Report
कॉप-27: जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले दिन ही खींचतान शुरू?
मिस्र में चल रहा जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले दिन ही खींचतान और दांवपेंच का दौर शुरू हो गया. भारत और विकासशील देशों के लिये यह बहुत अहम वार्ता है. विशेष रूप से साल 2022 में हुई एक्सट्रीम वेदर की घटनाओं को देखते हुये. ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि भारत सरकार जो कि इस सम्मेलन की अहम भागीदार है उसका रुख क्या रहेगा?
अच्छी ख़बर यह रही कि सम्मेलन की शुरुआत में ही लॉस एंड डैमेज फंडिंग को वार्ता के एजेंडा में शामिल कर लिया गया जो भारत और अन्य विकासशील देशों के लिये एक उपलब्धि है. लॉस एंड डैमेज यानी हानि और क्षति जलवायु वार्ता में फाइनेंस से जुड़ा पहलू है. इसके तहत अमीर देशों को जलवायु जनित आपदाओं से गरीब और विकासशील देशों में हुई क्षति की भरपाई की मांग की जा रही है. भले ही सम्मेलन में लॉस एंड डैमेज को फाइनेंस एजेंडा में शामिल कर लिया गया है लेकिन जानकारों को इस पर आपत्ति है कि हानि और क्षति की बात करते हुये अमीर देश बरसों से किये गये उत्सर्जन की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं.
कुछ खोया, कुछ पाया
जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क हरजीत सिंह ने ट्वीट कर कहा, “सम्मेलन में हानि और क्षति फाइनेंस को एजेंडा में शामिल कर लिया गया है लेकिन अमीर देशों ने गरीब देशों को (ड्राफ्ट की) ऐसी भाषा पर सहमत होने के लिये मजबूर किया जिससे कई दशकों से उत्सर्जन कर रहे देशों पर मुआवज़े की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी. जो भी हो लॉस एंड डैमेज फाइनेंस पर एक नये अध्याय की शुरुआत हुई है.”
सिंह मानते हैं कि यह “कुछ खोया, कुछ पाया” वाली स्थिति है और कॉप-27 में लॉस एंड डैमेज फाइनेंस की ढांचागत व्यवस्था स्थापित होनी चाहिये.
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में हरजीत सिंह ने कहा, “लॉस एंड डैमेज को फाइनेंस के वार्ता एजेंडा में शामिल होने से उन समुदायों की लड़ाई मज़बूत होगी जिनके घर, फसलें और आमदनी (जलवायु आपदाओं से) नष्ट हो रही है. अमीर देशों ने – जिनके कारण जलवायु संकट पैदा हुआ है – गरीब और छोटे देशों की बांह मरोड़ी है और संकटग्रस्त देशों और समुदायों के सरोकारों को अनदेखा किया है और जवाबदेही और ज़िम्मेदारी से बचने के लिये कमज़ोर भाषा (एजेंडा में) शामिल की है.”
भारत का रुख
जाहिर है जलवायु संकट की मार झेल रहा भारत विकसित देशों की चतुराई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता. भारत ने वार्ता शुरू होने से पहले ही कह दिया था कि वह क्लाइमेट फाइनेंस (यानी अमीर देशों द्वारा विकासशील देशों को धन और टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर) और उसकी स्पष्ट परिभाषा से जुड़े विमर्श पर ज़ोर देगा. क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकसित देश आनाकानी करते रहे हैं लेकिन भारत क्लाइमेट फाइनेंस के साथ हानि और क्षति (लॉस एंड डैमेज) के मुद्दे पर भी ज़ोर दे रहा है. महत्वपूर्ण है कि नई परिस्थितियों में भारत किस तरह से विकसित देशों से मोलतोल करता है.
भारत ने कहा, "जो काम सोच-समझ कर किया जाता है वह हो जाता है", विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त की परिभाषा पर अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है ताकि जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त प्रवाह की सीमा का सटीक आकलन करने में सक्षम हो सकें.
इससे पहले इस साल अक्टूबर में जब एक सोच रखने वाले देशों - जिन्हें लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज़ (एलएमडीसी) कहा जाता है - की मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत ने अपना रुख और एजेंडा स्पष्ट कर दिया था. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने तब विकसित देशों के जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस आदि) के प्रयोग को बढ़ाने के फैसले पर निराशा जताई और कहा, “हर देश के संचयी (cumulative) उत्सर्जन या कार्बन बजट में उसका हिस्सा समानुपातिक और न्यायपूर्ण होना चाहिये.” यादव ने कहा कि अमीर देशों को 100 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का रोड मैप बताना चाहिये.
जीवनशैली पर ज़ोर
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो सम्मेलन में सरल जीवनशैली पर ज़ोर देते हुये “लाइफ (LIFE)” का फलसफा दिया था. यानी लाइफ स्टाइ फॉर इन्वायरेंमेंट. असल में विकसित देशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली ने संसाधनों के अत्यधिक दोहन और बिजली के इस्तेमाल (जिससे कार्बन उत्सर्जन होता है) को बढ़ाना दिया. भारत ने इस बार शर्म-अल-शेख सम्मेलन में सरल जीवनशैली को आधार बनाकर मंडप (पैवेलियन) तैयार किया है.
यादव ने कहा, "मुझे विश्वास है कि, कॉप की अवधि के दौरान, भारतीय मंडप प्रतिनिधियों को याद दिलाता रहेगा कि सरल जीवनशैली और व्यक्तिगत प्रथाएं जो प्रकृति के लिए टिकाऊ हैं, धरती माता की रक्षा करने में मदद कर सकती हैं."
भारत उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सर्वाधिक असर दिख रहा है. और इस लिहाज से क्लाइमेट फाइनेंस और हानि-क्षति की भरपाई के लिये अमीर देशों पर दबाव के लिये इसे एक रणनीति भी माना जा सकता है.
यादव ने कहा,“भारत को जलवायु अर्थव्यवस्था से संबंधित चर्चाओं में पर्याप्त प्रगति की आशा है. हम नई प्रौद्योगिकियों की शुरुआत और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए (विकसित देशों से) नए सहयोग की भी आशा करते हैं."
Also Read
-
What’s Your Ism? Ep 9. feat Shalin Maria Lawrence on Dalit Christians in anti-caste discourse
-
Uttarakhand forest fires: Forest staff, vehicles deployed on poll duty in violation of orders
-
Mandate 2024, Ep 3: Jail in Delhi, bail in Andhra. Behind the BJP’s ‘washing machine’ politics
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Another Election Show: Students of Kolkata’s Jadavpur and Presidency on Modi vs Mamata