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हरियाणा-मेवात: अपराधी गौरक्षकों के साथ हरियाणा पुलिस के तालमेल की पड़ताल
16 फरवरी को नासिर और जुनैद की दिल दहलाने वाली हत्या से करीब 22 महीने पहले पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गौरक्षक लोकेश सिंगला द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए बेहद सख्त टिप्पणी की थी.
जस्टिस सुधीर मित्तल ने एडिशनल एडवोकेट जनरल हरियाणा को निर्देश देते हुए कहा- "एडिशनल एडवोकेट जनरल हरियाणा इज़ डायरेक्टेड टू एड्रेस द कोर्ट, ऑन द पावर अथॉरिटी ऑफ विजिलांटेज़, टू रेड द हाउस ऑफ द सिटीजंस, सच एक्शन्स आर प्राइमा फेसाई इल्लीगल, एंड अमाउंट टू, टेकिंग लॉ इनटू देयर ओन हैंड्स, बाई प्राइवेट इंडिविजुअल्स, दिस इज कॉन्ट्रेरी टू द रुल आफ लॉ.”
मतलब एडिशनल एडवोकेट जनरल हरियाणा को निर्देश दिया जाता है कि वह नागरिकों के घरों पर छापा मारने वाले स्वघोषित रक्षकों की शक्ति और अधिकारों के बारे में अदालत को संबोधित करें, ऐसी गतिविधियां प्रथम दृष्टया गैरकानूनी हैं और कानून को अपने हाथ में लेने के बराबर हैं. यह कानून के शासन के विपरीत है.
इस तथ्य के संदर्भ में हमने नूह जिले के एसपी वरुण सिंगला से बात की. उन्होंने एक लाइन में जवाब दिया कि गौरक्षक केवल इन्फॉर्मर के तौर पर काम करते हैं और पुलिस के साथ केवल गवाह के तौर पर मौजूद रहते हैं.
एसपी साहब का यह बयान हरियाणा के मेवात इलाके में और खास कर नूह जिले के आस-पास बीते कुछ दिनों में दर्ज हुई एफआईआर से बिल्कुल मेल नहीं खाता. हमने हरियाणा गौ संरक्षण एवं गौ संवर्धन एक्ट 2015 के तहत गौ तस्करी और गोकशी के मामले में दर्ज करीब 200 एफआईआर की जांच की. हमने पाया कि हाईकोर्ट द्वारा गैरकानूनी बताए जाने के बावजूद गौरक्षकों की मनमानी हरियाणा के मेवात जिले में बेरोकटोक जारी है. गौरक्षकों द्वारा आम लोगों के घरों में देर-सबेर छापा मारना, लोगों के घरों में घुसकर तलाशी लेना, सड़कों की नाकाबंदी करना, लोगों से मारपीट करना और यहां तक की पुलिस की जगह खुद ही लोगों से इंटेरोगेशन करना धड़ल्ले से जारी है.
कुछ एफआईआर में हमने पाया कि नासिर और जुनैद हत्याकांड के मुख्य आरोपी मोनू मानेसर, श्रीकांत पंडित और लोकेश सिंगला बेहद सक्रिय तरीके से पुलिस के साथ काम करते रहे. उनके नाम एफआईआर में बतौर शिकायतकर्ता, बतौर गवाह दर्ज हैं. ये लोग अपनी गतिविधियों की वीडियो सोशल मीडिया पर भी डालते रहे. इतना ही नहीं, खुलेआम हथियारों का प्रदर्शन करना और लोगों को इन हथियारों से आतंकित करना भी इन लोगों ने जारी रखा.
लोकेश सिंगला
एक एफआईआर, जिसका नंबर है 37/2021. इसके मुताबिक गौरक्षा दल के जिलाध्यक्ष लोकेश सिंगला ने पहले गोकशी के शक में 10 मार्च, 2021 की रात 11:30 बजे नूह जिले के बिछौर थाना के सिंगार गांव निवासी मुब्बी और इस्लाम के घर पर अपनी टीम के साथ रेड मारी. इसके करीब आधे घंटे बाद बिछौर थाने में फोन करके उन्होंने पुलिस को बुलाया और खुद ही लिखित शिकायत दर्ज करवाई. एफआईआर में लिखा है- “हमारी टीम को सूचना मिली कि गांव सिंगार में मुब्बी पुत्र इस्लाम व इस्लाम पुत्र नामालूम निवासीयन गांव सिंगार थाना बिछोर जो गोकशी का धंधा करते हैं. आज भी अपने घर में कुछ दुबले-पतले गोवंश गोकशी के लिए बांध रखे हैं. अगर आप गौरक्षा दल की टीम को पकड़े तो तुरंत पकड़े जा सकते हैं. मैंने अपनी टीम के सदस्यों रोहतास सैनी ,सौरव सिंगार ,कृष्ण रावत व अन्य संगठन के कार्यकर्ताओं को मौके पर पहुंचने के बारे में सूचना दी. मैं भी मौका पर पहुंच गया.”
बता दें कि इस्लाम और मुब्बी पिता-पुत्र हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए इस्लाम ने बताया, “जिस दिन गौरक्षा दल के लोगों ने रेड डाली उस दिन मैं घर पर नहीं था बल्कि अपने छोटे बेटे की आंखों के इलाज कराने के लिए दिल्ली के अल सफा हॉस्पिटल गया था. घर पर केवल पत्नी और बच्चे थे. गौरक्षा दल के 10-12 लोग हाथों मे हथियार लेकर दरवाजा तोड़कर घर में घुस गए और तोड़फोड़ करने लगे. घर में मौजूद संदूक, वाशिंग मशीन और पानी के ड्रम तोड़ डाले.”
इस्लाम की पत्नी मुबीना ने हमें बताया, “मैं बच्चों के साथ सो रही थी. तभी 10-12 लोग अचानक से घर में घुस गए और गालियां देते हुए तोड़फोड़ करने लगे. वो लोग काफी देर तक तोड़फोड़ करते रहे. मैं डर गई थी इसलिए मैंने कुछ बोला नहीं. इस दौरान पुलिस भी नही थी.”
एफआईआर के मुताबिक रेड मारने के बाद जब पुलिस मौके पर पहुंची तो लोकेश सिंगला ने गाय, बैल और बछड़े के साथ पुलिस को एक कट्टा यानी बोरी में एक छुरी, एक कुल्हाड़ी, एक लकड़ी का गुटका और करीब 7-8 मीटर रस्सी दिया.
इसको आधार मानते हुए पुलिस ने मुब्बी और इस्लाम के खिलाफ हरियाणा गौ संरक्षण एवं गौ संवर्धन एक्ट 2015 की धारा तीन यानी गोकशी और धारा 8.1 यानी गौमांस बेचने और आईपीसी की धारा 511 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
यहां हरियाणा पुलिस पर दो सवाल उठते हैं. उसने अपने स्तर पर कोई जांच नहीं की. दूसरा उसने एक विजिलांटी गौरक्षा समूह द्वारा कथित तौर पर मुहैया करवाए गए सामानों को ही सबूत मान लिया और लोकेश सिंगला की शिकायत को बिना क्रॉस चेक किए मुब्बी और इस्लाम को आरोपी मान लिया.
जुलाई 2021 में जब मामला पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा तो जस्टिस सुधीर मित्तल ने मुब्बी को जमानत देते हुए सख्त टिप्पणी करते हुए इस रेड को गैरकानूनी करार दिया.
हाईकोर्ट द्वारा गैरकानूनी बताए जाने के बाद भी लोकेश पुलिस के साथ काम करता रहा. एफआईआर संख्या 0030/2023 के मुताबिक लोकेश पुलिस के साथ इन्फॉर्मर के रूप में काम करता रहा. यही लोकेश जुनैद और नासिर के अपहरण और जलाकर हत्या करने के मामले में भी आरोपी है.
मोनू मानेसर
एफआईआर नंबर 171/2022 थाना सदर तावडू जिला- नूह के मुताबिक मोनू मानेसर पुलिस को सूचना देता है. फिर अपनी टीम और पुलिस के साथ सिलखो मोड़ पर नाकाबंदी करता है और कथित गौतस्करों को पकड़वाता है. एफआईआर की भाषा से ऐसा लगता है कि नाकाबंदी करने में मोनू मानेसर पुलिस की मदद नहीं कर रहे बल्कि पुलिस गौरक्षकों को सेवा दे रही है.
एफआईआर में लिखा है- "आज मन HC मय सि० सतीश बराये अपराधों की रोकथाम के लिए चिल्ला मोड़ नूह तावडू रोड पर मौजूद था कि गौरक्षा दल के सदस्य मोनू पुत्र ओमप्रकाश निवासी मानेसर जिला गुरुग्राम, हिमांशु पुत्र अशोक, पियुष पुत्र भगवान सिंह, अभिषेक पुत्र अजीत जिला नूह अपनी टीम सहित हाजिर आये हैं. जिन्होंने बतलाया कि परवेज आलम पुत्र मोहम्मद यामीन, साजिद पुत्र महमूद अली, अमरदीप सिंह उर्फ दीपा पुत्र बलविंदर सिंह, बाबू पुत्र समीरा मिलकर गोकशी करने का धंधा करते हैं. जो आज भी अपने गाड़ी मालिक की सह पर गाड़ी ट्रक नं पीबी 11 ax9 485 में कहीं से गौधन इकट्ठा करके अपनी गाड़ी में भरकर पीछे फट्टे लगाकर यहीं से होते हुए गोकशी करने के लिए सिलखो होते हुए चुहड़पुर राजस्थान लेकर जाएंगे. अगर गांव सिलखो मोड़ पर नाकाबंदी की जावे तो आरोपियन गोधन व गाड़ी ट्रक व पायलट गाड़ी सहित काबू आ सकते हैं. जो मन HC ने इस सूचना को सच्ची मानकर आने जाने वाले राहगीरों को शामिल नाकाबंदी होने बारे में कहा परंतु कोई भी राहगीर शामिल नाकाबंदी नहीं हो सका और अपनी अपनी जायज मजबूरियां जाहिर करके चले गए. जो मन HC ने सि0 सतीश को एक लोहा कांटा देकर नाकाबंदी से करीब 50 मीटर दूरी पर आगे छिपकर ईशारे अनुसार कांटा डालने बारे खड़ा किया वह मन HC बाकी मुलाजमान मय गौरक्षा दल के सदस्यों सहित नाकाबंदी शुरू की."
इसके बाद की कहानी- 15 मिनट बाद एक ट्रक और कार आती है. मोनू मानेसर गाड़ियों की पहचान करता है. पुलिस को देखकर कार और ट्रक अपनी स्पीड तेज कर लेते हैं. पुलिस लोहा काटा लगाकर रोकने का प्रयास करती है जिस दौरान कार संतुलन खोकर पलट जाती है. ट्रक पंचर हो जाता है.
इसके बाद गौरक्षादल के लोग ट्रक चालक और कार चालक को पकड़ते हैं. एफआईआर में लिखा है- "ट्रक चालक को मन HC ने साथी मुलाजमान व गौरक्षा दल के सदस्य हिमांशु अभिषेक सहायक से भागकर काबू किया."
गौरक्षक यही नहीं रुकते, वो पूछताछ भी करते हैं, "कार के कंडक्टर साइड में बैठे हुए शख्स को सन्नी व पीयूष द्वारा काबू किए शख्स से नाम पता पूछने पर अपना नाम परवेज आलम पुत्र मोहम्मद यामीन, निवासी जोया, थाना डिडौली, जिला अमरोहा बतलाया."
इस एफआईआर को पढ़कर ऐसा लगता है कि इस नाकाबंदी में गौरक्षक पुलिस की मदद नहीं कर रहा है बल्कि पुलिस गौरक्षकों की मदद कर रही है और यह नाकाबंदी मोनू मानेसर ने लगाई थी.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पुलिस मोनू मानेसर द्वारा दी गई सूचना को बिना जांच-पड़ताल के सच्ची मान लेती है. और उसके द्वारा बताए गए स्थान पर नाकाबंदी भी करती है. और छह लोगों के खिलाफ हरियाणा गौ संरक्षण एवं संवर्धन एक्ट 2015 की धारा 5, 13 (2) और आईपीसी 120b के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार आरोपियों को जेल भेज देती है.
नूह जिले के एसपी वरुण सिंगला गौरक्षकों और पुलिस के बीच सांठगांठ से इनकार करते हैं. वह कहते हैं, "गौरक्षकों को कोई कानूनी दर्जा हासिल नहीं है. जैसे अन्य मामले में गवाह होते हैं वैसे ही गौरक्षक एचजीएस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में भी गवाह होते हैं, और कभी-कभी स्वतंत्र गवाह के तौर पर रेड में शामिल होते हैं."
हालांकि एसपी वरुण सिंगला भले ही पुलिस और गौरक्षकों की सांठगांठ से इनकार करते हैं लेकिन नूह जिले में ऐसी दर्जनों एफआईआर दर्ज हैं जो पुलिस और गौरक्षकों के सांठगांठ की कहानी बयान करती हैं. हमारे पास ऐसी एफआईआर मौजूद हैं.
थाना सदर तावडू में दर्ज एफआईआर नंबर 36/2023 के मुताबिक गौरक्षक योगेश, मनीष, मोनू ने पुलिस को सूचना दी कि दो मुस्लिम व्यक्तियों ईशा और समीर को गौतस्करी के आरोप में पकड़ रखा है. जब मौके पर पुलिस पहुंचती है तो वह पाती है कि ईशा और समीर के पैर और कमर में चोट लगी है. इस चोट के बारे में घायलों से सवाल पूछने की बजाय पुलिस गौरक्षकों से पूछती है. गौ रक्षक बताते हैं कि ईशा और समीर को यह चोट दौड़ा कर पकड़ने के दौरान लगी. पुलिस गौरक्षकों का यही बयान एफआईआर में दर्ज करती है. एफआईआर के मुताबिक “दोनों व्यक्तियों ईशा उर्फ इसब व समीर उपरोक्त को पैरों में कमर में चोट लगी हुई है जो गौरक्षक दल के उपर्युक्त सदस्यों ने चोट के संबंध में बतलाया टैंपू को छोड़कर भागते समय पहाड़ में पत्थरों से टकराकर गिरने पड़ने के कारण इनको चोट लगी है."
पुलिस यहां पर घायलों का वर्जन नहीं लिखती है. और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज देती है.
इन सारी एफआईआर से कुछ ट्रेंड निकल कर आते हैं.
नूह जिले में हरियाणा गौवंश संरक्षण एवं संवर्धन एक्ट 2015 के तहत दर्ज सभी मामलों में गौरक्षादल के लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं. पुलिस उन सभी मामलों में पुलिस गौरक्षकों की कहानी को सच मान लेती है और उसकी पुष्टि नहीं करती.
गौरक्षादल के लोग जिसे आरोपी बताते हैं पुलिस उनको बिना जांच पड़ताल के आरोपी मान लेती है. बिना इस बात का पड़ताल किए आरोपियों का कोई पुराना रिकॉर्ड है या नहीं.
गौरक्षादल के लोग लगभग हर वारदात में लोगों से मारपीट करते हैं लेकिन पुलिस उन चोटों की पड़ताल करने की जरूरत नहीं समझती.
गौरक्षक अक्सर खुद ही छापा मारते हैं, पूछताछ करते हैं या फिर पुलिस के साथ छापा मारते हैं.
हरियाणा के मेवात इलाके में पुलिस ने धड़ल्ले से इस काम को छूट दे रखी है, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देश का उस पर कोई असर नहीं दिखता है.
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