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अजित पवार: राजनीति के दिग्गज या विद्रोह के नेता?

“जब पानी है ही नहीं तो छोड़ें कैसे?…क्या हम वहां पेशाब कर दें? लेकिन अगर पानी न हो तो पेशाब करना भी संभव नहीं है."

महाराष्ट्र राज्य, जहां के 65 प्रतिशत मतदाता किसान हैं, वहां पानी की मांग कर रहे सूखा प्रभावित किसानों के विरोध प्रदर्शन के जवाब में इस तरह का बयान किसी नेता की राजनैतिक पारी खत्म कर सकता है. लेकिन अप्रैल 2013 में उपमुख्यमंत्री के रूप में यह टिप्पणी करने वाले अजित पवार के साथ ऐसा नहीं हुआ, बल्कि वह कम से कम एक लाख वोटों के अंतर से एक के बाद एक चुनाव जीतते आ रहे हैं.

इस बयान के एक दशक बाद- जिसे उन्होंने अपने राजनैतिक करियर की "सबसे बड़ी गलती" बताया था और प्रायश्चित के रूप में अनशन किया था, वो अजित पवार आज बहुत आगे निकल चुके हैं. और अब उपमुख्यमंत्री के रूप में उनके पांचवें कार्यकाल में, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने गुरु और चाचा शरद पवार को पछाड़ कर अपनी सबसे कठिन चुनौती को पार कर लिया है. लेकिन उनके इस कदम से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में जो दरारें आई हैं, उन्हें भरना बहुत मुश्किल हो सकता है. 

पिछले दिनों उन्होंने जो शक्ति प्रदर्शन किया उसमें पार्टी के अधिकतर विधायक पहुंचे, जिनमें उनके चाचा के पुराने वफादार थे. वहीं पवार सीनियर के शक्ति प्रदर्शन में कम विधायक थे. लेकिन जैसे-जैसे उलटफेर चलता रहेगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि महाराष्ट्र के इस नए राजनीतिक सत्र में हवाएं किस तरफ चलेंगी.

तो अजित पवार के लिए यह कैसे संभव हुआ? उन्हें पारिवारिक बंधनों को तोड़ने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या वह केवल "विकास" के बारे में सोच रहे हैं, जैसा कि उनके कई समर्थक दावा कर रहे हैं? उनका वित्तीय और राजनैतिक दबदबा कितना है? और क्या वह अपने गुरु से अलग होकर अपनी पहचान बना पाएंगे, या देवेन्द्र फडणवीस-एकनाथ शिंदे के खेमे में अलग-थलग पड़ जाएंगे?

पढ़ाई छोड़कर बने किसान, फिर राजनेता

महाराष्ट्र के सबसे शक्तिशाली राजनैतिक परिवारों में से एक पवार फैमिली की जड़ें पुणे की बारामती तहसील के काटेवाड़ी गांव से जुड़ी हैं. परिवार की राजनैतिक पारी की शुरुआत की थी शरद पवार की माताजी शारदा पवार ने, जो 1936 में वामपंथी पेसेंट वर्कर्स पार्टी से जुड़ीं और पुणे लोकल बोर्ड की सदस्य चुनी गईंं.

अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार के साथ
शरद पवार के साथ अजित पवार
शरद पवार और सुप्रिया सुले के साथ अजित पवार

हालांकि, शरद पवार की राजनीति उनकी मां से अलग थी. और इसी राजनीति ने पवार के बड़े भाई अनंतराव के बेटे अजित को प्रभावित किया. अनंतराव वी शांताराम के प्रतिष्ठित राजकमल स्टूडियो में काम करते थे. उनके चाचा की शिक्षा और सोशल इंजीनियरिंग की छाप पवार जूनियर के हालिया कैबिनेट चयन में भी स्पष्ट रूप से दिखी. इस महीने संपन्न हुए शपथ ग्रहण समारोह में ओबीसी, एससी, आदिवासी और मुस्लिम चेहरों का मेलजोल दिखा. 

अजित पवार शराब नहीं पीते. उन्होंने बारामती की महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी से हाईस्कूल की पढ़ाई की, फिर कोल्हापुर के गोपाल कृष्ण गोखले कॉलेज में बी कॉम की डिग्री के लिए गए. लेकिन उनके पिता की मृत्यु के कारण उन्हें अंतिम वर्ष में पढ़ाई छोड़नी पड़ी, वह बारामती लौट आए और 1981 में खेती करना शुरू कर दिया. काटेवाड़ी में उनके पिता की एक डेयरी और एक पोल्ट्री फार्म था.

दस साल बाद अजित ने पारिवारिक चुनावी क्षेत्र बारामती से 3,36,263 वोटों के अंतर से लोकसभा का चुनाव जीता. लेकिन इसके पहले एक दशक तक उन्होंने पवार सीनियर के मार्गदर्शन में स्थानीय राजनीति के गुर सीखे. 1982 में उन्हें एक चीनी कारखाने और एक सहकारी समिति के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया.

ऐसी चीनी सहकारी समितियां पश्चिमी महाराष्ट्र के सैकड़ों गांवों की अर्थव्यवस्था का केंद्र हैं. दशकों से इन मिलों के कारण किसानों को बेहतर कीमतें मिलती रही हैं और नौकरियां भी पैदा हुई हैं. जिसके चलते अक्सर इन मिलों के निदेशक खुद को स्थानीय लोगों के हितैषी के रूप में प्रस्तुत कर पाते हैं और उनके लिए राजनेता के रूप में उभरना आसान होता है. निदेशकों का चयन एक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है जिसमें गांवों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जहां सहकारी समितियों के सदस्य हजारों में होते हैं.

"पवार साहब के बड़े भाई अप्पासाहेब पवार भी (1991 का लोकसभा चुनाव) लड़ने के लिए बहुत उत्सुक थे, लेकिन बारामती के लोग चाहते थे कि दादा (अजित पवार) उनका प्रतिनिधित्व करें क्योंकि वह युवा थे और उन्होंने चीनी कारखाने के निदेशक के रूप में कुशलता से काम किया था," बारामती की पूर्व सरपंच शीतल काटे ने बताया.

हालांकि उनका पहला लोकसभा कार्यकाल अधिक समय तक नहीं चला. 1991 में जब शरद पवार को पीवी नरसिम्हा राव कैबिनेट में रक्षा मंत्रालय देने की पेशकश की गई, तो उन्हें फिर से सांसद बनने की जरूरत पड़ी अजित ने चुनाव के ठीक चार महीने बाद सांसद पद छोड़ दिया, ताकि उनके चाचा को चुनाव लड़ने के लिए सीट दी जा सके, इसके बाद सीनियर पवार चुनाव जीतकर मंत्री बन गए.

उसी साल अजित महाराष्ट्र की राजनीति में लौटे. उन्होंने बारामती से विधानसभा चुनाव जीता और सुधाकर राव नाइक की कैबिनेट में कृषि मंत्री बने. नाइक को शरद पवार के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता था. जल्द ही अजीत को पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई.

लेकिन वास्तव में उनका राजनैतिक उदय तब शुरू हुआ जब 1999 में शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया. जहां चाचा ने पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं भतीजे ने एनसीपी के राज्य प्रभारी के रूप में कार्यभार संभाला. "दादा उस समय तक केवल पुणे क्षेत्र में जाने जाते थे, लेकिन जल्द ही वह पूरे महाराष्ट्र में जाने जाने लगे...पवार साहब का लक्ष्य पार्टी का विस्तार करना था इसलिए वह उसमें व्यस्त थे, और दादा ने बारामती में स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया," काटे ने बताया.

अजित पवार के बेटे जय और पार्थ

कैसे कायम हुआ अजित का दबदबा

अजित पवार के पास अब अपने चाचा के नेतृत्व वाले गुट की तुलना में अधिक विधायक और एमएलसी हैं. उन्हें शरद पवार के कई पुराने वफादारों जैसे छगन भुजबल, दिलीप वाल्से पाटिल और हसन मुश्रीफ आदि का भी समर्थन प्राप्त है. अजित के समर्थकों के एक वर्ग का दावा है कि कई एनसीपी नेताओं ने केवल इसलिए पाला बदल लिया क्योंकि वे शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी की कमान संभालते हुए नहीं देख सकते थे, उनका मानना था कि इस पद के हकदार "दादा" हैं.

अजित का प्रभुत्व स्पष्ट दिखाई देता है.

2019 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने सुप्रिया सुले पर लगातार हमलों के जवाब में शिवसेना विधायक विजय शिवतारे की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, "मैं देखूंगा कि आप इस बार विधायक कैसे बनते हैं. महाराष्ट्र जानता है कि अगर मैं तय कर लूं कि किसी को विधायक नहीं बनने दूंगा तो किसी का बाप कुछ नहीं कर सकता.

शिवतारे भाजपा-शिवसेना सरकार में मंत्री थे और पुरंदर सीट से विधायक थे. यह सीट बारामती लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थी जहां से सुले सांसद थीं. शिवतारे 2019 का चुनाव एनसीपी-कांग्रेस उम्मीदवार से 30,000 से अधिक वोटों से हार गए.

उसी साल नवंबर में जब अजित उपमुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फड़नवीस सरकार में शामिल हुए, तो एक एनसीपी नेता ने मुंबई के कुछ हिस्सों में उन्हें गद्दार करार देते हुए पोस्टर लगाए थे. शपथ ग्रहण समारोह के बाद अजित ने कथित तौर पर उस नेता को धमकी दी. घटना से जुड़े एक पत्रकार के अनुसार, उस नेता को महीनों तक एनसीपी के किसी भी कार्यक्रम में नहीं देखा गया.

"अजित पवार सिर्फ धमकी देना जानते हैं… उन्होंने अपने अहंकार और असभ्य टिप्पणियों से (शरद) पवार के पुराने समर्थकों को दरकिनार कर दिया और अपना खुद का जनाधार बनाया," पूर्व आईपीएस अधिकारी सुरेश खोपडे ने कहा. खोपडे ने 2014 में सुप्रिया सुले के खिलाफ आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और मसलवाड़ी गांव में स्थानीय लोगों को धमकाने के लिए अजित पवार के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. खोपडे ने दावा किया कि सुले के अभियान प्रबंधक के रूप में अजित ने कथित तौर पर ग्रामीणों को पानी की आपूर्ति बंद करने की धमकी दी थी, जब उन्होंने उनकी पार्टी के वादों पर सवाल उठाए थे.

"मैंने वडगांव पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी. लेकिन अजित पवार के लोगों ने ग्रामीणों को अपने बयान बदलने के लिए धमकाना शुरू कर दिया. उनके समर्थकों ने मेरे खिलाफ विरोध मार्च निकाला. उन्हें (अजित को) खुद को गुंडा कहलवाना पसंद है," खोपडे ने कहा. "अजित क्षेत्र में अपनी पसंद के नौकरशाहों को नियुक्त करते हैं, जो केवल वही करते हैं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है."

लेकिन अजित के राजनैतिक उत्थान की कहानी में और भी बहुत कुछ है. बीते सालों में उन्होंने अपनी बढ़ती लोकप्रियता और ऊंचे पदों का उपयोग करके एनसीपी के भीतर अपने समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार किया है. 

पिछले दो दशकों से अजित के राजनैतिक जीवन पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ विश्लेषक ने कहा, "वह युवा लोगों को राजनीति में लेकर आए और अपने समर्थकों का एक समूह बनाया. पिछले कुछ वर्षों में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई क्योंकि उन्होंने धन और प्रभाव का इस्तेमाल अपने लोगों के फायदे के लिए किया. शरद पवार का प्रभुत्व कोऑपरेटिव और उद्योगपतियों पर था, जबकि अजित का बैंकों और ठेकेदारों पर, वह चुनाव लड़ने में अपने चुने हुए लोगों की आर्थिक मदद करने से कभी हिचकिचाते नहीं हैं."

लेकिन यह पैसा आता कहां से है?

कोऑपरेटिव, भ्रष्टाचार और मुकदमे

अजित जो कभी पोल्ट्री और डेयरी व्यवसाय से जुड़े एक किसान हुआ करते थे, आज अपनी पत्नी सुनेत्रा और बेटों जय और पार्थ के साथ कम से कम 20 कंपनियों का हिस्सा हैं, जिनमें वित्त, खाद्य और पेय पदार्थ, चीनी और कपड़ा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं. इनमें से कई कंपनियों पर उनका नियंत्रण है. उनके 2019 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक उनके पास 75 करोड़ रुपए की संपत्ति है.

उनका कम से कम दो सहकारी बैंकों पर भी नियंत्रण रहा है. वह 1991 से 2007 तक पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे, और 2001 और 2011 के बीच महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के निदेशक थे. 

लेकिन 2019 में, प्रवर्तन निदेशालय ने एक आपराधिक जनहित याचिका के आधार पर अजित के निदेशक रहते हुए एमएससी बैंक के कर्जों में हुई 25,000 करोड़ रुपए तक की कथित धोखाधड़ी की जांच शुरू की. अजित अकेले नहीं थे; इस अवधि के दौरान बैंक में 77 निदेशक थे, जिनमें 44 निर्वाचित और 33 नियुक्त किए गए थे. इनमें से अधिकांश एनसीपी के सदस्य थे. बाद में अजित सहित लगभग 50 एनसीपी नेताओं पर मामले दर्ज किए गए. 

इसके अलावा, सिंचाई मंत्री रहते हुए उन्होंने कथित तौर पर ठेके देने में कुछ कॉन्ट्रैक्टरों का पक्ष लिया, जिसमें 20,000 करोड़ रुपए तक की अनियमितताएं हुईं. 

2012 में एक व्हिसलब्लोअर की शिकायत के बाद शुरू किए गए कई मामलों में विदर्भ सिंचाई विकास निगम पर 60 ठेकेदारों को धोखे से धन सौंपने का आरोप लगाया गया था, जिसमें अविनाश भोसले, अजय संचेती और संदीप बाजोरिया जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के दिग्गज भी शामिल थे.

वरिष्ठ पत्रकार सुनील तांबे ने आरोप लगाया कि ठेकेदार लॉबी पर अजित का कब्जा है. उन्होंने कहा, "एनसीपी के विभिन्न पदाधिकारियों की कमान भी उनके हाथों में है. उन्होंने अपने विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को सभी संसाधन मुहैया कराए हैं. वह लगभग 15 वर्षों तक पीडीसीसी के अध्यक्ष और 10 वर्षों तक एमएससी बैंक के निदेशक रहे... इन घोटालों के बावजूद किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं. लोगों का मानना है कि उनसे जीता नहीं जा सकता."

अजित पवार के राजनैतिक करियर के शुरुआती दिनों से ही उन्हें कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार उद्धव भड़सालकर कहते हैं, "पार्टी और सरकार पर मजबूत पकड़" होने के कारण, वह "सभी प्रकार के ठेकेदारों पर" नियंत्रण पाने में सफल रहे हैं.

अजित पवार के शिंदे-फड़नवीस सरकार में शामिल होने से कुछ दिन पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में एनसीपी और अन्य दलों पर निशाना साधते हुए, कथित महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले और सिंचाई घोटाले का जिक्र किया था. और अजित के शपथ ग्रहण के एक दिन बाद, शरद पवार ने "ईडी प्रॉब्लम" की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री के साथ-साथ पार्टी के बागी नेताओं पर भी हमला बोला.

"उन्होंने कहा था कि एनसीपी भ्रष्टाचार में लिप्त है. उन्होंने राज्य सहकारी बैंक का भी जिक्र किया. उन्होंने सिंचाई से जुड़ी शिकायत का भी जिक्र किया. मुझे खुशी है कि उन्होंने एनसीपी के कुछ सदस्यों को शपथ दिलायी है. इसका मतलब है कि उन्होंने जो आरोप लगाए उनमें कोई सच्चाई नहीं थी. उन्होंने इन सभी को उन आरोपों से मुक्त कर दिया है. उन्होंने कार्रवाई करने की बात कही थी, (लेकिन) देखना होगा कि उन्हें क्या राहत मिलती है," एनसीपी के मुखिया ने कहा.

नवंबर 2019 में भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस के साथ 80 घंटे की सरकार बनाने के तुरंत बाद, अजित को कथित सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामलों में एंटी करप्शन ब्यूरो ने क्लीन चिट दे दी थी. हालांकि, कथित एमएससीबी घोटाले में ईडी का मामला अभी भी लंबित है. निदेशालय ने अप्रैल में अपना आरोपपत्र दायर किया, जिसमें अजित और उनकी पत्नी सुनेत्रा का नाम लिए बिना उनकी स्वामित्व वाली कंपनी का उल्लेख किया गया था.

परिवार में 'कलह'?

शरद पवार के बारे में अक्सर उनके समर्थक कहते हैं, "वह भारत को न मिलने वाले सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हैं", अजित शायद नहीं चाहते हैं कि उनके प्रशंसक उन्हें "महाराष्ट्र को न मिलने वाला सबसे अच्छा मुख्यमंत्री" कहें, और इसलिए इस साल कम से कम दो बार- हाल ही में 5 जुलाई को उन्होंने सार्वजनिक रूप से सीएम पद पर काबिज होने की इच्छा जताई है.

दो महीने पहले ही अजित के विद्रोह की भविष्यवाणी करने वाले मुंबई स्थित राजनैतिक पत्रकार राहुल निर्मला प्रभु ने दावा किया कि पवार फैमिली ने हाल ही में एक पारिवारिक सभा में तय किया था कि शरद पवार के रिटायर होने पर सुप्रिया सुले पार्टी की केंद्रीय कमान संभालेंगी, जबकि अजित राज्य की राजनीति देखेंगे. 

“सब कुछ तय और नियोजित था, लेकिन जब शरद पवार ने 1 मई को इस्तीफा दिया, तो उन्हें एनसीपी कार्यकर्ताओं की ओर जो जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली, उससे उन्होंने निर्णय बदल लिया. दूसरी गलती तब की जब पार्टी की कमान उन्होंने सुप्रिया को सौंपी"

शरद पवार के कोर ग्रुप का हिस्सा रहे एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इसमें "कोई संदेह नहीं" है कि सुले एक अच्छी सांसद हैं लेकिन "काम करने की क्षमता और नेतृत्व के गुणों के मामले में अजित से उनकी कोई तुलना नहीं है... अजित को लगातार दरकिनार किया जा रहा था."

अजीत ने महाराष्ट्र कैबिनेट में कोई महत्वपूर्ण पद प्राप्त करने की कई बार कोशिश की, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा को हर बार चुनौती मिली. 2009 में पार्टी ने उनकी जगह छगन भुजबल को डिप्टी सीएम चुना. बाद में अजित ने कहा कि भाजपा ने उनसे संपर्क किया था. आदर्श हाउसिंग घोटाले के बाद 2012 में आख़िरकार उन्हें यह पद मिला, लेकिन कुछ महीनों के भीतर सिंचाई घोटाले के आरोपों के बीच उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

आने वाले सालों में भी स्थिति ऐसी ही रही. जब महाविकास अघाड़ी ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना जारी रखा, तो अजित की अलगाव की यह भावना और बढ़ गई, जो वह चार साल पहले से किन्हीं अन्य कारणों से महसूस करते आ रहे थे.

2019 में जब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार सरकार बनाने के लिए कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे थे, तब अजित ने अपने चाचा के खिलाफ विद्रोह कर दिया. वह कई विधायकों को लेकर राजभवन गए और अचानक फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाते हुए डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. अजित ने तब दावा किया था कि उनके साथ 50 से अधिक एनसीपी विधायक हैं, लेकिन अंततः वे पार्टी में लौट आए और तभी से वह एनसीपी के भीतर अलग-थलग पड़ गए.

कई लोगों का कहना है कि अजित और उनके बेटे पार्थ को उसी समय से पार्टी में किनारे कर दिया गया था.

राहुल निर्मला प्रभु ने दावा किया कि अजित और रोहित पवार- शरद पवार के बड़े भाई अप्पासाहेब के पोते और करजत जामखेड से विधायक के बीच भी तकरार है. माना जा रहा है कि रोहित ने अजित के बेटे पार्थ की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है, और अजित पवार इसे कभी नहीं भूलेंगे.

लेकिन एनसीपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का क्या? सत्ता के इस संघर्ष में वे कहां खड़े हैं, और अजित को एक राजनेता के रूप में वह कैसे देखते हैं?

'कठोर' प्रशासक, 'अधिक स्पष्ट'

एनसीपी की वरिष्ठ नेता राजलक्ष्मी भोंसले कहती हैं कि अजित एक "मुखर" नेता हैं जो अपने चाचा की तुलना में "अधिक स्पष्ट बोलते हैं". "अगर कोई उसके साथ चालाकी करने की कोशिश करता है तो वह उस पर खुलेआम हमला करते हैं."

"दादा हम पर चिल्ला सकते हैं, वह कभी खरी-खरी सुना सकते हैं, लेकिन वह लोगों को कभी निराश नहीं करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनका काम पूरा हो," बारामती के एक एनसीपी कार्यकर्ता रविराज तावरे ने कहा. तावरे ने दावा किया कि मई 2021 में स्थानीय चुनावों से पहले टिकटों के बंटवारे पर नाराजगी के कारण "उनकी ही पार्टी के" लोगों ने उन्हें गोली दी थी, जिसके बाद अजित पवार ने उनकी बहुत मदद की. तवारे ने कहा कि "दादा" ने एक एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था की, और डॉक्टरों और पुलिस अधिकारियों के साथ बातचीत करके यह सुनिश्चित किया कि "मेरा सफलतापूर्वक इलाज" किया जाए. "अगर मैं मर जाता तो उनके कद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन दादा कभी भी अपने लोगों को असहाय नहीं छोड़ते."    

तावरे के अनुसार, अजित पवार जल्दी उठने वाले व्यक्ति हैं, जिन्हें कड़ी मेहनत करने वालों की परख है. वह लोगों को शराब पीने से हतोत्साहित करते हैं. "वह नारियल की तरह है; बाहर से सख्त लेकिन अंदर से नरम."

बारामती में पवार परिवार द्वारा संचालित चैरिटी ट्रस्ट विद्या प्रतिष्ठान के परिसर में हर रविवार सुबह 7 बजे अजित पवार का जनता दरबार लगता है, जिसमें सैकड़ों लोग अपनी शिकायतें लेकर आते हैं.

काटे के अनुसार, आगंतुकों को उनका "एकमात्र निर्देश" होता है कि वह एक लिखित प्रार्थना-पत्र के साथ आएं, जिसमें उनका नाम, फोन नंबर और समस्या लिखी हो. "दादा अधिकांश समस्याओं को मौके पर ही सुलझा देते हैं. अगर किसी आपात स्थिति में उन्हें जाना होता है, तो वे सभी प्रार्थना-पत्र इकठ्ठा कर लेते हैं. वह अपने निजी सहायक को निर्देश देकर तुरंत उन्हें सुलझाना शुरू कर देते हैं. वह बहुत सुलभ हैं और कोई भी उनसे संपर्क कर सकता है. अगर कोई किसी मध्यस्थ के साथ आता है तो वह डांटते हैं. वह हां तभी कहते हैं जब उन्हें लगता है कि वह समस्या का समाधान कर सकते हैं. वह आपको झूठी दिलासा देकर दर-दर भटकाने वालों में से नहीं हैं."

अजित पवार को अक्सर पिंपरी चिंचवड़ को एशिया के सबसे अमीर नगर निगमों में से एक बनाने का श्रेय दिया जाता है. 2017 में इस क्षेत्र से भाजपा के जीतने से पहले, एनसीपी ने 15 वर्षों तक निगम में सत्ता बरकरार रखी थी. लेकिन हार के बावजूद, पवार के लिए इस क्षेत्र में अभी भी उनके प्रति बहुत सद्भावना है. यही वजह है कि डिप्टी सीएम के रूप में भविष्य की परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए पिंपरी चिंचवड़ का दौरा करने की उनकी हालिया घोषणा से भाजपा का एक वर्ग असुरक्षित मह्सूस कर रहा है, और इन चिंताओं को दूर करने के लिए फडनवीस को पिछले सप्ताह एक बैठक बुलानी पड़ी.

ऐसी चिंताओं के बावजूद, जानकारों का कहना है कि अजित पवार से भाजपा को फायदा ही होगा.

ठाणे स्थित राजनैतिक कमेंटेटर हरीश केरज़ारकर ने कहा, "अजित पवार भाजपा को वह दिलाएंगे जो हर्षवर्द्धन पाटिल और एकनाथ शिंदे जैसे नेता नहीं दिला पाए. वह उन्हें मराठा मतदाताओं का समर्थन दिलाएंगे, लेकिन इससे उनके सबसे बड़े और सबसे मजबूत ओबीसी जनाधार पर असर पड़ सकता है. अगले विधानसभा चुनाव में इस बात की पूरी संभावना है कि फडनवीस को दिल्ली भेजा जाएगा और अजित पवार सीएम बनेंगे.”

हालांकि मुंबई स्थित राजनैतिक टिप्पणीकार प्रताप आस्बे ने कहा कि अजित द्वारा शरद पवार को रिटायर होने का सुझाव देने वाली टिप्पणी से गलत संदेश गया है. "शरद पवार के पास खेलकूद से लेकर फिल्मों से लेकर उद्योगपतियों और सहकारी समितियों तक का समर्थन है. अजित के पास सभी क्षेत्रों में उस तरह के समर्थ की व्यवस्था नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह बेहद लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं होगा. शरद पवार ऐसे व्यक्ति हैं जो चीजों को आसानी से हाथ से जाने नहीं देते हैं."

महाराष्ट्र में अक्टूबर में नगरपालिका और स्थानीय चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा. शरद पवार ने विद्रोह के मद्देनजर पार्टी को एकजुट करने के लिए पहले ही अपना राज्यव्यापी दौरा शुरू कर दिया है, भले ही विपक्ष कमजोर दिख रहा है और एक नया सहयोगी मिलने के बाद  भाजपा अधिक आक्रामक है.

फिलहाल तो यह चाचा-भतीजे के बीच खुली सियासी जंग नजर आ रही है. लेकिन ऐसे राज्य में जहां तीन प्रमुख दलों ने पिछले पांच वर्षों में अप्रत्याशित गठबंधन बनाए हैं और दोनों नेताओं ने यह प्रदर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि राजनीति में सबकुछ संभव है. इस बात की संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि सत्ता का यह ताजा संघर्ष केवल अहम की लड़ाई बनकर रह जाएगा.

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