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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दोहरा रवैया: मणिपुर का वीडियो आने से पहले की गई थीं 11 शिकायतें

पिछले चार महीने से मणिपुर हिंसा का शिकार है. यहां कुकी और मैती समुदाय के लोग आपस में संघर्षरत हैं. इस हिंसा की शुरुआत तीन मई को हुई थी, लेकिन 19 जुलाई को दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर भीड़ द्वारा घुमाने और उनके साथ दुराचार करने का वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तब सबका ध्यान मणिपुर की ओर गया. 

इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने स्वतःसंज्ञान लेते हुए मणिपुर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी. यह स्वतःसंज्ञान मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर लिया गया था. 

तो क्या आयोग को 19 जुलाई से पहले मणिपुर में जारी हिंसा की भयावहता का कोई अंदाजा नहीं था? तथ्य कुछ और ही संकेत देते हैं. कुकी महिलाओं से की गई अमानवीय हरकत सामने आने के पहले ही एनएचआरसी के पास मणिपुर हिंसा से जुड़ी 11 शिकायतें दर्ज हुई थीं. सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत न्यूज़लॉन्ड्री ने आयोग से कुछ जानकारियां मांगी थी. मसलन, 21 जुलाई से पहले आयोग के पास मणिपुर हिंसा की कितनी शिकायतें आई थीं? आयोग ने उस पर क्या कार्रवाई की और वहां कब अपनी जांच टीम भेजी?

इसके जवाब में आयोग ने बताया, ‘‘15 अप्रैल से 21 जुलाई तक आयोग को 11 शिकायतें मिली थीं. इन शिकायतों के बाद आयोग की तरफ से तीन बार मणिपुर प्रशासन को नोटिस भेजा गया. लेकिन आयोग ने मणिपुर में अपनी टीम को जांच के लिए नहीं भेजा.’’ 

हालांकि शिकायतकर्ता आयोग से लगातार टीम भेजकर जांच कराने की मांग कर रहे थे.

शिकायत 

कुकी महिलाओं का जो वीडियो जुलाई में वायरल हुआ, वह चार मई का है. मणिपुर हिंसा शुरू होने के बाद एनएचआरसी के पास पहली शिकायत सात मई को आई थी. 

यह शिकायत वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी ने की थी. त्रिपाठी ने इस शिकायत में बताया था कि कांगपोकपी जिले के सैकुल की 20 वर्षीय मैंगमिनजॉय समेत 50 लोगों की मौत 3 मई से शुरू हुई हिंसा में हो चुकी है. इन लोगों के संबंध में उचित कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है. यहां कानून व्यवस्था बेहद खराब हो गई है.  

अपनी शिकायत में त्रिपाठी 28 से ज्यादा गांवों का जिक्र करते हैं, जहां हिंसा से हालात खराब हो चुके हैं. वे बताते हैं, “यहां भीड़ उग्र होकर लोगों के घरों, गाड़ियों यहां तक कि अस्पतालों को आग के हवाले कर रही है. राज्य सरकार, आम लोगों को सुरक्षा देने में नाकाम हो रही है.” 

अपनी शिकायत में त्रिपाठी आयोग से मांग करते हैं कि मौके पर जांच के लिए एनएचआरसी अपने अधिकारियों की एक टीम भेजे, जो कानून एवं व्यवस्था को सुनिश्चित करे. साथ ही पीड़ित परिजनों को पर्याप्त मुआवजा और उचित पुनर्वास के साथ घायलों की चिकित्सा का इंतजाम सुनिश्चित किया जाए. 

इसके अगले दिन यानी आठ मई को एक बार फिर त्रिपाठी ने एक और शिकायत दर्ज कराई. यह चार मई को चूड़ाचांदपुर जिले के मोंगलेनफाई में हुई घटना पर आधारित थी. इसमें भी मृतकों, घायलों का जिक्र करते हुए त्रिपाठी ने राज्य सरकार के असफल होने का जिक्र किया है. कई मृतकों के नाम बताने के साथ-साथ वे प्रभावित गांवों का भी जिक्र करते हुए एक बार फिर आयोग से वहां अपनी जांच टीम भेजकर जांच कराने की मांग दोहराते हैं. 

इसी दिन एक और शिकायत त्रिपाठी ने एनएचआरसी को भेजी. यह चूड़ाचांदपुर के चांगपिकोट में 3 मई को हुई घटना के संदर्भ में थी. इसमें मृतकों का जिक्र करते हुए फिर से आयोग की जांच टीम मणिपुर भेजने की मांग की गई.

10 मई को इंडीजिनस लॉयर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ILAI) ने मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेजी. इस एसोसिएशन ने अपनी शिकायत में मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा के दौरान हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोपों की जांच के एनएचआरसी फैक्ट फाइंडिंग टीम से करवाने की मांग की. 

मानवाधिकार आयोग को लिखा गया शिकायती पत्र

इस शिकायत में एसोसिएशन ने मणिपुर हिंसा की संक्षेप में जानकारी देते हुए फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजकर मानवाधिकार के हनन की जांच कराने की मांग की. इसके साथ ही मांग की गई कि मृतकों के परिजनों को दस लाख का मुआवजा और घायलों को पांच लाख का मुआवजा दिया जाए और दो सप्ताह में रिपोर्ट दी जाए. 

इस शिकायत में सुरक्षा बलों द्वारा दो महिलाओं सहित तीन लोगों की कथित तौर पर की गई हत्या की न्यायिक जांच का आदेश देने और आरोपी सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग भी की गई थी. साथ ही तीनों मृत व्यक्तियों के निकटतम रिश्तेदारों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की गई थी. 

इस तरह मई में कुल चार शिकायतें मानवाधिकार आयोग को मिली. इस दौरान वहां हो रही हिंसा की कुछ तस्वीरें भी आयोग को मेल के जरिए भेजी गईं, जिसमें महिलाओं के शव क्षत-विक्षत पड़े हुए थे.

शिकायतों का सिलसिला जून महीने में भी जारी रहा. 7 जून को गुवाहाटी के रहने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. मोनोजीत सिंघा ने आयोग को शिकायत भेजी. उन्होंने मैती समुदाय पर हो रही हिंसा का जिक्र करते हुए आयोग से हस्तक्षेप करने की मांग की.

सिंघा ने लिखा, ‘‘केंद्र और राज्य सरकार मणिपुर में कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफल रही है. ऐसे में आपसे विनम्रतापूर्वक हस्तक्षेप करने और यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करता हूं कि इन जघन्य अपराधों के अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाए. न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए आपका हस्तक्षेप अत्यंत महत्वपूर्ण है.’’

12 जून को एक और शिकायत एनएचआरसी के पास मेल के जरिए आई. इसमें हत्या के साथ-साथ बलात्कार का भी जिक्र था. केरल के कन्नूर के रहने वाले वकील देवदास वी ने यह शिकायत भेजी थी. यह शिकायत मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर की गई थी. इसमें आयोग से मांग की गई कि वो केंद्र सरकार से मणिपुर में सख्त कार्रवाई करने की मांग करें. 

अब तक मणिपुर में मृतकों की संख्या 150 के पार जा चुकी थी. एक अन्य शिकायत एक जुलाई को आई. यह गुजरात के आंबेडकर विकास संघ द्वारा भेजी गई थी. यह शिकायत भी मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर भेजी गई थी. इसमें वहां हो रही हिंसा को रोकने की मांग की गई.  

3 मई से लेकर 19 जुलाई के बीच मानवाधिकार आयोग को मणिपुर में हिंसा से संबंधी 10 शिकायतें मिली लेकिन आयोग ने अपनी जांच टीम को मणिपुर भेजना जरूरी नहीं समझा.

आखिरी शिकायत 12 जुलाई को आयोग को जो भेजी गई वो मणिपुर हिंसा से जुड़ी नहीं थी. बल्कि वहां गई फैक्ट फंडिग टीम के ऊपर दर्ज एफआईआर को लेकर थी. 

एनएचआरसी ने क्या किया?

हिंसा शुरू होने और वीडियो वायरल होने के बीच मिली 11 शिकायतों में से 10 शिकायतें जो मणिपुर हिंसा से जुड़ी थीं उन्हें एक कर केस नंबर 20/14/0/2023 में दर्ज कर लिया गया. इसके आधार पर मणिपुर प्रशासन को नोटिस भेजा गया. 

नौ मई को आयोग ने मणिपुर के मुख्य सचिव से इस मामले में चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी. 

इसका जवाब मुख्य सचिव दफ्तर ने दो महीने बाद 12 जुलाई को दिया. आयोग ने इस बीच मुख्य सचिव दफ्तर को कोई रिमाइंडर आदेश नहीं भेजा. 12 जुलाई को जो एक्शन टेकन रिपोर्ट मुख्य सचिव ने आयोग को भेजी उससे आयोग सहमत नहीं हुआ और अतिरिक्त रिपोर्ट की मांग की.

आयोग ने अतिरिक्त जानकारी मांगते हुए लिखा कि एफआईआर और मुआवजे को लेकर मणिपुर के उप सचिव (गृह) द्वारा दिए गए जवाब में कमियां हैं. चार सप्ताह के भीतर पुनः जवाब दें. 

इसके बाद मणिपुर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. इसी बीच लड़कियों का नग्न वीडियो वायरल हुआ. इसके बाद तो आयोग के पास शिकायतों की बाढ़ आ गई. न्यूज़लॉन्ड्री को आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक, 21 जुलाई को आयोग के पास मणिपुर हिंसा से संबंधित 16 शिकायतें आईं. इन सभी शिकायतों को एक कर आयोग ने केस नंबर 49/14/16/2023-WC में दर्ज कर लिया.

लगभग सभी शिकायतों में आयोग से टीम भेज कर जांच कराने की मांग की गई. लेकिन आयोग ने किसी मामले में जांच टीम नहीं भेजी. बस 21 जुलाई को मणिपुर के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर जानकारी मांगी.

आखिर आयोग ने टीम भेजना ज़रूरी क्यों नहीं समझा?

एक तरफ मणिपुर की घटना थी, जहां बार-बार लोगों ने शिकायत कर मांग की कि मानवाधिकार आयोग जांच टीम भेजे. लेकिन आयोग ने इससे परहेज किया. दूसरी तरफ, यह जानकारी भी सामने आई है कि इसी दौरान मानवाधिकार दीगर राज्यों में अपनी जांच टीमें रवाना कर रहा था. हमने यह जानकारी स्वतंत्र स्रोतों से इकट्ठा की है क्योंकि आरटीआई के जरिए यह जानकारी देने से आयोग ने इंकार कर दिया.

हमने पाया कि मई से जुलाई के बीच आयोग ने पश्चिम बंगाल, दिल्ली समेत कई राज्यों में अपनी जांच टीमें भेजी हैं. 12 जुलाई को एनएचआरसी की जांच टीम दिल्ली के नरेला में स्थानीय पुलिस द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग के आरोपों की जांच करने गई थी.

18 जुलाई को एनएचआरसी की जांच टीम बंगाल के पुरलिया जिले में गई थी. यहां जांच का विषय था एक सामाजिक संगठन द्वारा ग्रामीणों के सामाजिक बहिष्कार के आरोपों की पुष्टि करना. 

वहीं, अगस्त महीने की पहली तारीख को हैदराबाद और राजा मेहन्द्रवाराम में पुलिस उत्पीड़न और एनएचआरसी के निर्देशों का पालन न करने के आरोपों पर जांच के लिए टीमें गई थीं.

मणिपुर मामले में बार-बार मांग करने के बाद भी आयोग बीते चार महीने से अपनी जांच टीम नहीं भेज पाया. जबकि 15 दिसंबर, 2022 को बिहार के छपरा और सिवान जिले में जहरीली शराब पीने से 60 लोगों की मौत हो गई थी. तब मानवाधिकार आयोग ने अगले ही दिन 16 दिसंबर को घटना का स्वतःसंज्ञान लेते हुए बिहार सरकार को नोटिस जारी कर दिया. इसके अगले दिन 17 दिसंबर को आयोग ने मामले की पड़ताल के लिए एक टीम भी बिहार भेजने की घोषणा कर दी.

न्यूज़लॉन्ड्री ने मणिपुर और देश के अन्य हिस्सों में हो रहे मानवाधिकारों के हनन को लेकर मानवाधिकार आयोग द्वारा अपनाए जा रहे दोहरे रवैये पर कुछ सवाल भेजे हैं. लेकिन आयोग की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है. 

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