NL Charcha
एनएल चर्चा 289: समलैंगिक विवाह से सुप्रीम कोर्ट का इनकार और निठारी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई
इस हफ्ते चर्चा के प्रमुख विषय समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निठारी हत्याकांड में दोषी ठहराए गए सुरेंद्र कोली एवं महेंद्र सिंह पंढेर की रिहाई का आदेश और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर पैसे लेकर सदन में सवाल पूछने के आरोप और इज़रायल-हमास के बीच जारी खूनी संघर्ष आदि रहे.
हफ्ते की अन्य सुर्खियों में गाजा के एक अस्पताल पर हवाई हमले में 500 से ज्यादा लोगों की मौत, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तेज किए उद्योगपति गौतम अडाणी पर हमले, इंडिया गठबंधन में अभी तक सीटों के बंटवारे को लेकर नहीं बनी बात और न्यूज़क्लिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नोटिस जारी कर मांगा जवाब आदि शामिल रहे.
इसके अलावा टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या मामले में दिल्ली की साकेत अदालत ने पांच लोगों को ठहराया दोषी, ईडी एवं सीबीआई ने आबकारी नीति मामले में कहा- पूरी आम आदमी पार्टी को भी बनाया जा सकता है आरोपी और इंडियन-अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल एवं हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स के ट्विटर अकाउंट को भारत सरकार ने किया निलंबित करने का एलान आदि मुद्दों ने भी हफ्तेभर तक सुर्खियां बटोरी.
इस हफ्ते चर्चा में लैंगिक मामलों की जानकार संध्या ने हिस्सा लिया. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री टीम से हृदयेश जोशी, स्तंभकार आनंद वर्धन और मनीषा पांडे शामिल हुईं. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के मैनेजिंग एडिटर अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा के प्रमुख विषय समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अतुल कहते हैं कि ऐसे विवाहों को कानूनी मान्यता देने का यह ऐतिहासिक मौका था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया. कानून बनाने की जिम्मेदारी विधायिका पर छोड़ते हुए शीर्ष अदालत ने स्वयं को इससे अलग कर लिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता था और उसने ऐसा क्यों नहीं किया?
इसके जवाब में संध्या कहती हैं, “निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक मौका था. हमें लगता था कि शीर्ष अदालत समलैंगिक समुदाय के लोगों को बच्चा गोद लेने का अधिकार देगा लेकिन ऐसा करना तो दूर उसने शादी की भी कानूनी इजाजत नहीं दी. उसने मामला विधायिका पर टाल दिया. कोर्ट चाहता तो इसकी व्याख्या स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कर सकता था. लेकिन पता नहीं उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया.”
संध्या आगे कहती हैं, “सबसे बड़ा दोहरापन यह है कि हम समलैंगिकों को अपनी संस्कृति का हिस्सा नहीं मानते हैं. जबकि अपना इतिहास देखते हैं तो सबकुछ स्पष्ट हो जाता है. खजुराहो की मूर्तियां देख लें. इसी तरह से कोणार्क में देखा जा सकता है. हमारी संस्कृति में यह पहले से ही रहा है. यह पश्चिमी देशों से हमारे यहां नहीं आया है. पश्चिम के लोग खासतौर से रानी विक्टोरिया, समलैंगिकता को अनैतिक मानती थीं और इसे प्रतिबंधित कर दिया था. इंग्लैंड में समलैंगिक संबंधों की वजह से जोड़ों को जेल में बंद कर दिया जाता था. बाद में यही विचार भारत आया. मैं महाराष्ट्र से हूं इसलिए आपसे कहूंगी कि कोई भी पुरानी मराठी फिल्म देख लीजिए उसमें कम से कम एक ऐसा पात्र मिल जाएगा जो समलैंगिक होगा. इससे किसी को कोई दिक्कत भी नहीं थी क्योंकि यह हमारी संस्कृति में स्वीकार्य था.”
इसके जवाब में आनंद वर्धन कहते हैं, “मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसा नहीं है जो लोगों को दो खेमों में बंटने के लिए उत्तेजित करे. मुझे ऐसा ही फैसला आने की उम्मीद थी और यह फैसला तर्कसंगत लगता है. विवाह के अन्य कानून संसद ने बनाए हैं. सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में इसको शामिल करने से समाधान नहीं हो जाएगा. कोर्ट ने इस तरह के कानून बनाने का अधिकार संसद को ही दिया है. समलैंगिकों को उम्मीद थी कि अनुच्छेद-21 में इसे संवैधानिक अधिकार मिले लेकिन शीर्ष कोर्ट ने कहा कि विवाह पर कानून बनाना विधायिका का मामला है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि समलैंगिकों के अधिकारों के लिए कानून बनाए जाएंगे. मैं इसके बारे में उतना निराशावादी नहीं हूं.”
समलैंगिकों की विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग समेत तमाम मुद्दों पर सुनिए पूरी चर्चा.
टाइम्स कोड्स
00ः00-03:58 - इंट्रो और ज़रूरी सूचना
04:00-16:07 - निठारी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई
16:07-19:30 - सुर्खियां
19:30-54:12 - समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
54:13 - 01:06:55 - इज़रायल-हमास संघर्ष
01:06:55 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय क्या देखा, सुना और पढ़ा जाए
आनंद वर्धन
निठारी मामले पर प्रवीण स्वामी की रिपोर्ट
हृदयेश जोशी
पियर्स मोर्गन का बासम युसुफ के साथ इंटरव्यू
रुद्रांग्शु मुखर्जी की किताब: नेहरू एंड बोसः पैरलेल लाइव्स
मनीषा पांडेय
होमोसेपियंस के लेखक युवाल नोआ हरारी का इंटरव्यू
अतुल चौरसिया
अमेज़न प्राइम वीडियो की वेब सीरीज़: बंबई मेरी जान
किताब: द ऑटोबायोग्राफी ऑफ चार्ल्स डार्विन
ट्रांसक्रिप्शन: नाज़िर हुसैन
प्रोड्यूसर: चंचल गुप्ता
एडिटर: उमराव सिंह
Also Read
-
Killing of Pahalgam attackers: Face-saver for Modi govt, unanswered questions for nation
-
Operation Sindoor debate: Credit for Modi, blame for Nehru
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
4 years, 170 collapses, 202 deaths: What’s ailing India’s bridges?
-
Trump’s tariff bullying: Why India must stand its ground