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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फिर लगाई फटकार, नफरती भाषणों पर मूकदर्शक क्यों है सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच पर लगाम लगाए जाने को लेकर सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि सरकारें नफरती भाषणों को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को जरूरत है कि हेट स्पीच पर तुरंत कार्रवाई करे, लेकिन सरकार को इसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही है.

देश में लगातार हो रही हेट स्पीच के खिलाफ याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी ने कोर्ट में एक याचिका डाली थी, जिसकी सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि 2024 के चुनावों से पहले देश को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर लगातार नफरती भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है.

याचिकाकर्ता की बात को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि आपका कहना ठीक है कि देश में हेट स्पीच बढ़ती जा रही है, लेकिन किसी मामले पर कार्रवाई करने के लिए एक तथ्यात्मक ब्यौरे का होना जरूरी है.

पीठ ने कहा कि हरप्रीत मनसुखानी के द्वारा दायर याचिका में 58 घटनाओं का जिक्र है. जिसमें नफरती भाषणों के बारे में बताया गया है लेकिन इसमें किसी भी अपराध का ब्यौरा नहीं दिया हुआ है, कि घटना कब हुई, कितने लोग गिरफ्तार हुए, कितनो के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हुए. इस याचिका में तथ्य न होने की वजह से अदालत इस पर कोई संज्ञान नहीं ले सकती है. इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि अदालत आपको समय देती है कि इन घटनाओं को लेकर तथ्यात्मक ब्यौरा दिया जाए. जिसके लिए कोर्ट ने 31 अक्टूबर तक का समय दिया है और साथ ही कहा कि मामले की अगली सुनवाई नवंबर में होगी.

इसके साथ ही एक और याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिल्ली और उत्तराखंड पुलिस से जवाब मांगा. तुषार गांधी के द्वारा हेट स्पीच को रोकने के लिए एक याचिका दायर की गई थी. जिसमें कहा गया था कि दोनों राज्यों की पुलिस ने कोर्ट के 2018 के फैसले की अवमानना की है जिसमे नफरती भाषणों को रोकने के लिए दिशानिर्देश दिए गए थे. याचिकाकर्ता ने कहा था कि हरिद्वार और दिल्ली धर्म संसद में दिए गए हेट स्पीच को लेकर कर्रवाई करने की मांग की गई थी.

इससे पहले भी कोर्ट टीवी चैनलों में लगातार हो रही नफरती भाषणों को लेकर सरकार को फटकार लगा चुका है. कोर्ट ने कहा था कि ऐसे भाषणों को लेकर सरकार मूकदर्शक बनी हुई है. वो विधि आयोग के द्वारा दी गई सिफारिशों पर कानून बनाना चाहती है या नहीं. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि एंकर की ज़िम्मेदारी है कि वो टीवी कार्यक्रमों में नफरत भरी बातों को न होने दे.

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