Report
तेलंगाना: पानी की अधिक खपत के बावजूद धान के बाद अब ताड़ की खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की योजना
62 साल के बी.बुच्छया तेलंगाना के खम्मम जिले में पाम या ताड़ की खेती करने वाले एक किसान हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी 12 एकड़ की जमीन पर ताड़ के फलों को उतारा है. अब वह इन फलों को नजदीक के तेल प्रोसेसिंग यूनिट में बेच कर मुनाफा कमाएंगे. दूसरी तरफ इसी गांव में मोहम्मद सलीम अपनी 4 एकड़ जमीन पर धान की खेती करते हैं. दोनों किसानों की फसलों में एक समानता है, वह है दोनों फसलें पानी की अधिक खपत करती हैं.
तेलंगाना के खम्मम या दूसरे कई जिलों में बहुत से किसान अपनी जमीन का इस्तेमाल धान की खेती और ताड़ के बगानों के विस्तार के लिए कर रहे हैं. तेलंगाना सरकार ने पिछले कुछ सालों में धान का अच्छा खासा विस्तार किया और अब ताड़ के विस्तार में लग गई है. दोनों ही फसलें अत्याधिक पानी की मांग करने के कारण बदनाम रही हैं. राज्य सरकार का दावा है कि आंध्र प्रदेश से विभाजित होने के बाद इस राज्य में सिंचाई के पानी की उपलब्धता काफी बढ़ी है.
शोध और सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तेलंगाना में पारंपरिक फसलों जैसे तिलहन, दलहन आदि की बुआई में धीरे-धीरे कमी आती जा रही है, जबकि व्यावसायिक फसलों जैसे ताड़ का उत्पादन बढ़ता जा रहा है. हाल ही के वार्षिक सोसीओ इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक, 2015-16 से 2020-21 तक धान के उत्पादन में 378% तक वृद्धि दर्ज की गई. वहीं ताड़ के उत्पादन में उसी समय तीन गुना वृद्धि हुई है. तेलंगाना में ताड़ का कुल उत्पादन राज्य में 2015-16 में 75,447 मीट्रिक टन था जो 2020-21 में बाद के 2,08,826 मीट्रिक टन हो गया. यह आंकड़ें बताते हैं कि पारंपरिक फसलें जैसे मूंगफली, तिल, दाल आदि का उत्पादन समय के साथ कम होता जा रहा है और इनका कुल उत्पादन क्षेत्र भी सिकुड़ता जा रहा है.
अधिक पानी उपयोग करने वाली फसलों की ओर झुकाव
ताड़ और धान पानी के अत्यधिक उपयोग के लिए जाने जाते हैं. जहां एक वयस्क ताड़ के पेड़ को प्रतिदिन 200 से 250 लिटर पानी की जरूरत होती है इसे धान और गन्ने की अपेक्षा कम पानी की जरूरत होती है. लेकिन आने वाले दिनों में इसके अत्यधिक विस्तार से सिंचाई के पानी की उपलब्धता पर संकट आ सकता है.
इस साल 7 मार्च को राज्य सरकार ने अपने पेश किए बजट में इस साल ताड़ के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 1000 करोड़ रुपए आवंटित किए. राज्य के वित्त मंत्री टी.हरीश राव ने अपने वक्तव्य में कहा कि 2014 को जब आंध्र प्रदेश से विभाजन हुआ था और तेलंगाना का निर्माण हुआ तब राज्य में सूखे की स्थिति थी लेकिन अब सिंचाई की सुविधा में अच्छा खासा विस्तार हुआ है.
राव ने अपने वक्तव्य में कहा, “2014 में सिर्फ 20 लाख एकड़ जमीन पर सिंचाई करने भर का पानी राज्य में मौजूद था लेकिन 2021 में इतना बढ़ गया है कि इससे 85.89 लाख एकड़ की सिंचाई की जा सकती है.” राव ने यह भी कहा कि सिंचाई का विस्तार होने के कारण और पाम ऑयल (ताड़ के तेल) की अच्छे मांग के मद्देनजर सरकार राज्य में ताड़ का अच्छा विस्तार करना चाहती है.
राज्य सरकार की योजना है कि वो अभी मौजूदा 90,000 एकड़ पर ताड़ की खेती का विस्तार अगले चार साल में 20 लाख एकड़ तक करे. सरकार का यह भी दावा है कि गोदावरी नदी पर स्थित कलेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना, जो कि विश्व की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई परियोजना है, ने इस राज्य में सिंचाई को बढ़ावा देने में बहुत योगदान दिया है.
हालांकि, यह केवल राज्य सरकार ही नहीं है जो ताड़ का विस्तार राज्य में बड़े पैमाने पर करना चाहती है. केंद्र सरकार खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन- ताड़ के माध्यम से राज्य में अगले चार साल में 3 लाख एकड़ तक ताड़ की खेती को बढ़ाना चाहती है. भारतीय ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआर) के अंतर्गत बनी केन्द्रीय कमिटी ने भी राज्य में 33 जिलों में से 27 जिलों को अपनी 2021 की एक रिपोर्ट में ताड़ की खेती के लिए योग्य बताया था ओर अब धीरे धीरे राज्य सरकार इन सभी 27 जिलों में ताड़ के विस्तार में लग गई है. अब तक ताड़ की खेती सिर्फ नलकोंडा, खम्मम, सूर्यपेट और भद्राद्री कोठागुडम जिलों तक सीमित थी.
अभी के समय में तेलंगाना ताड़ के उत्पादन में आंध्र प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. आंकड़ें कहते हैं कि आंध्र प्रदेश ने 2021-22 में 2,95,075 मेट्रिक टन क्रूड पाम ऑयल (ताड़ का कच्चा तेल) का उत्पादन किया जो देश में सबसे ज्यादा था, वहीं इस समय में तेलंगाना में इसका उत्पादन 46,171 मेट्रिक टन रहा.
पर्यावरण के लिए संकट
तेलंगाना का परंपरागत फसलों से दूर जाना और पानी की ज्यादा मांग वाली फसलों की ओर रुख करना स्थानीय पर्यावरण और खेती को कैसे प्रभावित कर सकता है?
राज्य में ताड़ की खेती की देखरेख राज्य का बागबानी विभाग करता है. इस विभाग के आला आधिकारियों का कहना है कि ताड़ के विस्तार से राज्य में पर्यावरण और सिंचाई पर कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. “अगर हम इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देशों की बात करें तो वहां पेड़ों को काट के ताड़ का विस्तार किया गया लेकिन हम राज्य में खेती की जमीन पर इसका विस्तार कर रहे हैं. इसके अलावा हाल के कुछ वर्षों में राज्य में सिंचाई की सुविधा बहुत हद तक बढ़ी है. हम लोग इस बात पर भी ध्यान दे रहे हैं कि जिन जिलों में पानी का संकट है, वहां हम ताड़ की खेती न करें. इसकी खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने में अच्छा सहयोग दे रही है,” राज्य के बागबानी विभाग के एक उच्च अधिकारी ने बताया.
हालांकि, कृषि और पर्यावरण पर काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि ताड़ का अत्याधिक विस्तार राज्य में आने वाले दिनों में अलग समस्या पैदा कर सकता है. देविंदर शर्मा, खाद्य एवं कृषि विशेषज्ञ ने बताया, “यह कुछ उसी प्रकार की गलती है जो कुछ दशकों पहले पंजाब ने की. पंजाब में अब ज्यादा पानी वाले धान की फसल के अत्याधिक विस्तार से भूजल बुरी तरह प्रभावित हुआ है. अब ऐसी स्थिति में तेलंगाना क्यों वैसी ही गलती दोहराना चाहता है और दूसरा पंजाब बनाना चाहता है? यह एक गलत धारणा है कि अगर राज्य में सिंचाई के लिए ठीक-ठाक पानी उपलब्ध है तो हम ज्यादा पानी वाली फसलों को बढ़ावा दें.”
“दूसरे राज्यों से व्यावसायिक फसलों की दौड़ में तेलंगाना खुद अपनी कृषि को बर्बाद कर रहा है. इतना ही नहीं, यह सब एक निम्न स्तर के ताड़ के तेल के लिए किया जा रहा है. इससे काफी बेहतर होगा देश में देसी तिलहन, जैसे सरसों, की खेती को बढ़ावा दिया जाए,” उन्होंने आगे बताया.
अब तक तेलंगाना में भूजल का स्तर ठीक है और पिछले कुछ सालों से गिरा नहीं है, बल्कि बेहतर हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में पिछले कुछ सालों में अच्छी और अधिक वर्षा इसका कारण रही है. आंकड़े कहते हैं कि 2020-21 में राज्य में 46% अधिक वर्षा हुई जबकि पिछले पांच साल से सामान्य बारिश हुई है जिससे भूजल रिचार्ज संभव हो पाया.
इसके अलावा कुछ और पर्यावरण से जुड़े कारण भी हैं जिससे भूजल की मांग बढ़ सकती है. कुछ शोध कहते हैं कि शुष्क जगहों पर औसतन तापमान में एक प्रतिशत की वृद्धि से सिंचाई के लिए पानी की मांग 10% बढ़ सकती है. तेलंगाना एक अर्ध-शुष्क क्षेत्र है. अतः जलवायु परिवर्तन का असर दिखने पर सिंचाई की मांग राज्य में आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है.
पानी की समस्या
विशेषज्ञों का मानना है कि तेलंगाना जैसे पठारी इलाकों पर इसके भूगोल के कारण ज्यादा पानी वाली फसलों की खेती का विस्तार करना आने वाले दिनों में भूजल की समस्या पैदा कर सकता है. तेलंगाना, जो दक्कन के पठार का इलाका है, ऊंचाई पर स्थित है और विशेषज्ञों के हिसाब से यहां लिफ्ट सिंचाई पर निर्भर होकर ताड़ की खेती का ज्यादा विस्तार करना महंगा पड़ेगा और दूरगामी भी नहीं होगा.
हिमांशु ठक्कर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) में कोऑर्डिनेटर हैं. ठक्कर ने हमें बताया, “तेलंगाना में खेती के लिए जमीन अक्सर ऊंचाई पर है और इनकी सिंचाई के लिए राज्य सरकार नदियों से पानी खींच कर उपलब्ध कराती है. उसी तरह तेलंगाना का कलेश्वरम बांध भी पानी को निचले इलाकों से ऊपरी भागों तक पहुंचाने का काम करता है.”
कुछ अध्ययनों ने दावा किया है कि राज्य में पिछले कुछ दशकों में कुएं सिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहर, तालाब आदि की अपेक्षा ज्यादा बढ़ी है. इस अध्ययन के अनुसार 2015-16 में 86% सिंचाई कुएं के पानी से की गई. हमने भी खम्मम और दूसरी जगहों पर अधिकतर ताड़ के किसानों को इस भूजल के स्रोत का इस्तेमाल अपने खेती के लिए करता पाया. ठक्कर का कहना है कि सरकार को कुएं और दूसरे भूजल के संसाधनों को नियंत्रित करने की जरूरत है.
“जब भी भूजल अच्छी मात्रा में होता है तो कुएं और ट्यूबवेल की संख्या बढ़ने लगती है. यह एक धीमा जहर है और आने वाले दिनों में खतरनाक असर दिखा सकता है. भूजल का स्थानीय जगहों पर नियंत्रण जरूरी है. एक बेहतर उपाय विकेंद्रीकृत वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) के सिस्टम को बढ़ावा देकर किया जा सकता है. चूंकि, तेलंगाना में बारिश अच्छी होती है इसलिए यह एक अच्छा उपाय हो सकता है,” ठक्कर ने कहा.
रामानजनयेलु जी.वी. हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर में एक कृषि वैज्ञानिक हैं. उन्होंने हमें बताया, “अगर आप आंध्र प्रदेश में ताड़ की खेती देखेंगे तो यह अक्सर तटीय इलाकों में है क्योंकि इसे नमी चाहिए. चूंकि तेलंगाना एक शुष्क क्षेत्र है, आने वाले दिनों में ताड़ की खेती में या इसके उत्पादन में समस्या आ सकती है. आने वाले दिनों में पानी की कमी से भी इसकी खेती प्रभावित हो सकती है और किसानों को घाटा हो सकता है.”
उन्होंने आगे बताया, “दो साल पहले राज्य सरकार ने धान की खेती को बहुत बढ़ावा दिया और अब ताड़ को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार को किसी एक फसल पर इतना जोर नहीं देना चाहिए और किसान क्या उगाना चाहता है उन पर छोड़ देना चाहिए. जब सरकार ताड़ जैसी फसलों पर ज्यादा जोर डाले तो किसान से ज्यादा बीज देने वाला कंपनियों को फायदा पहुंचता है.”
(साभार- MONGABAY हिंदी)
Also Read
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
4 years, 170 collapses, 202 deaths: What’s ailing India’s bridges?
-
‘Grandfather served with war hero Abdul Hameed’, but family ‘termed Bangladeshi’ by Hindutva mob, cops
-
India’s dementia emergency: 9 million cases, set to double by 2036, but systems unprepared
-
ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा का सार: क्रेडिट मोदी का, जवाबदेही नेहरू की