Report
खड़गे बनाम थरूर: कैसा चल रहा है कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव अभियान
शशि थरूर के एक प्रचारक ने अमेठी से कांग्रेस के एक प्रतिनिधि का समर्थन मांगते हुए कहा, "नमस्कार सर, मैं शशि थरूर सर के कार्यालय से बोल रहा हूं. आप जानते हैं कि चुनाव आ रहे हैं और खड़गे और थरूर साहब दोनों ही राहुल और प्रियंका गांधी जी की पसंद हैं. कृपया ध्यानपूर्वक वोट करें."
थरूर और राज्यसभा सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को होने वाले 'दोस्ताना मुकाबले' में वोट देने के लिए 9,000 से अधिक पार्टी प्रतिनिधियों को मना रहे हैं. दोनों की रणनीति एक जैसी ही है, लेकिन सफलता का स्तर अलग-अलग है. थरूर के सांसद आवास से काम कर रहे उनके प्रचारक के पास उत्तर प्रदेश के 1,200 नामों की सूची है, जिन्हें वोट देने के लिए राज़ी करना है. उन्होंने पिछले चार दिनों में इनमें से करीब 200 लोगों से बात की है.
दोनों उम्मीदवारों ने अपने समर्थकों को अपने राज्यों के प्रतिनिधियों से फोन पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने का काम सौंपा है. थरूर और खड़गे खुद भी प्रतिनिधियों से बात करने और उन्हें अपनी तरफ लाने के लिए कई राज्यों का दौरा कर चुके हैं.
वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले खड़गे कम से कम आठ राज्यों के पार्टी मुख्यालयों का दौरा कर चुके हैं, और थरूर चार राज्यों का.
10 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद थरूर ने अपना यूपी दौरा रद्द कर दिया. मीडिया के साथ साक्षात्कारों में उन्होंने पार्टी का विकेंद्रीकरण करने के अपने संदेश को दोहराया. 23 पुस्तकें लिख चुके थरूर ने एक फिल्म समारोह, तीन टाउन हॉल बैठकों, एक पुस्तक के विमोचन और मुंबई के एक मीडिया संस्थान में आयोजित स्मृति व्याख्यान में भी भाग लिया. इन सभी अवसरों पर सभागार दर्शकों से खचाखच भरे थे, लेकिन इनमें से कोई भी कांग्रेस चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं रखता. तीन बार के सांसद और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अधिकारी रह चुके थरूर ने कुछ वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात की है.
पंजाब कांग्रेस के एक नेता, जिन्होंने 'पार्टी के प्रति उनके दृष्टिकोण' के समर्थन में 66-वर्षीय थरूर का साथ देने का निर्णय लिया, कहते हैं कि वे प्रतिनिधियों से इस प्रकार संपर्क करते हैं कि इसकी खबर ज्यादा लोगों को न लगे. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “चूंकि इस बात की आशंका है कि थरूर समर्थकों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए मुझे अलग-अलग तरीकों से प्रतिनिधियों से संपर्क करना होता है. मसलन मैं किसी को एक प्रतिनिधि को कॉल करने के लिए कहता हूं. वह व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से संपर्क करेगा और बहुत नजाकत से उस प्रतिनिधि की पसंद का पता लगाएगा.”
फिलहाल, प्रतिनिधियों के मूड का अंदाजा लगाने के लिए एकमात्र मापदंड, प्रत्येक उम्मीदवार के दौरों के समय राज्य के पार्टी कार्यालयों में उनकी उपस्थिति है.
इस मामले में नौ बार के विधायक और तीन बार सांसद रहे खड़गे थरूर से आगे दिखते हैं. जहां केरल के पार्टी कार्यालय में थरूर के दौरे के समय लगभग सभी प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे, वहीं तमिलनाडु में लगभग 700 में से केवल एक दर्जन प्रतिनिधियों ने ही उन्हें सुना. थरूर के प्रति यही उदासीनता महाराष्ट्र में भी देखने को मिली. एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में थरूर की निराशा साफ़ झलक रही थी, उन्होंने कहा, "अगर लोग मेरी बैठकों में इसलिए नहीं आते क्योंकि वह मेरे साथ देखे जाने से डरते हैं, तो मुझे खेद है कि इसमें उन्हीं का घाटा है. क्योंकि साथी कार्यकर्ताओं के तौर पर हम रचनात्मक बातचीत कर सकते थे."
इसके विपरीत खड़गे, जिन्होंने राज्य कार्यालयों में थरूर से दो गुना अधिक बैठकें की हैं, खचाखच भरे सभागारों को संबोधित करते हैं. जब उन्होंने 9 अक्टूबर को दिल्ली कांग्रेस कार्यालय का दौरा किया तो राम बाबू शर्मा सभागार में कुल 280 प्रतिनिधियों में से 200 के करीब उपस्थित थे. लगातार हो रही बूंदाबांदी ने भी आने वालों का हौसला कम नहीं किया. प्रवेश द्वार पर एक कांग्रेस कार्यकर्ता प्रतिनिधियों की सूची लिए आगंतुकों पर नज़र रख रहा था, और आने वालों के नाम के आगे टिक लगा रहा था. उपस्थित लोगों में सांसद और दिल्ली प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल, राज्य पार्टी प्रमुख अनिल चौधरी और पार्टी के दिग्गज नेता जनार्दन द्विवेदी प्रमुख थे. बंद दरवाजे के पीछे प्रतिनिधियों से मिलने के पहले 80 वर्षीय खड़गे ने सांसदों सैयद नासिर हुसैन और दीपेंद्र हुड्डा और पार्टी नेता गौरव वल्लभ को साथ लेकर एक संक्षिप्त प्रेस वार्ता की, और फिर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच राम बाबू सम्मेलन हॉल में प्रवेश किया. सभा में उपस्थित एक व्यक्ति ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि भाषणों के बीच में "खड़गे सर, जिंदाबाद" के नारे गूंज रहे थे.
Also Read: कांग्रेस की नई मीडिया टीम: टीम नई, तेवर नई
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else