Saransh
मेरी तलाश थी शोहरत और मक़बूलियत, जबकि सफ़दर को जुनून था बदलाव लाने का: नसीरुद्दीन शाह
1973, में एक नुक्कड़ नाटक समूह का जन्म हुआ, नाम था ‘जनम’, यानी जन नाट्य मंच. और इस मंच की शुरुआत की थी मज़दूर आंदोलनों के सांस्कृतिक संबल माने जाने वाले नाटककार, लेखक और शिक्षाविद सफ़दर हाशमी ने. सफ़दर हाशमी को भारत में नुक्कड़ नाटक विधा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है. अपनी पूरी ज़िन्दगी में 24 नाटकों का 4000 से भी ज़्यादा बार मंचन करने वाले सफ़दर हाशमी को कभी किसी ख़ास मंच की ज़रूरत नहीं रही. सड़कें, मज़दूरों की बस्तियां और कारखाने उनका मंच हुआ करते थे और मज़दूर वर्ग ही उनका दर्शक.
सारांश के इस अंक में हम जानेंगे कि अपने नाटकों से सरकार और व्यवस्था की नींद उड़ा देने वाले सफ़दर हाशमी का कला के इतिहास में क्या स्थान है, नुक्कड़ नाटक और राजनीति का क्या संबंध है? और आज नुक्कड़ नाटकों की क्या प्रासंगिकता है?
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