NL Tippani
तोते के आगे बीन बजाती श्वेता, सुधीर का सेक्युलर विलाप और राइट टू हेल्थ का विरोध
पिछले हफ्ते राजस्थान की सरकार ने बेहद जनवादी और प्रगतिशील कदम उठाया. राजस्थान की विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल पास करके. इसके तहत राजस्थान के निवासी आकस्मिक घटना की स्थिति में किसी भी सरकारी या चुनिंदा निजी अस्पताल में बिना पैसा दिए इलाज करवा सकेंगे. इसके बाद निजी अस्पतालों और निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों ने बवाल कर दिया.
भारत के लगभग 54 फीसद डॉक्टर सरकारी मेडिकल कॉलेजों से पढ़कर निकल रहे हैं. यह आंकड़ा 2023 नीट परीक्षा के हैं. यानी आधे से ज्यादा डॉक्टर सरकारी मेडिकल कॉलेजों से पढ़ाई करके निकल रहे हैं. ये डॉक्टर इस देश की जनता के कर्जदार हैं. उनके हॉस्टल से लेकर मेस तक, लेबोरेटरी से लेकर क्लासरूम तक हर चीज में इस देश की टैक्सपेयर जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा लगा हुआ है. जितनी फीस सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ली जाती है उसका कई गुना पैसा उस डॉक्टर में इस देश की जनता निवेश करती है. तो कम से कम इन 54 फीसदी डॉक्टर्स को राइट टू हेल्थ जैसी योजना का विरोध करने से पहले अपने भीतर झांक लेना चाहिए.
सुधीर चौधरी, रूबिका लियाकत या श्वेताा सिंह जैसे लोगों को अब कुछ कहने सुनने से ज्यादा जरूरी है कि कुछ बातें हम आपस में समझ लें, कोई देश उतना ही सेक्युलर या कम्युनल होगा जितना उस देश का सत्ता वर्ग. सेक्युलरिज्म का जवाब विपक्ष से मांगने की हिमाकत करने से पहले तिहाड़ शिरोमणि को अपने भीतर झांकना चाहिए कि उस सेक्युलरिज्म को बचाने के लिए खुद इसने अब तक क्या किया है. और अगला सवाल इसे देश के सत्ताधारी वर्ग से करना चाहिए वह इस सेक्युलरिज्म का कितना सम्मान करता है. इसी के इर्द गिर्द इस हफ्ते की टिप्पणी.
Also Read
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Cuttack on edge after violent clashes