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शिक्षक दिवस: भ्रामक दावा करते केंद्रीय मंत्री और भारत को विश्व गुरु बनाने के फार्मूला पर मंथन
5 सितंबर, शिक्षक दिवस के मौके पर दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में ‘‘राष्ट्र्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका’’ विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ. इसमें मागर्दर्शन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सरकार्यवाहक सुरेश भैय्याजी जोशी मौजूद रहे. वहीं, मुख्य अथिति के रूप में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पहुंचे थे. यह कार्यक्रम डीयू के कुलपति कार्यालय स्थित कन्वेंशनल हाल में किया गया. आयोजन डीयू के मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति और भारत विकास परिषद ने किया था.
मालूम हो कि भारत विकास परिषद, आरएसएस का एक अनुषांगिक संगठन है. इसके वर्तमान राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन हैं, जो खुद को आरएसएस का प्रचारक भी कहते हैं.
इस कायर्कम में हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चेयरपर्सन पद से रिटायर हुए न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल भी पहुंचे थे. हालांकि, उनका नाम पोस्टर पर कहीं मौजूद नहीं था. यहां न्यायमूर्ति एसएन अग्रवाल की किताब ‘भारत: ऐज विश्व गुरु' का विमोचन हुआ. इसपर गोयल ने अपनी बात रखते हुए इसे डीयू के सिलेबस में शामिल करने की मांग की.
स्कंदपुराण के श्लोक से शुरुआत
कार्यक्रम में पहले वक्ता के तौर पर मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति के प्रमुख और दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन निरंजन कुमार आए. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत स्कंदपुराण के श्लोक 'गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:’ से की. इस श्लोक का हिंदी में मतलब बताते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘हमारे सनातन धर्म, जिसे भारतीय परंपरा भी कहते हैं. उसमें गुरु की अपरम्पार महिमा गाई गई है. यह अलग बात है कि कुछ लोगों को सनातन धर्म शब्द से कष्ट भी होता है. ‘’
इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद बताते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘21वीं सदी की चुनौतियां हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं. ऐसे में हम शिक्षकों का राष्ट्र के प्रति क्या दायित्व है? राष्ट्र निर्माण की क्या चुनौतियां हमारे बीच हैं? इसी को लेकर इस कार्यक्रम में परिकल्पना की गई है. यह सौभाग्य का विषय है कि ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर मार्गदर्शन के लिए हमारे बीच इस क्षेत्र के ख्यातिलब्ध मनीषी आरएसएस के सुरेश भैय्या जी मौजूद हैं. जो राष्ट्र निर्माण के ओजस्वी कर्मयोगी हैं.’’
कुमार आगे बताते हैं, ‘‘जब इस कार्यक्रम की रूपरेखा बनी तो मैंने पता किया कि इससे पहले ऐसा कोई आयोजन यहां हुआ है क्या. मुझे पता चला कि करीब डेढ़-दो दशक से इस तरह का आयोजन नहीं हुआ. (इसके बाद कुमार डीयू के वीसी योगेश कुमार का महिमांडन करने लगे). मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति इस बात के लिए बहुत गौरवान्वित है कि कुलपति के नेतृत्व में सौ साल के इतिहास में डीयू में पहली बार पंचांग आया है.”
इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति योगेश कुमार बोलने के लिए मंच पर आए. उनका भाषण थोड़ा मजाकिया और कभी-कभार गंभीरता भरा हुआ था.
कुमार ने भैय्याजी जोशी से पहली मुलाकात का संस्मरण साझा किया. वे कहते हैं, ‘‘शिक्षक दिवस पर इनका (भैय्या जी का) आना हुआ, यह बहुत ही शुभ और प्रेरणादायी है. अभी मैं याद कर रहा था कि भैय्याजी जोशी से मेरी पहली मुलाकात कब हुई. सुरेश जैन जी को याद होगा. उनके परिवार में एक कार्यक्रम था. दिल्ली से सूरत की फ्लाइट थी. उस फ्लाइट में मैं और भैय्याजी भी जा रहे थे. मेरे बगल में ही ये बैठे हुए थे. मैंने देखा कि इतना आकर्षक व्यक्तित्व एक किताब पढ़ रहा था. थोड़ी देर बाद इन्होंने चाय मंगाई, लेकिन पुस्तक से नजर नहीं हटी. मैंने इनको नमस्ते किया और बातचीत शुरू की. जब इन्होंने अपना नाम बताया तो मैंने कहा कि सॉरी मैं आपको पहचान नहीं पाया. स्वाध्याय का जो एक्सपेरिमेंट इन्होंने किया उसी कारण से न जाने कितने स्वयंसेवक बनाये.’’
आगे वीसी, कुमार स्वाध्याय पर जोर देते हैं. वे कहते हैं कि हर व्यक्ति को साल में छह किताबें ज़रूर पढ़नी चाहिएं और शिक्षकों को तो 12 किताबें पढ़नी चाहिएं. (इस पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समेत कुछ लोग हाथ उठा कर जाहिर करते हैं कि उन्होंने सालाना12 किताबें पढ़ी हैं)
ये कैसी तारीफ?
इसके बाद कुमार, अर्जुन मेघवाल का विश्वविद्यालय में स्वागत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘ये बहुत हिम्मती मंत्री हैं. हिम्मती इसलिए हैं क्योंकि इन्होंने अपनी पत्नी पर एक किताब लिखी है 'एक सफर हम सफर के साथ'. यह हिम्मत का काम है. यह ऐसे व्यक्ति हैं जो पत्नी के न होने पर भी उनकी तारीफ करते हैं. ऐसे व्यक्ति मिलते कहां हैं?. (इस पर सब हंसने लगते हैं).’’
हंसी मज़ाक के बीच वो मुख्य विषय ‘राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका’ पर लौटते हैं. कुमार कहते हैं, ‘‘राष्ट्र निर्माण की बात होगी तो शिक्षक उसके केंद्र में होगा. उसके आसपास ही राष्ट्र का निर्माण होता है. शिक्षक व्यक्ति का निर्माण करते हैं और उसी से राष्ट्र्र का निर्माण होता है. ऐसा बहुत सारे शिक्षक मानते हैं, लेकिन सारे नहीं मानते हैं क्योंकि जैसे हनुमान जी को उनकी ताकत की याद दिलानी पड़ती है, ऐसे ही शिक्षकों को भी ताकत की याद दिलानी पड़ती है.’’
इसके बाद भारत विकास परिषद के वर्तमान राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन बोले.
केंद्रीय मंत्री ने दी भ्रामक जानकारी
केंद्रीय मंत्री मेघवाल, राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका पर कम बोले और सरकार की तारीफ करते ज्यादा नजर आए. उन्होंने कुछ प्रेरणादायी कहानियां भी साझा की लेकिन साथ ही एक भ्रामक जानकारी भी लोगों को दी.
मेघवाल ने इस दौरान कहा कि पीएम मोदी ने आज़ादी के आंदोलन के ‘अनसीन हीरो’ की पहचान लोगों को कराने की बात की. इस दौरान मुझे दुर्गा भाभी के बारे में पता चला. कौशांबी के पास एक जगह है, जहां दुर्गा भाभी का जन्म हुआ. उनकी शादी जम्मू के वोहरा परिवार में हुई. शादी होने के बाद उनको सुनने में आया कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी हो रही है. उनको कोई खाना तक नहीं खिला रहा है. कोई उनकी पैरवी भी नहीं कर रहा है. यह एकदम नई लड़की थी. अख़बार वगैरह में पढ़कर यह सब जानकारी उन्हें मिली थी.
मेघवाल आगे कहते हैं कि इसके बाद दुर्गा भाभी अपने घर इलाहबाद आई. उनके पिताजी क़ानूनी अधिकारी थे और हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे. उससे जो पैसे मिले उन्होंने अपने बच्चों में बांटे थे तो दुर्गा भाभी को भी अच्छी राशि मिली. पिता ने कहा कि मेरी चाहत है कि इस पैसे से तू मकान बना. तेरा मकान बहुत कच्चा है. वह पैसे लेकर वापस आई और तय किया कि मकान तो बनता रहेगा लेकिन क्रांतिकारियों (भगत सिंह और उनके साथियों) को खाना कौन खिलायेगा, कपड़े लाकर कौन देगा? ऐसे में यह उनके लिए नए-नए कपड़े और खाना लेकर आ रही थी.
तब भगत सिंह ने पूछा कि यह खाना और कपड़े कौन ला रहा है? अंग्रेज सरकार से डरकर कोई हमसे मिलने नहीं आता है, ये कौन ला रहा है? अधिकारियों ने बताया कि कोई महिला है. इस पर भगत सिंह ने कहा, उनसे मिलाओ. पहले तो उन्होंने (दुर्गा भाभी ने) मिलने से इंकार किया लेकिन फिर बोली की एक दिन मिलूंगी. वह मिलने आई तो भगत सिंह ने पूछा- तुम कौन हो? कोई हमारे बारे में सोचता नहीं है. कोई पैरवी करने को तैयार नहीं है. आप हमारे लिए इतना कर रही हो. पैसे कहां से आये? इसपर दुर्गा भाभी ने कहा कि यह पैसे मेरे पिता जी के हैं. उन्होंने मकान बनाने के लिए दिए थे. आप जैसे क्रांतिकारियों की सेवा करके इतनी मज़बूत नींव तैयार कर रही हूं कि बहुत मज़बूत मकान बनेगा. तो ऐसी थी दुर्गा भाभी.’’
‘दुर्गा भाभी’ का नाम इतना भी अनजाना नहीं
मेघवाल ने दुर्गा भाभी को 'अनसीन हीरो' बताया और कहा कि उनको भगत सिंह नहीं जानते थे. लेकिन यह दावा भ्रामक है. इतिहास में दुर्गा भाभी पर काफी कुछ लिखा गया है और ये सर्वमान्य सत्य है कि उन्हें भगत सिंह लंबे समय से जानते थे.
बीबीसी हिंदी में प्रकाशित एक ख़बर के मुताबिक, साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाठी-चार्ज में जब 'पंजाब केसरी' लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई तो 10 दिसंबर, 1928 को लाहौर में क्रांतिकारियों की एक बैठक बुलाई गई. इसकी अध्यक्षता दुर्गा देवी ने की थी. वे क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, जिन्होंने 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' का घोषणापत्र लिखा था. इस बैठक में तय किया गया कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया जाएगा.
आगे बताया गया है कि 17 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने शाम 4 बजे अंग्रेज़ अधिकारी सांडर्स को जान से मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया. तीन दिन बाद सुखदेव, भगवती चरण वोहरा के घर गए जो उस समय भूमिगत चल रहे थे.
बीबीसी ने यह जानकारी वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब ‘विदाउट फ़ियर, द लाइफ़ एंड ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह' से ली है.
मेघवाल करीब 23 मिनट बोले. इस दौरान उन्होंने कई और कहानियां सुनाई. चंद्रयान की चर्चा की. वैज्ञानिकों के साथ-साथ प्रधानमंत्री के नेतृत्व के लिए कार्यक्रम में मौजूद लोगों से तालियां बजवाईं.
इसके बाद आरएसएस के पूर्व सरकार्यवाहक सुरेश भैय्याजी जोशी बोलने आए. उन्होंने 30 मिनट का लंबा भाषण दिया. जोशी ने कहा कि पश्चिमी देशों ने विकास के मापदंड अपने आधार पर तय किए हैं. उन्हीं के आधार पर उनके विकास का आकलन होता है. भारतीय चिंतन की तुलना में वह बहुत ही निम्न स्तर के हैं. इस दौरान उनके भाषण के केंद्र में रहा कि भारत को कैसे विकसित एवं विश्व गुरु राष्ट्र्र बनाया जाए और इसका पैमाना क्या होगा.
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