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नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनी को मिली पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी कोयला खदान

बीते दो मार्च को कोयला खदानों की नीलामी में अक्टूबर 2020 में पंजीकृत हुई निजी कंपनी कोल पुल्ज़ प्राइवेट लिमिटेड ने अरुणाचल प्रदेश-स्थित नामचिक-नामफुक खदान के लिए सबसे ज्यादा बोली लगाई.  

नामचिक-नामफुक पूर्वोत्तर भारत की सबसे बड़ी वाणिज्यिक कोयला खदान है, जहां लगभग 15 मिलियन टन कोयले के भंडार हैं. यहां ग्रेड 4-5 कोयले का उत्पादन होता है, जो सबसे बेहतरीन क्वालिटी के कोयलों में गिने जाते हैं. हालांकि, कोल पुल्ज की यह सफलता अब विवादों में घिर गई है.

पहले तो यह एक ऐसी कंपनी से जुड़ी है, जिस पर कोयले की आपूर्ति में अनियमितताओं का आरोप है, जिसकी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा जांच की जा रही है.

दूसरा, इस बात के सबूत हैं कि इसने नीलामी में बोली लगाकर केंद्रीय कोयला मंत्रालय के नियमों का उल्लंघन किया है.

इस खदान की नीलामी 2022 में भी की गई थी और प्लेटिनम एलॉयज प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी ने सबसे अधिक बोली लगाकर इसे प्राप्त किया था. 

लेकिन उसने सरकार को बकाया भुगतान नहीं किया, इसलिए खदान की फिर से नीलामी की गई.

प्लेटिनम एलॉयज ने दूसरी नीलामी में भी भाग लिया, लेकिन यह खदान कोल पुल्ज़ ने जीती. लेकिन कोल पुल्ज़ के संबंध प्लेटिनम एलॉयज से भी हैं, इसलिए नीलामी में भाग लेकर उसने निविदा नियमों का उल्लंघन किया है, जिसके तहत संबद्ध कंपनियां एक ही खदान पर बोली नहीं लगा सकती हैं.

इस सबमें हमने जो पाया उसे आप भी पढ़िए. 

विवादों का जाल

नामचिक-नामफुक को नवंबर 2022 में 28 अन्य कोयला खदानों के साथ नीलाम किया गया था. सरकार ने इसे “वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी की सबसे बड़ी खेप” कहा था.

नामचिक-नामफुक के वाणिज्यिक खनन के लिए बोली लगाने वाली छह कंपनियों में कोल पुल्ज़ भी शामिल थी. अन्य पांच कंपनियां थीं असम खनिज विकास निगम लिमिटेड, प्लेटिनम एलॉयज प्राइवेट लिमिटेड, अरुणाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड, प्राची इंफ्रा प्राची इंफ्रा एंड रोड्स प्राइवेट लिमिटेड, और स्टार्ट सीमेंट. 

कोयला मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि नीलामी के 'इस राउंड में पहली बार बोली लगाने वालों में कड़ी प्रतिस्पर्धा' देखी गई. 

"इससे यह भी पता चलता है कि सरकार कोयला क्षेत्र में वाणिज्यिक कोयला खनन के माध्यम से जो सुधार लाई थी, उन्हें कोयला उद्योग ने अच्छी तरह से ग्रहण किया है."

उसी दिन, इकोनॉमिक टाइम्स ने रिपोर्ट किया कि "पूर्वी भारत के दो प्रमुख औद्योगिक समूहों" सत्यम ग्रुप और महालक्ष्मी ग्रुप के "कंसोर्टियम" ने नामचिक-नामफुक की "नीलामी में जीत हासिल की".

कोल पुल्ज़ महालक्ष्मी समूह का हिस्सा है. महालक्ष्मी समूह के कार्यकारी निदेशक संजय केडिया ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में इसकी पुष्टि की.

महालक्ष्मी समूह हमेशा से भाजपा का डोनर रहा है. पार्टी की 2021-22 की डोनर लिस्ट में इसका नाम 19 बार आया है. अपनी कंपनियों के माध्यम से यह समूह अबतक कुल 7,45,01,000 रुपए भाजपा को डोनेट कर चुका है. इसी समूह की कंपनी, महालक्ष्मी कॉन्टिनेंटल प्राइवेट लिमिटेड, का नाम इसी सूची में छह बार आया है, जिसने दो करोड़ रुपए से अधिक डोनेट किए.

महालक्ष्मी कॉन्टिनेंटल को कोयले से संबंधित कथित गड़बड़ी के दो मामलों में नामजद किया गया था. सीबीआई ने इन मामलों में क्रमश: 2012 और 2016 में चार्जशीट दायर की थी. पहले मामले में कंपनी और उसके निदेशक नवीन कुमार गुप्ता पर कोल इंडिया द्वारा आवंटित कोयले को निर्धारित लाभार्थियों के बजाय खुले बाजार में बेचने का आरोप था. दूसरा मामला असम के हैलाकांडी जिले में कछार पेपर मिल के लिए कोयले की खरीद में अनियमितता से जुड़ा था. दोनों मामलों में अभी जांच चल रही है.

इस कंसोर्टियम के दूसरे सदस्य सत्यम ग्रुप के बारे में बात करें तो इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंध प्लेटिनम एलॉयज के साथ हैं, जिसने 2022 में नीलामी जीती और 2023 की नीलामी में फिर से भाग लिया. सत्यम ग्रुप के कम से कम चार निदेशकों के पास विभिन्न शेल कंपनियों के माध्यम से प्लेटिनम एलॉयज के शेयर हैं. 

सत्यम ग्रुप के अध्यक्ष रतन शर्मा 2009 से 2013 तक प्लेटिनम एलॉयज में निदेशक थे. इस दौरान, वह नेशनल माइनिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में भी एक निदेशक थे और 43.5 प्रतिशत के साथ सबसे बड़े शेयरधारक भी थे. नेशनल माइनिंग के नामचिक-नामफुक से कोयला निकालने और बेचने हेतु अरुणाचल प्रदेश मिनरल ट्रेडिंग एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ हुए अनुबंध को सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में "अवैध" करार दिया था.

हम रिपोर्ट में आगे इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

फिलहाल रतन शर्मा के पास सीधे तौर पर प्लेटिनम एलॉयज के शेयर नहीं हैं. उनके पास एसएमएस स्मेल्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के 15,500 शेयर्स हैं, जो 69.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ प्लेटिनम एलॉयज का सबसे बड़ा शेयरधारक है.

सत्यम समूह के चार पदाधिकारियों- निदेशक हर्ष शर्मा और कमल शर्मा, मैनेजिंग डायरेक्टर सुरेश शर्मा, और सीनियर एग्जीक्यूटिव श्याम सुंदर लट्टा- के पास निशु लीजिंग एंड फाइनेंस लिमिटेड के शेयर हैं, जिसकी प्लेटिनम एलॉयज में 19.6 प्रतिशत हिस्सेदारी है.

प्लेटिनम एलॉयज की एक अन्य निदेशक हैं रमा शर्मा, जो सत्यरतन ग्रुप लिमिटेड नामक कंपनी में भी निदेशक हैं. श्याम सुंदर लट्टा भी सत्यरतन समूह के निदेशक हैं. इस समूह की एक और निदेशक ममता शर्मा रतन शर्मा की नेशनल माइनिंग कंपनी लिमिटेड में भी निदेशक हैं. 

कोयला मंत्रालय के मानक निविदा दस्तावेज के खंड 4.1.4 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी कोयला खदान की नीलामी में बोली लगाने वाला केवल एक ही बोली लगा सकता है. "यदि किसी बोलीदाता का सहयोगी भी उक्त कोयला खदान के लिए बोली लगाता है, तो दोनों के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया जाएगा."

इस बारे में बात करने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने कोयला मंत्रालय से संपर्क किया.

कम से कम दो अधिकारियों ने कहा कि वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं और इसलिए आधिकारिक रूप से इस मामले पर कोई बात नहीं कर सकते. 

एक अधिकारी ने कहा कि डिफॉल्टर होने के बावजूद प्लेटिनम एलॉयज को 2023 की नीलामी में शामिल करना टेंडर नियमों का उल्लंघन नहीं है. दूसरे ने कहा कि कोयला मंत्रालय ने बोली लगाने से पहले कंपनियों के निदेशकों की जांच की थी, लेकिन प्लेटिनम एलॉयज और कोल पुल्ज़ के बीच उन्हें कोई संबंध नहीं मिला.

सीएजी द्वारा बताई गई 'विसंगतियां'

इस संबंध में दूसरी अनियमितताओं में शामिल हैं रतन शर्मा. वह अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के पुराने परिचित हैं. दोनों पहले सेलातावांग होटल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक थे, यह कंपनी 2009 में बंद हो चुकी है. 2022 में फिर शुरू होने से पहले, नामचिक-नामफुक कोयला खदान से अंतिम निष्कर्षण 2007 और 2012 के बीच हुआ था. यह खदान तब सरकारी कंपनी अरुणाचल प्रदेश मिनरल ट्रेडिंग एंड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को आवंटित की गई थी.

एपीएमटीडीसीएल ने 2007 से 2012 तक, पांच साल के लिए नामचिक-नामफुक खदान से कोयला निकासी और बिक्री का ठेका नेशनल माइनिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को दिया था. नेशनल माइनिंग, 2002 में शुरू की गई थी और यह शिलांग में पंजीकृत है, हालांकि कंपनी के दस्तावेजों में एक पता गुवाहाटी का भी है. जैसा कि पहले बताया गया था, रतन शर्मा के पास इसके 43.5 प्रतिशत शेयर हैं.

इन पांच वर्षों के दौरान, नेशनल माइनिंग के माध्यम से एपीएमटीडीसीएल ने 2012 तक खदान से 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक कोयला निकाला. 2012 में संदेह जताया गया कि इलाके में "विद्रोही" कोयला खनन कर रहे हैं, जिसके बाद इस खदान का संचालन निलंबित कर दिया गया था.

2012 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने एक ऑडिट रिपोर्ट दायर की जिसमें 1993 से लेकर कोयला ब्लॉकों के आवंटन में "गंभीर विसंगतियों" को उजागर किया गया. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि बोली लगाने में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण निजी कोयला ब्लॉक आवंटियों को 1.83 लाख करोड़ रुपए  का वित्तीय लाभ हुआ.

इसलिए, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 1993 से 2011 तक किए गए 204 कोयला ब्लॉक आवंटनों को "अवैध" और "मनमाने ढंग से किया गया" घोषित किया. इसमें नामचिक-नामफुक खदान भी शामिल थी.

सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आवंटियों पर 299 रुपए प्रति मीट्रिक टन कोयले का जुर्माना लगाया. नामचिक-नामफुक के मूल आवंटी के रूप में एपीएमटीडीसीएल पर 32 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया.

बाद में इस राशि का भुगतान सरकारी खजाने से किया गया, जब पेमा खांडू की सरकार ने 2019-20 के बजट में नामचिक-नामफुक कोयला क्षेत्र को "पुनर्जीवित" करने के लिए एपीएमटीडीसीएल को 32 करोड़ रुपए का ब्याज-मुक्त ऋण देने की घोषणा की. बाद में, सरकारी खजाने से राशि का भुगतान करके नेशनल माइनिंग को लाभ पहुंचाने के लिए अरुणाचल सरकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी.   

यह प्राथमिकी वकील काकू पोटोम की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई. इसमें कहा गया कि नेशनल माइनिंग और एपीएमडीटीसीएल के बीच समझौते के अनुच्छेद 13, और एनएमसीएल को दिए गए वर्क ऑर्डर के अनुसार, कर, जुर्माने और अतिरिक्त शुल्क आदि जैसे सभी तरह के भुगतान करने का उत्तरदायित्व ठेकेदार, या एनएमसीएल पर था.   

सीएजी ने 2017 में एक रिपोर्ट में नामचिक-नामफुक में कोयले के मूल्य निर्धारण से संबंधित एक और विसंगति को उजागर किया. 

नेशनल माइनिंग को केवल एपीएमटीडीसीएल द्वारा निर्धारित मूल्य पर कोयला बेचने और निकालने की अनुमति दी गई थी. एपीएमटीडीसीएल को यह कीमत कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिसूचित बिक्री मूल्य के आधार पर तय करनी थी. 

लेकिन सीएजी ने कहा कि नेशनल माइनिंग, कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिसूचित संशोधित दरों से "बहुत कम दर पर" कोयला बेच रही थी, क्योंकि एपीएमडीटीसीएल समय पर संशोधित दरों को लागू नहीं कर रही थी.

उदाहरण के लिए, कोल इंडिया ने 2012 में 1 जनवरी से कोयले के बिक्री मूल्य को संशोधित किया. यह संशोधित मूल्य एपीएमडीटीसीएल ने 11 जनवरी, 2013 से लागू किया. 11 महीने की इस देरी से सरकारी खजाने को 1 जनवरी से 19 मई, 2012 के बीच, 1,55,677 मीट्रिक टन कोयले की बिक्री में 31 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

नेशनल माइनिंग ने संशोधित मूल्यों को अधिसूचित करने में देरी के लिए एपीएमडीटीसीएल को दोषी ठहराया, और इसलिए 31.57 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया. इसके बजाय, यह 4 अप्रैल से 19 मई, 2012 तक 54,640 मीट्रिक टन कोयले की बिक्री के लिए केवल 11.69 करोड़ रुपए देने पर सहमत हुई. पांच सदस्यीय समिति ने इस मुद्दे की जांच की और नेशनल माइनिंग के पक्ष में फैसला सुनाया, और सुझाव दिया कि शेष 19.88 करोड़ रुपयों को छोड़ दिया जाए.

न्यूज़लॉन्ड्री ने सत्यम ग्रुप, कोल पुल्ज़ और प्लेटिनम एलॉयज़ को इस पूरे मामले से संबंधित प्रश्नावली भेजी है. अगर हमें प्रतिक्रिया मिलती है तो उसे इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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