Media
‘स्वराज’ सीरियल: न देखने वाले, न खरीदने वाले फिर भी पानी की तरह बह रहा करोड़ों रुपया
दूरदर्शन पर प्रसारित जिस सीरियल को देखने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिसको स्वयं गृहमंत्री अमित शाह और अनुराग ठाकुर ने लॉन्च किया, वह शो टीआरपी में फिसड्डी साबित हो रहा है.
हम बात कर रहे हैं दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘स्वराज’ की, जिसकी शुरुआत इसी साल 14 अगस्त से हुई थी. कार्यक्रम का घोषित मकसद आज़ादी के गुमनाम नायकों को सामने लाना और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में बताना था. हिंदी के अलावा इस धारावाहिक को नौ क्षेत्रीय भाषाओं में भी दिखाया जा रहा है. साथ ही इसे आकाशवाणी पर एक ऑडियो सीरियल के रूप में भी प्रसारित किया जा रहा है.
सरकार की इच्छा इस कार्यक्रम को 1988 में दूरदर्शन पर आए प्रसिद्द धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ जैसा बनाने की थी, लेकिन दूरदर्शन इस प्रयास में पूरी तरह से असफल नज़र आता है.
दूरदर्शन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हमें बताया, “भारत एक खोज सीरियल पहले से मौजूद था. उसमें प्राचीन भारत से लेकर भारत की आज़ादी के आंदोलन तक का किस्सा दर्ज है. लेकिन मौजूदा सरकार अपने वैचारिक नजरिए से नया इतिहास बताने की कोशिश कर रही है.”
नया इतिहास बताने की जिद में दूरदर्शन ने करीब 70 से 80 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यह अनुमानित बजट है. इस शो से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक - दूरदर्शन ने हर एपिसोड पर 47 लाख रुपए + 18 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान प्रोडक्शन हाउस को किया. इस हिसाब से कार्यक्रम के हर एपिसोड की लागत 55 लाख 46 हज़ार रुपए हुई. कुल 75 एपिसोड प्रसारित होने हैं, यानी पूरे धारावाहिक की प्रोडक्शन लागत 41 करोड़ 59 लाख 50 हज़ार रुपए हुई. शो के प्रचार- प्रसार पर 9 करोड़ 19 लाख 32 हज़ार एक सौ तीस रुपए अलग से खर्च किए गए. इसके अलावा शोध के लिए बनी पांच सदस्यीय कमेटी और उनके साथ काम करने वाले 10-20 रिसर्चर्स को अलग से भुगतान किया गया.
जानकार बताते हैं कि यह दूरदर्शन के इतिहास का सबसे महंगा कार्यक्रम है. यह कार्यक्रम सरकार में ऊपर बैठे लोगों के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा हमें दूरदर्शन के एक कर्मचारी से बातचीत में चलता है. वे बताते हैं, “सब कुछ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से निर्धारित होता है. प्रसार भारती सिर्फ रबर स्टांप की तरह इस्तेमाल होती है. इस शो को मंत्रालय खुद ही देख रहा है.”
इस कार्यक्रम के शोध के लिए प्रसार भारती ने एक पांच सदस्यीय कमेटी बनाई है. इनमें वरिष्ठ पत्रकार जवाहर लाल कौल, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन के निदेशक कुलदीप रत्नू, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हीरामन तिवारी, जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर के निदेशक आशुतोष भटनागर और ऑर्गनाइज़र के संपादक प्रफुल्ल केतकर शामिल हैं.
यह जानबूझकर हुआ या अनजाने में, यह स्पष्ट नहीं लेकिन कमेटी के पांचों सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस और उसकी सहयोगी संस्थाओं से जुड़े लोग हैं. इससे भी अहम बात यह है कि प्रोफेसर हीरामन तिवारी को छोड़कर बाकी कोई भी सदस्य न तो इतिहास में कोई विशेष दक्षता रखता है, और न ही आज़ादी के आंदोलन पर इनका कोई शोध है. न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पर रिपोर्ट किया है, विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
शो की रेंटिग
स्वराज दूरदर्शन के इतिहास का सबसे महंगा कार्यक्रम है. इसकी लागत हर दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि दूरदर्शन इसमें लगातार बदलाव करवा रहा है. डीडी के एक कर्मचारी कहते हैं, “अभी हाल ही में एक मीटिंग हुई थी जिसमें शो में थोड़ा ड्रामा दिखाने के लिए कहा गया. ताकि इसकी टीआरपी बढ़े.”
इस कार्यक्रम को कॉन्टिलो प्रोडक्शन हाउस ने बनाया है. शो के निर्माता अभिमन्यु सिंह कहते हैं, “इस शो के प्रोडक्शन का काम फरवरी 2020 में शुरू किया था. अभी इसे बनाने में एक साल और लगेगा. हम शो पर लगातार काम कर रहे हैं.”
स्वराज सीरियल को लेकर बड़े पैमाने पर खर्च किया जा रहा है लेकिन इसकी टीआरपी अन्य चैनलों की अपेक्षा ‘बहुत कम’ आ रही है. पहले इसका प्रसारण शनिवार को होता था, लेकिन बाद में प्रसारण रविवार की सुबह और शाम के लिए निर्धारित कर दिया गया. इसके बावजूद रेटिंग्स में कोई सुधार नहीं हुआ.
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल या बार्क की हिंदी भाषी क्षेत्रों की श्रेणी, हिंदी स्पीकिंग मार्केट या एचएसएम में रविवार रात 9 बजे के आंकड़ों के मुताबिक, 34वें सप्ताह में औसत मिनट ऑडियंस (एएमए) के मुताबिक प्रसारण को करीब 80 हजार लोगों ने देखा. यही हाल 35वें सप्ताह में भी रहा लेकिन आगे चलकर 42वें सप्ताह में यह आंकड़ा गिरकर 40 हजार हो गया. हालांकि एचएसएम के मुताबिक 43वें सप्ताह में देखने वालों की संख्या फिर से बढ़कर 90 हजार पर पहुंच गई.
जैसा कि हमने बताया, इस कार्यक्रम को रविवार सुबह 9 बजे भी प्रसारित किया जा रहा है. लेकिन तब भी दर्शकों की संख्या में इज़ाफ़ा नहीं हो रहा है. एचएसएम के अनुसार 34वें सप्ताह में रविवार सुबह कार्यक्रम को करीब 70 हजार लोगों ने देखा. 35वें हफ्ते में दर्शकों की संख्या 90 हजार रही, जबकि 41वें सप्ताह में यह गिरकर 20 हजार रह गई. हालांकि 43वें सप्ताह में यह बढ़कर 70 हजार हो गई.
कार्यक्रम के शनिवार रात 9 बजे के प्रसारण समय को देखें तो 34वें सप्ताह में 90 हजार लोगों ने इसे देखा. 38वें सप्ताह में यह आंकड़ा बढ़कर 1 लाख 30 हजार हो गया. लेकिन फिर 41वें सप्ताह से जो गिरावट देखने को मिली, वह लगातार 43वें सप्ताह तक चलती रही. कार्यक्रम को 41वें सप्ताह में 70 हजार लोगों ने, 42वें सप्ताह में में 60 हज़ार लोगों ने और 43वें सप्ताह में 40 हजार दर्शकों ने देखा.
स्वराज से जितने दर्शकों की अपेक्षा थी, उसके मुकाबले ये आंकड़ा काफी कम है. करोड़ों खर्च करने के बाद भी कार्यक्रम अच्छी संख्या में दर्शकों को नहीं खींच पा रहा है. इस कारण विज्ञापनदाता भी कार्यक्रम से दूर हो रहे हैं. विज्ञापन आते रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए दूरदर्शन ने विज्ञापन के दाम भी गिरा दिए हैं.
डीडी के कंटेंट से जुड़े एक कर्मचारी कहते हैं, “पहले स्वराज सीरियल के विज्ञापन का रेट 60 हजार प्रति दस सेकेंड था. जो बाद में घटाकर 16 हजार प्रति दस सेकेंड कर दिया गया. अभी पिछले एक महीने से शो की गिरती रैंकिंग के बाद अब डिस्काउंट के साथ विज्ञापन का रेट 8 हजार प्रति दस सेकेंड हो गया है.”
बार्क के आंकड़ों से एक चैनल की व्यूवरशिप यानी दर्शकों (टीआरपी) की गणना की जाती है. व्यूवरशिप जानने के लिए ज्यादातर चैनल औसत मिनट ऑडियंस (एएमए) का उपयोग करते हैं. लेकिन हर चैनल अपने आप को आगे दिखाने के लिए बार्क के अलग-अलग आंकड़ों का उपयोग करता है, यही वजह है कि हर चैनल आए दिन अपने आप को टीआरपी में आगे बताता है.
ऐसा नहीं है कि डीडी पर प्रसारित होने वाले हर कार्यक्रम की व्यूवरशिप कम हो. चैनल पर आने वाले रंगोली, बालकृष्ण, सुरों का एकलव्य आदि अन्य कार्यक्रमों की रेटिंग स्वराज के मुकाबले कहीं बेहतर है. आंकड़े बताते हैं कि रंगोली का एएमए तीन लाख सात हजार है, वहीं बालकृष्ण का एक लाख 70 हजार और सुरों का एकलव्य की औसत मिनट ऑडियंस एक लाख 2 हजार है.
डीडी नेशनल चैनल के कुल एएमए की तुलना अगर अन्य चैनलों से करें, तो यह बेहद कम दिखाई पड़ती है. 44वें सप्ताह में स्टार प्लस का कुल एएमए 6334.7 लाख रहा, वहीं डीडी नेशनल का मात्र 79.5 लाख है. अगर चैनल की पहुंच (रीच) को देखें तो दंगल चैनल की पहुंच 925.4 लाख है, वहीं डीडी नेशनल की 184.3 लाख. चैनल का एवरेज टाइम स्पेंट (एटीएस) यानी किस चैनल पर दर्शक ने कितना समय बिताया, इसमें स्टार प्लस का समय 76.8 मिनट है तो वहीं डीडी नेशनल का मात्र 8.8 मिनट.
इन आंकड़ों से साफ है कि सरकारी प्रसारणकर्ता दूरदर्शन, सभी प्रकार के संसाधनों के होते हुए भी दर्शकों को आकर्षित करने में निजी चैनलों से काफी पीछे है.
विज्ञापन पर करोड़ों खर्च
डीडी नेशनल पर प्रसारित होने वाले अन्य कार्यक्रमों के मुकाबले स्वराज की टीआरपी बेहद कम है, लेकिन इसके विज्ञापन पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं. इस कार्यक्रम पर हुए खर्च की राशि से जुड़ी जानकारी हमें आरटीआई द्वारा मिली, जो चौंकाने वाली है. आरटीआई में प्रसार भारती ने बताया कि अभी तक स्वराज के प्रचार-प्रसार पर 9,19,32,130 (नौ करोड़ उन्नीस लाख बत्तीस हजार एक सौ तीस) रुपए खर्च किए गए हैं.
कार्यक्रम के प्रचार के लिए कारों के शीशों पर स्टिकर लगाए गए, जिस पर 2 लाख 8 हजार, 152 रुपए खर्च हुए. कार्यक्रम के लिए होर्डिंग्स पर 24 हज़ार 190 रुपए खर्च हुए. शो को ट्विटर पर ‘ट्रेंड’ कराने के लिए चैनल ने 1 लाख 88 हजार 800 रुपए खर्च किए हैं.
ओबी वैन और डीएसएनजी गाड़ियों पर कार्यक्रम का विज्ञापन दिखाने के लिए 2 लाख 17 हज़ार 798 रुपए खर्च किए गए. विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (सीबीसी), जिसे पहले डीएवीपी के नाम से जाना जाता था, उसे डीडी नेशनल ने अलग-अलग माध्यमों पर प्रचार-प्रसार के लिए 7 करोड़ 48 लाख रुपए दिए. वहीं बुबना विज्ञापन एजेंसी को न्यूज़ (अखबार और मैगजीन) में धारावाहिक के विज्ञापन देने के लिए 1 करोड़ 63 लाख 1 हज़ार 318 रुपए दिए गए.
संसाधनों का दुरुपयोग
सरकारी प्रसारणकर्ता दूरदर्शन जहां टीआरपी के लिए मोहताज है, वहीं निजी चैनल कम संसाधनों और कड़ी स्पर्धा के बावजूद इससे कई गुना आगे हैं. ऐसा नहीं है कि एक सरकारी कंपनी प्राइवेट चैनलों से ज्यादा टीआरपी नहीं जुटा सकती. मार्च 2020 में लॉकडाउन के समय दूरदर्शन ने रामायण को फिर से दिखाना शुरू किया था. उस समय 28 मार्च से 3 अप्रैल के बीच चैनल की टीआरपी 19 करोड़ 65 लाख आई थी, जो निजी चैनलों से कहीं ज्यादा थी.
इतना ही नहीं, खुद डीडी ने ट्वीट कर कहा था विश्व में किसी मनोरंजन शो को देखने का रिकार्ड रामायण ने तोड़ दिया था. 16 अप्रैल 2020 को 7.7 करोड़ लोगों ने रामायण के प्रसारण को देखा था, जो एक रिकॉर्ड है.
संसाधनों की बात करें तो ‘डीडी फ्री डिश’ भारत की सबसे बड़ी केबल टीवी ऑपरेटर कंपनी है. इसके पास सबसे ज्यादा दर्शक भी हैं. मार्केट शेयर की बात करें तो देश में 38 प्रतिशत दर्शक, डीडी फ्री डिश के जरिए टीवी देखते हैं. इसे दर्शकों की संख्या के तौर पर देखें तो 4 करोड़ दर्शक, फ्री डिश के जरिए टीवी चैनल देखते हैं. यह कंपनी दूरदर्शन की ही है, इसके बावजूद डीडी नेशनल पर चलने वाले कार्यक्रमों की टीआरपी सबसे कम है.
जहां एक ओर चैनल की रेटिंग अच्छी नहीं आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर दूरदर्शन ने ‘स्वराज’ को अभी तक किसी भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी जारी नहीं किया है. इस विषय पर दूरदर्शन के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “बातचीत चल रही है. जल्द ही इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लॉन्च किया जाएगा.”
दूरदर्शन के अधिकारी ओटीटी पर कार्यक्रम को दिखाए जाने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि कोई भी ओटीटी प्लेटफॉर्म इस कार्यक्रम को प्रसारित करने के राइट्स खरीदने में रुचि नहीं दिखा रहा है. इस मामले से जुड़े दूरदर्शन के एक अधिकारी बताते हैं, “शो को 25 करोड़ में ओटीटी पर बेचने की योजना थी, लेकिन किसी भी कंपनी ने इसके लिए बोली नहीं लगाई.”
जब किसी भी प्लेटफार्म ने ऑनलाइन राइट्स खरीदने में रुचि नहीं दिखाई, तो कीमत को 25 करोड़ से घटाकर 15 करोड़ कर दिया गया. हालांकि अभी भी किसी कंपनी ने इसे नहीं खरीदा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने प्रसार भारती के सीईओ मयंक अग्रवाल को इस स्टोरी से संबंधित कुछ सवाल भेजे हैं. जवाब आने पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
Also Read: गौरव द्विवेदी बने प्रसार भारती के नए सीईओ
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
South Central 34: Karnataka’s DKS-Siddaramaiah tussle and RSS hypocrisy on Preamble
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar