गुम होने के रास्ते

गुजरात का अमेरिकन ड्रीम: जान जोखिम में डालकर क्यों जा रहे हैं?

गुजरात की राजधानी गांधीनगर से 20 किलोमीटर दूर स्थित है कलोल बाजार. इसी से सटा हुआ एक गांव है पलसाडा जहां हमारी मुलाकात 15 वर्षीय अंश पटेल से हुई. अंश गांव के स्वामीनारायण मंदिर में अपने कुछ दोस्तों के साथ खेल रहा था. यहां वह अपने बुजुर्ग दादा-दादी के साथ रहता है. जब अंश तीन साल का था तभी उनके पिता मयूर भाई पटेल और मां सोनल बेन, अवैध तरीके से अमेरिका चले गए थे. 

अंश बताता है, ‘‘मुझे अपनी माता-पिता की याद आती है. खासकर जब मैं बीमार पड़ता हूं तब बहुत आती है. मैंने कई बार उन्हें  इंडिया आने के लिए कहा. लेकिन वो ‘इनलीगल’ (अवैध रूप से) गए हैं तो वापस तो आ नहीं सकते हैं. उन्होंने मुझे कहा कि तुम ही पढ़ाई करके आ जाना. मैं आईईएलटीएस (IELTS) करके अमेरिका जाऊंगा.’’ 

आईईएलटीएस यानी इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम. गुजरात के युवाओं में अवैध रूप से अमेरिका जाने का एक माध्यम यह परीक्षा भी है. बीते दिनों इस परीक्षा में भी धांधलेबाजी का मामला सामने आया था.

अंश अभी आठवीं में पढ़ रहा है. उसका मकसद 12वीं का पेपर देने के बाद आईईएलटीएस पास करना है ताकि वो अपने मां-पिता के पास जा सके. उसे उम्मीद है कि एक दिन वो पेपर पास कर अमेरिका जाएगा.

जब अंश हमसे बात कर रहा था, उसी वक्त गांव के कुछ लोग आए और उसे लेकर चले गए. उसे लेने आए लोगों को पता चल गया था कि मैं पत्रकार हूं और अवैध रूप से अमेरिका जाने वालों के ऊपर कोई रिपोर्ट कर रहा हूं. एक ने मेरी ओर नाराजगी से देखते हुए कहा, ‘‘न जाने वाले को परेशानी है और न अमेरिका को परेशानी है. तुम न जाने क्यों बेचैन हो.’’

गांधीनगर के कलोल और इसके आसपास के कई इलाकों को ‘डॉलर’ के नाम से जाना जाता है. दरअसल यहां हरेक घर में एक-दो लोग अमेरिका में रहते हैं. इनमें ज्यादातर अवैध रूप से अमेरिका पहुंचे हैं. गुजरात में अवैध रूप से अमेरिका भेजे जाने की प्रक्रिया ‘कबूतरबाजी’ कहलाती है और उत्तर गुजरात में कलोल इसका बड़ा अड्डा माना जाता है.

वैसे तो गुजरात में ज्यादातर लोगों की चाह अमेरिका जाने की है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर अहमदाबाद, गांधीनगर और मेहसाणा जिले में देखने को मिलता है. यहां के कई गांव ऐसे हैं, जहां आधे से ज्यादा लोग अमेरिका में रह रहे हैं. 

गांवों में घूमते हुए लोगों के अंदर अमेरिका जाने की बेचैनी का अंदाजा लगाया जा सकता है. कई लोग तो ऐसे हैं जो 10-10 बार जाने की असफल कोशिश कर चुके हैं और उनकी यह कोशिश अब भी जारी है. यहां लोगों को देश से बाहर भेजने का एक पूरा तंत्र काम करता है. इस सिस्टम की महत्वपूर्ण कड़ी हैं एजेंट यानी दलाल. जैसे बिहार-यूपी में पान या चाय की दुकान पर आपको एकाध नेता मिल जाएंगे वैसे ही गुजरात के इस इलाके की दुकानों पर एकाध एजेंट मिल जाएंगे. 

पलसाडा गांव से ही कुछ दिन पहले एजेंट योगेश पटेल को गुजरात क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. अभी वो जेल में हैं.

उम्मीद जब टूट गई…

अंश की तरह राजीव (बदला नाम) को भी उम्मीद थी कि वो अपने पिता से मिल लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अहमदाबाद के अपने छोटे से घर में रहने वाले राजीव, कलोल के पास के ही एक गांव के रहने वाले हैं. साल 1998 में उनके पिता अवैध रूप से अमेरिका गए थे. 

राजीव बताते हैं, ‘‘तब मेरी उम्र सिर्फ आठ साल थी. मुझे याद है कि मैंने अपने पापा के साथ क्रिकेट वर्ल्ड कप का मैच देखा था. उसके बाद पापा अमेरिका चले गए. वे साउथ इंडियन फिल्म क्रू के साथ गए थे. मैं और मेरा भाई, मां से पापा के बारे में पूछते हैं तो वो कहती हैं कि दिवाली में आ जाएंगे. एक-दो करके कई दिवाली गुजर गईं पर पापा नहीं आए. पापा वहां से गिफ्ट भेजते रहे. तब फोन नहीं था तो बात नहीं होती थी. साल 2001 में मां भी अमेरिका चली गईं. पिता सात लाख रुपए में गए थे तो मां 18 लाख रुपए देकर गई. सारा इंतजाम एजेंट ने ही किया था. वो हमें छोड़कर नहीं जाना चाहती थीं. पापा भी चाहते थे कि हम दोनों भाई भी उनके पास आ जाएं. तब एजेंट ने मां को समझाया कि आपके पहुंचने के तीन दिन बाद इन लड़कों को भी हम भेज देंगे. हालांकि वो तीन दिन कभी नहीं खत्म हुए.’’

राजीव आगे बताते हैं, ‘‘हमारा संयुक्त परिवार था. हम दो भाई कभी मामा के घर रहे तो कभी कहीं और रहे. पापा और मां की खूब याद आती थी पर हम कुछ कर नहीं पाते थे. फोन आया तो बात होने लगी. इसी बीच साल 2015 में मेरा एक्सीडेंट हुआ. मेरे पिता तब भी नहीं आए. वो समय मेरे लिए बेहद तकलीफदेह था. उसके बाद से मैंने मानसिक रूप से इस बात को स्वीकार कर लिया कि अगर पापा से मिलना है तो मुझे ही अमेरिका जाना होगा. समय गुजरता रहा और मेरी शादी तय हुई. उसमें भी मेरे मां-पिता नहीं आए. उन्होंने मेरी शादी यू-ट्यूब के जरिए देखी. हमने पूरा फंक्शन लाइव करवाया. फिर मेरे भाई की शादी हुई. हम दोनों का बच्चा हुआ, लेकिन किसी भी उत्सव में दोनों शामिल नहीं हुए. हर बार उन्होंने यू ट्यूब पर ही देखा. पिता कहते थे कि तुम लोगों के साथ तो नहीं रह पाया लेकिन तुम्हारे बच्चों के साथ रहना चाहता हूं. समय गुजरता रहा. हम जिम्मेदारी खुद संभालना सीख चुके थे. मज़बूरी में.’’

राजीव के पिता को ग्रीन कार्ड मिलने वाला था. इसके लिए वे कोशिश कर रहे थे लेकिन इसी बीच हुई एक घटना ने सब कुछ स्थिर कर दिया. ‘‘साल 2021 का दिसंबर महीना था. रात के करीब दो बजे अमेरिका से मेरे एक रिश्तेदार का फोन आया. मैंने ही फोन उठाया था. वो कुछ बोल नहीं रही थीं. बस रोये जा रही थीं. मैं समझ गया था. मेरे पिता की मौत हो गई थी. मैं जमीन पर बैठ गया. याद करने लगा अपने पिता का स्पर्श. मैं अपने पिता को 23 साल से छू नहीं पाया था. वहां जो हमारे रिश्तेदार और आसपास वाले थे, उन्होंने अंतिम संस्कार कर दिया. मैंने अपने पिता की अंतिम यात्रा को यू ट्यूब पर देखा. हम दोनों एक दूसरे को लाइव ही तो देख रहे थे. मैं उनका बड़ा बेटा हूं, मुखाग्नि भी देने का मौका नहीं मिल पाया.’’ इतना कह राजीव रोने लगे. 

राजीव के पिता की मौत के बाद उनकी मां ‘वन टाइम वीजा’ लेकर इंडिया वापस आईं. लेकिन राजीव की परेशानी और तकलीफ यहीं खत्म नहीं हुई. उनका भाई, जिसने पिता और मां सबकी भूमिका निभाई वो अपनी पत्नी, बच्चे के साथ अवैध रूप से साल 2022 में अमेरिका चला गया.

राजीव कहते हैं, ‘‘मैंने भी एक-दो बार कोशिश की. आईईएलटीएस का पेपर भी दिया. वीजा नहीं मिला. आगे चलकर मैंने अमेरिका नहीं जाने का फैसला लिया. मैंने अपनों की अनुपस्थिति की तकलीफ झेली है. वो तकलीफ अपनी पत्नी और बच्चों को नहीं देना चाहूंगा. हालांकि मेरा भाई नहीं माना और जाने का फैसला कर लिया. उसे एयरपोर्ट छोड़ने मैं ही गया था. इसके बाद फिर मैं अकेला हो गया हूं. उससे फोन पर बात होती है. दोनों रोते हैं. वो मेरा सब कुछ है, लेकिन अब वो भी शायद ही लौटकर आए. ऐसा सोचकर ही मन सिहर जाता है.’’

राजीव एक हैरान करने वाली जानकारी साझा करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘मेरे साथ पढ़ने वाले तकरीबन 50 प्रतिशत बच्चों के मां या पिता अवैध रूप से अमेरिका में थे. यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं है. यहां मेरे जैसे सैकड़ों बच्चे आपको मिल जाएंगे. हमारे जीवन में पैसा रहा लेकिन प्यार नहीं.’’

अब तक आपने पढ़ा कि कैसे लोग अपनी पत्नी या बच्चों और दूसरे परिजनों को छोड़कर अमेरिका चले जाते हैं, लेकिन कुछ मां-बाप अपने बच्चों को भी भेजते हैं. दरअसल, अमेरिका में पटेल समुदाय की आबादी ज्यादा है. खासकर 42 समाज (पटेल समुदाय कई समाजों में बंटा हुआ है) के लोग अमेरिका जाते हैं. जो लड़के अवैध या वैध रूप से अमेरिका में हैं उनके परिजनों की कोशिश होती है कि उनकी शादी उनके ही समाज की लड़की से हो. ऐसे में परिवार शादी तय करता है और फिर लड़कियां अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचती हैं. इन लड़कियों को अमेरिका भेजने का खर्च लड़का पक्ष उठाता है.

पंचवटी गांव में रहने वाले 60 वर्षीय रविंद्र पटेल ने अपनी दो बेटियों को ऐसे ही अमेरिका भेजा था. उसके बाद उनका बेटा भी अवैध रूप से ही अमेरिका गया. आखिर में उन्होंने अपनी बहू को भी भेजा. बेटे की शादी अमेरिका में ही हुई. रविंद्र के तीन बच्चे हैं और तीनों की ही शादी में वे शामिल नहीं हो पाए. उन्होंने अपने बच्चों को करीब 15 साल बाद देखा. जब पटेल विजिटर वीजा लेकर अमेरिका गए. ये अपने बच्चों की शादी ऑनलाइन भी नहीं देख पाए थे क्योंकि तब इंटरनेट था नहीं. 

पटेल अभी अपनी पत्नी के साथ रहते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम अपने तीनों बच्चों की शादी में नहीं गए. हमें उनकी शादी का दिन पता था. जिस रोज बेटियों की शादी थी, उस रोज हम दोनों पति-पत्नी रो लेते थे. हमने उनकी शादी का कैसेट देखा था. यहां वालों को हमने रिसेप्शन दे दिया था.’’

ऐसी कहानियां आपको गांव-गांव में मिल जाएंगी. 

अमेरिकन ड्रीम की शुरुआत

गुजरात में कब से लोग अमेरिका जाने लगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है. ज्यादातर का मानना है कि ये सब 70 के दशक से शुरू हुआ. जो साल 1990 के बाद तेजी से आगे बढ़ा. इसके बाद तो यहां लोगों के लिए जैसे अमेरिका जाना मकसद हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार भार्गव पारीक बताते हैं, ‘‘70 के दशक में गुजरात से लोग अमेरिका और ब्रिटेन जाने लगे. अमेरिका जाने का क्रेज मध्य गुजरात से शुरू हुआ. उसके बाद उत्तर गुजरात के लोग जाने लगे. आज गुजरात के कई गांव तो ऐसे हैं जहां आपको सिर्फ बुजुर्ग मिलेंगे.’’

जानकारों की मानें तो गुजरात के अवैध रूप से अमेरिका गए लोगों की संख्या 5 लाख से ज्यादा है. क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘अभी हमारी तरफ से सख्ती है, बावजूद इसके हर साल हजारों की संख्या में लोग अवैध रूप से अमेरिका जाते हैं.

ऐसा ही एक गांव है, गांधीनगर जिले का डींगूचा. डींगूचा उस वक्त चर्चा में आया जब यहां के रहने वाले 40 वर्षीय जगदीश भाई पटेल, उनकी पत्नी वैशालीबेन और दो बच्चों की अमेरिका जाते हुए कनाडा बॉर्डर पर मौत हो गई. तब उनके साथ 11 लोग अवैध रूप से कनाडा से अमेरिका में घुस रहे थे. ये सभी लोग अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश कर रहे थे. इनकी बर्फ में जमकर मौत हो गई.

डींगूचा एक संपन्न गांव है. यहां आलीशान घर बने हैं, लेकिन ज्यादातर पर ताले लटके हुए हैं. क्योंकि उनमें रहने वाले लोग अमेरिका में हैं. गुजरात के बाकी गांवों की तरह यहां भी स्वामीनारायण मंदिर बना हुआ है. मंदिर के बगल में ही जयेश पटेल की किराने की दुकान है.

जयेश बताते हैं, ‘‘मेरे साथ पढ़ने वाले ज्यादातर लोग अभी अमेरिका में हैं. मैंने भी एक-दो बार कोशिश की लेकिन हो नहीं पाया. अब तो छोटे-छोटे बच्चे हैं. उन्हें लेकर जाना मुश्किल है. बच्चे बड़े हो जाएं तो मैं कोशिश करूंगा. हमारे गांव से सबसे पहले एक नाई अमेरिका गए थे. वे वैध रूप से वहां पढ़ाई करने गए थे.’’

इस गांव के सरपंच ठाकोर माथुर जी सैरागी बताते हैं, ‘‘हमारे गांव के तकरीबन 500 लोग अमेरिका में होंगे. वहीं अगर एनआरआई की बात करें तो इनकी भी संख्या 100 के करीब होगी.’’

हालांकि सरपंच माथुर यह नहीं बताते हैं कि इसमें से कितने अवैध रूप से अमेरिका गए हैं. 

इस गांव के रहने वाले एक अन्य शख्स अलग आंकड़े देते हैं. उनकी मानें तो यहां के एक हजार के करीब लोग अमेरिका में हैं. ज्यादातर अवैध रूप से ही गए हैं. यहां कोई भी सटीक जानकारी देते हुए नजर नहीं आता है. डींगूचा में तो स्थानीय लोगों ने जगदीश भाई पटेल का घर बताने से भी इंकार कर दिया.

अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के अधिकारी दिलीप ठाकोर कहते हैं, ‘‘जब हम किसी को पकड़ने जाते हैं तो गांव में पुलिस की गाड़ी देखते ही लोग सतर्क हो जाते हैं. कुछ पूछने पर ऐसा अहसास कराते हैं जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं.’’

डींगूचा गांव के बगल में ही एक दूसरा गांव पड़ता है पंसार. यहां के सरपंच का नाम भारत भाई बघेला है. 52 वर्षीय बघेला खुद 10 बार अमेरिका जाने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनके हिस्से हर बार असफलता आई. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मेरे गांव से 20 लोग अमेरिका गए हैं. इसमें पटेल समाज के अलावा दूसरे समाज के भी लोग हैं. राजपूतों में से पांच-छह लोग हैं. जो भी गया है उसमें से कोई वापस लौटकर नहीं आया. क्योंकि सभी अवैध तरीके से ही गए हैं.’’

बघेला आगे बताते हैं, ‘‘मैं खुद 10 बार अमेरिका जाने की कोशिश कर चुका हूं. एक बार मैं क्यूबा पहुंच गया था. वहां से अमेरिका जाना था लेकिन नहीं जा पाया. ऐसे में वापस लौटना पड़ा. उसके बाद थाईलैंड में फंस गया. वहां मुझे एक महीने रुकना पड़ा. एजेंट ने कोशिश की कि वहां से अमेरिका निकल जाऊं, लेकिन हो नहीं पाया और मुझे वापस आना पड़ा. जब मैं क्यूबा में फंसा था तब मेरे साथ 15 लोग थे. वहीं थाईलैंड में आठ लोग थे. सब पटेल ही थे.’’

बघेला बताते हैं, ‘‘मेरे गांव के आसपास मोकासन, कोठा, कारजिशन और वाडु नाम के गांव हैं. वाडु, मेहसाणा जिले में पड़ता हैं और बाकी गांधीनगर में.  यहां के हरेक गांव में हरेक घर से कोई न कोई अवैध रूप से अमेरिका में है.’’

पलियड और उसके पास का गांव बेडा. इन दोनों गांवों के सैकड़ों की संख्या में लोग अमेरिका में रहते हैं. पलियड गांव के पंचायत अधिकारी विपुल भाई न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘यहां पंचायत के पास रिकॉर्ड आबादी का 50 प्रतिशत अमेरिका में हैं. जो ज्यादातर पटेल समुदाय है. दूसरे समुदाय से भी हैं लेकिन उनकी आबादी कम है.’’

बेडा गांव से हाल ही में पुलिस ने एक एजेंट धुरुभाई ब्यास को गिरफ्तार किया है. ब्यास को पुलिस ने उसकी शादी के अगले दिन ही गिरफ्तार कर लिया था.

बेडा गांव के रहने वाले राहुल पटेल न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमारे गांव में तकरीबन 1500 लोग अमेरिका में हैं. जिसमें से 1200 लोग इनलीगल हैं. मुझे भी जाना है, लेकिन मैं लीगल रूप से कोशिश कर रहा हूं. जाऊंगा तो लीगल ही नहीं तो नहीं जाऊंगा.’’

धुरुभाई ब्यास की गिरफ्तारी बृज कुमार यादव के मामले में हुई है. यादव, उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले हैं. यादव के पिता जब 10 साल के थे तब अपने एक रिश्तेदार के साथ गुजरात आए थे. फिर वे यहीं बस गए. मेहसाणा के छतराल में इनका मकान है. यहीं अपने दो बेटों और बहू के साथ रहते थे.

पिछले साल दिसंबर महीने में 40 वर्षीय बृज कुमार यादव अपनी पत्नी और दो वर्षीय बच्चे के साथ अमेरिका अवैध रूप से गए थे. दुर्भाग्य से मैक्सिको बॉर्डर पर ट्रम्प वॉल को पार करते वक्त उनकी मौत हो गई.

जब हम इनके घर पहुंचे तो यादव के बड़े भाई विनोद यादव से मुलाकात हुई. उन्होंने हमें बताया, ‘‘बृज यहां एक फैक्ट्री में काम करता था. दिवाली के आसपास उसने हमें बताया कि घूमने जा रहा है. वो व्हाट्सएप कॉल पर बात भी करता था. उसके जाने के लगभग 25 दिन बाद मीडिया के माध्यम से हमें उसकी मौत की खबर मिली. दिसंबर का महीना था. उसकी पत्नी और बच्चा कहां हैं, हमें इसकी जानकारी नहीं है.’’

विनोद या उनके पिता किसी ने पुलिस में कोई शिकायत नहीं दी हालांकि गुजरात की स्टेट मॉनिटरिंग सेल अपनी तरफ से मामला दर्ज कर जांच कर रही है. 

यह हैरान करता है कि बृज यादव के परिवार को न उनके अमेरिका जाने की जानकारी थी और न ही अब उनके बेटे-पत्नी की कोई खबर है. जबकि आज एक व्यक्ति के अमेरिका जाने का खर्च 70 से 80 लाख रुपए हैं. अगर कोई परिवार जाता है तो यह खर्च एक करोड़ से ऊपर चला जाता है.

बृज को लेकर सवाल पूछने पर उनके भाई या पिता दोनों कुछ भी बोलने से बचते हैं. वे कहते हैं, ‘‘अभी हम खुद ही इस तकलीफ से निकलने की कोशिश कर रहे हैं. हमें उसने कुछ नहीं बताया था. उसके पास इतने पैसे कहां से आए ये हमें नहीं मालूम. वो एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. अभी उसकी पत्नी और बच्चे कहां हैं, हमें कोई खबर नहीं है.’’

यहां एक बात और हैरान करती है कि किसी के परिवार में अगर अवैध रूप से सफर के दौरान किसी की मौत या अपहरण हो जाता है तब भी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता है. कबूतरबाजी को लेकर यहां स्थायी चुप्पी दिखती है. 

जगदीश भाई पटेल का घर भी हमें कोई उनके गांव डींगूचा में नहीं बताता है. जबकि सड़क किनारे उनका घर है. हम जब उनके घर पहुंचे तो उनकी मां मधु बेन और पिता बलदेव भाई पटेल से मुलाकात हुई. घर के बरामदे में अनाज की बोरियों के बीच जगदीश भाई पटेल, उनकी पत्नी और बच्चों की तस्वीरें टंगी हुई दिखीं. बातचीत शुरू करते ही मधु बेन फफक पड़ती हैं और गुजराती भाषा में कहती हैं, ‘‘एक साल होने को है, अब आप आए हैं? किसी ने हमारी कोई मदद नहीं की. उसे आखिरी बार तो देख भी नहीं पाए.’’

वे अमेरिका जा रहे थे, इसकी जानकारी आपको थी? इस सवाल का जवाब दोनों नहीं में देते हैं. नाराज बलदेव भाई कहते हैं, ‘‘आप भी वही सवाल दोहरा रहे हैं जो पुलिस वाले दोहराते हैं. पुलिस मेरे बड़े बेटे महेंद्र को और मुझे परेशान करती है. पुलिस बार-बार महेंद्र को कहती है कि तुमने ही जगदीश को भेजा था. जगदीश 40 साल का था. उसे कोई जबरदस्ती तो नहीं भेज सकता है. जाने से कई साल पहले से वो कलोल में रहता था.’’

पुलिस अधिकारियों की मानें तो जगदीश का परिवार हो या बृज यादव का, दोनों ही झूठ बोल रहे हैं. इन परिवारवालों को सब पता है. उन्हें समाज और एजेंटों का डर है. यहां पटेल समाज आपस में सुई धागे की तरह जुड़ा हुआ है. वो आपको कोई जानकारी नहीं देंगे.  

क्यों जा रहे हैं.. 

गुजरात, जो सालों से व्यापार का केंद्र रहा है. जहां देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग रोजगार करने आते हैं. बिहार-यूपी के कई घरों की आर्थिक निर्भरता गुजरात के सूरत या बड़ोदरा से होने वाली आमदनी पर है. ऐसे में गुजरात के लोग अवैध रूप से करोड़ों खर्च कर, अपने परिवार से हमेशा के लिए अलग हो जाने की तकलीफ के बावजूद, यह जानलेवा सफर क्यों करते हैं. क्या इसके पीछे बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है? ज्यादातर लोगों को जवाब नहीं है.

अहमदाबाद के रहने वाले प्रोफेसर प्रकाश शाह इसको लेकर कहते हैं, ‘‘जो वहां जा रहे हैं उनके पास काफी पैसा है. जाने वाले ज्यादातर किसान परिवार से हैं. उनके पास खेत हैं. उन्होंने जमीन बेचकर पैसा जमा किया है. उनको ऐसा महसूस होता कि इस देश में विकास करने की गुंजाइश कम है तो क्यों न अमेरिका में चले जाएं. बेरोजगारी तो बिलकुल वजह नहीं है.’’

इसे विस्तार से समझने के लिए हम एक ऐसे शख्स से मिले जो बीते 12 सालों से अमेरिका जाने की कोशिश कर रहा है. 65 लाख रुपए खर्च कर इन्होंने अमेरिका जाने की कोशिश की थी. हालांकि इन्हें बीच रास्ते से लौटना पड़ा. आखिर इतने पैसे खर्च कर अमेरिका क्यों जाते हैं? उसी पैसे से यहां व्यापार या दूसरा कोई काम क्यों नहीं कर लेते हैं. इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘पैसा कमाने के लिए. पैसा कमाने के लिए आदमी जाएगा न. गुजरात में नहीं कमा सकते हैं. यहां इतनी आमदनी नहीं होती है.’’

अपने बेटे और बेटियों को भेजने वाले रविंद्र पटेल बताते हैं कि वहां जो सुविधाएं मिलती हैं. वो यहां कभी नहीं मिल सकती हैं. वहां सरकार हरेक का ख्याल रखती है. यहां तो कोई किसी को पूछने वाला नहीं है.

कई लोगों से बात करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि यहां से लोगों के जाने के पीछे एकमात्र वजह ‘ज्यादा पैसे की चाहत’ है. वहां लोग डॉलर में कमाते हैं. जो भारतीय रुपए के हिसाब से काफी ज्यादा होता है. इस मामले की जांच कर रहे क्राइम ब्रांच अहमदाबाद के एक अधिकारी कहते हैं, ‘‘शुरू-शुरू में जो लोग गए उन्होंने काफी उन्नति की. उनके पास काफी पैसे आए. गाड़ियां खरीदीं. जिसका असर आसपास के लोगों पर भी हुआ. धीरे-धीरे ‘अमेरिकन ड्रीम’ घर-घर तक पहुंच गया.’’ 

शादी नहीं हो पाती अब

अमेरिका जाना अब गुजरात के पटेल समुदाय के लिए मजबूरी भी बन गया है. दरअसल, जिस घर में कोई अमेरिका में नहीं है उनके लड़कों की शादी नहीं हो पाती है. इसके पीछे बड़ी वजह है कि पटेल समुदाय में लिंगानुपात बेहद खराब है. पत्रकार पारीक बताते हैं, ‘‘पटेल समुदाय में लिंगानुपात हजार लड़कों पर 800 के करीब लड़कियां हैं.’’

पंचवटी के सरपंच गणपत भाई ठाकोर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पाटीदार समाज के किसी परिवार में कोई अमेरिका में नहीं है तो शादी नहीं होती है. सबसे पहले लोग यही देखते हैं. उसके बाद देखते हैं कि अहमदाबाद में हो और आखिरी में कलोल.’’

जो लोग वैध/ अवैध रूम से अमेरिका में रह रहे हैं. वे भी अपनी या अपने बच्चों की शादी अपनी बिरादरी की लड़की से ही करना चाहते हैं. ऐसे में वो अपनी कम्युनिटी की लड़कियों को अवैध रूप से अमेरिका बुलाते हैं. यह सबकुछ दोनों पक्षों की रजामंदी से होता है. रविंद्र पटेल की बेटियां इसी तरह गई थीं. वहीं उनकी शादी हुई. 

पटेल भी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं. वे कहते हैं कि हरेक पिता चाहता है कि उसकी बेटी का भविष्य सुरक्षित रहे. ऐसे में शादी करते हुए हम यह जरूर देखते हैं कि उस घर में कोई अमेरिका में है या नहीं. अगर अमेरिका में नहीं है तो शादी होनी मुश्किल होती है. 

अब हर परिवार से तो कोई अमेरिका में रह नहीं सकता है. ऐसे में यहां शादियों के लिए गुजरात के आदिवासी इलाकों से और राजस्थान से लड़कियों को खरीदकर लाया जाने लगा है. राजस्थान से काफी संख्या में लड़कियां गुजरात लाई जाती हैं.

पटेल समुदाय में लड़कों की शादी के लिए लड़कियों की कमी का अंदाजा 2015 में छपी एक मीडिया रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. अक्टूबर 2015 में सूरत में पटेल समुदाय के लिए सामूहिक विवाह का आयोज हुआ. इसमें ओडिशा की 42 लड़कियां शामिल हुई थीं, जो यहां अलग-अलग कंपनियों में मजदूरी करती हैं. इन 42 लड़कियों से शादी करने के लिए पटेल समुदाय के पांच हजार लड़के मौजूद थे. इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं था और ना आखिरी

सरकार क्या कर रही है?

लाखों की संख्या में लोग अमेरिका और दूसरे देशों में रह रहे हैं. यह सिलसिला लगातार जारी है. ऐसे में क्या सरकार को कोई चिंता नहीं है. क्या सरकार युवाओं को भरोसा दिलाने में कामयाब नहीं रही कि उन्हें गुजरात में बेहतर मौका उपलब्ध कराया जाएगा? गुजरात जहां के विकास मॉडल को देश भर में प्रचारित कर भाजपा सत्ता में आई, वहीं की एक बड़ी आबादी को उस मॉडल पर भरोसा क्यों नहीं है?.

इसके जवाब में ‘के न्यूज़’ के संस्थापक हेमेंद्र पटेल कहते हैं, ‘‘नरेंद्र भाई बोलते हैं कि गुजरात में पैसा डालो तो पैसा निकलेगा. दरअसल ऐसा है नहीं. मोदी ने गुजरातियों को बैल बना दिया है. कोई अपनी मातृभूमि कब छोड़ता है जब वो यहां की व्यवस्था से थक जाता है. यहां कांग्रेस के जमाने में जो कुछ था उसे भी आगे नहीं बढ़ाया गया.’’

हालांकि दूसरे अन्य लोगों का मानना है कि सरकार इसमें कर भी क्या सकती है. प्रोफेसर हेमंत कुमार शाह कहते हैं, ‘‘सरकार इसमें क्या कर सकती है? सबसे ज्यादा वो इनलीगल रूप से भेजने वालों को पकड़ सकती है. उनपर कार्रवाई कर सकती है. इससे ज्यादा वो कुछ कर भी नहीं सकती है.’’

इस मामले में गुजरात पुलिस, क्राइम ब्रांच अहमदाबाद, स्टेट मॉनिटरिंग सेल और दूसरी अन्य एजेंसियों ने कुछ एजेंटों को गिरफ्तार किया है. हालांकि एजेंट धीरे-धीरे छूट जाते हैं. दरअसल इन एजेंटों को राजनीतिक शह प्राप्त है. 

…. 

इस सीरीज के अगले पार्ट हम जानेंगे कि एजेंट कैसे अवैध तरीके से लोगों को अमेरिका या दूसरे देश भेजते है. शुरुआत में एजेंट लोगों को ड्रामा या दूसरे संस्कृति कार्यक्रमों के जरिए भेजते थे. तब सात-आठ लाख खर्च होता था. उसके बाद एजेंटों का ये सिलसिला शुरू हुआ. 

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