हरियाणा में एक 'सीवरमैन'
Report

हरियाणा में ‘सीवरमैन’ गटरों में उतर कर गंदगी साफ करने को मजबूर

पिछले साल सितंबर में, 32 वर्षीय रवि हरियाणा के रोहतक जिले में जींद रोड के एक मैनहोल में उतरा. राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग में एक ठेकेदार द्वारा रखे गए रवि को एक सीवर लाइन को खोलने का काम सौंपा गया था.

रवि ये करना नहीं चाहता था. उसके पास कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं था और उसने केवल अंडरवियर पहना हुआ था.

रवि ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “ऊपर के अधिकारियों ने कहा कि लाइन को साफ करना होगा. उन्होंने कहा, “हमें परवाह नहीं कि तुम ये कैसे करोगे, चाहे अंदर से हो या बाहर से. लेकिन रुकावट दिन खत्म होने तक साफ हो जानी चाहिए. और फिर वे चले गए."

इसके बाद मौके पर मौजूद एक जूनियर इंजीनियर ने उस पर सीवर लाइन से ब्लॉकेज हटाने के लिए दबाव डाला. रवि ने बताया, "शुरुआत में तो मैंने विरोध किया और कहा कि मैनहोल के अंदर जाने के लिए मेरे पास कोई सुरक्षा उपकरण नहीं है. लेकिन उसने जोर दिया. उनका कहना था कि यह गहरा नहीं है. मेरे पास अपने परिवार की खातिर अंदर उतरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.”

उन्होंने कहा, "लेकिन फिर, यह घटना हो गई."

मैनहोल के अंदर जहरीली गैस सूंघने से रवि बेहोश हो गए. आसपास के चार लोगों ने उन्हें बाहर निकाला और अस्पताल ले गए. वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं - वह मुश्किल से एक आंख से ही देख पाते हैं.

इसके बावजूद भी, रवि भाग्यशाली हैं. पिछले साल, पूरे भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 48 लोगों की मौत हो गई. इनमें से 13 मौतें हरियाणा में हुई थीं, हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट की थी कि यह संख्या आधिकारिक रिकॉर्ड से काफी ज्यादा हो सकती है.

और इन मौतों को हाथ से मैला ढोने से होने वाली मौतों के रूप में नहीं गिना जाता है, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है. इन्हें "सीवर और सेप्टिक टैंक की जोखिम भरी सफाई करते समय दुर्घटनाओं" के कारण होने वाली मौतों के रूप में माना जाता है, जबकि मैला ढोने में सूखे शौचालयों से मानव मल की सफाई शामिल है.

लेकिन हरियाणा के दर्जनों मजदूरों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वे मानते हैं उनका काम हाथ से मैला ढोना है - वे हाथ से गंदगी साफ करने के लिए बिना सुरक्षा उपकरणों के ही मैनहोल व टैंकों में उतर जाते हैं.

यह ध्यान देने वाली बात है कि हरियाणा में सीवर की सफाई करने वालों में से अधिकांश लोग वाल्मीकि समुदाय से हैं, जो एक दलित उप-जाति है. हिसार के बरवाला ब्लॉक में सर्व कर्मचारी संघ के प्रमुख सुरेश कुमार ने कहा, "वे आर्थिक रूप से कमजोर, सामाजिक रूप से हाशिए पर और सही में पिछड़े हुए हैं. यही कारण है कि उनसे गटर साफ करवाया जाता है."

सुरेश ने यह भी कहा कि आने वाली पीढ़ियों को भी इसी काम में धकेल दिया जाता है.

उन्होंने कहा, "सीवर में काम ऐसे होता है कि दुर्गंध से छुटकारा पाने के लिए, सब कुछ भुलाने के लिए कर्मचारी बहुत पीते हैं. फिर सेहत से जुड़ी परेशानियां भी हैं. अंत में उनके बच्चों की शिक्षा और देखभाल के लिए कोई पैसा नहीं बचता है. शिक्षा न होने और खाली पेट रहने की वजह से ये बच्चे भी जिंदा रहने के लिए उसी काम में लग जाते हैं, जिससे यह समुदाय के लिए एक दुष्चक्र बन जाता है.”

हरियाणा में, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग द्वारा संभाली जाने वाली सीवर लाइनें केवल कस्बों और शहरों के ही काम आती हैं. विशाल ग्रामीण आबादी सीवेज के भंडारण और उपचार के लिए सेप्टिक टैंकों पर निर्भर हैं. फरीदाबाद जैसे विकसित जिलों में पूरे जिले का केवल एक चौथाई इलाका ही शहरी है, जबकि रोहतक जिले में कस्बों या शहर का इलाका जिले के कुल क्षेत्रफल का बस 10वां हिस्सा ही है.

इतना ही नहीं, शहर भी पूरी तरह से सीवर लाइनों से नहीं जुड़े हैं. उदाहरण के लिए, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा किए गए 2020 के एक अध्ययन के अनुसार फरीदाबाद शहर में सीवर लाइनों का 635 किलोमीटर का नेटवर्क है, जो कुल आबादी के 30 प्रतिशत के काम आता है. बाकी की आबादी सेप्टिक टैंक जैसी ऑनसाइट रोकथाम प्रणालियों की एक हाइब्रिड प्रणाली का इस्तेमाल करती है.

एक बड़ी आबादी निजी सेप्टिक टैंकों का उपयोग करती है, जो पीएचई विभाग के अंतर्गत नहीं आते हैं. इन्हें साफ करने का काम निजी क्षेत्र पर आता है और सरकार इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है. जवाबदेही की यह कमी पूरे देश में आम है.

‘इंसान और मशीन को साथ काम करना होगा’

हाइड्रोजन सल्फाइड, जिसे आमतौर पर "सीवर गैस" के रूप में जाना जाता है, की वजह से रवि की देखने की क्षमता प्रभावित हुई थी. यह आंखों, त्वचा और सांस लेने की नली को उद्वेलित करता है, और मितली, बदहवासी, ऐंठन और बेहोशी पैदा कर सकता है.

रोहतक जिले में सफाई कर्मचारी संजय के पास जहरीले धुएं से बचने की तरकीब है.

उन्होंने बताया, "हम मैनहोल के ढक्कन को हटा देते हैं और इसे पूरे दिन के लिए खुला रखते हैं ताकि गैस खुली हवा में मिल जाए, उसके बाद कोई समस्या नहीं रहती." दिन के अंत में, उन्होंने सीवर लाइनों के किसी भी अवशेष से छुटकारा पाने के लिए "गर्म पानी और डेटॉल साबुन" से नहाने का सुझाव दिया.

संजय 16 साल से सफाई कर्मचारी हैं. वे मैनहोल में रेंगते हुए बाल्टी जैसी सीवर सफाई मशीनों के हॉपर ठीक करते हैं, जो सीवर लाइनों से गाद साफ करती हैं. उन्होंने कहा कि हॉपर को केवल हाथ से ही ठीक किया जा सकता है, जिसका मतलब है कि किसी को मैनहोल में उतरना ही पड़ेगा - भले ही यह तकनीकी रूप से मशीन के जरिये सफाई प्रक्रिया का हिस्सा है.

9 फरवरी को जब न्यूज़लॉन्ड्री ने संजय से जेपी कॉलोनी में मुलाकात की, तो वह कीचड़ में सने मैनहोल से बस निकले ही थे. उन्होंने निकर, टी-शर्ट, सिर पर एक पॉलीथिन बैग और एक सेफ्टी बेल्ट पहन रखी थी, जो उन्हें मैनहोल के ऊपर से बांधे हुए थी. उनके बस यही "सुरक्षा उपकरण" थे.

सफाई कर्मचारियों के काम की देखरेख करने वाले पर्यवेक्षक विक्की भंडारी समझाते हैं, “मशीन और आदमी को सीवर में गाद को साफ करने के लिए एक साथ काम करना पड़ता है. संजय को हॉपर ठीक करने के लिए नीचे जाना होगा और उसमें से एक तार गुजारना होगा. मशीन तभी काम करेगी.”

विक्की और संजय को उसी ठेकेदार ने काम पर रखा है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग के लिए बाल्टी नुमा मशीन संचालित करता है, जो हरियाणा में सीवर लाइनों के रखरखाव और सफाई के लिए जिम्मेदार है. विभाग के पास दो जेटिंग मशीन, एक सुपर-सकर मशीन और तीन अपनी बकेट (बाल्टी) मशीन भी हैं. इसके अतिरिक्त विभाग 176 "सीवरमैन" को रोजगार देता है - यह संजय जैसे लोगों के लिए हरियाणा में एक अनौपचारिक पदनाम है, जो रोहतक के 560 किलोमीटर के सीवर लाइनों और 18,666 मैनहोलों को साफ करते हैं.

रोहतक में एक जेटिंग मशीन.
रोहतक में एक सकिंग मशीन.

इनमें से कुछ "सीवरमैन" नियमित कर्मचारी हैं. बाकी हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत ठेके पर रखे गए श्रमिक हैं. यह निगम, 2021 में "हरियाणा में सभी सरकारी संस्थाओं" को ठेके पर जनशक्ति प्रदान करने के लिए स्थापित की गई एक योजना है. इसने सरकारी विभागों के ठेकेदारों को आउटसोर्सिंग के ज़रिये जरूरत के हिसाब से कामगार रखने के पहले के चलन को बदल दिया. ठेकेदारों द्वारा काम पर रखे गए श्रमिकों को नई योजना के तहत लाया गया और भविष्य निधि और ईएसआई जैसे लाभ दिए गए.

लेकिन हरियाणा के "सीवरमैन" का कहना है कि इस योजना ने "छोटे ठेकेदार को बड़े ठेकेदार" से बदल दिया है.

लगभग 30 सालों से हिसार में एक सफाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत सोनू ने कहा, "हम अभी भी ठेके पर हैं. बस इतना फर्क है कि अब हमारा पीएफ कट जाता है. हमें नियमित कर्मचारियों जितना अधिक वेतन नहीं मिलता और न ही हमें अपने काम को करने के लिए सुरक्षा उपकरण मिलते हैं."

सोनू ने कहा कि उन्होंने मैनहोल में उतरना "पूरी तरह से बंद" कर दिया है, इसके बजाय वे "उसे ऊपर से साफ करने" की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "यूनियन भी कड़ी नजर रखती हैं और इस तरह की घटनाओं को यथासंभव रोकने की कोशिश करती हैं", उनके अनुसार हिसार में हर श्रमिक पूरी कोशिश करता है कि मैनहोल में न उतरना पड़े.

लेकिन यह हमेशा संभव नहीं होता है.

हिसार जिले में प्रतिदिन 85,000 घरों द्वारा उत्पन्न होने वाली लगभग 70 एमएलडी सीवेज को साफ करने के लिए एक सुपर-सकर मशीन, तीन जेटिंग मशीन, तीन बाल्टी मशीन और तीन रोबोट हैं. हिसार के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग के कार्यकारी अभियंता एसके त्यागी के अनुसार, वे हिसार शहर में सीवेज लाइनों को बनाए रखने और साफ करने के लिए प्रतिमाह 30 से 40 लाख रुपए खर्च करते हैं.

हालांकि यह प्रक्रिया कागजों पर यंत्रीकृत है, लेकिन मशीनें हमेशा संकरी गलियों में प्रवेश नहीं कर पातीं, जहां श्रमिकों को हाथ से मैनहोल साफ करने के लिए लगाया जाता है. त्यागी ने कहा कि बाल्टी मशीनों को लगाने ने इस मुद्दे को हल कर दिया है, और कर्मचारी "केवल आपात स्थिति होने पर" मैनहोल में प्रवेश करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि श्रमिकों को "सभी सुरक्षा उपकरण जैसे मास्क, सुरक्षा बेल्ट, जूते और हाथों के दस्ताने" दिए जाते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने हिसार के कम से कम 10 सफाई कर्मचारियों से पूछा कि क्या उन्हें यह उपकरण उपलब्ध कराया गया है. उनमें से अधिकतर ने कहा कि उन्हें काम करने के लिए सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते हैं. बरवाला में कुछ सफाई कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें सुरक्षा बेल्ट, दस्ताने और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे सुरक्षा उपकरण मिलते हैं, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री इसे सत्यापित नहीं कर सका क्योंकि वे केवल सुरक्षा बेल्ट दिखाते हैं, ऑक्सीजन सिलेंडर है लेकिन उन्हें नहीं पता कि वो कहां है.

गौरतलब है कि पिछले साल अप्रैल में हिसार के बुढा खेड़ा गांव में सफाई टैंक में घुसने से चार लोगों की मौत हो गई थी. उनमें से दो सफाई ऐसे कर्मचारी थे जो कभी बाहर नहीं आए; अन्य दो उन्हें बचाने के लिए टैंक में घुसे थे लेकिन उनकी भी मौत हो गई थी.

'खुला रहस्य' है कि सीवरमैन मैनहोल में उतरते हैं

श्रमिकों को मैनहोल में उतरने की अनुमति नहीं देने को लेकर यूनियनें सख्त हो सकती हैं, लेकिन सर्व कर्मचारी संघ के सुरेश कुमार ने आरोप लगाया कि ठेकेदार "मजदूरों को बाहर से लाते हैं और उन्हें मैनहोल के अंदर उतारते हैं".

इस बारे में पूछे जाने पर त्यागी ने कहा कि अगर धरातल पर ऐसी चीजें होती हैं तो इससे जुड़े लोगों को विभाग को सूचित करना चाहिए.

उन्होंने कहा, "हमारे पास फील्ड में जूनियर इंजीनियरों और पर्यवेक्षकों की चेन-ऑफ़-कमांड है, और हम कार्यालय में हैं. टोल-फ्री नंबर भी हैं, जिनके जरिए कोई भी हमें ऐसी चीजों के बारे में सूचित कर सकता है. किसी को मैनहोल में घुसने के लिए मजबूर करना गैरकानूनी है और अगर हमें ऐसी घटनाओं के बारे में पता चलता है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”

उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को यह भी बताया कि वह अब से "ज़्यादा सतर्क" भी रहेंगे.

ऐसे ही आरोप फरीदाबाद में भी लगे थे. फरीदाबाद में सीवरमैन यूनियन के प्रमुख अनूप शांडिल्य ने कहा कि मैनहोल में प्रवेश करने के लिए ठेकेदार "बाहर के श्रमिकों को काम पर लगाते हैं. इससे मौत हो सकती है क्योंकि उनमें से ज्यादातर शहर के सीवेज सिस्टम से अपरिचित हैं, और उनके पास इसे साफ करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं है.”

फरीदाबाद में, नगर निगम सीवर लाइनों के 635 किलोमीटर के नेटवर्क की सफाई का प्रभारी है. अधीक्षक अभियंता ओमबीर सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि निगम ने, सफाई करने की मशीनें रखने वाले सात या आठ ठेकेदारों को काम आउटसोर्स किया था, क्योंकि निगम के पास "पर्याप्त संख्या में मशीनें और कर्मचारी नहीं हैं".

सिंह के अनुसार, फरीदाबाद नगर निगम के पास चार जेटिंग मशीनें और दो सुपर-सकर मशीनें हैं, लेकिन वे "पुरानी" हैं. सीवरमैन यूनियन के सदस्यों ने कहा कि मशीनें "ठीक से काम नहीं करती हैं". इसलिए नगर निगम ठेकेदारों को किराए पर लेने के लिए सालाना 18 करोड़ रुपए खर्च करता है. यह छोटी सीवर लाइनों की सफाई पर किया गया खर्च है और इसमें बड़ी लाइनों की सफाई पर किया गया खर्च शामिल नहीं है.

लेकिन ठेकेदारों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सीवर लाइनों को खुद अंदर घुसे बिना साफ करना "संभव नहीं" था.

उन्होंने कहा, "यह एक खुला रहस्य है लेकिन कोई भी इसे रिकॉर्ड पर नहीं कहेगा. उदाहरण के लिए, हम 20 फीट गहरी सीवर लाइन को साफ करने के लिए जेटिंग मशीन का उपयोग करते हैं. अगर जेट फंस जाए, तो आदमी को नीचे उतरकर उसे ठीक करना पड़ता है. एक व्यक्ति के बिना ये संभव नहीं है.”

इस रिपोर्टर को मैनहोल में उतरते हुए एक कर्मचारी की तस्वीर दिखाते हुए ठेकेदार ने कहा कि वह दस्ताने, सुरक्षा बेल्ट और मास्क जैसे सुरक्षा उपकरण प्रदान करते हैं.

हमने उनसे पूछा कि फोटो में दिख रहे कर्मचारी के पास मास्क, सेफ्टी बेल्ट और अंडरवियर के अलावा प्रोटेक्टिव गियर क्यों नहीं है.

ठेकेदार ने कहा, 'सीवर साफ करने वाले ऐसे ही होते हैं. मैंने अपने तीन साल के अनुभव में उन्हें कभी त्वचा के रोग से पीड़ित नहीं देखा.”

उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को तस्वीर की एक प्रति यह कहते हुए भेजने से मना कर दिया कि इससे उनके व्यापार को "नुकसान" होगा.

क्या मीडिया सत्ता या कॉर्पोरेट हितों के बजाय जनता के हित में काम कर सकता है? बिल्कुल कर सकता है, लेकिन तभी जब वह धन के लिए सत्ता या कॉरपोरेट स्रोतों के बजाय जनता पर निर्भर हो. इसका अर्थ है कि आपको खड़े होना पड़ेगा और खबरों को आज़ाद रखने के लिए थोड़ा खर्च करना होगा. सब्सक्राइब करें.

Also Read: क्या हरियाणा सरकार सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई मौतों की कम गिनती कर रही है?

Also Read: एनडीएमसी दिल्ली के करीब 35 सफाई कर्मचारी नौकरी से क्यों हाथ धो बैठे?