Media
आईआईएमसी से दो छात्र निष्कासित तो एक को छात्रावास छोड़ने का आदेश, क्या है पूरा विवाद
दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के दो छात्रों का नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है. एक अन्य छात्रा चेतना चौधरी को हॉस्टल से निकाल दिया गया है, तो वहीं छात्र मुकेश को चेतावनी दी गई है कि “भविष्य में आप अनुशासन के मामले में समुचित आचरण रखें.”
दरअसल ये छात्र-छात्राएं अपनी कुछ मांगों को लेकर कैंपस में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे, जिसके खिलाफ आईआईएमसी प्रशासन ने यह कार्रवाई की है. इस मुद्दे पर हमने यहां पढ़ने वाले कुछ छात्रों से बात की. निष्कासित छात्रा भावना ने हमें बताया, “बीते वर्ष 26 दिसंबर को आईआईएमसी प्रशासन ने सुरक्षाकर्मियों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति करने वाली नई एजेंसी आने के कारण नए सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति की जाएगी. 31 दिसंबर को सुरक्षाकर्मियों को कैंपस छोड़ना होगा. इस मसले पर छात्र आशुतोष ने एक खबर लिखी जिसे वे आईआईएमसी के लैब जर्नल में प्रकाशित करवाना चाहते थे लेकिन प्रशासन ने नियमों का हवाला देकर उनकी खबर प्रकाशित नहीं की.”
भावना बताती हैं, “इसे लेकर जब आशुतोष ने क्लास में सवाल किया कि मेरी खबर को प्रकाशित क्यों नहीं करवाया गया, तो कुछ छात्रों ने विभागाध्यक्ष राकेश उपाध्याय के संरक्षण में आशुतोष व उनके साथियों से कक्षा में गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की और उन्हें माओवादी कहा.”
इसके बाद 3 फरवरी को आशुतोष व उनके तीन अन्य साथी भावना, मुकेश और चेतना उन्हें परेशान करने वाले छात्रों पर कार्रवाई की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए. यह प्रदर्शन 12 फरवरी तक जारी रहा. धरने पर बैठने के बाद उन्होंने प्रशासन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी अन्य मांगे भी जोड़ दीं. जैसे कि - कोई छात्र लैब जर्नल में आईआईएमसी से संबंधित खबरें नहीं लिखेगा, प्रशासन का यह फैसला तत्काल वापस हो; हिंदी पत्रकारिता विभाग के मुद्दे पर समिति रिपोर्ट दे; हॉस्टल की मेस के खाने में सुधार हो; लाइब्रेरी को सुबह छह बजे से लेकर रात 12 बजे तक खोला जाए इत्यादि. पत्र में कुल 11 मांगें कॉलेज प्रशासन के सामने रखी गई थीं.
इस बीच प्रशासन ने भावना सिकरवार व आशुतोष कुमार का नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया.
प्रशासन का कहना था, “संस्थान की छात्राओं और महिला कर्मचारियों से प्राप्त कुछ शिकायतों की सुनवाई के लिए गठित विशेष जांच समिति द्वारा दो-दो बार बुलाए जाने के बावजूद आप अपना पक्ष रखने के लिए समिति के समक्ष उपस्थित नहीं हो सके. समिति ने अपने पास उपलब्ध तथ्यों व उपस्थित हुए व्यक्तियों के बयानों के आधार पर आपको इन मामलों में भी दोषी पाया है.”
“अनुशासन समिति की संस्तुति के अनुसार संस्थान में आपका नामांकन तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाता है. साथ ही समिति ने निर्णय दिया है कि भविष्य में आप भारतीय जनसंचार संस्थान के किसी भी परिसर, किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पात्र नहीं होंगे.”
भावना अपनी क्लास की सूरतेहाल बताती हैं, “कक्षा में हमारे विभागाध्यक्ष राकेश उपाध्याय सर इस तरीके की बातें करते हैं कि सिद्दीकी कप्पन आतंकवादी है, हाथों को हिलाने से कोरोना ठीक हो जाता है, जो इतिहास आपको पढ़ाया गया है वो गलत है, ऐसी बातें होती हैं. हम इन सभी चीजों को लेकर क्लास में सवाल करते थे तो क्लास को दो भागों में बांट दिया. कक्षा में हमें माओवादी भी बुलवाया गया.”
वह आगे कहती हैं, “इस मामले को लेकर हमने प्रशासन को एक पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की लेकिन प्रशासन ने हमारी मांगों को स्वीकार करने से मना कर दिया. उसके बाद हम प्रोटेस्ट पर बैठे. आईआईएमसी के डायरेक्टर जनरल ने आश्वासन दिया कि इसको लेकर हम जांच कराएंगे. आईआईएमसी का कोड ऑफ कंडक्ट कहता है कि 15 दिन के अंदर रिपोर्ट दे दी जाएगी, लेकिन कोई जांच नहीं हुई और न ही कोई रिपोर्ट दी गई.”
भावना का कहना है कि पांच लोगों की अनुशासनात्मक कमेटी गठित होने के बाद वे लोग धरने से उठ गए. लेकिन जब उन्हें कमेटी ने बात करने के लिए बुलाया तो उन्हें फोन बंद करके बैठने के लिए कहा गया, जिससे इन सभी छात्रों ने इंकार कर दिया. भावना कहती हैं कि कमेटी के सदस्य उनके फोन चालू रखकर बात करने पर राज़ी नहीं थे, जिस वजह से ये चारों छात्र मीटिंग छोड़कर बाहर आ गए. बाद में प्रशासन ने चारों छात्रों से अलग-अलग बात की.
भावना ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि धरना देते वक्त भी उन्हें काफी परेशान किया गया था. वे कहती हैं, “जब हम प्रोटेस्ट के लिए बैठे थे तो कुछ लोगों ने हमारे सामने एक कैमरा रख दिया और रिकॉर्डिंग करने लगे. जब हमने उनसे पूछा कि कैमरा क्यों रखा है, तो वो जवाब दिए बिना हंसने लगे. मुझे नहीं पता कि वो लोग कौन थे. फिर मैंने अन्त में कैमरे को थोड़ा धक्का दिया. 12 फरवरी को इस मामले की हमारी सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर सोशल मीडिया पर हेट क्रिएट किया गया. पुलिस ने हमें धमकाया. बाहर से भी लोग आकर हमें डरा धमका रहे थे. उसके बाद हम प्रोटेस्ट से उठ गए.”
भावना का कहना है कि वे लोग अभी तक ये भी जानते कि कमेटी ने उनके ऊपर क्या आरोप लगाए हैं, साथ ही उनकी यह भी इच्छा है कि इस कानूनी कार्रवाई हो. वे कहती हैं, “जिस तरीके से इन लोगों ने हमें हटाया है, यह एक गैर कानूनी तरीका है. आरोप आप चार लोगों पर लगा रहे हो हटा केवल दो लोगों को ही रहे हो.”
हमने इस पूरे घटनाक्रम पर आशुतोष से भी बात करने की कोशिश की पर उन्होंने ये कहते हुए बात करने से मना कर दिया कि “मैं अभी बात करने की स्थिति में नहीं हूं. अगर बात करने की स्थिति में होता तो मैं जरूर करता.”
प्रशासन का पक्ष
इस पूरे प्रकरण पर हमने आईआईएमसी के डायरेक्टर जनरल संजय द्विवेदी से भी बात की. उनका कहना है, “वो लोग जो कर रहे थे वो ज़िद्द थी. मांगें पूरी की जाती हैं, जिद्द नहीं. अब सारा कैंपस पढ़ना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है. चार लोग कैंपस को बंद करना चाहते हैं तो ऐसा नहीं होगा. हमने इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की है.”
दोनों पक्षों से जानकारी मिलने के बाद हमने ये पाया कि दोनों पक्षों की बातों में असमानताएं हैं.
संस्थान ने अपने नोटिस में कहा है कि विशेष जांच समिति द्वारा छात्रों को दो-दो बार बुलाए जाने के बावजूद वे अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित नहीं हुए. वहीं दूसरी ओर भावना का कहना है कि हम चारों को दोबारा अलग-अलग बुलाया गया था, लेकिन उसके बाद हमें कोई रिपोर्ट नहीं मिली.
इस सब के बीच एक अनुत्तरित सवाल ये भी है कि प्रशासन ने चारों छात्रों पर अलग-अलग कार्रवाई क्यों की.
Also Read
-
TV Newsance 315: Amit Shah reveals why PM Modi is great. Truly non-biological?
-
Shops shut, at least 50 lose jobs, but cops silent on Indore BJP leader’s ultimatum on Muslim workers
-
Delays, poor crowd control: How the Karur tragedy unfolded
-
Vijay’s Karur rally tragedy leaves at least 39 dead, TVK functionaries booked
-
इथेनॉल विवाद: गडकरी के बेटों ने की कमाई या बीजेपी की अंदरूनी जंग?