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ट्रांसजेंडर अधिकार: पुलिस भर्ती परीक्षा में आवेदन के लिए आर्या पुजारी की चार साल की लड़ाई

आर्या पुजारी का अब तक का जीवन ज़ख्मों से भरा रहा है. उसे स्कूल में धमकाया गया, एक किशोरी के रूप में वो यौन हमले से बची और एक ट्रांसजेंडर महिला के रूप में उसे अपनी पहचान के कारण राहगीरों से अपमान झेलना पड़ा.

16 नवंबर को, 22 वर्षीय आर्या ने आखिरकार वो जंग जीत ली जिसे वे चार साल से लड़ रही थीं. महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने राज्य सरकार को गृह विभाग के तहत होने वाली सभी भर्तियों के लिए आवेदन पत्र में तीसरे लिंग को एक विकल्प के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया.

आदेश पारित तब हुआ, जब अधिकरण आर्या के आवेदन पर सुनवाई कर रहा था. आर्या ने पुलिस कांस्टेबल भर्ती के लिए तीन बार ऑनलाइन आवेदन करने का प्रयास किया था. लेकिन ऑनलाइन आवेदन पत्र में लिंग के लिए केवल दो विकल्प दिए गए थे और इसलिए वह अपना आवेदन दाखिल नहीं कर पा रही थी.

इसके बाद अधिकरण ने राज्य को "भौतिक मानकों और परीक्षणों के मानदंड तय करने का निर्देश भी दिया, ताकि ऑनलाइन आवेदन स्वीकार किया जा सके.”

आर्या के लिए यह वर्षों के प्रयासों की परिणति थी. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मैं अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहती हूं. इसलिए मैं एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती हूं. सबसे ज़रूरी बात ये है कि मेरे माता-पिता यह न सोचें कि मुझे जन्म देना एक श्राप है. मैं चाहती हूं कि वे अपना सिर उठाए रहें.”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में यह कहते हुए मान्यता दी थी कि यह एक "मानवाधिकार का मुद्दा" है. सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक नियुक्तियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण बढ़ाने का निर्देश दिया था.

लेकिन जैसा कि आर्या ने पाया, इसके बावजूद भी ऐसा नहीं है.

संघर्ष से सफलता तक

आर्या मूल रूप से महाराष्ट्र के सांगली जिले की मिरज तहसील के म्हैसाल गांव से हैं. हालांकि पिछले चार वर्षों से वो सतारा में रहती हैं.

उन्होंने बताया कि चौथी कक्षा के बाद से उन्हें "अपमान झेलना पड़ा.” वे बताती हैं, "मेरे साथ पढ़ने वाले अक्सर मेरा मज़ाक उड़ाया करते थे और मुझे छक्का या गुड़ या हिजड़ा कह कर बुलाते थे. मेरे सहपाठी मुझसे बचते थे. स्कूल में बहुत कम लोग मुझसे बात करते थे. दोपहर भोजन के समय कोई भी मेरे साथ टिफिन शेयर नहीं करता था. वे हर वक्त मुझे तरह-तरह के अपशब्दों से चिढ़ाते थे.”

आर्या ने कहा कि उनके सहपाठियों के दुर्व्यवहार की वजह से उन्हें गुस्सा भी आता था और दुख भी होता था और अपनी पहचान को लेकर भ्रमित भी रहती थी. वे बताती हैं, "उन्हें ऐसा बर्ताव करने से रोकने के लिए मैंने एक लड़के की तरह पेश आने की कोशिश की. 10वीं कक्षा में आते-आते मुझे एहसास हुआ कि मैं अलग थी और ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी पहचान को स्वीकारने लगी."

वे आगे कहती हैं, "हमारे समाज में एक ट्रांस व्यक्ति के लिए सामान्य जीवन जीना आसान नहीं है. मिरज में अपने जूनियर कॉलेज (कक्षा 11) के पहले साल में मैं कक्षा के बाद घर जाने के लिए बस स्टॉप की ओर पैदल जा रही थी. अचानक 15-20 लड़के मेरे पीछे आने लगे. उन्होंने मुझे हर तरह की अश्लील गालियां दीं. उनमें से कुछ ने मुझे पकड़ लिया और मुझे एक बगीचे में खींचने की कोशिश की. चूंकि यह इलाका कॉलेज के पास था, सौभाग्य से एक पुलिस गश्ती दल वहां से गुजरा और मुझे बचाया.”

वे कहती हैं कि पुलिस ने उन्हें उन लड़कों से तो बचा लिया "लेकिन उनका व्यवहार भी मेरे प्रति अच्छा नहीं था, जैसे कि मैंने कोई गलती की हो."

स्कूल पास करने के बाद आर्या ने घर छोड़ दिया. "उस समय मेरे माता-पिता मेरी पहचान को समझने या स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थे. मैं सतारा आ गई और अन्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ रहने लगी. मैं ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़ गई.”

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उनके माता-पिता ने अब "मेरी पहचान को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है और वे इससे खुश हैं."

सतारा में आर्या ने एक नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लिया. दो महीने बाद वह नर्सिंग परीक्षा के लिए आवेदन नहीं कर पाईं क्योंकि फॉर्म में तीसरे लिंग का विकल्प नहीं था. उसने अपना कोर्स छोड़ दिया और इसके बजाय बीए की डिग्री के लिए एक निजी कॉलेज में दाखिला लिया.

वे कहती हैं, "मैं थोड़ा उदास और चिंतित थी. मैं भीख मांगना या सेक्स वर्क करने के लिए मजबूर होना नहीं चाहती थी, जहां अवसरों की कमी की वजह से कई ट्रांसजेंडर पहुंच जाते हैं. अपना मनोबल बढ़ाने के लिए, मैंने इंटरनेट पर सफल ट्रांसजेंडर लोगों को ढूंढ़ना शुरू किया. ऐसे मुझे प्रिथीका याशिनी के बारे में पता चला.”

2017 में प्रिथीका याशिनी, पुलिस अधिकारी बनने वाली भारत की पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति बनीं. दो साल बाद वह चेन्नई में एक सब-इंस्पेक्टर थीं और उनके सामने आई चुनौतियों पर बने एक वृत्तचित्र का विषय भी थीं.”

आर्या, प्रिथीका से मिली नहीं थीं लेकिन वह उनसे प्रेरित थीं. "मैंने एक पुलिस कांस्टेबल बनने का फैसला किया."

2018 में उन्होंने धायगुडे ट्रेनिंग अकादमी में पुलिस परीक्षा की तैयारी करने के लिए दाखिला लिया. वे चार अन्य अकादमियों में भी गई थीं, लेकिन उन सभी ने आर्या को ये कहकर लेने से इनकार कर दिया कि उनके पास और छात्रों को दाखिला लेने की क्षमता नहीं है. लेकिन धायगुडे अकादमी ने "स्वेच्छा से" उन्हें लिया और पैसे लेने से भी इंकार कर दिया.

आर्या कहती हैं, “अब तक उन्होंने प्रशिक्षण के लिए एक रुपये का शुल्क भी नहीं लिया है.”

उसी वर्ष आर्या ने पहली बार राज्य पुलिस कांस्टेबल भर्ती के लिए आवेदन करने का प्रयास किया. आवेदन पत्र में तीसरे लिंग का विकल्प नहीं था, इसलिए वह आवेदन नहीं कर सकीं. ऐसा ही फिर 2019 और 2021 में भी हुआ. (महामारी के कारण उन्होंने 2020 में आवेदन नहीं किया.)

उन्होंने बताया, "मैं अपने आवेदन के साथ लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में गई, उनसे तीसरे लिंग विकल्प को शामिल करने के लिए कहा. मैं कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक के कार्यालय गई. मुझे नहीं पता था कि इस मुद्दे को वे हल नहीं कर सकते हैं. उन्होंने मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों को दर्जनों पत्र भी लिखे, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

इस साल 6 नवंबर को, आर्या ने 145 पुलिस कांस्टेबलों की रिक्त जगहों को भरने के लिए एक विज्ञापन देखा. लेकिन जब उनका आवेदन नहीं हो पाया और उन्होंने फैसला किया कि ये कानूनी सहारा लेने का समय है.

वे बताती हैं, "मैंने एक वकील से परामर्श किया जिनसे मैं एक प्रशिक्षक संगोष्ठी के दौरान मिली थी. उनकी मदद से मैंने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया. मेरी याचिका के जवाब में ट्राईब्यूनल ने आवेदन पत्र में ट्रांसजेंडरों के लिए तीसरे लिंग को शामिल करने का आदेश जारी किया.”

आर्या बहुत उत्साहित है. धायगुडे अकादमी के निदेशक चैतन्य रणपिसे ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आर्या के प्रयासों से "कई अन्य ट्रांसजेंडरों को पुलिस बल में खुद के रोजगार का मौका मिलेगा."

रणपिसे ने कहा, “आर्या बहुत मेहनती है. वह पढ़ाई में अच्छी है और उसकी फिजिकल फिटनेस भी अच्छी है. वह निश्चित रूप से सफल होंगी. अपने आवेदन पत्र के बार-बार खारिज किए जाने के बावजूद उसने हार नहीं मानी. उसने फॉर्म में ट्रांसजेंडर लोगों को शामिल करने के लिए संघर्ष किया और सफल रही.”

आर्य के वकील कौस्तुभ गिध ने कहा कि उन्होंने कई मामलों को संभाला है, लेकिन यह पहली बार था जब वह "सरकार के प्रतिरोध को देखकर हैरान" हुए. गिध ने कहा, "सरकार की मानसिकता है कि ट्रांसजेंडर लोग आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं. उनके अधिकारों को हासिल करने के लिए यह लड़ाई लंबी होने वाली है."

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