Report
भीड़ का हमला: जब असम राइफल्स ने बचाई मणिपुर विश्वविद्यालय की 200 छात्राओं की जान
मणिपुर विश्वविद्यालय में एक टीले पर असम राइफल्स का एक शिविर है, जहां से इंफाल घाटी दिखाई देती है. बिल्कुल सामने कम से कम छह छात्रावास दिखाई देते हैं. आज विश्वविद्यालय की ज्यादातर सड़कें और छात्रावास खाली हैं- इसके ठीक विपरीत लगभग तीन महीने पहले परिसर में चहल-पहल थी.
3 और 4 मई के बीच की रात को आस-पास के इलाकों से 1,000 लोगों की भीड़ विश्वविद्यालय में हंगामा कर रही थी; इमारतों से धुआं निकल रहा था और घबराए हुए छात्र बाहर की ओर भाग रहे थे. असम राइफल्स के अर्धसैनिक बल के जवान उन्हें बचाने के लिए तुरंत अपने वाहन लेकर आए और गोलियों की आवाजें आने लगीं. यह सब खत्म होते-होते असम राइफल्स का शिविर लगभग 500 छात्रों और संकाय सदस्यों का घर बन चुका था. पहले छात्र ज्यादातर पहाड़ी पर स्थित मैती मंदिर में दर्शन करने यहां आते थे.
इनमें से 200 से अधिक महिलाएं थीं, जिनमें कुकी-ज़ो जनजाति की महिलाएं भी शामिल थीं. असम राइफल्स के एक अधिकारी ने कहा, "हमने जातीयता को देखे बिना नागा, कुकी और अन्य राज्यों के लोगों को बचाया."
इस हिंसा से कुछ घंटे पहले ही परिसर में स्थिति सामान्य थी. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित किया था, जहां मुख्यमंत्री बीरेन सिंह, राज्यपाल अनुसुइया उइके और मुख्य सचिव विनीत जोशी भी मौजूद थे.
लेकिन लगभग 70 किलोमीटर दूर चूड़ाचांदपुर में मैती और कुकियों के बीच झड़प की खबरों के बीच, अफवाहें फैलने लगीं कि परिसर में मैती भीड़ द्वारा हमला किया जा सकता है. शाम 6 बजे के आसपास, सबसे पहले एक गर्भवती महिला विश्वविद्यालय कर्मचारी 300 मीटर की चढ़ाई कर असम राइफल्स के बैरिकेड तक पहुंची. असम राइफल्स एक अर्धसैनिक बल है, जिसे कथित रूप से कुकियों को समर्थन देने के कारण मैती समुदाय के कुछ वर्ग पसंद नहीं करते हैं. "उस (महिला) ने पूछा कि क्या वह रात में शिविर में रुक सकती है. उसने कहा कि चूड़ाचांदपुर में मैती और कुकी समुदायों के बीच लड़ाई हुई है. उसे लगा कि उसके साथ भी ऐसा ही हो सकता है. उसके रिश्तेदारों ने उसे सतर्क कर दिया था," बचाव अभियान से जुड़े एक सूत्र ने बताया.
अगले 15 मिनट में ही बड़ी संख्या में छात्र ऊपर की ओर दौड़े, और कई कारें असम राइफल्स (एआर) के बैरिकेड की ओर बढ़ीं. इस आपाधापी के बीच, शाम 7 बजे के आसपास असम राइफल्स ने अपने वाहनों को उन छात्रों की मदद के लिए भेजा जो हॉस्टल छोड़ना चाहते थे- विश्वविद्यालय में लड़कों और लड़कियों के लिए 10-10 हॉस्टल हैं.
अगले एक घंटे के भीतर, आस-पास के इलाकों से जुटी भीड़ तीन प्रवेश द्वारों से जबरन अंदर घुसी और एक गेट को गिरा दिया. मुख्य प्रवेश द्वार पर मौजूद सुरक्षा गार्ड किसी भी तरह उन्हें नहीं रोक सकते थे.
भीड़ को देखते हुए असम राइफल्स (एआर) ने दूसरी यूनिट बुलाई दो कमांडिंग अधिकारियों के नेतृत्व में कुल 70 एआर सैनिकों ने सुबह 4 बजे तक इस ऑपरेशन को अंजाम दिया. चार जिप्सियों में मणिपुर पुलिस के करीब 20 कमांडो भी मौके पर पहुंचे.
'उन्होंने कुकियों को निशाना बनाया'
छात्रों ने बताया कि महिलाएं बिस्तरों के नीचे, बाथरूम में और बालकनी में छिप गईं; भीड़ एक के बाद एक दरवाजे खटखटाती और उनपर लातें मारती रही, दस्तावेज जलाती रही, खिड़कियां तोड़ती रही और "कुकियों को मार डालो" और "कुकियों, बाहर निकलो" जैसे नारे लगाती रही. उन्होंने भीड़ को आपस में बात करते हुए सुना: "हमने बाहर कुकियों का सफाया कर दिया है. अब हॉस्टल चलते हैं."
"अधिकांश छात्रावासों में भीड़ ने कुकियों को अलग करने के लिए छात्रों के पहचान-पत्रों की जांच की. लेकिन वहां मैती छात्र और संकाय सदस्य थे जिन्होंने छात्रों की मदद की," एआर ऑपरेशन से जुड़े एक अन्य सूत्र ने कहा.
न्यूज़लॉन्ड्री ने छह महिला कुकी छात्रों से बात की जिन्होंने पुष्टि की कि मैती छात्रों, केयरटेकर्स और वार्डनों ने उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की.
"वे चिल्ला रहे थे: कुकी हालो (कुकियों को मार डालो), कुकी को बाहर लाओ. हमारी एक नागा मित्र हमारे साथ थी. उसने उनसे कहा: 'मैं कुकी नहीं बल्कि नागा हूं. आप हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?' उन्होंने सोचा कि हम सभी मैती और नागा हैं. उन्होंने सोचा कि हम बिस्तर के नीचे सिर्फ इसलिए छिपे थे क्योंकि हम डरे हुए थे. उन्होंने कहा, 'हम नागाओं या मैतियों की तलाश नहीं कर रहे हैं, इसलिए डरो मत. हम केवल कुकियों को मारेंगे," स्नातकोत्तर छात्रा चिन्नीलम खोंगसाई ने कहा, जिन्होंने तीन अन्य कुकी छात्राओं के साथ खुद को एक नागा मित्र के कमरे में बंद कर लिया था.
उन्होंने आरोप लगाया कि छात्रावास के सुरक्षाकर्मियों ने भीड़ का विरोध नहीं किया, लेकिन मणिपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ एआर की मदद कर रहा था और उन्हें उन जगहों पर ले जा रहा था, जहां छात्र छिपे हुए थे.
आधी रात के बाद उन्हें और उनकी दोस्तों को असम राइफल्स द्वारा शिविर में ले जाया गया. कुछ घंटों बाद उन्हें और कुछ अन्य लोगों को मणिपुर राइफल्स के बड़े शिविर में भेज दिया गया.
पीएचडी की छात्रा किम जॉली कुछ घंटों तक तीन नागा दोस्तों के साथ उनके हॉस्टल में फंसी रहीं. "हम बाथरूम के दरवाजे को रोककर खड़े थे. रात करीब 9 बजे, भीड़ ने लात मारकर दरवाजा खोल दिया. उनमें से कुछ से शराब की गंध आ रही थी. हमारे पास आईडी कार्ड नहीं थे. उन्होंने हमसे कार्ड लाने के लिए कहा. इस बीच, गलियारे में खड़ी मेरी मैती दोस्तों ने भीड़ से सवाल किया: 'आप लड़कियों के छात्रावास में इतना हंगामा कैसे कर सकते हैं?' उन्होंने कहा कि उनकी मैती दोस्तों ने चुपके से उनकी मदद की, ताकि भीड़ का ध्यान उनकी ओर न जाए. एआर ने उन्हें और अन्य लोगों को सुबह करीब साढ़े तीन बजे हॉस्टल से बचाया.
एक अन्य पीएचडी छात्रा ने कुकी छात्राओं के साथ, एक मैती मित्र के कमरे की बालकनी में शरण ली. "जब भीड़ कमरे में आई, तो हम उन्हें बालकनी से देख सकते थे. मेरी दोस्त ने सीधे उनकी ओर देखा," उसने कहा. इससे भीड़ पीछे हट गई. "मैं अपनी मैती दोस्त पर भरोसा कर सकती थी, क्योंकि हमारी दोस्ती बहुत अच्छी है. अगर मणिपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ से कोई मदद की पेशकश कर रहा होता, तो मुझे संदेह होता," पीएचडी की उस छात्रा ने कहा.
समाजशास्त्र में एमए कर रही एक अन्य छात्रा ने याद किया कि उसने एआर के साथ एमयूएसयू के एक प्रोफेसर और पदाधिकारियों को फंसे हुए छात्रों की मदद करते देखा था. उसने कहा, "सौभाग्य से भीड़ हमारे हॉस्टल में नहीं घुसी... लेकिन हमें अगले दिन बताया गया कि हमारे सभी दस्तावेज़ जला दिए गए." एक प्रोफेसर ने बताया कि दस्तावेजों का जलाना 4 मई को भी जारी रहा.
विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया
6 मई को कुलपति लोकेश्वर सिंह और रजिस्ट्रार चांद बाबू के साथ एक बैठक में कुछ संकाय सदस्यों ने आरोप लगाया कि हिंसा में कुछ प्रोफेसर और छात्र संलिप्त थे. "उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया और हमसे सबूत पेश करने को कहा. हमने सोचा कि इसे आगे बढ़ाना सही नहीं होगा क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है," उन्होंने कहा.
बाबू ने कहा कि विश्वविद्यालय ने सुनिश्चित किया कि एक भी छात्र घायल न हो. कुलपति सिंह "एक मीटिंग के कारण" न्यूज़लॉन्ड्री से नहीं मिल सके और "चार-पांच दिनों के बाद वापस आने" के लिए कहा. हिंसा के कुछ दिनों बाद यूनिवर्सिटी ने एक रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को सौंपी थी, जिसे उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को देने से मना कर दिया.
एमयूएसयू के उपाध्यक्ष ओइनम प्रेमदास खुमान ने कहा कि चूंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी, इसलिए "चार से पांच" एमयूएसयू पदाधिकारियों के लिए उनका विरोध करना मुश्किल था. "इसके बावजूद, हम हॉस्टल गए और भीड़ को समझाया कि उन्हें तोड़फोड़ नहीं करनी चाहिए. हमने एआर की भी मदद की," उन्होंने कहा.
एमयूएसयू अध्यक्ष सोनमणि सिंह ने कहा कि मीडिया को दोनों पक्षों की बात सुननी चाहिए. "कुकी छात्र जो भी दावा कर रहे हैं वह सही नहीं है. वे विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. राष्ट्रीय मीडिया को हमारी बात भी सुननी चाहिए." उन्होंने माना कि भीड़ ने कुछ दस्तावेज जलाए और आईडी कार्ड जांचे.
वहीं, मणिपुर यूनिवर्सिटी ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ने इस बात से इनकार किया है कि एमयूएसयू और यूनिवर्सिटी अथॉरिटी ने घटना के दौरान कुकी-ज़ो या आदिवासी समुदायों की मदद के लिए कोई कदम उठाया था.
असम राइफल्स के खिलाफ 'गुस्सा'
परिसर में चल रहे ऑपरेशन में आधी रात के बाद तक दिक्कतें आती रहीं. "तीन कुकी छात्रों को लेकर जब एक पिकअप पहाड़ी की ओर जा रहा था तो एसबीआई बैंक के पास भीड़ ने उसे घेर लिया. उन्होंने वाहन के अगले हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया और उसे आग के हवाले करना चाहते थे... लेकिन सीओ ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हवा में चेतावनी के तौर पर गोलियां चलाईं. भीड़ वहां से हट गई," एक सूत्र ने हमें बताया.
सुबह 4 बजे तक, कुल मिलाकर 500 डरे हुए छात्र, संकाय सदस्य, वार्डन, केयरटेकर और अन्य प्रशासनिक कर्मचारी, लगभग 50 कारों के साथ पहाड़ी पर जमा हो चुके थे. विश्वविद्यालय ने किसी मौत या किसी को गंभीर चोट लगने की सूचना नहीं दी. धूल में सनी 17 कारें, एक बाइक और छह स्कूटियां अभी भी शिविर में अपने मालिकों के वापस आने का इंतजार कर रही हैं, लेकिन लगता नहीं कि वह निकट भविष्य में यहां आएंगे.
यह शिविर 12 मई तक चला जब छात्रों के अंतिम बैच को इंफाल में बड़ी जगहों पर भेज दिया गया. सूत्रों ने बताया कि एआर ने छात्रों की देखभाल के लिए अपने राशन का उपयोग किया, और जैसे ही स्थिति में सुधार हुआ उन्हें अधिक सुविधाओं वाले दूसरे बड़े शिविरों में भेजना शुरू कर दिया.
इस बीच, "स्थानीय सुरक्षा गार्डों से विश्वास उठ जाने" की वजह से सेना ने ऑपरेशन के दो दिन बाद, तीन हफ्ते के लिए परिसर के तीन द्वारों की सुरक्षा हेतु 16 जाट रेजिमेंट की एक टुकड़ी भेजी. हालांकि, मैती समुदाय के एक वर्ग का मानना है कि असम राइफल्स चूड़ाचांदपुर और कांगपोकपी में कुकियों के प्रति सहानुभूति रखती है.
एआर के अधिकारियों और सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में गठित यूनिफाइड कमांड के एक सदस्य ने इस आरोप से इंकार किया. राज्य में अर्धसैनिक बलों और पुलिस के साथ बेहतर समन्वय के लिए यूनिफाइड कमांड का गठन किया गया है. "ये सिर्फ आरोप हैं. उनमें कुछ भी दम नहीं है," इस सदस्य ने कहा.
“क्या हमने मैती लोगों को घाटी तक और कुकियों को पहाड़ियों तक नहीं पहुंचाया है? हमने सभी जातियों के लोगों को बचाया और (सुरक्षित स्थानों पर) पहुंचाया है... हम शिविरों में राहत सामग्री मुहैया करा रहे हैं... राज्य सरकार लोगों को हमारे खिलाफ करके अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है,'' एक एआर अधिकारी ने कहा.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
South Central 34: Karnataka’s DKS-Siddaramaiah tussle and RSS hypocrisy on Preamble
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar