Karnataka Election 2023 NL Hindi
रोजगार की कमी और भ्रष्टाचार की अति बनाएगी सीएम बसवराज बोम्मई की जीत को मुश्किल?
सवाल ही नहीं था कि मैं बीजेपी को वोट दूं. लेकिन 2008 में, जब बसवराज बोम्मई को टिकट मिला, तो मुझे साफ-साफ याद है कि वह मेरी दुकान पर आए और कहा, “पार्टी को मत देखिए. मुझे वोट दीजिए क्योंकि मैं आपके लिए काम करूंगा, और मैंने उन्हें वोट दिया.”
यह कहानी है हावेरी जिले के शिग्गांव विधानसभा क्षेत्र के एक दुकानदार माजिद खान की. इसी विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई लगातार चौथी जीत पर नजरें गड़ाए हुए हैं.
कर्नाटक में 10 मई को 224 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं.
अपनी सरकार पर भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के आरोप झेल रहे बोम्मई, पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस के सैयद अजीमपीर कादरी से कड़ी चुनौती के बावजूद यह सीट जीतते रहे हैं. इस बार, लिंगायत कोटा के बल पर और एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी की कमी के चलते उन्हें उम्मीद है कि जीत का अंतर पहले से बेहतर होगा.
कांग्रेस की हिचकिचाहट
शिग्गांव से उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस ने भी फैसला लेने में देरी की, जिसके चलते ये चुनावी मुकाबला और कमजोर हो गया. पार्टी पहले पंचमसाली लिंगायत नेता विनय कुलकर्णी को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही थी, लेकिन फिर अंजुमन-ए-इस्लाम के अध्यक्ष मोहम्मद यूसुफ सावनूर को टिकट दिया गया. इतना ही नहीं, बाद में पार्टी ने सावनूर को भी हटाकर स्थानीय नेता यासिर अहमद खान पठान को उम्मीदवार बनाया.
शिग्गांव के कुल मतदाताओं में से 75,000 पंचमसाली समुदाय के हैं और कहा जा रहा है कि कुलकर्णी की इस समुदाय पर मजबूत पकड़ है. बोम्मई लिंगायतों के सदर उपसमूह से संबंधित हैं, जिनके मतदाताओं की संख्या 12,000 है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "बोम्मई शायद विनय से हार गए होते, क्योंकि वह वैसे भी बड़े अंतर से नहीं जीतते रहे हैं. यह हास्यास्पद है, लेकिन राजनीति में यह चलन है कि विपक्षी दल बड़े नेताओं के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारते हैं, ताकि उनकी जीत आसान हो सके."
वहीं जनता दल (सेक्युलर) ने शशिधर चन्नबसप्पा यलीगर को मैदान में उतारा है. वोक्कालिंगा समुदाय के बीच लोकप्रिय जेडीएस पिछले तीन विधानसभा चुनावों से इस निर्वाचन क्षेत्र में केवल 1,000 से 3,000 वोट ही पाती रही है.
कांग्रेस के इलाके से बोम्मई के गढ़ तक
1957 से यह निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन 2008 में बोम्मई की जीत ने पासा पलट दिया. इन पांच दशकों में शिग्गांव ने केवल 1999 में कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी को वोट दिया था.
गौरतलब है कि 1999 के चुनाव में जनता दल (सेक्युलर) ने यहां से उन्हीं सैयद कादरी को मैदान में उतारा था जिन्हें बाद में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर बोम्मई ने साल 2008 में हराया. तब ये दोनों नेता जनता दल (सेक्युलर) का हिस्सा थे और कादरी ने अपनी जीत का श्रेय बसवराज को दिया था.
कादरी ने बताया कि बसवराज बोम्मई ने तब पार्टी पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के लिए दबाव डाला था. हालांकि, इन चुनावों के कुछ समय बाद ही बोम्मई अपने पिता के साथ जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए थे. दरअसल, 1999 में जनता दल के विघटन से जनता दल (सेक्युलर) और जनता दल (यूनाइटेड) का गठन हुआ था.
उस जीत को याद करते हुए कादरी कहते हैं, "मैं केवल 29 साल का था और पार्टी का सिर्फ एक कार्यकर्ता था. बसवराज बोम्मई हमेशा समन्वय की राजनीति में विश्वास करते थे. और लिंगायत नेता के रूप में उन्होंने मेरे जैसे मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर अपनी धर्मनिरपेक्षता साबित कर दी थी."
हलगुर गांव में अपने घर पर कादरी ने एक पुराने फोटो एल्बम से एक तस्वीर निकाली, जिसमें बोम्मई कादरी को उनकी जीत पर बधाई देते हुए एक गुलदस्ता भेंट कर रहे हैं. "बसवराज ने मेरे लिए प्रचार भी किया था, जिसमें उन्होंने मुझे अपना भाई कहकर धर्मनिरपेक्षता का संदेश प्रसारित किया. मुझे लगता है कि आज भी वह दिल से धर्मनिरपेक्ष हैं लेकिन अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए वह आरएसएस के सामने झुक गए हैं."
शिग्गांव के मुस्लिम मतदाताओं ने बोम्मई को लेकर कादरी की राय का समर्थन किया. बोम्मई 2008 में जनता दल (यूनाइटेड) छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे.
लिंगायत बहुल गांव मालागट्टी के एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद जाफर ने कहा, "मैंने पिछले तीन चुनावों में उन्हें (बोम्मई को) वोट दिया था क्योंकि उनकी योजनाओं ने हम सभी को निष्पक्ष रूप से लाभान्वित किया था."
हालांकि, शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में चार प्रतिशत मुस्लिम कोटा खत्म करके, लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदायों को दो-दो प्रतिशत कोटा देने के निर्णय के बाद, पहले से ही रोजगार संकट से जूझ रहे इस निर्वाचन क्षेत्र में आजीविका को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
शिग्गांव में 2.10 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 36.4 प्रतिशत लिंगायत समुदाय के, 25 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम समुदाय के, अनुसूचित जाति के लगभग 10 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के पांच प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं.
विधानसभा क्षेत्र का 70 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है, जिसमें शिग्गांव ब्लॉक में 101 गांव और सावनूर में 43 गांव हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र को पिछड़ा माना जाता है, क्योंकि इसके पास पर्याप्त उपजाऊ भूमि नहीं है. क्षेत्र के अधिकांश लोग मजदूरी करने शहरों में या खेतों पर काम करने के लिए दूसरे जिलों में पलायन करते हैं.
इसके अलावा, भाजपा द्वारा दक्षिणपंथी समूहों का खुला समर्थन करने और राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू होने से सांप्रदायिक तनाव को लेकर भी चिंताएं पनप रही हैं.
"पहले हमारे गांव में कभी भी सांप्रदायिक तनाव नहीं रहा. लेकिन अब मैं महसूस कर रहा हूं कि सांप्रदायिक भावना धीरे-धीरे हमारे गांवों में अपनी जगह बना रही है," दुकानदार माजिद खान ने कहा.
हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अल्पसंख्यक समुदाय की नाराजगी चुनाव के नतीजों पर कितना प्रभाव डालेगी. कादरी ने दावा किया, "मुझे नहीं लगता है कि शिग्गांव के मुसलमानों की बोम्मई से नाराजगी चुनाव के नतीजे बदल पाएगी, क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें मजबूत उम्मीदवार का विकल्प नहीं दिया है, और उन्हें अपनी रोजाना की समस्याओं के लिए किसी की जरूरत है."
“क्षेत्र में चुनाव से पहले नए सांप्रदायिक मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं. शिग्गांव के बांकापुर कस्बे के मुस्लिम विक्रेताओं से कहा जा रहा है कि वे अपने ठेले बाजारों में न लगाएं. यह सब यहां पहले नहीं होता था,” हवेरी की बांकापुर नगरपालिका के पार्षद नूर अहमद दोराली ने कहा.
मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों की यात्रा करते समय हमसे लिंगायतों और मुस्लिमों दोनों ने चुनावों के दौरान सांप्रदायिक घटनाओं की आशंका व्यक्त की.
“एक-दूसरे के धर्मों को निशाना बनाती हुई बहुत सारी फर्जी खबरें भी चलाई जा रही हैं, जिससे गांवों में झगड़े होते हैं. इसलिए मैं कुछ भी कहने से बच रहा हूं,” माहूर गांव के 42 वर्षीय सुरेश हरिजन ने कहा.
बोम्मई 2021 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे, जब बीएस येदियुरप्पा ने पद से इस्तीफा दे दिया था. जल्द ही, उन पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे. इसकी शुरुआत तब हुई जब उनकी सरकार ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया. सरकार का तर्क था कि हिजाब से "समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था भंग होती है". इस निर्णय का पूरे राज्य में व्यापक विरोध हुआ था. इसके बाद, सरकार को हिंदुत्ववादी संगठन श्री राम सेना की मस्जिदों में लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगाने की मांग का समर्थन करते हुए देखा गया.
बोम्मई के शासन में कर्नाटक धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने वाला छठा भाजपा-शासित राज्य बना.
और अब मुस्लिम आरक्षण खत्म करके, लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदायों का कोटा बढ़ाने के फैसले से लिंगायत नेता के रूप में बोम्मई की छवि और मजबूत हुई है.
"अब लिंगायत समुदाय के लोगों को भी सरकारी नौकरी मिलेगी... हम राज्य में बहुसंख्यक हैं. यदि कोई राजनैतिक दल सत्ता में आने की इच्छा रखता है, तो उसे हमें खुश रखना होगा,” शिग्गांव के निवासी यल्लपा ने कहा, जो एक ड्राइवर हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता. इस कारण से बीजेपी लिंगायतों की आरक्षण की मांग को पूरा नहीं कर पा रही थी. इसलिए, उन्होंने मुसलमानों का चार प्रतिशत आरक्षण छीन लिया और इसे लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदायों के बीच बराबर बांट दिया. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मुस्लिम वोट किसी भी हालत में उन्हें नहीं मिलता."
कोटा बंद होने से अल्पसंख्यक समुदाय के बीच नाराजगी बढ़ी है.
सावनूर ब्लॉक के मालागट्टी गांव के 55 वर्षीय मोहला साब ने कहा, "पिछले तीन चुनावों में मैंने बोम्मई को वोट दिया था. लेकिन उन्होंने आरक्षण खत्म करके हमारे साथ धोखा किया है."
इस बीच, कार्यकर्ताओं ने कहा कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों पर चुप है क्योंकि उसे डर है कि कहीं वह बहुसंख्यक लिंगायत समुदाय को नाराज न कर दे.
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी
कांग्रेस घर-घर जाकर प्रचार कर रही है और भाजपा पर बार-बार भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए तंज कस रही है. साथ ही, वह लोगों से इंदिरा कैंटीन जैसी कल्याणकारी योजनाएं लाने और पूरे राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने का वादा कर रही है. पार्टी के कार्यकर्ता जीएसटी और गैस की बढ़ती कीमतों जैसे मुद्दे भी उठा रहे हैं.
इस चुनाव में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है. एक विधायक की गिरफ्तारी, एक ठेकेदार की मौत आदि कई मामलों को लेकर भाजपा सरकार पर पिछले चार वर्षों में तमाम आरोप लगते रहे हैं. कई संगठनों ने कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर नरेंद्र मोदी सरकार को पत्र भी लिखे हैं.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि जिन महीनों में खेती नहीं होती, उनके दौरान मनरेगा के तहत काम की कमी के कारण हाल के वर्षों में इस क्षेत्र से पलायन बढ़ गया है. विपक्षी दलों ने ग्रामीण रोजगार का मुद्दा भी उठाया है. हालांकि यह भ्रष्टाचार की तरह एक चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है.
निर्वाचन क्षेत्र में एक मनरेगा कार्यकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "मनरेगा का उद्देश्य था ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन रोकना… ठेकेदार अब लोगों के जॉब कार्ड चुरा रहे हैं, मशीनों से काम करवा रहे हैं... सबसे बुरी बात यह है कि अगर हम इसे रोकने की कोशिश करते हैं तो हम पर राजनैतिक दबाव डाला जाता है. कभी-कभी विधायकों के पीए हमें फोन करते हैं और हस्तक्षेप न करने के लिए कहते हैं."
मालागट्टी गांव के 18 वर्षीय नियाज ने कहा, "जब भी हम ठेकेदार से मनरेगा के काम के बारे में पूछते हैं, तो वह हमसे कहता है कि वह काम के लिए जेसीबी लगाएंगे." नियाज, गोवा में मजदूरी करने जाते हैं.
कई अन्य ग्रामीणों ने दावा किया कि उनके मनरेगा पहचान पत्र पंचायत कार्यालय में रखे हुए हैं, ताकि बिचौलिए जब चाहें उनका उपयोग कर सकें.
और कई गांवों के निवासियों ने भी मनरेगा के तहत काम की कमी के बारे में न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. उन्होंने दावा किया कि काम "एजेंट को कमीशन देने पर" ही मिलता है.
इस तरह के आरोप विभिन्न योजनाओं को लेकर लगाए गए हैं.
माहूर गांव के 42 वर्षीय सुरेश हरिजन ने कहा कि बाढ़ से प्रभावित घरों के पुनर्वास के लिए कर्नाटक सरकार की 2021 में आई योजना का लाभ "केवल उन लोगों को मिल रहा है जो एजेंटों को एक लाख रुपए तक देते हैं."
केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सभी मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाती हैं. 65 वर्षीय सिद्दवा हरिजन ने कहा, "मोदी ने हमें पीएम-किसान के तहत 2,000 रुपए और मुफ्त सिलेंडर दिए, लेकिन गैस की कीमत बढ़ाकर यह पैसे वापस ले लिए."
इस चुनावी जंग में बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ रही है.
बोम्मई ने 15 अप्रैल को अपना नामांकन दाखिल किया, जिसके बाद उन्होंने शिग्गांव में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अभिनेता किच्चा सुदीप के साथ एक विशाल चुनावी रैली की. नड्डा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर वह सत्ता में आती है तो कर्नाटक को अपने 'एटीएम' की तरह इस्तेमाल करेगी और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर लगा प्रतिबंध भी हटा देगी.
इस जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री बोम्मई ने उनके द्वारा किए गए काम गिनाए. इनमें लिफ्ट सिंचाई परियोजना विशेष रूप से लोकप्रिय हुई है. राज्य सरकार की इस योजना ने क्षेत्र के जल संकट को कम करने के लिए केंद्र के जल जीवन मिशन के साथ काम किया है.
बोम्मई ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सड़कों, अस्पतालों और कॉलेजों के निर्माण का भी उल्लेख किया.
हालांकि, विकास कार्य और लिंगायत वोटों की संभावित एकजुटता बोम्मई को भ्रष्टाचार के आरोपों से पार पाने में मदद करेगी या नहीं, यह 13 मई को वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा.
Also Read
-
Kutch: Struggle for water in ‘har ghar jal’ Gujarat, salt workers fight for livelihoods
-
Hafta 483: Prajwal Revanna controversy, Modi’s speeches, Bihar politics
-
Can Amit Shah win with a margin of 10 lakh votes in Gandhinagar?
-
TV Newsance 251: TV media’s silence on Revanna ‘sex abuse’ case, Modi’s News18 interview
-
Amid Lingayat ire, BJP invokes Neha murder case, ‘love jihad’ in Karnataka’s Dharwad