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G20: राजधानी को सुन्दर बनाने के लिए चल रहा बुलडोजर, अब तक करीब 18 हजार परिवार बेघर
दिल्ली के तुगलकाबाद में अपने टूटे हुए घर के मलबे से अपनी बेटी की चप्पल ढूंढती 42 वर्षीय कनिका कैमरा देखते ही फफक कर रो पड़ती हैं. बुलडोजर से ढहा दिए घर की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, “जिंदगी भर लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा करके बड़ी मेहनत से घर बनाया था लेकिन सरकार ने तोड़ दिया. सरकार बताए अब मैं अपने बच्चों को लेकर कहां जाऊं.”
कनिका के पति दिव्यांग हैं, वे देख नहीं सकते. उनके दो बच्चे हैं. परिवार चलाने के लिए वह लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन धोने का काम करती हैं. थोड़ी दूर पर एक नीम के पेड़ के नीचे लगे कामचलाऊ टेंट की ओर इशारा करते हुए वह कहतीं हैं, "जवान बेटी के साथ मुझे पेड़ के नीचे गुजारा करना पड़ रहा है. बारिश आती है तो पॉलिथीन ओढ़कर सोना पड़ता है. ना टॉयलेट है और ना पीने के पानी का इंतजाम. हम जानवरों जैसे जिंदगी जीने को मजबूर हैं. किराए पर कमरा लेने के लिए पांच हजार रुपए मैं कहां से लाऊं?”
यह सिर्फ कनिका की कहानी नहीं है. राजधानी दिल्ली में ऐसी सैकड़ों मेहनतकश कनिका आज बेघर कर दी गई हैं. कोई पेड़ के नीचे तो कोई किसी फ्लाइओवर के नीचे जीवन जीने को मजबूर है.
दरअसल, सितम्बर में दिल्ली में होने वाले जी-20 सम्मेलन के मद्देनजर राजधानी को सजाया जा रहा है. जिसके लिए दिल्ली और केंद्र सरकार की 20 से ज्यादा एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं. जिसके तहत सड़कों की मरम्मत किए जाने, पार्कों, ऐतिहासिक जगहों और सार्वजनिक जगहों को आकर्षित बनाने के साथ-साथ सड़कों के सौदर्यीकरण का काम तेजी से चल रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, इसके लिए करीब एक हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं. दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना खुद जमीन पर उतर कर सौंदर्यीकरण का निरीक्षण कर रहे हैं.
एक तरफ दिल्ली को सजाया जा रहा है तो दूसरी तरफ दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा अनाधिकृत झुग्गियों पर बुलडोजर चलाने का काम भी किया जा रहा है. पीले पंजे के चलते अभी तक करीब 20 हजार परिवार बेघर हो गए हैं.
पिछले तीन-चार महीने में दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में 10 से ज्यादा जगह पर इन झुग्गियों को तोड़ा गया है. जिनमें प्रमुख रूप से तुगलकाबाद, वसंत विहार, महरौली, राजघाट, कस्तूरबा नगर, कालकाजी, नेहरू कैंप और ग्यासपुर शामिल हैं.
तुगलकाबाद में तुगलकाबाद किले के पास करीब ढाई से तीन हजार झुग्गियां थी. जिन पर मई महीने में बुलडोजर चलाया गया. दिल्ली विकास प्राधिकरण और भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस कार्रवाई को किया.
वहीं राजघाट में आईटीओ से कश्मीर गेट की तरफ जाते वक्त रिंग रोड के नीचे यमुना खादर के इलाके में खेती करने वाले किसानों के घरों पर भी बुलडोजर चला दिया गया है और खेतों को पाट दिया गया है. यहां तक कि घर में रखे हुए सामान को भी गढ्ढा खोदकर पाट दिया गया. इसमें बच्चों की किताबों सहित रसाई का सामान भी शामिल था. यह कार्रवाई दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा की गई.
एक तिरपाल के नीचे मिट्टी के चूल्हे पर रोटी सेंकती हुई 40 वर्षिय कमली कहती हैं, “डीडीए ने मेरा सिलेंडर भी दफना दिया. ये भी नहीं सोचा कि हम अपने बच्चों को खाना कैसे खिलाएंगे? ऐसा लग रहा है जैसे हम अपने ही देश में गुलाम हो गए हैं.”
यहां करीब पचास परिवार रहते थे. यहां रहने वाले लोगों को दावा है कि उनके पूर्वज सौ साल पहले यहां आकर बस गए थे. रणधीर सिंह अपने पूरे परिवार के साथ यमुना खादर के खेतों में सब्जी उगाने का काम करते थे लेकिन अब उनके पास न खेत बचा है ना घर.
रणधीर 1937 के एक लगान की रसीद दिखाते हुए कहते हैं, "जब अंग्रेजों का राज था तो हमारे पूर्वज यहां बसाए गए थे लेकिन अब हमारी ही सरकार हमें उजाड़ रही है."
वो आगे कहते हैं, "हमारा घर और रोजगार छीनकर सरकार हमें मरने पर मजबूर कर रही है."
दिल्ली में इस वक्त घर ढहाए जाने से लेकर सड़क पर जिंदगी बिताने को मजबूरी की अनेक कहानियां आम हो गई हैं. डेमोलिशन ड्राइव का शिकार हुए लोग प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और गृहमंत्री को पत्र लिख रहे हैं लेकिन वहां से कोई राहत का पैगाम आता दिखाई नहीं दे रहा. दिल्ली के सौंदर्यीकरण की कीमत शहर के मेहनतकश गरीब लोग चुका रहे हैं.
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