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एबीपी न्यूज़ में छंटनी: नए गैंग का पुराने निजाम पर हमला
हिंदी के चर्चित न्यूज़ चैनलों में से एक एबीपी न्यूज़ ने अचानक 50 से ज़्यादा पत्रकारों और अन्य विभागों के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. लंबे समय से अच्छी रेटिंग का सूखा झेल रहे एबीपी न्यूज़ में जिस तरीके से ये छंटनी की गई हैं वह रोंगटे खड़ा कर देता है. एंकर को ऑन एयर निकालने का संदेश दिया गया, 20-25 साल के अनुभवी कर्मचारियों को बिना किसी नोटिस के बर्खास्त कर दिया गया. और तो और सुनने में आया है कि कर्मचारियों से ऐसे कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करवाए गए जिसके मुताबिक वो बाहर किसी से इस बारे में बातचीत या बयान नहीं दे सकते.
निकाले गए एबीपी न्यूज़ के तमाम पत्रकारों और कर्मचारियों से बातचीत में हमने पाया कि कंपनी ने न तो नियमों का पालन किया, न मानवीय या कॉरपोरेट मूल्यों का.
25 साल से कैमरा संभाल रहे अजय तिवारी ने एक लंबी सोशल मीडिया पोस्ट लिखकर एबीपी न्यूज़ में हुई निर्मम छंटनी पर रौशनी डाली है, ‘‘मैंने होश संभाला, पढ़ाई पूरी की और हाथ में कैमरा थाम लिया था. 25 वर्षों से टेलीविजन कैमरे के पीछे खड़ा हूं. कैमरे पर जब भी मेरी जरूरत लगी मैं एक कॉल पर आया और उसका ग्रिप पकड़ लिया. सुबह, शाम, रात, बरसात, आंधी, पानी, तूफान कभी भी मैंने कैमरे को हाथों से छूटने नहीं दिया. कई बार तो हिल गया मैं, पर कैमरा को हिलने से बचाया. पत्नी अस्पताल में थी, बच्चे का जन्म हुआ पर मैं कहीं दूर अपने कैमरा के साथ खड़ा था.”
वो आगे लिखते हैं, “मां की मौत हुई, पापा जी ने दम तोड़ दिया लेकिन मैं टीवी कैमरा लिए कहीं और घूम रहा था. जन्म-मृत्यु, तीज-त्योहार-शादी के अवसर पर परिवार के साथ नहीं कैमरे के साथ रहना चुना था मैंने. पैसे की भूख नहीं थी, पर इसी कैमरे की वजह से छोटी सी तनख्वाह आती थी, जिससे बच्चों को पढ़ाने का ख्वाब देखा था मैंने. आज मेरे दो बच्चों ने 12वीं पास कर ली है, वो कॉलेज जाने की तैयारी कर रहे थे, कैमरे ने ठीक उसी समय मेरा साथ छोड़ दिया. जब मुझे इस नौकरी की सबसे ज्यादा जरूरत थी. बच्चे कॉलेज की वेबसाइट खंगाल रहे थे, उन्हें फॉर्म भरने और रजिस्ट्रेशन के लिए फीस चाहिए थी, लेकिन बच्चों को अभी तक पता नहीं है कि उनके कैमरामैन पापा की नौकरी चली गई है. नोएडा से 'रामभरोसे' के साथ कैमरामैन अजय तिवारी.”
अजय और उन जैसे तमाम लोगों को बिना किसी पूर्व सूचना के निकाल दिया गया. कैमरामैन अजय जैसी ही कहानियां तमाम लोगों की हैं. अजय ने हिम्मत दिखाकर अपनी कहानी ट्विटर पर शेयर कर दी, बाकियों में इतनी हिम्मत नहीं थी. हमने ऐसे ही बहुत से लोगों से संपर्क किया. कुछ ने अपना नाम जाहिर किया, कुछ ने छुपा लिया. इसे पढ़कर आपको इस निर्मम छंटनी की असलियत समझ आएगी.
हालत ये रही कि एबीपी न्यूज़ ने लोगों को नोटिस तक जारी नहीं किया. कुछ पत्रकारों को सीधे डेस्क से उठाकर घर भेज दिया गया. कुछ को फोन पर ही बर्खास्तगी की सूचना दे दी गई. कर्मचारियों के मुताबिक उनसे किसी मुआवजे तक की चर्चा नहीं की गई.
निठारी कांड, आरुषि हत्याकांड, केदारनाथ त्रासदी, दिल्ली बम बलास्ट और देश के तमाम राज्यों की चुनावी कवरेज कर चुके अजय तिवारी 23 जून, शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी पर अपने परिवार के साथ समय बिता रहे थे. उसी समय उन्हें दफ्तर से फोन आया. उन्हें एक आपात मीटिंग के लिए दफ्तर बुला लिया गया.
47 वर्षीय अजय बताते हैं, “मुझे कुछ नहीं पता था. मैं जल्दी-जल्दी तैयार होकर दफ्तर पहुंचा. वहां मुझसे कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए और उसके बाद कह दिया गया कि कल से नौकरी पर नहीं आना है.’’
अपने परिवार के भविष्य को लेकर चिंतित तिवारी कहते हैं, ‘‘हम बहुत कम सैलरी वाले लोग हैं. नौकरी जाने का तो बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था. इस उम्र में मेरी नौकरी गई है अब कौन काम देगा? कैमरापर्सन को नौकरी देने से पहले उसका शरीर और उम्र देखी जाती है, कि कितना भागदौड़ कर सकता है.”
तिवारी के तीन बच्चे हैं. दो बेटे और एक बेटी. 17 वर्षीय बेटी और 19 वर्षीय बेटे ने इसी साल 12वीं की परीक्षा पास की है. उनके आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन होना बाकी है. जबकि तीसरा बेटा 7 वीं में पढ़ता है.
कहां से किसकी गई नौकरी
न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद जानकारी के मुताबिक अब तक 47 लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है. यह सिलसिला अभी भी जारी है.
इनमें आउटपुट डेस्क से 15, टेक्निकल और पीसीआर डिपार्टमेंट से चार, असाइनमेंट डेस्क से पांच, तीन रिपोर्टर, चार एंकर, नौ वीडियो एडिटर, छह कैमरामैन और इसके अलावा एक कर्मचारी को लाइब्रेरी डिपार्टमेंट से बर्खास्त किया गया है. यह संख्या और भी बढ़ सकती है.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास नाम सहित इनकी सूची उपलब्ध है. इनमें से बहुत सारे लोग नहीं चाहते कि उनका नाम सार्वजनिक हो इसलिए हम उनके नाम गोपनीय रख रहे हैं.
एबीपी न्यूज़ राष्ट्रीय चैनल से छंटनी के साथ ही एबीपी समूह ने अपने दो क्षेत्रीय चैनल एबीपी गंगा और एबीपी सांझा को बंद कर दिया है. यहां के कुछ कर्मचारियों को एबीपी न्यूज़ में स्थांतरित कर दिया गया है और बहुतों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.
नौकरी से निकाले गए एबीपी न्यूज़ के एक सीनियर प्रोड्यूसर पिछले तीन साल से प्रोडक्शन टीम का हिस्सा थे. 20 सालों के करियर में उन्होंने आज तक, रिपब्लिक भारत, इंडिया टीवी और दैनिक जागरण जैसे संस्थानों में काम किया है. वो हमें एक सनसनीखेज जानकारी देते हैं, “यहां कुछ लोगों को बचाने के लिए यह सब चल रहा है.”
वह कहते हैं, “मेरी रात 11 बजे तक की शिफ्ट थी, लेकिन उससे पहले ही करीब सात बजे मुझे सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (न्यूज़ और प्रोडक्शन) संत प्रसाद राय के पीए ने बताया कि आपको दूसरे फ्लोर पर सर बुला रहे हैं. मैं उनके कमरे में गया. वहां संत राय के साथ एचआर नीतू वाली भी मौजूद थीं. उन्होंने मुझसे कहा कि अब कंपनी को आपकी जरूरत नहीं है. इस दौरान मुझसे कुछ कागजों पर साइन करवाए गए. उस पर लिखा था कि मैं अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ रहा हूं. इसमें यह भी लिखा था कि इस सबके बारे में मैं सोशल मीडिया या किसी अन्य मीडिया पर कुछ नहीं लिखूंगा या बोलूंगा. किसी को कुछ नहीं बताऊंगा. उन्होंने लगभग जबरन इन तमाम कागजों पर हस्ताक्षर करवाए.”
“इस दौरान तुरंत ही आईटी वाले ने मेरा फोन लिया और उसमें से मेरा ऑफिशियल ईमेल डिएक्टिवेट कर दिया. साथ ही मेरा आई कार्ड भी ले लिया.” उन्होंने बताया.
एबीपी न्यूज़ में ऐसा सिर्फ इनके साथ नहीं हुआ है बल्कि ज्यादातर कर्मचारियों के साथ इसी तरीके से बर्ताव किया गया.
एक अन्य कर्मचारी जो करीब चार साल से एबीपी न्यूज़ का हिस्सा थे. वह कहते हैं, ‘‘अपने 23 साल के करियर में मैंने इतना बुरा हाल कहीं नहीं देखा जैसा एबीपी न्यूज़ में चल रहा है. यहां लीडरशिप की जो कमी है वो साफ दिखती है. कभी इसकी मिसालें दी जाती थीं, लेकिन पिछले एक साल में जो यहां हुआ है वो बहुत ही भयावह है.’’
इसके बाद वो हमें पिछले साल हुई शीर्ष पदों की नियुक्ति के बारे में बताते हैं, “पिछले साल संत प्रसाद राय एंड गैंग (वो गैंग ही कहते हैं) एबीपी न्यूज़ में आया. उसी का यह कारनामा है. उनकी टीम से किसी को नहीं निकाला गया है. बाकी पूरी टीम चाहे वह आउटपुट हो, एडिटोरियल हो, प्रोडक्शन हो, पीसीआर हो या इनपुट हो, सभी जगह से बेमुरौव्वत लोगों को बाहर किया गया है. जो लोग संत राय गैंग के नहीं हैं, या जिन्होंने इनके गैंग का हिस्सा बनने से परहेज किया उनकी नौकरियां जा रही हैं.”
यह बात बर्खास्त हुए अन्य कर्मचारी भी बताते हैं, “संत प्रसाद राय अपने साथ टीवी 9 से करीब दो दर्जन लोगों को लेकर एबीपी न्यूज़ आए थे. आज वही लोग एबीपी में राज कर रहे हैं.”
बर्खास्त हुए ये कर्मचारी हमें इस घटना का जातिवादी कोण भी बताते हैं. उनके मुताबिक संत प्रसाद राय ने जमकर जातिवाद किया है. वो खुद भूमिहार हैं. अपने साथ जिन लोगों को लेकर वो आए थे उनमें से भी ज्यादातर भूमिहार हैं. इनमें से किसी की नौकरी नहीं गई. सिर्फ पुराने लोगों को निकाला जा रहा है.
टीआरपी का गुरु बताकर हुई थी एबीपी में एंट्री
एबीपी न्यूज़ में छंटनी की आशंका सबको थी. लेकिन यह इतने बड़े पैमाने पर, इतने निर्मम और गैर पेशवर तरीके से होगा इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. एबीपी न्यूज़ लंबे वक्त से टीआरपी की रेटिंग में फिसड्डी साबित हो रहा था. इसकी संपादकीय लाइन भी बहुत गड्डमड्ड थी. जानकारों के मुताबिक यह बंगाल की तृणमूल और दिल्ली की भाजपा सियासत के बीच पिस रहा था. और बड़ी बेसब्री से टीआरपी की तलाश में था.
इस स्थिति में साल भर पहले संत प्रसाद राय ने एबीपी न्यूज़ की कमान संभाली. जाहिर है वो कुछ वादों के साथ एबीपी न्यूज़ से जुड़े थे. हाल के दिनों में राय ने अपनी छवि टीआरपी गुरु की बनाई है. उनके नेतृत्व में टीवी 9 भारतवर्ष कुछ हफ्तों के लिए नंबर एक पायदान पर पहुंच गया था. यही सब्जबाग दिखाकर राय एबीपी आए थे, लेकिन इनके आने से एबीपी को कोई खास फायदा नहीं हुआ. संत राय टीवी 9 से जब एबीपी आए थे उस वक्त भी एबीपी न्यूज़ रेटिंग में 7वें नंबर पर था और आज भी वही स्थिति है.
जब रोने लगे कर्मचारी
अरुण नौटियाल का किस्सा बहुत ही चौंकाने वाला और अपमानजनक है. नौटियाल एबीपी न्यूज़ के सबसे पुराने पत्रकारों में थे. वो चैनल के आउटपुड हेड थे. उन्हें एचआर के कमरे में बुलाकर नौकरी से निकाले जाने की सूचना दी गई. सिर्फ इतना ही नहीं, इसके बाद उन्हें तब तक घेर कर रखा गया जब तक कि वो दफ्तर से बाहर नहीं निकल गए. उन्हें अपने मातहतों और साथी कर्मचारियों से मिलने तक नहीं दिया गया. लगभग धकियाते हुए उन्हें एबीपी न्यूज़ के परिसर से बाहर निकाला गया. उनके कमरे में रखी किताबें और अन्य सामान भी उनके साथ ही भेज दिया गया. कुछ कर्मचारी इस व्यवहार को देखकर रोने लगे. एबीपी के कई कर्मचारियों ने हमसे इस घटना का जिक्र किया.
हमने अरुण नौटियाल से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने ज्यादा बातचीत से इनकार कर दिया. उन्होंने हमें सिर्फ इतना ही बताया कि वो इस समूह के साथ तब से जुड़े थे जब यह स्टार न्यूज़ हुआ करता था. 20 साल से ज्यादा अरसा हो गया एबीपी से जुड़े.
एक सीनियक कर्मचारी जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया है, उन्होंने इस कत्लोगारत की एक अलग व्याख्या की. संत प्रसाद राय की टीम एक साल से चैनल को लीड कर रही थी, लेकिन चैनल न तो रेटिंग में आगे बढ़ा ना ही इसके कंटेंट की गुणवत्ता में कोई सुधार आया. जबकि कंपनी के ऊपर आर्थिक बोझ काफी बढ़ गया था. आर्थिक स्थिति गड़बड़ा रही थी. ऐसे में पुरानी टीम को निशाना बनाया गया.
कंपनी ने कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करवाया
एबीपी से निकाले गए तमाम कर्मचारियों और पत्रकारों ने इस बात की तस्दीक की है कि कंपनी ने उनसे एक लेटर पर दस्तखत करवाया है. यह कॉन्फिडेंशियल लेटर है जिसके मुताबिक बर्खास्त कर्मचारी बाहर किसी भी मीडिया या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी बात न तो जाहिर कर सकता है न ही लिख सकता है. यह बेहबद अजीबो-गरीब कॉन्ट्रैक्ट है जो पहली बार देखने में आया है.
स्टार न्यूज़ की टीम के साथ जुड़े एक पत्रकार कहते हैं, “मेरा अभी फुल एंड फाइनल नहीं हुआ है. इसलिए मेरा नाम मत लिखिए. दूसरी बात हमसे एक कॉन्फिडेंशियल लेटर भी साइन करवाया गया है जिसमें हमसे कहा गया है कि हमें बाहर कहीं कुछ नहीं बोलना है. सोशल मीडिया पर कुछ नहीं लिखना है. अंदर की कोई भी बात बाहर नहीं जानी चाहिए. इसलिए जब तक फुल एंड फाइनल नहीं हो जाता है तब तक कुछ भी बोलना ठीक नहीं रहेगा.”
संत राय और एचआर नीतू वाली के रवैए पर रौशनी डालते हुए एक बर्खास्त कर्मचारी कहते हैं, ‘‘मैं नाइट शिफ्ट खत्म करके घर निकल रहा था. तभी मुझे बुलावा आ गया. मैं गया तो वहां संत प्रसाद राय और एचआर नीतू वाली मौजूद थीं. संत राय ने मुझसे कहा कि अगर आपके काम में कोई कमी होती तो मैं आपको बुलाकर डांटता, लेकिन आपके काम में कोई कमी नहीं है. यह सब बस कंपनी की बदली हुई पॉलिसी के चलते हो रहा है. मेरे मन में आया कि उनसे पूछ लूं कि यह बदली हुई पॉलिसी सिर्फ हम लोगों पर ही लागू है या जिन लोगों को आप लेकर आए थे उन पर भी. लेकिन मैं मन मारकर चुप रहा.”
वह आगे कहते हैं, “जब अरुण नौटियाल सर के साथ ऐसा हो रहा है तब मेरी क्या बिसात. उनको दफ्तर से बाहर कर दिया गया, किसी से मिलने नहीं दिया गया. सब सामान समेटो और निकलो.” इस दौरान पूरा माहौल बहुत भावुक हो गया था. नौटियाल न्यूज़रूम के बहुत सम्मानित व्यक्ति थे. खुद नौटियाल भी भावुक हो गए थे.
न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकरी के मुताबिक एक लाख से ज्यादा सैलरी वाले सभी कर्मचारियों से अब एक नया कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया जा रहा है. यह एक साल से तीन साल तक का होगा. एक साल और तीन साल वालों के कॉन्ट्रैक्ट भी अलग-अलग हैं.
बदले हालात में नया निजाम
कंपनी के सीईओ अविनाश पांडेय ने सभी कर्मचारियों को एक ऑफिशियल मेल करके जानकारी दी है कि रोहित कुमार सांवल अब से एबीपी न्यूज़ के नए आउटपुट एडिटर होंगे. सांवल इससे पहले एबीपी गंगा के एडिटर थे. इस चैनल को बंद कर दिया गया है. आउटपुट टीम के सभी लोग उन्हें रिपोर्ट करेंगे. वहीं जसविंदर पटियाल स्वतंत्र प्रभार के साथ एबीपी न्यूज़ पर रात 9 बजे के शो के लिए कार्यकारी संपादक और एंकर होंगे. यह परिवर्तन तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है.
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एबीपी के निचले स्तर के कर्मचारियों में असुरक्षा और भय का माहौल है. जिस तरह से एक-एक कर लोगों को निकाला जा रहा है उसे देखते हुए यह डर सबके मन में बैठ गया है कि किसी का भी नंबर आ सकता है.
एक साल पहले एबीपी न्यूज़ छोड़ने वाले एक कर्मचारी कहते हैं कि संस्थान में आलम यह है कि अब अगर मैं किसी दिन दफ्तर जाऊं तो शायद की कोई मुझे पहचान पाए. क्योंकि बीते एक साल में ज्यादातर पुराने साथियों को निकाल दिया गया है.
निकाले जा रहे कर्मचारियों को कंपनी से क्या मिला?
बर्खास्त हुए कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें नोटिस पीरियड सर्व नहीं करने को कहा गया है. ज्यादातर लोगों को नोटिस पीरियड की सैलरी और साथ में एक महीने की अलग से सैलरी दी जा रही है. वरिष्ठ लोगों को उनके हिसाब से पैसा दिया जा रहा है. जैसे किसी ने चार साल से ज्यादा नौकरी की है तो उसे पांच से छह महीने तक की सैलरी दी जा रही है. किसी ने तीन साल काम किया तो उसे तीन महीने प्लस वन करके दिया जा रहा है.
इस घटनाक्रम के बाबत हमने एबीपी न्यूज़ के सीईओ अविनाश पांडेय और सीनियर वाइस प्रेसिडेंट संत प्रसाद राय से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया है. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं, लेकिन उनका भी कोई जवाब नहीं मिला है.
एबीपी न्यूज़ से निकाले गए कर्मचारियों ने अपना एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है. जिसके जरिए वो एक दूसरे की मदद की कोशिश कर रहे हैं. इस ग्रुप में एबीपी के बहुत से पुराने सहयोगियों को भी जोड़ा गया है ताकि निकाले गए लोगों को नौकरी दिलाने में मदद कर सकें.
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