Report

यूएनआई की दिवाला कार्यवाही: एजेंसी का अंत या निवेशक देंगे नया जीवन?

यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) का गठन छह दशक पहले प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए किया गया था. लेकिन पिछले 10 वर्षों से घाटे में चल रही इस समाचार एजेंसी के खिलाफ हाल ही में दिवाला कार्यवाही की शुरुआत हुई है.

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने 19 मई को यूएनआई के कर्मचारी संघ समूह के पक्ष में एक आदेश पारित किया और कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू की. कर्मचारी संघ समूह का दावा है कि यूएनआई के ऊपर कर्मचारियों के 103 करोड़ रुपए बकाया हैं।

26 मई को एक रिपोर्ट में यूएनआई ने कहा कि वह "बेहतर वित्तीय संभावनाओं की ओर बढ़ना शुरू कर रही है." क्या यूएनआई को निवेशक एक नया जीवन प्रदान करेंगे? या यह इस एजेंसी का अंत है?

पतन की कहानी 

1959 में स्थापित यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया पिछले 10 वर्षों से संकट में है. इसके पतन की शुरुआत 2006 में हुई, जब शेयरधारकों सहित इसके उपभोक्ताओं ने एक-एक करके इसे अनसब्सक्राइब करना शुरू कर दिया. एजेंसी ने 2017 से अपने कर्मचारियों को वेतन देना बंद कर दिया.

यूएनआई को सबसे बड़ा झटका अक्टूबर 2020 में लगा, जब प्रसार भारती ने उसकी सेवाओं की सदस्यता समाप्त कर दी. इससे यूएनआई को करोड़ों रुपए के वार्षिक राजस्व का नुकसान हुआ. प्रसार भारती उसकी सेवाओं के लिए यूएनआई को प्रति माह 57.5 लाख रुपए का भुगतान करता था. अनुबंध समाप्त करने से चार साल पहले, यानी 2016 से ही, उसने इस राशि का 25 प्रतिशत भुगतान रोक कर रखा था. 

लेकिन यूएनआई के ताबूत में अंतिम कील ठोकी एनसीएलटी के आदेश ने, जिसने कहा कि यूएनआई यूनियन यह सिद्ध करने में सफल रहा कि "कॉरपोरेट देनदार" (यूएनआई) पर उनका वेतन बकाया है. आदेश में कहा गया कि बकाया वेतन 'ऑपरेशनल डेट' की परिभाषा में आता है और साथ ही, एक ट्रेड यूनियन दिवाला याचिका दायर कर सकता है.

कर्मचारी संघ द्वारा पिछले अप्रैल में दायर दिवाला याचिका में दावा किया गया था कि यूएनआई पर अपने कर्मचारियों के 103 करोड़ रुपए बकाया हैं, जिसमें वर्तमान कर्मचारियों का वेतन और मेहनताना, ग्रेच्युटी और पूर्व कर्मचारियों की भविष्य निधि बकाया शामिल है. यूनियन ने आरोप लगाया था कि यह उन कर्मचारियों की बुनियादी गरिमा का उल्लंघन है, जिन्होंने यूएनआई को अपना खून-पसीना दिया और लगन से काम किया.
नई आशाएं? 

ट्रिब्यूनल द्वारा नियुक्त दिवाला समाधान पेशेवर पूजा बाहरी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि "बहुत से लोगों" ने यूएनआई में रुचि दिखाई है, क्योंकि इसकी एक ब्रांड वैल्यू है.

दिवाला आवेदन मंजूर होने के बाद एनसीएलटी के अधिकारी एक 'दिवाला समाधान पेशेवर' (इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोफेशनल) नियुक्त करते हैं. उनका काम होता है दावों को एकत्र करना, उनका सत्यापन करना, कंपनी की संपत्ति से संबंधित जानकारी इकट्ठा करना और कंपनी की वित्तीय स्थिति का निर्धारण करना. 

बाहरी ने कहा कि उन्होंने यूएनआई के लेनदारों को उनके दावे प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है, जिसे वह सत्यापित करने की प्रक्रिया में है. वह देश भर में यूएनआई की संपत्तियों का दौरा भी कर रही हैं. "हम अभी परिसमापन करने के बारे में नहीं सोच रहे हैं, और उम्मीद करते हैं कि हम स्थिति बदल सकते हैं," उन्होंने कहा. "यूएनआई का ब्रांड वैल्यू बहुत है, और ऐसे बहुत से लोग हैं जो चाहते हैं कि यह सफल हो. हमें उम्मीद है कि यह पहले से कहीं ज्यादा बड़ी कंपनी बनेगी."

कुछ स्रोतों के अनुसार, यूएनआई की प्रमुख संपत्ति है नई दिल्ली के रफी मार्ग पर स्थित इसकी इमारत. सरकार द्वारा पट्टे पर आवंटित की गई यह भूमि अब यूएनआई का मुख्य आकर्षण बन सकती है. ऐसी अफवाहें हैं कि हिंदुस्तान समाचार और एक धर्मगुरु ने भी इसे खरीदने की इच्छा जताई है लेकिन अभी तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है.

इस बीच, यूएनआई के प्रधान संपादक अजय कौल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह इस एजेंसी को बचाना चाहते हैं, क्योंकि यूएनआई एक "प्रतिष्ठित ब्रांड है जिसे मरना नहीं चाहिए." “अब चूंकि एनसीएलटी ने यह प्रक्रिया शुरू कर दी है, इसलिए निवेशक आया करेंगे. कर्मचारी आशान्वित हैं. हमने पिछले 10 महीनों में ही 30-40 नए उपभोक्ता जोड़े हैं और मौजूदा उपभोक्ता लगभग 600 हैं.” 

यूएनआई के यूनियन प्रमुख राजेश पुरी ने भी न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि निवेशक आएंगे और इस ब्रांड को पुनर्जीवित करेंगे. 

लेकिन इस समाचार एजेंसी की फीकी पड़ चुकी चमक और सुस्त रिकवरी निवेशकों को कितना आकर्षित कर पाएगी यह निश्चित नहीं है. कंपनी कर्मचारियों के बकाया भुगतानों से त्रस्त है, और कुछ शेयरधारक (दिवाला प्रक्रिया) का विरोध कर रहे हैं. शेयरधारक एकमत क्यों नहीं हैं, इस बारे में पिछले साल सितंबर में छपी हमारी विस्तृत रिपोर्ट पढ़ें.

इस बीच, एनसीएलटी द्वारा भेजे गए एक डिमांड नोटिस के अपने पिछले जवाब में समाचार एजेंसी ने कहा था कि उस पर यूनियन का "कोई बकाया नहीं" है और उठाई जा रही मांगें "झूठी, गलत, निराधार और शातिर" हैं.  

“पहले यूएनआई ने हमें छोड़ दिया, फिर सरकार ने हमें छोड़ दिया. अब और कौन हमें छोड़ेगा?" 23 साल से यूएनआई कर्मचारी और यूएनआई के चंडीगढ़ संघ के महासचिव महेश राजपूत ने पूछा. राजपूत अकेले नहीं हैं जो इस प्रकार के संदेह से घिरे हैं. 

दिवाला आदेश में एनसीएलटी ने सागर मुखोपाध्याय को कंपनी के निदेशक मंडल का अध्यक्ष, और बिनोद कुमार मंडल और गौतम सिंह को यूएनआई का निदेशक बताया. हालांकि, न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा देखे गए दस्तावेजों के अनुसार, तीनों ने इस आदेश से आठ महीने पहले, यानी पिछले साल सितंबर में ही निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया था. 

मैनेजमेंट के एक वरिष्ठ सदस्य ने दावा किया कि इसके पीछे की वजह थी नए निवेशकों को लाने के विरुद्ध शेयरधारकों द्वारा समाचार एजेंसी का विरोध.

Also Read: अवसान की ओर कदम बढ़ाती यूएनआई न्यूज एजेंसी, दोष किसका?

Also Read: क्या पीबीएनएस है मोदी सरकार का पीटीआई और यूएनआई