Chhattisgarh Elections 2023
छत्तीसगढ़ चुनाव: साजा में भाजपा का 'प्रयोग', ‘मज़दूर’ को सात बार के विधायक चौबे के सामने उतारा
छत्तीसगढ़ में चुनाव किसानों के मुद्दों पर लड़े जाते हैं. परंपरा यह रही है कि किसान वर्ग जिसके साथ हो उसी की सरकार बनती है. इस चुनाव में भी तमाम राजनीतिक दल किसानों पर ही दाव खेल रहे हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी यहां एक अलग तरह का प्रयोग कर रही है. इस प्रयोग का केंद्र बिंदु है, दुर्ग संभाग का साजा विधानसभा क्षेत्र. जिस शख्स के जरिए ये प्रयोग हो रहा उनका नाम ईश्वर साहू है. ईश्वर साहू, पेशे से एक मजदूर हैं और फिलहाल साजा विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं.
उनका मुकाबला कांग्रेस के ‘मजबूत’ उम्मीदवार और सात बार के विधायक रविंद्र चौबे से है. चौबे पहली बार 1985 से साजा से विधायक बने थे. उसके बाद साल 2013 में एक बार हारे हैं. जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था, तब चौबे दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री थे. जब यहां अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो भी वे मंत्री बने और भूपेश बघेल सरकार में भी कई मंत्रालय चौबे के पास हैं.
ऐसे में भाजपा ने चौबे के सामने ईश्वर साहू को क्यों उतारा है. जानकार कहते हैं कि भाजपा यहां हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है. यह छत्तीसगढ़ की राजनीति में नई चीज है.
बिरनपुर के जरिए हिंदुत्व का कार्ड?
साजा में भाजपा के पोस्टरों पर ईश्वर साहू के परिचय में दो जानकारी हर जगह दिखती हैं. पहला कि वो गरीब मज़दूर हैं. दूसरा, ‘बिरनपुर वाले’. साहू जब मंच पर आते हैं तो सबसे पहले बिरनपुर की घटना का जिक्र करते हैं.
बिरनपुर में इसी साल अप्रैल महीने में एक हिंसा हुई थी. गांव वाले बताते हैं कि यह लड़ाई छोटे बच्चों की थी, लेकिन इसने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया. इसी हिंसा में साहू के बड़े बेटे भुवनेश्वर की हत्या हुई. भुवनेश्वर की हत्या के दो दिन बाद दस अप्रैल को बकरी चराने गए बिरनपुर गांव के ही दो मुस्लिमों की हत्या कर दी गई. रिश्ते में ये दोनों पिता-पुत्र थे. भाजपा, बजरंग दल समेत तमाम दलों ने इस मामले के बाद खूब बवाल काटा.
बघेल सरकार ने ईश्वर साहू को दस लाख रुपये का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी का वादा किया. लेकिन साहू ने सरकार से न्याय की मांग करते हुए, ये सब लेने से इंकार कर दिया. उसके बाद हिंदूवादी संगठनों से इन्हें मदद मिली. फिर साहू अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. चुनाव करीब आया तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से उन्हें फोन आया और चुनाव लड़ने के लिए कहा गया.
साहू न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए बोला था. मुझे अपने बेटे की हत्या का इंसाफ चाहिए था. पार्टी के शीर्ष नेताओं ने बोला कि आपको चुनाव लड़ना है.’’
हमने पूछा कि शीर्ष नेताओं यानी अमित शाह या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो बीच में ही भाजपा जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश जोशी बोलते हैं, ‘‘ये कोई सवाल हुआ.’’ इसके बाद साहू भी हमारे इस सवाल का जवाब नहीं देते है.
जोशी से जब हमने साहू को टिकट देने के पीछे के कारणों के बारे में पूछा तो वे कहते हैं, ‘‘ये भाजपा है. नए-नए प्रयोग करती रहती है. भाजपा की विचारधारा से वो परिवार प्रभावित तो रहा ही है. मतदान भी हमेश भाजपा को करता रहा है. भाजपा की मूल पहचान त्याग, तपस्या और बलिदान है. हमने उस परिवार (साहू) का त्याग देखा. जब उसको न्याय नहीं मिला तो सरकार ने उसे दस लाख रुपये और नौकरी का ऑफर दिया था. पर वो इतना खुद्दार आदमी है कि उसने लेने से इंकार कर दिया. जो न्याय के लिए इतना अडिग रह सकता है. उनकी परख तो होनी चाहिए.’’
टिकट के लिए मारामारी होती है. लोग बागी होकर उतर जाते हैं. लेकिन एक ऐसे व्यक्ति को टिकट देना जिनका कोई राजनीतिक अनुभव नहीं. कहा जा रहा है कि भाजपा हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है. जिसको छत्तीसगढ़ की राजनीति में अभी उतनी जगह नहीं मिली, जितनी देश के कई अन्य हिस्सों में. जोशी कहते हैं, ‘‘लोग अपने हिसाब से मतलब निकालते है लेकिन भाजपा ने बस उसके त्याग को देखा. हमने एक प्रयोग किया और लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया है.’’
ईश्वर साहू को टिकट मिलने से स्थानीय भाजपा नेताओं में नाराजगी भी थी. कुछ लोग रायपुर में भाजपा के प्रभारी ओम माथुर के पास इसकी शिकायत लेकर गए थे लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि पार्टी ने साहू को टिकट दिया है. अब हम उसे बदल नहीं सकते हैं. आप लोग उनके लिए काम कीजिए.
जोशी इसको लेकर कहते हैं, ‘‘लोगों की अपनी-अपनी महत्वकांक्षा रहती है. लेकिन पार्टी की जो मंशा होती है, आख़िरकार कार्यकर्ता को उसके अनुरूप ढलना पड़ता है. सब लोग काम में लगे हुए हैं. शतरंज के खेल में प्यादा भी वजीर को मार देता है.”
आप साहू को कब से जानते हैं? जोशी हमारे इस सवाल को गैरज़रूरी बता जवाब नहीं देते हैं.
हकीकत यह है कि अप्रैल 2023 से पहले ईश्वर साहू को भाजपा के नेता जानते तक नहीं थे. उनका परिवार किसी राजनीति दल से जुड़ा भी नहीं था. साहू की गरीबी का आलम यह है कि उनके घर में दो कमरे हैं. जिसमें एक में दरवाजा तक नहीं लगा है. पैसों की तंगी के कारण ईश्वर अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाए.
अभी वो और उनकी पत्नी चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं. उनके छोटे बेटे कृष्ण साहू ने 10वीं तक पढ़ाई की है. वहीं, भुवनेश्वर साहू ने छठीं तक पढ़ाई की थी. कृष्ण बताते हैं, ‘‘पैसों के कारण हम दोनों भाइयों की पढ़ाई छूट गई थी. मैं राज मिस्त्री का काम करता था. रोजाना के दो सौ रुपए मिलते थे. हमारा सपना था कि घर बनाएंगे. लेकिन तब तक ये सब हो गया. हमारे घर में देखिए दरवाजा तक नहीं है.’’
आपने कभी सोचा था कि आपके पिताजी विधायक का चुनाव लड़ेंगे. इस पर कृष्ण कहते हैं, ‘‘सपने में भी नहीं. जब संभावित सूची में उनका नाम आया तब हमें पता चला.’’
साहू समाज में ईश्वर का ‘माहौल’
यहां के साहू समाज में ईश्वर साहू को लेकर लगाव साफ-साफ नजर आता है. कवतरा गांव साहू बाहुल्य है. यहां हमारी मुलाकात नकुल साहू से हुई. वह यहां के मौजूदा विधायक और मंत्री रविंंद्र चौबे के कामों से खुश हैं. कहते हैं, ‘‘हमने अपने गांव में एक रुपया मांगा तो उन्होंने चार रुपए दिए. मैं खुद कट्टर कांग्रेसी हूं लेकिन इस बार ईश्वर साहू को वोट दूंगा क्योंकि वो मेरे रिश्तेदार हैं. पहली बार कोई मज़दूर समाज का आदमी चुनाव लड़ रहा है. उसके घर में दरवाजे तक नहीं हैं. उसे सहानुभूति का वोट मिलेगा. माहौल तो लग रहा है कि ईश्वर जीत जाएगा.’’
चौबेटी गांव में हमारी मुलाकात कुछ और लोगों से हुई. वो अपना नाम नहीं बताना चाह रहे थे. कहते हैं कि चौबे से डर लगता है. उसमें से एक शख्स जो लोधी समाज से से थे, बताते हैं, ‘‘लोधी-साहू समाज की खूब बैठक हो रही हैं. दोनों एक हो गए हैं. इस बार लोग बोल नहीं रहे लेकिन गोपनीय वोट ज़्यादा हैं. सच यह है कि ईश्वर साहू चुनाव नहीं लड़ रहा है, जनता इस बार चुनाव लड़ रही है. उनके बेटे की हत्या हुई. लोग संवदेना के कारण वोट करेंगे.’’
उनके पास में खड़े एक दूसरे शख्स कहते हैं, ‘‘चौबे जी इस बार सोने की सीढ़ी भी बनवा कर दें तो हम वोट नहीं देने वाले. ईश्वर साहू को कमज़ोर आंकने की गलती नहीं होनी चाहिए. 2018 में मैंने कांग्रेस को वोट किया था लेकिन इस बार नहीं करूंगा.’’
कुछ लोगों के मन में शंका भी है. भाजपा के एक कार्यकर्ता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘चौबे बड़े नेता हैं. आखिरी दिनों में वो चुनाव पलट देंगे. हमारी पार्टी के भी कुछ लोग नहीं चाहते कि साहू जीते. अगर वो जीत गया तो इनकी राजनीति खत्म हो जाएगी. वहीं, चौबे अगर जीतते हैं तो लोगों को अपना काम कराने में आसानी होगी. ईश्वर क्या किसी से काम करा पाएगा. अधिकारी उसकी सुनेंगे ही नहीं.’’
भाजपा के इस प्रयोग पर क्या कहते हैं रविंद्र चौबे?
नौवीं बार चुनाव मैदान में उतरे रविंद्र चौबे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. एक चुनावी सभा के दौरान वह कहते हैं, “पहला चुनाव मैं 16 हज़ार, दूसरा चुनाव 32 हज़ार से जीता और इस चुनाव में यह सारे रिकॉर्ड टूटेंगे.”
ईश्वर साहू को भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने के सवाल पर वह कहते हैं, ‘‘भाजपा ऐसा काम पूरे देश में कर रही है. यह उनका प्रयोग नहीं आदत है. दो बच्चों की लड़ाई में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वहां जाकर क्या कर रहे थे. वो उस घटना पर प्रयोग कर रहे थे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई लाभ होने वाला है. अगर वो सोच रहे हैं कि कास्ट फैक्टर (साहू समाज का जिक्र) को लेकर हम आगे बढ़ सकते हैं तो वो गलतफमी में हैं. मैं उनसे एक बार पहले उस कास्ट फैक्टर वाले से चुनाव लड़ चुका हूं. छत्तीसगढ़ में ऐसी बातें चलती नहीं हैं.’’
साहू अपने भाषणों में बार-बार कहते हैं कि मंत्री रविंद्र चौबे सहानुभूति के नाते भी एकबार मिलने नहीं आए. इस पर चौबे कहते हैं, ‘‘वहां बैठकर अरुण साव (भाजपा प्रदेश अध्य्क्ष) कांग्रेस को गाली दे रहे हैं. वहां कांग्रेस का कोई आदमी कैसे जा सकता है. दूसरी, जो न्याय की बात है, जैसे ही घटना हुई सरकार ने तत्काल कार्रवाई की. जो लोग वहां मौजूद थे उनमें से 12-13 लोगों की पहचान कर जेल भेजा गया. इसके बाद तो अदालत फैसला करती है न?’’
साजा में मुस्लिम आबादी ना के बराबर है. जो परम्परागत रूप से कांग्रेस के वोटर हैं. भाजपा जाति के साथ-साथ धर्म का तड़का लगा रही है. जब हम इंटरव्यू कर रहे थे मंच पर चौबे के आस-पास दो मुस्लिम नेता भी थे. इंटरव्यू के बाद जब मंच से नीचे उतरे तो कांग्रेस के एक कार्यकर्ता दौड़े हुए आए. वह कहते हैं, “मंत्री जी को एक सलाह दे दीजिए. चुनाव तक अपने आस-पास मुस्लिम लोगों को ना रखें. भाजपा इनकी यही तस्वीरें (मुस्लिमों के साथ वाली) वायरल करा रही है. इससे हमें चुनाव में नुकसान हो रहा है. मैं प्रचार करने जाता हूं तो लोग ये तस्वीरें दिखाते हैं. मैं उनसे कह नहीं सकता लेकिन आप लोग बोल दीजिए.’’
साजा में 17 नवंबर को मतदान होना है. 3 दिसंबर को नतीजे आएंगे. देखना होगा कि भाजपा अपने इस प्रयोग में सफल होती है या नहीं. अगर सफल होती है तो क्या छत्तीसगढ़ में किसानों के ऊपर होने वाली राजनीति धर्म और जाति पर लौट आएगी. यह नतीजे तय करेंगे.
Also Read
-
Losses, employees hit: Tracing the Kanwar Yatra violence impact on food outlets
-
The Himesh Reshammiya nostalgia origin story: From guilty pleasure to guiltless memes
-
2006 blasts: 19 years later, they are free, but ‘feel like a stranger in this world’
-
कांवड़ का कहर: 12 होटल- सवा तीन करोड़ का घाटा
-
July 28, 2025: Cleanest July in a decade due to govt steps?