Ground Report
कानपुर पैगंबर आंदोलन: 'मंदिर, शत्रु संपत्ति' पर एकतरफा मीडिया रिपोर्ट्स अब चार्जशीट का हिस्सा
अपनी गिरफ्तारी और 3 जून को कानपुर में पैगंबर विरोधी टिप्पणियों पर हिंसक विरोध का समर्थन करने के आरोप में मुख्तार, उनके परिवार और उनके बिरयानी व्यवसाय पर अतीत का एक भूत लौट कर आ गया है.
पिछले कुछ वर्षों में, 65 वर्षीय मुख़्तार को स्थानीय प्रशासन से अपने दुश्मन की संपत्ति को हड़पने और कानपुर के बेकनगंज में स्थित एक मंदिर पर अतिक्रमण करने की शिकायतों के बाद कई बार क्लीन चिट मिली. लेकिन अप्रैल में, जिस जमीन को वो अपनी बताते हैं उसे फिर से केंद्रीय गृह मंत्रालय के नोटिस में शत्रु संपत्ति करार दिया गया, इसके बाद मुख़्तार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया.
हालांकि कोई अंतिम निर्णय आना बाकी है, जून में मुख़्तार की गिरफ्तारी से पहले और बाद में कई रिपोर्टों ने, उनके परिवार का पक्ष पूछे बिना दावा किया कि उनका बिरयानी व्यवसाय दुश्मन की संपत्ति और एक मंदिर पर अतिक्रमण था. यही आरोप मुख़्तार की गिरफ्तारी के दो महीने बाद कानपुर पुलिस की विशेष जांच टीम द्वारा दायर 3,000 पन्नों की चार्जशीट का भी हिस्सा बन गया है.
इस चार्जशीट में पुलिसकर्मियों के साथ-साथ कुछ आरोपियों के बयान भी शामिल हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि मुख़्तार कानपुर हिंसा में शामिल थे, जिसका उद्देश्य बेकनगंज क्षेत्र में "शत्रु संपत्ति" पर नियंत्रण बनाए रखना था.
हिंसा और बाबा की गिरफ्तारी
3 जून को कानपुर के कुछ इलाकों में विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा देखी गई थी जिसमें कम से कम 40 लोग घायल हो गए थे. ये प्रदर्शन नुपुर शर्मा और अन्य भाजपा नेताओं द्वारा पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ की गई टिप्पणी के विरोध में हुए थे.
मुख्तार की गिरफ्तारी के चार दिन बाद 28 जून को बाबा बिरयानी की छह दुकानों को सील कर दिया गया. इससे कुछ दिन पहले 12 जून को सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज एक इकबालिया बयान ने बाबा की बिरयानी चेन को एक अन्य विरोध से जोड़ दिया था. हिंसा के मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी ने कहा कि “सीएए के विरोध के दौरान बाबा बिरयानी रेस्तरां से बिरयानी आती थी.”
मुख्तार के बेटे महमूद उमर ने अपने पिता की अंतरिम जमानत के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, उन्होंने कहा, “हमें केवल इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि हम मुसलमान हैं. 40 साल की अवधि में बनी प्रतिष्ठा बस एक झटके में धूमिल हो गई है.” वे पूछते हैं, “बाबा बिरयानी को जोमैटो और स्विगी जैसे प्रमुख खाद्य वितरण एप्स पर शीर्ष ब्रांडों में जगह दी गई थी. अगर कल, वे (पुलिस) एक विरोध स्थल पर कोल्ड ड्रिंक या पानी की बोतल पाते हैं, तो क्या वे कोका कोला जैसी कंपनियों का पीछा करेंगे?”
आरोपपत्र
मंदिर के बारे में एक दावा पहली बार नए आरोपपत्र में त्रिपुरारी पांडे के एक बयान में दिखाई देता है. पांडे को 25 जुलाई को जौनपुर स्थानांतरित कर दिया गया था, उस समय वे कानपुर एसआईटी में एक एसीपी और मुख्य जांच अधिकारी थे.
पांडे का बयान कहता है, "घटना से कुछ दिन पहले, कई अखबारों में ऐसी खबर छपी थी कि बाबा बिरयानी ने राम जानकी मंदिर सहित दुश्मन की संपत्ति पर कब्जा कर लिया था... इस मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए टिप्पणियों का इस्तेमाल (विरोध के लिए) आधार के रूप में किया गया, ताकि वे एक तीर से दो शिकार कर सकें.”
पांडे के अनुसार, यह परिवारों को जून में हिंसा के केंद्र हिंदू-प्रभुत्व वाले चंदेश्वर हाटा को छोड़ने, और दुश्मन की संपत्ति से ध्यान हटाने का दो तरफा लक्ष्य था. उन्होंने दावा किया कि स्थानीय निवासियों ने उन्हें मुख्तार की भूमिका के बारे में सूचित किया था.
इस रिपोर्ट के अंत में विस्तार से बताए अनिर्दिष्ट समाचारों का उल्लेख अन्य पुलिसकर्मियों ने भी अपने बयानों में किया है.
बेकनगंज थाना प्रभारी नवाब अहमद ने कहा, “ये लोग राम जानकी मंदिर समेत अतिक्रमित संपत्ति पर नियंत्रण बनाए रखना चाहते थे.” कर्तव्य में लापरवाही के लिए हिंसा के लगभग एक महीने बाद निलंबित हुए अहमद ने मुख़्तार पर संलिप्त होने का आरोप भी लगाया, जो मंदिर और शत्रु की संपत्ति को मकसद के रूप में जोड़ देता है.
अहमद ने दावा किया कि मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी ने झूठा आश्वासन दिया कि वह विरोध के आव्हान को वापस ले लेंगे. "जब हाशमी बंद को लेकर आगे बढ़े, तो बिल्डर हाजी वासी, मुख्तार बाबा और उनके सहयोगियों ने मुलाकात की और हाटा में भूमि पर अतिक्रमण करने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करने की योजना बनाई." उन्होंने आरोप लगाया कि ये मीटिंग बाबा, उनके बेटे महमूद, हाजी वासी और उनके प्रबंधक हमजा के बीच हुई, और महमूद ने किसी अफजल को "हिंसा में भाग लेने" का भुगतान करने के लिए 10 लाख रुपए दिए.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले पुलिस की इस थ्योरी पर रिपोर्ट की थी कि "स्थानीय मुसलमान, दंगों की आड़ में हिंदू भूमि पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे.”
चार्जशीट में चमनगंज एसएचओ जैनेंद्र सिंह तोमर, बेकनगंज थाने के ड्राइवर मुस्तफा खान और रायपुरवा एसएचओ विनय शर्मा ने भी इसी तरह के दावे किए हैं.
तोमर, जो हिंसा के दिन वीवीआईपी ड्यूटी पर थे, ने कहा, “मुख्तार अहमद उर्फ बाबा बिरयानी के डी2 गिरोह से संबंध हैं, जिसने उन्हें सस्ते दामों पर जमीन खरीदने में मदद की है.”
D2 गिरोह कहा जाना, उस आपराधिक समूह के संदर्भ में है जिसकी शुरुआत 1975 में कानपुर में हुई थी. “दंगा करने के लिए एक मोटी राशि का भुगतान किया गया था. इसी तरह बाबा बिरयानी ने कई दुश्मन संपत्तियों के साथ-साथ अन्य हिंदू संपत्तियों और धार्मिक स्थलों पर कब्जा करने में कामयाबी पाई है.”
विनय शर्मा और मुस्तफा खान के बयानों में भी अमूमन ऐसे ही शब्द हैं.
22 जून को सीआरपीसी के तहत 161 के तहत एक इकबालिया बयान में मुख़्तार ने माना कि उन्होंने विरोध का समर्थन किया, और उनकी सभी संपत्तियों में डी2 गिरोह की भूमिका थी.
मंदिर और दुश्मन की प्रॉपर्टी
पिछले कुछ वर्षों में, कुछ स्थानीय समूहों और व्यक्तियों द्वारा दुश्मन की संपत्ति को हथियाने के आरोप में मुख्तार को अदालत ले जाया गया. लेकिन उनके परिवार ने 2019 और 2020 के दो प्रशासनिक आदेश और 2021 की पुलिस क्लोजर रिपोर्ट साझा करते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दी.
19 अक्टूबर, 2019 को, कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट की अदालत को सूचित किया कि संपत्ति मूल रूप से लालता प्रसाद की थी, और वहां एक मंदिर था जहां दैनिक अनुष्ठान किए जाते थे. लेकिन प्रसाद के पोते ने प्रशासन को सूचित किया कि संपत्ति का एक हिस्सा मौला बख्श को बेच दिया गया था. प्रसाद के पोते शिवशरण गुप्ता ने अपने बयान में कहा, "मूर्तियों को 2002 में यशोदा नगर में हमारे नए घर में ले जाया गया था”, क्योंकि मंदिर "जर्जर अवस्था" में था. “संपत्ति संख्या 99/14A में न तो कोई मंदिर है, और न ही कोई मूर्ति.”
ये जमीन 1982 में कानपुर निवासी आबिद रहमान ने मुख्तार की मां हाजरा खातून को बेची थी, जिसे 1967 में एक अन्य स्थानीय मौला बख्श के परिवार ने हिबानामा या उपहार विलेख के माध्यम से प्राप्त किया था. बख्श ने 1947 में लालता प्रसाद के परिवार से एक प्लॉट खरीदा था.
अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश ने 2019 में उल्लेख किया कि "इस संपत्ति पर राम जानकी मंदिर की उपस्थिति के साथ-साथ मुख्तार बाबा द्वारा अवैध कब्जे के आरोप निराधार हैं."
दिसंबर 2020 में एक और शिकायत के बाद, अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट के एक अन्य कार्यालय ने एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से मुख्तार को क्लीन चिट दे दी. और उन्होंने कहा कि ये जमीन दुश्मन की संपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि रहमान का जन्म कानपुर में हुआ था और उनके दादा-दादी भी इसी शहर में दफन हैं.
जनवरी 2021 में, उस समय तक एक पुलिस सर्कल अधिकारी के रूप में तैनात त्रिपुरारी पांडे ने एक अन्य शिकायत के बाद, एक प्रतिक्रिया दी कि मामले में "किसी भी पुलिस हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. शत्रु संपत्ति के संबंध में शिकायतों के पत्रों और एक मंदिर के ऊपर एक मिठाई की दुकान बनाए जाने की शिकायतें केवल मुख्तार बाबा को परेशान करने के लिए नियमित रूप से दायर की जाती हैं."
न्यूज़लॉन्ड्री ने शत्रु संपत्ति और मंदिर के बारे में एसआईटी के आरोपों पर कानपुर पुलिस आयुक्त को कुछ सवाल भेजे हैं, जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
गृह विभाग का नोटिस और ‘मीडिया ट्रायल’
18 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शत्रु संपत्ति संरक्षक के कार्यालय की ओर से शत्रु संपत्ति नियमों के तहत मुख़्तार को एक नोटिस जारी किया - यह एक केंद्रीय विभाग है, जो शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत उचित संपत्ति के अधिग्रहण का अधिकार रखता है. "ऐसा लगता है कि उक्त संपत्ति 10 सितंबर, 1965 से 26 सितंबर, 1977 के बीच एक पाकिस्तानी नागरिक की ओर से रखी और प्रबंधित की जा रही थी."
नोटिस में 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा गया था, जिसमें विफल रहने पर संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया जाएगा, लेकिन मुख़्तार ने इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी कि "वह कानूनी रूप से संपत्तियों के कब्जे में हैं." 31 मई को एक खंडपीठ ने अधिकारियों को "याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने" और "याचिकाकर्ता को दस्तावेजों के आधार पर व्यक्तिगत सुनवाई करने" का निर्देश दिया.
लेकिन मीडिया की एक के बाद एक रिपोर्ट में, मुख़्तार के परिवार के किसी भी तरह के बयान के बिना, दुश्मन की प्रॉपर्टी और एक मंदिर के दावों को बार बार दोहरा कर मजबूती दी गई थी.
20 मई को, "ईंट से ईंट, बिरयानी रेस्तरां बनाने के लिए एक मंदिर को तोड़ा गया" शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में दैनिक जागरण ने दावा किया कि जिस संपत्ति पर राम जानकी मंदिर खड़ा था, वह एक पाकिस्तानी नागरिक आबिद रहमान की थी. आरोप लगाया गया कि 3,600 वर्ग फुट में एक मांसाहारी रेस्तरां बनाने के लिए हिंदुओं की दुकानों को ढहाया गया.
19 मई को, आईएएनएस ने इसी तरह की एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया था कि एक पाकिस्तानी नागरिक ने 1962 में भारत छोड़ दिया था, और उसी ने 1982 में बाबा को मंदिर की संपत्ति बेच दी थी. इस रिपोर्ट को टाइम्स नाउ और न्यूज़18 वेबसाइटों और दक्षिणपंथी पोर्टल हिंदू पोस्ट ने उठाया था.
यह आवेग थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बीच भाजपा की कानपुर महापौर प्रमिला पांडे ने 28 मई को बेकनगंज, दलेल पुरवा, बजरिया और कर्नलगंज जैसे मुस्लिम बाहुल्य इलाकों का दौरा किया. उनके पड़ावों में एक बाबा बिरयानी आउटलेट और पास का विवादित प्लॉट था. बाद में उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि ऐसी 124 संपत्तियों की पहचान की गई है जहां मंदिरों का अतिक्रमण किया गया है।
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज से जुड़े एक स्थानीय कार्यकर्ता आलोक अग्निहोत्री ने कहा कि कुछ समूह चंदेश्वर हाटा के आसपास की जमीन पर नजर गड़ाए हुए हैं, जो बेकनगंज में बाबा की "शत्रु संपत्ति" तक ले जाती है, क्योंकि यह "मूल्यवान" है. उन्होंने दावा किया कि मीडिया ट्रायल के जरिए मुख्तार को निशाना बनाया गया है.
बाबा की गिरफ्तारी के बाद भी मीडिया ने इसी तरह की चीज़ों को प्रसारित किया, जिसमें मुख्यधारा के प्रकाशनों जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया और दक्षिणपंथी वेबसाइटों जैसे ऑपइंडिया जैसे संसथान शामिल थे. दोनों ही तरह के प्रकाशनों ने परिवार से कुछ जाने बिना रिपोर्ट की.
मुख्तार के बेटे महमूद ने कानपुर में न्यूज़लॉन्ड्री से पूछा, "क्या हमें दिल्ली आना चाहिए और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करना चाहिए? क्या वे (मीडिया) हमारी बात सुनेंगे?" हिंसा के लिए साजिश और फंडिंग के बारे में पुलिस के आरोपों से इनकार करते हुए उन्होंने पूछा कि अगर उनके पिता डी2 गिरोह से जुड़े हैं, तो उनके खिलाफ कोई मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया. "हां, हमारी दाढ़ी है, क्या इसका मतलब है कि हम अपराधी हैं?"
Also Read
-
The Rs 444 question: Why India banned online money games
-
‘Total foreign policy failure’: SP’s Chandauli MP on Op Sindoor, monsoon session
-
On the ground in Bihar: How a booth-by-booth check revealed what the Election Commission missed
-
A day in the life of an ex-IIT professor crusading for Gaza, against hate in Delhi
-
Crossing rivers, climbing mountains: The story behind the Dharali stories