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तमिलनाडु में ‘प्रवासियों पर हमलों’ की सच्चाई और कैसे मीडिया ने झूठी खबरें फैलाई
तमिलनाडु में उत्तर भारतीय प्रवासियों पर "हमले" का हौवा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है. तमिलनाडु में पुलिस ने इस तरह की अफवाहों पर अब तक छह मामले दर्ज किए हैं और इस तरह के दावों को फैलाने वाली फर्जी खबरों को रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
इससे पहले राज्यों में एक राजनीतिक युद्ध छिड़ गया था, जिसमें भाजपा नेताओं ने इस मौके का इस्तेमाल विपक्ष से बिहार में राजद-जदयू सरकार और तमिलनाडु में द्रमुक सरकार के आपसी सौहार्द की धज्जियां उड़ाने के लिए किया. हालांकि घबराहट की इस गाथा के नायक केवल राजनीतिक दल और सोशल मीडिया अकाउंट ही नहीं थे. सच्चाई तो यह है कि इस तरह की फर्जी खबरों को मुख्यधारा के मीडिया के एक वर्ग ने भी बढ़ावा दिया था.
लेकिन इन घटनाओं को सिलसिलेवार रूप से समझने के लिए मुख्यधारा की फर्जी पत्रकारिता के उदाहरणों को देखने से पहले, आइए उत्तर भारतीय प्रवासियों की "हत्याओं" के रूप में रिपोर्ट की गई मौतों की वास्तविकता पर नज़र डालते हैं.
उल्लेखित हत्याएं: रंजिश, आत्महत्या
19 फरवरी को बिहार के जमुई के पवन यादव पर कथित तौर पर झारखंड के एक अन्य मजदूर ने दरांती से हमला किया था, जिसे पवन पर अपनी पत्नी के साथ नाजायज़ संबंध होने का संदेह था और वह तिरुपुर में उसका पड़ोसी था. यादव को कोयम्बटूर के अस्पताल में ले जाया गया लेकिन घावों की वजह से उनकी मौत हो गई. पवन के भाई नीरज की शिकायत के बाद आखिरकार आरोपी उपेंद्र धारी को पुलिस ने गिरफ्तार किया. तिरुपुर के डीसीपी अभिषेक गुप्ता ने कहा कि उसने अपराध स्वीकार कर लिया है.
गुप्ता ने कहा, “यह आपसी रंजिश का मामला था और आरोपी भी एक प्रवासी मजदूर ही था. यह किसी भी तरह से प्रवासियों पर हमले के कथानक से जुड़ा हुआ नहीं था.”
नीरज ने कहा, “मेरा भाई बहुत ही शरीफ इंसान था और किसी चीज में शामिल नहीं था. वह पिछले पांच साल से तमिलनाडु में काम कर रहा था. जब उस पर उपेंद्र धारी ने हमला किया तब वह कपड़े धो रहा था… मैंने दखल देने की कोशिश की लेकिन सफल न हो सका. मैं कमरे की ओर भागा नहीं तो वो मुझे भी मार देता.”
एक हफ्ते बाद, एक और प्रवासी मजदूर मोनू रविदास कृष्णागिरी जिले में मृत पाया गया. हालांकि, कृष्णागिरी के एसपी सरोज कुमार ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है कि यह आत्महत्या थी. उसके साथ कोथागोंडापल्ली में कमरे में साथ रहने वाले उसके भाई सोनू और तुलसी ने भी पुलिस को बताया कि मोनू ने दरवाजा बंद कर लिया था और तौलिये से फांसी लगा ली.
एसपी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "वो यहां पर काम से खुश नहीं था और घर जाना चाहता था. लेकिन उसके भाई चाहते थे कि वो यहीं रुके और उन्होंने उससे कहा था कि वे होली के आसपास घर वापस चले जाएंगे.”
लेकिन इन मौतों को जितना प्रचार मिला, उतना कभी हासिल नहीं किया होता अगर उन्हें "निशाना बनाकर" हमलों और 9 फरवरी को हुई तीसरी घटना के रूप में मीडिया कवरेज के लिए नहीं किया गया होता. प्रवासियों - इन्हें ऑल्ट न्यूज़ और बूम लाइव ने जोधपुर, कोयम्बटूर, हैदराबाद और सावन में घटनाओं के बासी दृश्यों के रूप में खारिज किया था.
विल्लुपुरम जिले के कन्याम गांव के रहने वाले मगिमाईदास वैगई एक्सप्रेस के भीड़भाड़ वाले जनरल डिब्बे में सवार हुए थे. उन्होंने उत्तर भारतीय सह-यात्रियों पर क्षेत्रीय अपशब्दों का इस्तेमाल किया, उनमें से कुछ पर हमला किया, और प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया - और इनमें से कुछ को वीडियो में कैद कर लिया गया. सोशल मीडिया पर आक्रोश के बाद, 38 वर्षीय को 21 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था.
इस वीडियो और कृष्णागिरी और तिरुपुर में हुई दो मौतों के बाद, मीडिया के कुछ वर्गों ने उस अराजकता में योगदान देना शुरू कर दिया, जो पहले से ही सोशल मीडिया की अफवाहों से फैल रही थी.
मुख्यधारा में फेक न्यूज
जब मागीमाईदास का वीडियो चर्चा में था, हिंदी दैनिक अमर उजाला ने 21 फरवरी को पवन और उसके भाई नीरज पर हमले की रिपोर्ट छापी. लेकिन रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि भाइयों को उनकी बिहारी पहचान के लिए स्थानीय लोगों द्वारा निशाना बनाया गया था. हेडलाइन कहती है, “तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों को निशाने पर.”
दैनिक भास्कर ने भी उसी दिन इस घटना की रिपोर्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि हमलावरों ने मौके से भागते समय अन्य बिहारी प्रवासियों पर भी हमला किया और हमले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया गया.
हालांकि नीरज ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पवन पर हमले का न तो कोई वीडियो बनाया गया और न ही प्रसारित किया गया.
पांच दिन बाद दैनिक भास्कर ने भी मोनू रविदास की मौत की खबर छापते हुए कहा कि इस मामले में हत्या का अंदेशा है. उसी खबर में पवन पर हमले और तमिलनाडु में बिहारी प्रवासियों के भीतर भय की भावना का उल्लेख भी हुआ. अख़बार ने दावा किया कि बिहारी प्रवासियों को घर लौटने के लिए मजबूर किया गया है, और इस पर एक वीडियो रिपोर्ट भी की.
इस खबर को नवभारत टाइम्स और ईटीवी भारत जैसे अन्य पोर्टल्स ने भी इसी दावे के साथ उठाया.
इनमें से कई रिपोर्ट्स ऐसे वीडियो पर आधारित थीं, जो सत्यापित नहीं थे.
2 मार्च को दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट किया कि श्रमिकों ने हमला किए जाने के डर से खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था, और उस वीडियो के एक स्क्रीनशॉट का इस्तेमाल किया जिसमें कथित तौर पर मगिमाईदास को श्रमिकों पर हमला करते दिखाया गया था. उसी दिन हिंदुस्तान ने भी रिपोर्ट किया कि बिहार के प्रवासियों को निशाना बनाते हमलों में अब तक दो श्रमिकों की मौत हो गई है और 50 घायल हो गए हैं.
पंजाब केसरी ने रिपोर्ट किया कि हिंदीभाषी प्रवासियों पर हमला किया जा रहा था और अफवाह है कि अब तक 15 से अधिक मौतें हुई हैं - इस आंकड़े को सबसे पहले दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट किया था. इस बीच, बिहार के प्रमुख दैनिक प्रभात खबर ने भी पवन और मोनू की हत्या का दावा करते हुए रिपोर्ट किया कि प्रवासियों को तमिलनाडु छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
जब इनमें से कई प्रवासी होली मनाने के लिए घर लौट रहे थे, तब कई समाचार संस्थानों ने दावा किया कि उन्हें डर ने जगह छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था.
4 मार्च को तमिलनाडु पुलिस ने दैनिक भास्कर, ट्विटर यूजर मोहम्मद तनवीर और उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता प्रशांत पटेल उमराव पर तमिलनाडु में बिहारी प्रवासी श्रमिकों पर कथित "हमलों" के बारे में "झूठी खबर फैलाने" के लिए मामला दर्ज किया. दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट किया था कि तमिलनाडु में "15 से अधिक" बिहारी प्रवासी श्रमिकों की "हत्या" की गई है, और अन्य लोगों के साथ "क्रूरता" बरती जा रही है.
तमिलनाडु पुलिस ने 2 मार्च को ट्वीट किया था कि "तथ्यों की पुष्टि किए बिना" ही “अफवाहें” फैलाई जा रही हैं. न्यूज मिनट के अनुसार उसी दिन, उमराव ने ट्वीट किया कि "तमिलनाडु में हिंदी बोलने के लिए एक कमरे के अंदर 15 लोगों को फांसी दी गई थी और उनमें से 12 की मौत हो गई थी".
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तब ट्वीट कर राज्य में अधिकारियों से बिहार के मजदूरों की “सुरक्षा सुनिश्चित” करने के लिए कहा. जवाब में, तमिलनाडु डीजीपी ने स्पष्ट किया कि इस तरह के हमलों के वीडियो "झूठे" और "शरारती" थे. इस बात को बिहार पुलिस ने भी दोहराया.
इन कहानियों को ऑपइंडिया जैसे संस्थानों द्वारा भी उठाया गया, जिन्होंने प्रवासी श्रमिकों पर "तालिबानी शैली के हमलों" का आरोप लगाया था. बाद में झूठे दावे को फैलाने के लिए ऑपइंडिया के सीईओ और संपादक पर भी मामला दर्ज किया गया.
'गुंडे हर शहर में हैं'
प्रमुख मीडिया संगठनों के अलावा, सोशल मीडिया संस्थाएं भी बिहारी श्रमिकों पर हमले की कहानी को प्रचारित करने में लिप्त थीं.
इसके लिए राकेश कुमार तिवारी और मनीष कश्यप के उदाहरण को देखें, जिन पर अब बिहार पुलिस ने झूठी खबर के लिए मामला दर्ज किया है.
राकेश कुमार तिवारी प्रयास न्यूज नाम का एक न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं. फेसबुक पर उनके 62,000 फॉलोअर्स और यूट्यूब पर 1.86 लाख सब्सक्राइबर हैं. इन तथाकथित हमलों से संबंधित उनके पोस्ट को देखे जाने की संख्या 7,000 से 13 लाख के बीच है, और उनके कुछ पोस्ट बिहार भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल द्वारा साझा किए गए थे.
यूट्यूबर मनीष कश्यप के चैनल सच तक न्यूज के 63 लाख सब्सक्राइबर है और फेसबुक पर 39 लाख फॉलोअर्स हैं. उन्होंने 15 पोस्ट प्रकाशित किए, जिनमें से अधिकांश को देखे जाने का आंकड़ा 10 लाख से 1.54 करोड़ के बीच रहा, 50,000 से 10 लाख के बीच ‘लाइक’ मिले और करीब 1,000 से 1 लाख के बीच साझा किया गया.
इस विवाद में तमिलनाडु के छह समेत अब तक लगभग एक दर्जन मामले दर्ज किए गए हैं. दैनिक भास्कर, ऑपइंडिया, मोहम्मद तनवीर, शुभम शुक्ला, प्रशांत उमराव और मनोज यादव के खिलाफ तमिलनाडु में एफआईआर दर्ज की गई हैं. कृष्णागिरी के एसपी सरोज कुमार ने कहा कि फर्जी खबरें फैलाने वालों को पकड़ने के लिए पुलिस टीमें अलर्ट पर हैं.
शुभम शुक्ला खुद को पत्रकार बताते हैं और ट्विटर पर उनके करीब 30,000 फॉलोअर्स हैं, जबकि उमराव यूपी भाजपा के वकील और प्रवक्ता हैं. मनोज यादव बिहार का एक प्रवासी श्रमिक है, उसने एक नकली वीडियो बनाया था जिसमें दावा किया गया कि उस पर और उसके दोस्तों पर स्थानीय लोगों ने हमला किया था. उसे तमिलनाडु पुलिस ने गिरफ्तार किया है.
भाजपा की बिहार और यूपी इकाइयों के नेताओं ने चेन्नई में डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ राजद नेता और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मुलाकात को निशाना बनाने के लिए अफवाहों को हवा दी थी. बैठक को 2024 के चुनावों से पहले विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा गया. भाजपा नेताओं और समर्थकों ने उन स्टालिन का जन्मदिन मनाने के लिए तेजस्वी पर निशाना साधा था, जिनके राज्य में “12 प्रवासी मारे गए”.
तेजस्वी को टैग करने वाले ट्वीट्स में झारखंड के एक मजदूर के शरीर के दृश्य थे, जिसे क्षेत्रीय पहचान पर निशान बनाकर की गई हत्या करार दिया गया था.
हालांकि यह जनवरी के एक आपराधिक मामले से संबंधित था, जब रमेश मंडल नामक व्यक्ति पर स्थानीय बदमाशों ने हमला किया था, क्योंकि उसने अपना फोन उन्हें देने से इनकार कर दिया था. मारपीट के चार दिन बाद इस 29 वर्षीय मजदूर की मौत हो गई और बाद में वेलाचेरी पुलिस स्टेशन में हत्या का मामला दर्ज किया गया.
रमेश के चचेरे भाई दिगाम मंडल, जो जनवरी में इस घटना से अवगत थे, ने कहा, “मैं और रमेश पिछले 10-12 वर्षों से तमिलनाडु में काम कर रहे थे. हमें एक बार भी स्थानीय लोगों के हाथों किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. हमारे बहुत सारे तमिल दोस्त हैं… जो हमारे फोन छीनना चाहते थे वो गुंडे थे. यह घटना हिंदी भाषियों के प्रति घृणा से जुड़ी हुई नहीं थी. यह कहीं भी हो सकता था क्योंकि जिन लोगों ने हम पर हमला किया वे गुंडे थे और गुंडे हर शहर में हैं.
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