Report
छत्तीसगढ़: बिजली घरों से निकलने वाली राख आम लोगों के जीवन में घोल रही जहर
छत्तीसगढ़ में ताप बिजलीघरों से हर दिन निकलने वाली लाखों टन फ्लाई एश यानी राख, मुश्किल का सबब बनती जा रही है. इस राख को रखने के लिए बनाए गए अधिकांश तालाब भर चुके हैं. बंद हो चुकी खदानों को भरने, सड़क बनाने या ईंट बनाने के लिए इस राख का उपयोग पिछले कई सालों से किया जा रहा है लेकिन राख की खपत नहीं हो पा रही है.
भारत में मिलने वाले कोयले में 30-40 प्रतिशत तक राख की मात्रा होती है. ताप-बिजलीघरों में कोयले के जलने से निकलने वाली इस राख में पीएम 2.5, ब्लैक कार्बन, आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा तो होता ही है, इसमें सिलिकॉन डाइऑक्साइड, एल्यूमीनियम ऑक्साइड, फेरिक ऑक्साइड और कैल्शियम ऑक्साइड की मात्रा भी बहुत होती है. हवा में कई किलोमीटर तक उड़ते हुए यह राख के कण पानी और दूसरी सतहों पर जम जाते हैं.
गरमी के दिनों में कोरबा जैसे शहर और आस-पास के सैकड़ों गांवों में, कई किलोमीटर तक जैसे राख की आंधी चलती है. वहीं बारिश के दिनों में पानी के साथ बहती हुई लाखों टन राख, खेतों को बर्बाद करती हुई, पानी के स्रोत को भी प्रदूषित करती जाती है.
कोरबा शहर के रहने वाले धर्मराज देवांगन कहते हैं, “अब गरमी की शुरुआत हो रही है और इसके बाद कोरबा नरक में बदल जाने वाला है. थोड़ी-सी हवा चलती है और सड़कों पर राख उड़ने लग जाती है. घरों की छत और आंगन में हर दिन राख की एक परत जम जाती है. गला खंखार कर थूकने पर राख के कण निकलते हैं और आंखों की कोर तक में राख के कण बैठ जाते हैं.”
राख ही राख
ताप बिजली घरों से निकलने वाली राख के 100 फ़ीसदी उपयोग के लिए तय की गई मियाद साल दर साल बढ़ती चली जा रही है. साल 1999 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राख के 100 फ़ीसदी उपयोग के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. लेकिन इस आदेश पर कई राज्यों में आज तक अमल नहीं किया गया.
देश भर में 2021-22 की स्थिति में 21,3620.50 मेगावाट की क्षमता वाले 200 ताप बिजलीघरों से 270.82 मिलियन टन राख का उत्पादन होता है. केंद्र सरकार का दावा है कि इसमें से 95.95 फीसदी यानी 259.86 मिलियन टन राख का उपयोग हो जाता है. दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में 31 ताप बिजली घरों से 25,720 मेगावाट बिजली के उत्पादन के दौरान सर्वाधिक 44.9589 मिलियन टन राख उत्सर्जन होता है लेकिन इसमें से केवल 35.2808 मिलियन टन का ही उपयोग हो पाता है.
उदाहरण के लिए 2021-22 में कोरबा स्थित एनटीपीसी के 2,600 मेगावाट बिजलीघर में उत्पादित 5.066 मिलियन टन राख में से केवल 57.03 प्रतिशत यानी 2.88 मिलियन टन राख का ही उपयोग किया गया. इसी तरह बिलासपुर के सीपत स्थित एनटीपीसी के 2980 मेगावाट क्षमता वाले बिजलीघर में से निकले 5.19 मिलियन टन राख में से केवल 59.26 प्रतिशत यानी 3.08 मिलियन टन राख का ही उपयोग हो पाया. रायगढ़ के लारा स्थित 1600 मेगावाट के बिजलीघर से निकलने वाले 3.23 मिलियन टन राख में से केवल 56.37 प्रतिशत यानी 1.82 मिलियन टन राख का ही उपयोग हो पाया. दुर्ग ज़िले में एनटीपीसी-सेल के एक बिजली घर में 59.98 प्रतिशत तो दूसरे बिजली घर में 57.81 प्रतिशत राख का ही उपयोग हो पाया.
हालत ये है कि राज्य सरकार के कोरबा स्थित 500 मेगावाट के श्यामा प्रसाद मुखर्जी बिजली घर से निकले 1.22 मिलियन टन में से 0.258 मिलियन टन यानी केवल 21 प्रतिशत राख का ही उपयोग हो पाया. वहीं राज्य सरकार के कोरबा के ही 1,340 मेगावाट क्षमता के हसदेव बिजली घर से निकले 2.84 मिलियन टन में से 1.16 मिलियन टन यानी 41.23 प्रतिशत राख का ही उपयोग हो पाया.
पिछले साल 31 मार्च 2022 तक के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार देश में बिजली घरों से निकला 1,734.0172 मिलियन टन राख पड़ा हुआ था, इसमें अकेले छत्तीसगढ़ की हिस्सेदारी 236.4373 मिलियन टन थी.
भर गए हैं राख के तालाब
हमें छत्तीसगढ़ के आवास एवं पर्यावरण विभाग से जो दस्तावेज़ मिले हैं, उसके अनुसार अकेले कोरबा के एनटीपीसी से निकलने वाली राख को रखने के लिए ऐश डाइक यानी तालाबनुमा बांध ‘धनरास राखड़बांध’ में पिछले महीने तक 1,056 लाख मेट्रिक टन राख एकत्र हो चुका था. इसी तरह कोरबा में ही राज्य सरकार के पावर प्लांट से निकलने वाली राख के लिए बनाए गए ‘डगनियाखार, लोतलोता और झाबू राखड़बांध’ में जहां 520.12 लाख मेट्रिक टन राख एकत्र है, वहीं ‘पंडरीपानी राखड़बांध’ में 192.557 लाख मेट्रिक टन राख जमा हो चुका है. आवास एवं पर्यावरण विभाग के अनुसार पिछले पखवाड़े तक कोरबा में कुल 1,962.547 लाख मेट्रिक टन राख एकत्र हो चुका है और यह आंकड़ा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है. कोरबा और आसपास के इलाके में राख के कई पहाड़ खड़े हो गए हैं, जो बारिश के दिनों में घुलकर खेतों और जल स्रोतों तक पहुंचती है.
हालत ये है कि छत्तीसगढ़ के कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर जैसे ज़िलों में बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियां, राख को लो-लाइन एरिया में डालने के नाम पर अवैध तरीके से गांव की सार्वजनिक जमीन, खेत, जंगल, नाला, तालाब, सड़क, श्मशान, स्कूल के मैदान और शहर के भीतर तक राख डाल रही हैं, जिससे जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. लेकिन इधर-उधर राख फेंकने का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा है.
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा ज़िले के सिवनी की सरपंच लखेकुमारी राठौर को पिछले पखवाड़े इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि एक बिजली कंपनी से निकलने वाली राख को उन्होंने गांव के तालाब में भरने की अनुमति दी थी और बिजली कंपनी ने पूरे तालाब को राख से पाट दिया.
पिछले पखवाड़े ही पड़ोसी ज़िले कोरबा के गोढ़ी में एक स्कूल के पीछे अवैध तरीके से कई ट्रक राख डालने की शिकायत के बाद मौके पर पहुंचे पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारियों ने एक बिजलीघर पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया. इससे पहले पास के ही रिस्दी गांव में एक कंपनी पर इसी तरह राख डालने के मामले में 1.90 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था.
पड़ोसी ज़िले कोरबा के बरीडीह में रोजगार गारंटी योजना में 13 लाख रुपए की लागत से खोदे गए तालाब को उपयोग से पहले ही एक कंपनी ने अवैध तरीके से राख से पाट दिया. इस मामले की जांच चल रही है. इसी तरह राख के दलदल में फंसकर या राख के तालाब की मेड़ टूटने से उसकी चपेट में आ कर मवेशियों की जान जाने के किस्से आम हैं. राख के कारण होने वाले नुकसान को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक, कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी पिछले महीने राख को यहां-वहां फेके जाने और इसके दुष्प्रभावों को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए, तीन अधिवक्ताओं को न्याय मित्र बना कर इसकी जांच के निर्देश दिए हैं.
कोरबा में प्रदूषण और राख को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी चौहान ने कहा, “सरकार ने यह निर्देश दिये थे कि कोयला खदानों से खाली होने वाली ज़मीन को भरने के लिए इस राख का उपयोग किया जाए. कोरबा की तीन कोयला खदानों को तो इसी शर्त पर आवंटित भी किया गया था. अफ़सोस की बात है कि इसे पूरी तरह से लागू करने में किसी की दिलचस्पी नहीं है.”
बिजली संयंत्र ने फैलाया जीवन में अंधेरा
बिजली घर से निकलने वाली राख के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर तो पड़ ही रहा है, ज़मीन की उर्वरता भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. तीन साल पहले राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने एक सर्वेक्षण के बाद दावा किया कि सिंचाई का पानी भी फ्लाई ऐश से दूषित होता है जो धान के खेतों को प्रभावित करता है. इसके अलावा फसल उत्पादकता में कमी के कारण कई किसानों ने कथित तौर पर अपनी जमीनें छोड़ दी हैं.
पिछले ही साल छत्तीसगढ़ सरकार के राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने एक सर्वेक्षण के बाद दावा किया था कि कोरबा में वायु प्रदूषण, राष्ट्रीय मानक स्तर से 28 गुणा अधिक है और यह ख़तरनाक स्तर पर है.
राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की पिछले साल जारी की गई ‘एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2021’ के अनुसार भारत में हवा के अंदर सूक्ष्म कणों, पार्टिकुलेट मैटर 2.5 या पीएम 2.5 का मानक स्तर 60μg/m3 और दुनिया में 10µg/m3 निर्धारित है. लेकिन कोरबा में राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने अपने सर्वेक्षण में जिन 14 इलाकों में इसकी जांच की, वहां यह ख़तरनाक स्तर पर पाया गया. इमली छापर क्षेत्र की हवा में पीएम 2.5 का स्तर 1,613.3 था तो गांधी नगर सिरकी में यह 1,699.2 था. बालको चेकपोस्ट में पीएम 2.5 का स्तर सबसे कम 150.3 था जो कि मानक स्तर कहीं ज़्यादा था.
कोरबा के कुछ इलाको में सिलिका मानक स्तर 3 के मुकाबले 89.9, निकल के मानक स्तर 0.0025 के मुकाबले 0.050, लीड यानी सीसा के मानक स्तर 0.15 के मुकाबले 0.117, मैगनीज़ के मानक स्तर 0.15 के मुकाबले 0.994 पाया गया. इन सबके कारण कोरबा में रहने वाले लोगों के स्नायु तंत्र, फेफड़े, श्वसन तंत्र, ह्रदय, किडनी, त्वचा, रक्त और आंख पर इसका सीधा असर पड़ा है.
ज़िला अस्पताल में अपनी दमा पीड़ित मां का इलाज कराने पहुंचे विज्ञान के छात्र मृत्युंजय चंद्राकर कहते हैं, “पहले मां को कभी-कभार मुश्किल होती थी. लेकिन अब हर महीने डॉक्टरों का चक्कर लगाना पड़ रहा है. कोरबा के पावर प्लांट ने ज़िंदगी बर्बाद कर दी है. ऐसा लगता है कि हम राख के ढेर पर रहते हैं.”
राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार इसी ज़िला अस्पताल के क्षेत्र की हवा में पीएम 2.5 का स्तर 185.5, निकल, सिलिका और मैगनीज़ का स्तर क्रमशः 0.042, 14.1 और 0.070 मापा गया है.
हालांकि कोरबा से 200 किलोमीटर दूर, राजधानी रायपुर में बैठे छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के सदस्य सचिव आर पी तिवारी इन सारे आंकड़ों और दावों को पूरी तरह से ख़ारिज करते हैं. उनका दावा है कि राज्य सरकार के स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की रिपोर्ट भी पूरी तरह से ग़लत है.
वे कहते हैं, “हमने बिजली घरों से निकलने वाली राख के निपटारे के लिए कई खदानों के साथ अनुबंध करवाया है और कोरबा में सब कुछ नियमानुसार चल रहा है. अगर कहीं कोई शिकायत हो तो बताएं, हम उस पर कार्रवाई करेंगे.”
लेकिन कोरबा की सांसद ज्योत्सना महंत मानती हैं कि उनकी सरकार पिछले चार सालों में राख से मुक्ति के लिए कुछ नहीं कर पाई. कोरबा की एक बड़ी आबादी राख के कारण मुश्किल में है. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “चार सालों में हम कुछ नहीं कर पाए, हमारी कमियां हैं. हम गलतियों को छुपाना नहीं चाहते. मैं स्थानीय मंत्री और मुख्यमंत्री से कहूंगी कि इसका निवारण किया जाए.”
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी मानते हैं कि कोरबा, रायगढ़ और रायपुर के सिलतरा इलाके में प्रदूषण के कारण हालात चिंताजनक हैं. उन्होंने कहा, “कोरबा में फ्लाई ऐश के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है. फ्लाई ऐश सीधे-सीधे फेफड़े को प्रभावित करता है. वहां की हालत चिंताजनक है. हमारा विभाग अपने स्तर पर काम तो कर रहा है लेकिन प्रदूषण को कम करना ज़रूरी है. बिजली घरों से निकलने वाली राख के अधिकतम उपयोग पर हमें ध्यान देने की ज़रूरत है.”
(साभार- MONGABAY हिंदी)
Also Read
-
TV Newsance 307: Dhexit Dhamaka, Modiji’s monologue and the murder no one covered
-
Hype vs honesty: Why India’s real estate story is only half told – but fully sold
-
2006 Mumbai blasts: MCOCA approval was based on ‘oral info’, ‘non-application of mind’
-
The Himesh Reshammiya nostalgia origin story: From guilty pleasure to guiltless memes
-
2006 blasts: 19 years later, they are free, but ‘feel like a stranger in this world’