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कैसे बनते हैं इंद्रधनुष और क्या है इनके और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध?

शायद ही कोई ऐसा प्रकृति प्रेमी होगा जिसे इंद्रधनुष की सतरंगी आभा अच्छी न लगती हो. आसमान में जब इंद्रधनुष नजर आता है तो सबकी नजरें उसी पर टिक जाती हैं. आपमें से बहुत से लोगों ने इसे देखा भी होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलवायु में आते बदलावों के चलते धरती पर पहले से कहीं ज्यादा इंद्रधनुष नजर आएंगें. 

इस बारे में हवाई विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते धरती पर इंद्रधनुष देखने के अवसर कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगे. जर्नल ग्लोबल एनवायर्नमेंटल चेंज में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक सदी के अंत तक इंद्रधनुष वाले दिनों की संख्या में औसतन पांच फीसदी की वृद्धि होने की सम्भावना है.

उत्तरी अक्षांशों और बहुत अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां बढ़ते तापमान के कारण बर्फ में कमी के साथ बारिश में वृद्धि होने की सम्भावना है वहां इंद्रधनुषों के दिखाई देने की घटनाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि होगी.

वहीं इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश में कमी आएगी जैसे भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में वहां इनके दिखने की सम्भावना वाले दिनों की संख्या घट जाएगी. अनुमान है कि करीब 21 से 34 फीसदी क्षेत्रों में इंद्रधनुष दिखने की सम्भावना वाले दिनों में कमी आएगी, जबकि 66 से 79 फीसदी क्षेत्रों में इनकी संख्या में वृद्धि होगी.

शोधकर्ताओं के अनुसार हवाई द्वीप पर सबसे ज्यादा इंद्रधनुष दिखाई देती हैं यही वजह है कि उसे दुनिया में “इंद्रधनुषों की राजधानी” भी कहा जाता है. अनुमान है कि जलवायु में आते बदलावों के साथ वहां हर साल कुछ ज्यादा दिनों तक इंद्रधनुषों को देखने का मौका मिलेगा.

अब आपके मन में सवाल होगा कि ऐसा क्यों होगा तो इसके पीछे की वजह जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि यह इंद्रधनुष कैसे बनते हैं. जब पानी की बूंदें क्रिस्टल की तरह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित और अपवर्तित करती हैं. तो सात रंगों की एक अनूठी आभा बनती है, जिसे इंद्रधनुष कहते हैं.

क्या है इंद्रधनुषों और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध

आमतौर पर इंद्रधनुष में सात रंग दिखाई देते हैं जो तरंगदैर्ध्य यानी वेवलेंथ के अनुसार व्यवस्थित क्रम में होते हैं. देखा जाए तो हमें इंद्रधनुष कैसा दिखाई देगा यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि पृथ्वी पर हमारी स्थिति क्या है, मतलब कि हम कहां खड़े हैं और प्रकाश किस तरह से पड़ रहा है.

ऐसे में देखा जाए तो सूर्य का प्रकाश और बारिश की बूंदें इंद्रधनुष के लिए आवश्यक तत्व हैं. लेकिन धरती पर जीवाश्म ईंधन और अन्य स्रोतों के कारण बढ़ते उत्सर्जन के चलते वातावरण तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे बारिश की मात्रा और पैटर्न के साथ बादलों पर भी असर पड़ रहा है. जो इंद्रधनुषों के बनने को भी प्रभावित कर रहा है.

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इंद्रधनुषों की भविष्यवाणी करने वाले मॉडल का उपयोग किया है. इसके लिए उन्होंने इंद्रधनुषों दिखाई देने वाले स्थानों, बारिश  के मानचित्र, बादलों की उपस्थिति और सूर्य से कोण सम्बन्धी जानकारियों की मदद ली है. इन जानकारियों और मॉडल की मदद से शोधकर्ताओं ने वर्तमान और भविष्य में इंद्रधनुषों के बनने की घटनाओं की संभावनाओं की गणना की है. मॉडल से जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार द्वीप, इंद्रधनुषों के हॉटस्पॉट हैं.

इस बारे में अध्ययन से जुड़े एटमोस्फियरिक साइंस के प्रोफेसर स्टीवन बसिंगर का कहना है, “द्वीप इंद्रधनुषों को देखने की सबसे अच्छी जगह हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि द्वीपीय क्षेत्र समुद्री पवनों की मदद से रोजाना हवा को ऊपर उठाता है, जिससे साफ आसमान में स्थानीय बौछारों और सूर्य के प्रकाश के कारण इंद्रधनुष बनते हैं.“

देखा जाए तो दुनिया भर में इंद्रधनुष, मानव संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं, जोकि अपनी सुंदरता के कारण मनभावन होते हैं. हालांकि इंद्रधनुषों के बनने की घटना में होने वाले यह परिवर्तन मानव कल्याण को कैसे प्रभावित कर सकते हैं इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन इतना स्पष्ट है कि दुनिया भर में जलवायु में आता बदलाव मानव अनुभवों के सभी पहलुओं को प्रभावित कर रहा है जिसमें इंद्रधनुष भी एक हैं.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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