइत्रा को इंडिया गठबंधन के तमाम नेताओं का साथ मिला. वो 2024 में होने वाला लोकसभा का चुनाव लड़ सकती हैं. 

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