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‘आप’ के लिए 2022 काफी अच्छा रहा लेकिन 2023 चुनौतियों भरा होगा?

गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के दो दिन बाद 1 दिसंबर 2022 को आम आदमी पार्टी के एक नेता ने अपनी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन को सार रूप में हमारे सामने रखा.

अहमदाबाद स्थित एक होटल में नाश्ता करते हुए उन्होंने कहा, "पहला तूफान दशकों पुराने पेड़ को कुछ हद तक नुकसान पहुंचाएगा और दूसरा तूफान इसे जड़ से उखाड़ फेंकेगा."

यह "पहला तूफान" गुजरात में आप का पहला पूर्ण चुनावी मुकाबला था. बेशक, जिन चुनाव परिणामों में भाजपा को लगातार सातवीं बार सत्ता में लौटने का मौका मिला है- वे परिणाम न तो आप के कल्याणकारी मुद्दों का सीधा समर्थन थे और न ही यह कहा जा सकता है कि उन मुद्दों को सिरे से खारिज कर दिया गया था. सच्चाई इन दो ध्रुवों के बीच में कहीं है.

साल 2022 आप के लिए काफी दिलचस्प रहा. एक ओर पंजाब में बहुत बड़ी जीत मिली, गोवा में दो विधायक, दिल्ली नगर निगम के चुनावों में जीत, और गुजरात में पांच विधानसभा सीटों पर जीत. यह सब कुछ पार्टी के 10 साल पुराने राजनीतिक इतिहास में 2022 को एक खास साल बनाते हैं.

“हमारे लिए सबसे यादगार साल 2013 था जब हमने दिल्ली में अपनी पहली सरकार बनाई थी. लेकिन इसके ठीक बाद 2022 की बारी आती है क्योंकि इसी साल हमने पंजाब और दिल्ली नगर निगम के चुनाव जीते हैं.” आप सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा में कहा, “बीजेपी की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में 13 फीसदी वोट शेयर और पांच सीटें हासिल करना हमारे लिए उत्साहजनक है.”

आप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने भी ऐसी ही बातें कहीं. उन्होंने कहा, "2015 के बाद शायद 2022 का साल हमारे लिए सबसे अच्छा साल रहा है, जब हमने दिल्ली की कुल 70 सीटों में से रिकॉर्ड 67 सीटें जीती थीं."

पार्टी वर्तमान में पंजाब और दिल्ली में सत्ता में है साथ ही देश की राजधानी में इसका अपना मेयर बनने की भी संभावना है. छत्तीसगढ़, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भी वार्ड स्तर पर इस पार्टी के प्रतिनिधि हैं. अक्टूबर में इसके निर्वाचित प्रतिनिधियों में से सभी 1,446 सदस्य एक राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए दिल्ली में इकट्ठा हुए थे. यह अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सम्मेलन था.

2022 को एक सुनहरे मोड़ पर पीछे छोड़ते हुए साल के अंत में आप नेताओं ने न्यूज़लॉन्ड्री को यह भी बताया कि 2024 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होगा. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी का अल्पकालिक लक्ष्य भाजपा के सामने प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में खड़ी कांग्रेस की जगह हथियाना है.

बेशक, इन बुलंद महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, आप को सबसे पहले कई चुभने वाले सवालों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी.

स्वास्थ्य, शिक्षा और 'मुफ्त'

आप का मौजूदा चुनावी आख्यान मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने पर आधारित है. लेकिन क्या इससे दूसरे राज्यों में भी जीत हासिल होगी? हालांकि लोग सिर्फ विकास और कल्याणकारी नीतियों के आधार पर वोट देते तो कई पार्टियां सत्ता में बनी रहतीं.

आप के नेताओं का तर्क है कि बुनियादी सुविधाएं हर मतदाता को प्रभावित करती हैं और इसलिए ये मुद्दे आगामी चुनावों में आप के चुनावी आख्यान की धुरी बने रहेंगे.

आप के गुजरात प्रदेश के अध्यक्ष गोपाल इटालिया कहीं ज्यादा खुलकर बोलते रहे हैं. उन्होंने कहा, “हम शिक्षा, स्वास्थ्य और मुफ्त बिजली के अपने आख्यान से पीछे नहीं हटेंगे. हम नहीं चाहते कि हम सांप्रदायिक या जातिवादी राजनीति में शामिल हों. भले ही इसका मतलब लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहना हो. हम लोगों के बुनियादी मुद्दों से कभी समझौता नहीं करेंगे."

संजय सिंह ने कहा, "हर व्यक्ति गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य चाहता है. और हमने दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम या जाति पर सदियों पुरानी और निचले स्तर की बहसों में पड़े बिना यह सब सुनिश्चित किया है. हम एक मात्र ऐसी पार्टी हैं जो इन मुद्दों पर बात करती है और आने वाले चुनावों में भी करती रहेगी. इस मामले में भाजपा घाटे में है क्योंकि उसे इस समस्या का हल निकालना होगा कि वह इन मुद्दों पर हमारा मुकाबला कैसे करे.

आप प्रवक्ता अक्षय मराठे ने कहा कि गुजरात चुनाव के दौरान 'शिक्षा के दिल्ली मॉडल' पर विस्तार से चर्चा हुई थी. उन्होंने आगे कहा, "लोगों ने सोशल मीडिया या टीवी पर विश्व स्तरीय स्कूल रूम देखे हैं. तो, इसकी एक विजुअल वैल्यू भी है. लोग अपने क्षेत्रों में भी यही चाहते थे. और इसीलिए हमें 40 लाख वोट मिले.”

सिंह ने यह भी कहा कि आप 'गरीबों के लिए काम करती है' जबकि भाजपा कुछ चुनिंदा लोगों का 'पक्ष' लेती है. उन्होंने पार्टी के "मुफ्त उपहारों" का भी बचाव किया - जो कि अब एक हॉट-बटन टॉपिक बन चुका है और भाजपा द्वारा रेवड़ी संस्कृति के रूप में इसका उपहास किया जाता है. क्रय शक्ति बढ़ने से लोग अधिक खरीदारी कर सकेंगे. इसलिए, अप्रत्यक्ष रूप से बाजार को भी इसका लाभ मिलेगा.”

जब यह रिपोर्टर चुनाव के दौरान गुजरात में था, तो किसानों और ऑटो चालकों और यहां तक कि आप कार्यकर्ताओं ने भी एक ही सवाल पूछा, "शिक्षा और स्वास्थ्य के दिल्ली मॉडल के पीछे की सच्चाई क्या है?" वे उत्सुक थे, लेकिन ये उत्सुकता वोट में तब्दील नहीं हो पायी. ऐसे जिज्ञासु दर्शकों को आप ने अपने समर्थन आधार में बदल देने की किस तरह की योजना बनायी है?

आप के एक नेता ने कहा, "हो सकता है कि हर राज्य में एक विशाल 24x7 संगठनात्मक सेटअप संभव न हो. लेकिन यदि लाभार्थी प्रचारक बन जाते हैं तो परिवर्तन के लक्ष्य को जल्द ही प्राप्त किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, पंजाब में हमारे पास बहुत बड़ी सांगठनिक शक्ति नहीं थी. लेकिन हम जीत गए क्योंकि सरकारी लाभार्थियों ने हमारे लिए प्रचार किया.”

भारद्वाज ने कहा कि पार्टी के विस्तार में एकमात्र चुनौती संसाधनों की कमी है. जबकि सिंह ने कहा कि मतदाता भाजपा की बजाय आप पर भरोसा करते हैं क्योंकि भाजपा वास्तव में एक झूठ बोलने वाली पार्टी "भारतीय झूठा पार्टी" है. "लोग हम पर भरोसा करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि हम अपने वादें पूरे करते हैं."

अन्य मुद्दों पर एक सोची-समझी चुप्पी

लेकिन अन्य मुद्दों पर आप की चुप्पी जैसे - बिलकीस बानो मामले के दोषियों की रिहाई, दिल्ली-दंगे, दिल्ली में अतिक्रमण विरोधी अभियान, पत्रकारों और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी आदि का भी ठीक-ठीक हिसाब रखा जाता है. रोहिंग्याओं के मामले पर इस पार्टी का रुख, अयोध्या की मुफ्त यात्रा का वादा, भारतीय मुद्रा के नोटों की बेहतरी के लिए हिंदू देवताओं वाले नोट चलाने का आह्वान, और केजरीवाल द्वारा हनुमान चालीसा का पाठ, ये सभी पार्टी को "नरम हिंदुत्व" का चोला पहना देते हैं.

भारद्वाज ने दावा किया कि पार्टी "भाजपा द्वारा बिछाए गए जाल को समझती है" और बिलकिस बानो मामले के दोषियों की रिहाई पर होने वाली बहस में यह जानबूझकर शामिल नहीं हुई. उन्होंने कहा, "चुनाव के दौरान पीड़िता के बारे में कुछ भी कहने से आखिरकार भाजपा को ही मदद मिलेगी, महिला को नहीं."

मराठे ने इस ओर इशारा करते हुए कि गोपाल इटालिया ने दोषियों की रिहाई की "कड़ी निंदा" की थी, यह भी कहा कि पार्टी बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई पर चुप नहीं थी.

लेकिन दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक इंटरव्यू के दौरान इस सवाल को यह कहते हुए टाल दिया कि पार्टी का ध्यान विकास पर है. इसके अलावा मई में दिल्ली के ओखला में दिल्ली नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान जब आप विधायक अमानतुल्ला खान की गिरफ्तारी हुई तो केजरीवाल और दूसरे नेताओं ने इस पर एक शब्द भी नहीं कहा.

इसके अलावा आप ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण (हालांकि काफी समय के बाद इस पर बोला था), और एक समान नागरिक संहिता के लागू होने का समर्थन किया था. इसी पृष्ठभूमि में, एमसीडी चुनाव परिणामों से ऐसे संकेत मिले कि दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनावों में आप का समर्थन करने के बाद शायद मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की ओर लौट रहे हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या आप खुद को एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानती है, सिंह ने उन क्षेत्रीय दलों की एक सूची खोज निकाली जिन्हें भाजपा के साथ गठबंधन करने के कारण सांप्रदायिक माना जाने लगा और उस गठबंधन से बाहर निकलने के बाद धर्मनिरपेक्ष माना जाने लगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि आप सिर्फ और सिर्फ "अपने काम और सिद्धांतों के दम पर एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी" बनी हुई है.

अपनी सक्रियता के दिनों में केजरीवाल और सिसोदिया के साथ काम करने वाले एक लेखक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आप एक इंद्रधनुष बनाने की कोशिश कर रही है जिसमें मतदाताओं का एक क्रॉस-सेक्शन शामिल है. लेखक ने कहा, "यह कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने वाले दक्षिणपंथ की ओर झुकाव रखने वाले मतदाताओं को खोना नहीं चाहती है. साथ ही विवादास्पद विषयों पर एक रणनीतिक चुप्पी के मायने यह है कि यह अपने विस्तार के लिए अलग-अलग समुदायों पर निर्भर रहना चाहती है."

निगाहें, 2023 पर

18 दिसंबर को, आप को "राष्ट्रीय पार्टी" का दर्जा मिलते ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों की रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए इसकी राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद की बैठक हुई.

नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा, "यह कहना जल्दबाजी होगी कि हम किस राज्य पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. खुद को कहां नियोजित करना है, यह तय करने से पहले हम अपनी संगठनात्मक शक्ति का आकलन करेंगे." सिंह ने बताया कि चुनाव की तैयारियों के लिए राज्यसभा सांसद संदीप पाठक, जिन्हें हाल ही में आप का महासचिव (संगठन) भी नामित किया गया है, राज्य के प्रभारियों और अन्य नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं.

लेकिन क्या आप वर्तमान में चल रही भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेस की जगह ले सकती है? गोपाल इटालिया ने कहा कि यह लोगों को तय करना है. "हम सीमित संसाधनों के बूते अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे."

भारद्वाज उनसे ज्यादा आशावादी लगे. उन्होंने कहा, “कांग्रेस नहीं चाहती कि विपक्ष की जगह कोई और पार्टी ले. मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस के पास नेतृत्व या संगठनात्मक ढांचा है या फिर नरेंद्र मोदी से लड़ने की इच्छाशक्ति है."

सिंह ने अपनी बात समझाने के लिए कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र का हवाला दिया. उन्होंने दावा किया, "हर जगह, वे भाजपा को सरकार बनाने में मदद करते रहे हैं."

बेशक, आप को भी इसी तरह की आलोचना का सामना करना पड़ा है कि यह भाजपा की "बी-टीम" है क्योंकि यह अन्य दलों के वोट खा जाती है. आलोचकों ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन में भाजपा के वर्तमान दिग्गजों - किरण बेदी, वीके सिंह, बाबा रामदेव की भागीदारी और आप के 2014 के नारे "पीएम के लिए मोदी, सीएम के लिए केजरीवाल" की ओर इशारा किया है.

एक अन्य नेता का कहना है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन एक "जन आंदोलन" था जहां "हर किसी का स्वागत था". उन्होंने कहा, “उस समय ये लोग दलगत राजनीति में शामिल नहीं हुए थे. यह परिघटना बाद के सालों की है जिसमें ये लोग राजनीति में शामिल हुए. इसलिए ऐसा कहना ठीक नहीं होगा कि हम बीजेपी की बी-टीम हैं.”

आम आदमी के नाम पर लेखक अभिषेक श्रीवास्तव ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि कांग्रेस की जगह हथियाने के लिए आप की "कोई महत्वाकांक्षा नहीं है बल्कि यह तो एक पूर्व निर्धारित मार्ग है".

उन्होंने कहा, "कांग्रेस की राजनीति सहयोग की और भाजपा की राजनीति जोर-जबरदस्ती की है." “2012 में आप के राजनीति में प्रवेश के साथ ही यह अपने साथ एक नई सुधारवादी राजनीति लेकर आई. सुधार की राजनीति जोर- जबरदस्ती की राजनीति की ही पूरक है.

विचारधारा का सवाल

भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के धर्मनिरपेक्षता, नागरिक स्वतंत्रता, पूंजीवाद और धार्मिकता जैसे विषयों पर अच्छी तरह से स्थापित विचार हैं. उदाहरण के लिए, उन्हें दंगों, अभियुक्तों के घरों को ध्वस्त करने वाले बुलडोजरों, झूठे आरोपों में पत्रकारों को जेल में डाले जाने से संबंधित अपनी प्रतिक्रियाएं पूरी तरह कंठस्थ हैं.

लेकिन आप अपनी प्रतिक्रियाएं ठहरकर और मौके की नजाकत देखकर देती है.

केजरीवाल ने 18 दिसंबर को आप की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान इस विषय को स्पष्ट करने की कोशिश की.

उन्होंने घोषणा की, "हमारी विचारधारा के तीन स्तंभ हैं: कट्टर देशभक्ति, कट्टर ईमानदारी और कट्टर इंसानियत." "...दूसरे दलों का क्या? जहां एक पार्टी की विचारधारा ठगी, लोगों को गालियां देना और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना है. सारे गुंडे इसी पार्टी में पनाह लिए हुए हैं. वहीं दूसरी पार्टी की विचारधारा भ्रष्टाचार की है.”

और इस तरह उन्होंने क्रमशः भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही सार रूप में वर्णन कर दिया.

आप के एक नेता, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि मतदाता विचारधारा की परवाह नहीं करते हैं.

उन्होंने कहा, "लोगों ने हमारी विचारधारा को देखे बिना हमें सत्ता में भेजा है." उन्होंने आगे कहा, “लोगों की एक ही उम्मीद है- क्या हम चुनावी वादों को पूरा कर सकते हैं? जब तक हम ऐसा कर रहे हैं तब तक विचारधारा की बात या हम किस राजनीतिक स्पेक्ट्रम में फिट बैठते हैं - वाम, दक्षिण या मध्य - यह केवल अभिजात वर्ग और अकादमिक जगत के लोगों का ही मुद्दा हो सकता है. ऐसे टैग्स हम पर कोई असर नहीं डालते हैं.”

मराठे ने भी केजरीवाल के "तीन स्तंभ" वाले दर्शन को दोहराया.

"पश्चिमी लोकतंत्रों में, पत्रकार कभी भी विचारधारा से जुड़ी अपनी सोच को धर्म तक सीमित नहीं रखते. किसी भी विचारधारा में कल्याणकारी राजनीति, संसाधनों का आवंटन, छोटी और बड़ी कंपनियों पर लगने वाले कारों की दरों पर आपका रुख आदि शामिल होता है. “दुर्भाग्य से, भारत में विचारधारा पर बहस को धर्म के चश्मे से ही देखा जाता है. साधारण लोगों के लिए इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है. लोगों के लिए बड़ा सवाल यह है कि सत्ता में आने पर आप मुझे क्या देने जा रहे हैं? यही वह विचारधारा है जिसकी लोग परवाह करते हैं."

कभी केजरीवाल और सिसोदिया के साथ काम कर चुके एक लेखक ने कहा कि आप जैसे-जैसे अन्य राज्यों में विस्तार करने की कोशिश कर रही है वैसे-वैसे उसे असहज सवालों के लिए खुद को तैयार करते रहना होगा.

अगर दिल्ली कर्ज के संकट से जूझने लगी तो आप क्या करेंगे? क्या आप अमीरों पर भारी कर लगाएंगे? कल्याणकारी कार्य जारी रखने के लिए आपको और ज्यादा संसाधन कैसे मिलेंगे? उन्होंने आगे कहा, “अन्य राज्यों में उन्हें बुलडोजर की राजनीति, धर्मांतरण विरोधी कानून, जनसंख्या नियंत्रण बहस आदि पर स्पष्ट रूप से अपनी लाइन तय करनी पड़ सकती है. एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए, चुप्पी कोई विकल्प नहीं है. और लोग तो प्रतिक्रियाएं मांगेंगे ही.”

आप के एक अन्य नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “यदि समान नागरिक संहिता, राम मंदिर और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन करना आप को राष्ट्रवादी बनाता है, तो हमें इस टैग से कोई परेशानी नहीं है".

इस सब के बीच यह भी देखने को मिला कि अहमदाबाद में आप नेता की भविष्यवाणी सच साबित हुई. गुजरात में आप की लहर कम नहीं थी. बेशक, इसके "पहले तूफान" ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया, तो कौन जाने इसका दूसरा तूफान क्या कहर बरपायेगा?

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