Media
आदिवासी लेखक जसिंता केरकेट्टा ने किया प्रेस पुरस्कार लेने से इंकार, कहा- समाज के मुद्दों पर चुप है मेनस्ट्रीम मीडिया
मणिपुर में आदिवासियों को सम्मान न मिलने से व्यथित आदिवासी लेखिका जसिंता केरकेट्टा ने अपने काम के लिए इंडिया टुडे समूह से पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया.
केरकेट्टा झारखंड की एक प्रख्यात लेखक, कवि एवं पत्रकार हैं. वे ओरांव आदिवासी समुदाय की सदस्य हैं. उनके काम ने आदिवासी समुदायों की दुर्दशा को उजागर किया है. उन्होंने कहा कि उन्हें 2022 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ईश्वर और बाज़ार के लिए आज तक साहित्य जागृति उदयमान प्रतिभा सम्मान के लिए चुने जाने के बारे में 21 नवंबर को एक कॉल और संदेश मिला. यह पुरस्कार 50,000 रुपये की इनाम राशि के साथ आया था.
ईश्वर और बाज़ार पुस्तक भी आदिवासियों के धर्म, सत्ता और ज़मीनी संघर्ष पर केंद्रित है.
भारतीय भाषा एवं साहित्य को बढ़ावा देने और सम्मान देने के लिए साहित्य आजतक पुरस्कारों में आठ श्रेणियां हैं. पुरस्कार नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में आयोजित समारोह में वितरित किए जाएंगे.
हालांकि, केरकेट्टा ने सम्मान स्वीकार नहीं करने का फैसला किया. इंडिया टुडे के एक प्रतिनिधि ने भी इसकी पुष्टि की.
केरकेट्टा ने न्यूज़लॉन्ड्री को कहा, "यह (पुरस्कार) ऐसे समय में दिया जा रहा है जब मणिपुर के आदिवासियों के जीवन के प्रति सम्मान ख़त्म हो रहा है." “मध्य भारत में आदिवासियों के जीवन के प्रति सम्मान भी ख़त्म होता जा रहा है और वैश्विक समाज में अन्य समुदाय के लोगों पर भी लगातार हमले हो रहे हैं. मेरा मन व्यथित रहता है और मुझे इस पुरस्कार मिलने से कोई रोमांच या ख़ुशी महसूस नहीं हो रही है.”
केरकेट्टा ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह फैसला उन्होंने किसी विशेष मीडिया हाउस को निशाना बनाने के लिए नहीं लिया है.
उन्होंने कहा, “पूरा देश जानता है कि कैसे कुछ प्रतिष्ठित मुख्यधारा के मीडिया घराने और समाचार चैनल मणिपुर की घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. मुख्यधारा के मीडिया ने कभी भी आदिवासियों की दुर्दशा को सम्मानजनक तरीके से सामने लाने की कोशिश नहीं की है. यह सिर्फ एक मीडिया हाउस के बारे में नहीं है, बल्कि मैं जो भी निर्णय लूंगी वह निश्चित रूप से इस बात से प्रभावित होगा कि देश का तथाकथित मुख्यधारा मीडिया हाशिए पर रहने वाले लोगों के प्रति अपनी भूमिका कैसे निभाता है.”
लेखिका ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पुरस्कार ठुकराने के फैसले पर आजतक के प्रतिनिधि ने उनसे कहा कि उनके मन में भी लेखिका के दर्द और उनके जमीनी संघर्ष के प्रति बहुत सम्मान है. साथ ही सभ्य समाज और संवेदनशील इंसान भी ऐसा ही महसूस करते हैं. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके लेखन ने लगातार न्याय और मानवता के पक्ष में एक मजबूत आवाज उठाई है.
केरकेट्टा ने कहा, “जब हम एक किताब लिखते हैं, तो वह समाज के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है, लेकिन लोगों के लिए नहीं. यह चीजों को देखने का हमारा तरीका नहीं है. हम अपने काम का जश्न सामूहिक रूप से मनाना चाहते हैं. एक लेखक या कवि को सिर्फ अपने सम्मान के लिए क्या करना चाहिए? इन्हीं बातों के कारण मैंने यह सम्मान लेने से इंकार कर दिया.”
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
NL Hafta Live: Decoding Bihar’s mandate
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel
-
Friends on a bike, pharmacist who left early: Those who never came home after Red Fort blast