Report
जेल में बंद जीएन साईबाबा के समर्थन में जुटे एक्टिविस्ट
5 दिसंबर को दिल्ली के सूरजीत भवन में कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन ने प्रोफेसर जीएन साईबाबा की रिहाई के लिए एक सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया. इसमें जीएन साईबाबा की पत्नी एएस वसंता, हेम मिश्रा के पिता केडी मिश्रा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर सिरोज गिरी, सीपीआई के जनरल सेक्रेटरी टीटी राजा और सीपीआई(एमएल) की सुचिता दे शामिल हुए.
इस दौरान जीएन साईबाबा की पत्नी एएस वसंता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "जेल में कठिन परिस्थितियों के कारण जीएन साईबाबा को 19 स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उनके दिमाग में गांठ बन गई है. उनके पेट में लंप (एक तरह की गांठ) बन गया है. वो चल नहीं सकते न वो अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं. व्हीलचेयर पर रहते हैं फिर भी उनको जेल के टार्चर सेल "अंडा सेल" में रखा गया है."
वे कहती हैं, "उनका शरीर पोलियो ग्रसित है इसलिए सर्दियों में उनको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सर्दियों में उनके हाथ पैर मुड़ जाते हैं. जब वह घर पर रहते थे तो हीटर लगाने के बावजूद उनके हाथ पैर ठंडे होकर मुड़ जाते थे. अभी दो दिन पहले ही जेल से मैसेज आया था कि उनको सीने में दर्द की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वह जेल में जिस परिस्थिति में हैं लगता है कि इस सर्दी में वह बच नहीं पाएंगे. हमें यही डर लगा रहता है कि कब क्या सुनने को मिल जाए. क्योंकि जेल की परिस्थितियों की वजह से ही स्टैन स्वामी की मौत हो गई. साई सीने में दर्द और दिमाग में गांठ की वजह से वह बार-बार बेहोश होकर गिर जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में भी उनको अंडा सेल में रखा गया है."
वह आगे कहती हैं, "सरकार साईबाबा को जेल में ही मरवाना चाहती है. इसलिए दो बार मेडिकल ग्राउंड पर जमानत को रिजेक्ट कर दिया गया. तीन बार पैरोल को रिजेक्ट किया गया. यहां तक कि साई की मां की मौत के समय भी जमानत नहीं दी गई. रेपिस्ट और हत्या करने वालों को जमानत मिल जाती है लेकिन जो जनता के हित में बात कर रहा है उनको नहीं मिलती."
इसके अलावा जीएन साईबाबा का परिवार आर्थिक परेशानियों का भी सामना कर रहा है. पहले जीएन साईबाबा की गिरफ्तारी के बाद उनकी सैलरी दिल्ली यूनिवर्सिटी ने आधी कर दी थी, जिससे परिवार थोड़ा बहुत चल जाता था. लेकिन 2021 में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने उन्हें निकाल दिया है.
आयोजन के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, "जीएन साईबाबा को झूठे आरोप लगाकर फंसाया गया. पूरे हिंदुस्तान में जो भी एक्टिविस्ट इस सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं या मानवाधिकार के लिए लड़ रहे हैं खासकर आदिवासियों की लड़ाई जो लोग लड़ रहे हैं, उनके खिलाफ सरकार एजेंसियों का इस्तेमाल करके फंसा रही है. एनआईए, ईडी, सीबीआई और यहां तक कि लोकल पुलिस भी सरकार की कठपुतली की तरह काम कर रही है."
वह आगे कहते हैं, "अंग्रेजों द्वारा जनता के दमन के लिए जो राजद्रोह कानून बनाया गया था. बिल्कुल उसी तरह यूएपीए कानून बनाया गया है. यूएपीए की परिभाषा में तकरीबन वही चीजें लिख दी गई हैं जो राजद्रोह कानून में थीं. बस फर्क यह है कि राजद्रोह कानून में सरकार लिखा है और यूएपीए में स्टेट लिख दिया गया है. स्टेट के खिलाफ अगर आप भावना भड़काते हैं चाहें आप कोई हिंसा न करें, कोई अपराध न करें लेकिन सिर्फ स्टेट के खिलाफ भावना भड़काना ही गैरकानूनी गतिविधि मान लिया जाएगा."
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के कड़े प्रावधान और कठोर प्रकृति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि इस कानून में ट्रायल ही सजा है.
उन्होने कहा, “यूएपीए में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें जमानत मिलना करीब-करीब असंभव है. यूएपीए कानून में यह लिख दिया गया है कि किसी को जमानत तब तक नहीं दी जाएगी जब तक ट्रायल कोर्ट इस नतीजे पर न पहुंचे कि वह निर्दोष है. जबकि जमानत ट्रायल कोर्ट से पहले की चीज है. इसलिए अगर किसी के खिलाफ झूठा केस बना दिया जाए जैसे रोना विल्सन के खिलाफ बनाया गया, तब भी उसको जमानत नहीं मिलेगी. यह ऐसा कानून है जिसमें ट्रायल कोर्ट की जो प्रक्रिया है वही सजा है."
नवंबर में मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने जीएन साईबाबा को बरी कर दिया था लेकिन अगले ही दिन महाराष्ट्र सरकार की आपत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट की विशेष बेंच ने रिहाई पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहाई पर रोक लगाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए और विशेष बेंच की कार्यशैली पर बोलते हुए प्रशांत भूषण कहते हैं, "मुझे पता है कि जीएन साईबाबा और उनके साथी बिल्कुल निर्दोष हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में शनिवार के दिन स्पेशल बेंच बनाकर रिहाई पर रोक लगा दी गई. यह बिल्कुल गलत था. ऐसी कोई इमरजेंसी नहीं थी कि आप शनिवार को एक स्पेशल बेंच बनाए. और वह भी बेंच ऐसे जजों की बनाई गई जिनके पास क्रिमिनल रोस्टर नहीं था. मेरी राय में गलत बेंच बनाई गई और इस बेंच को बनाने का कोई औचित्य नहीं था."
एक्टिविस्टों पर हमले और सरकार की मनमानी के बारे में बात करते हुए केडी मिश्रा (हेम मिश्रा के पिता) ने कहा, "जो लोग सरकार में हैं वे वो संविधान से नहीं बल्कि अपने सिद्धांतों से सिस्टम को चला रहे हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरी ने कहा, "जीएन साईबाबा के बरी होने के बाद, पूरी राज्य मशीनरी संगठित हो गई और हाईकोर्ट के फैसले को निलंबित कर दिया." साईबाबा जैसे मामलों में न्यायपालिका के रुख के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, "यह मामला दो न्यायाधीशों से बहुत आगे का है, जिन्होंने रिहाई को निलंबित कर दिया था. यदि कोई अन्य न्यायाधीश होते, तो भी परिणाम नहीं बदलता क्योकि यह खेल बड़ा है. जीएन साईबाबा के काम सरकार को खटकते हैं. क्योंकि जीएन साईबाबा सरकार और पूंजीपति की साठगांठ से देश के संसाधनों की लूट के रास्ते में एक बैरियर का काम कर रहे थे."
भाकपा-माले (लिबरेशन) की केंद्रीय समिति की सदस्य सुचेता डे ने कहा, “साईबाबा के मामले को भीमा कोरेगांव मामले और दिल्ली दंगों के मामले में देखा जाना चाहिए और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग उठाई जानी चाहिए.”
उन्होंने साईबाबा के मामले और सामान्य रूप से राजनीतिक कैदियों पर अपनी पार्टी की स्थिति पर जोर दिया. विदेशी पूंजी द्वारा लोगों के संसाधनों की लूट पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, "स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, हम कंपनी राज की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे और अभी भी, हम विदेशी पूंजी द्वारा कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं."
कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन 38 संगठनों का एक साझा कार्यक्रम है. जिसका गठन 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में हुई गिरफ्तारी के बाद किया गया. इसका मकसद देशभर की जेलों में कैद सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और प्रोफेसरों के लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ना है. पिछले महीने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में भी जीएन साईबाबा और तमाम यूएपीए आरोपियों के समर्थन में जनसभा आयोजित की गई थी. वहीं बीते हफ्ते दिल्ली यूनिवर्सिटी में साईबाबा का समर्थन कर रहे छात्रों पर कथित तौर पर एबीवीपी के छात्रों द्वारा हमला किया भी किया गया था.
बता दें कि हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने माओवादियों से कथित संबंधों के आरोपों से बरी कर दिया. साथ ही कोर्ट ने उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश भी दिया था. लेकिन महाराष्ट्र सरकार इस रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा समेत छह अन्य आरोपियों की रिहाई पर रोक लगा दी. तब से मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
Also Read
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
What’s Your Ism? Ep 8 feat. Sumeet Mhasker on caste, reservation, Hindutva
-
TV Newsance 250: Fact-checking Modi’s speech, Godi media’s Modi bhakti at Surya Tilak ceremony
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi
-
कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष लवली का इस्तीफा और पीएम मोदी की कर्नाटक जनसभा