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भारत सरकार ऑनलाइन कंटेंट को 'ब्लॉक' कैसे करती है?

लगभग हर हफ्ते, या तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक घोषणा होती है या इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जानकारी लीक होती है कि भारत में कुछ वेबसाइट, सोशल मीडिया अकाउंट, यूट्यूब चैनल और एप्स ब्लॉक कर दिए गए हैं. हर बार ऐसा होने के बाद शोर होता है कि ये प्रक्रिया किस प्रकार अपारदर्शी है, ब्लॉक करने के कारण लचर हैं और इसके पीछे के इरादे स्पष्ट नहीं हैं.

इस श्रृंखला में सबसे ताज़ा कड़ी, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के द्वारा 10 यूट्यूब चैनलों के 45 वीडियो पर लगाई रोक थी.

लेकिन यह प्रक्रिया कैसे काम करती है? आइए इसे समझते हैं.

हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालयों के पास सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A के ब्लॉकिंग नियम मौजूद हैं, लेकिन सूचना व प्रसारण मंत्रालय के पास ये ताकत यकीनन आईटी नियम 2021 और नवंबर 2020 में व्यावसायिक नियमों के आवंटन में किए गए संशोधन से आती है. फिलहाल इस बारे में काफी अनिश्चितता है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास फिलहाल आदेश जारी करने की शक्ति है या नहीं - इस अनिश्चितता की आंशिक वजह बॉम्बे और मद्रास उच्च न्यायालयों द्वारा आईटी नियम, 2021 के तहत कुछ नियमों पर लगाए गए स्टे हैं.

जैसा कि आईटी अधिनियम की धारा 69 ए में निर्धारित किया गया है, ऐसे छह कारण हैं जिसके लिए आईटी मंत्रालय ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने का आदेश दे सकता है, इनमें से कम से कम एक को संतोषजनक होना ही चाहिए: भारत की संप्रभुता और अखंडता, रक्षा मामले, देश की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था और उपरोक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध के लिए भड़काए जाने से रोकना.

उदाहरण के लिए, सरकार ने इस ट्वीट के खिलाफ एक अवरुद्ध आदेश जारी किया जिसमें लिखा था, "आज गुजरात जो भुगत रहा है, कल भारत भुगतेगा." वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने 26 सितंबर को कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष बहस करते हुए तर्क दिया कि सरकार ने यह साफ़ नहीं किया कि इस ट्वीट ने धारा 69 ए के तहत सूचीबद्ध छह कारणों में से किसी का उल्लंघन कैसे किया. फिलहाल दातार कर्नाटक उच्च न्यायालय में ट्विटर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जहां ट्विटर ने सरकार के ब्लॉक करने के आदेशों की वैधता को चुनौती दी है.

दातार ने एक अन्य ट्वीट का हवाला दिया जिसमें कहा गया था, "मैं अपने देश से प्यार करता हूं. मुझे अपनी सरकार पर शर्म आती है." यह स्पष्ट नहीं है कि इसे किसने ट्वीट किया क्योंकि ट्वीट्स को सीलबंद लिफाफे में अदालत में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन दुनिया भर में किसी भी सरकार की आलोचना करते समय यह ट्वीट एक आम व पर्याप्त परहेज रखती है. जैसा कि दातार ने सोमवार को न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित के समक्ष तर्क दिया, "हर विपक्षी दल कहेगा कि यह एक लोकतंत्र है. मैं कड़े शब्दों में सरकार की आलोचना कर सकता हूं."

इसी तरह, पत्रकार तनुल ठाकुर ने 2018 में दूरसंचार विभाग द्वारा दहेज प्रथा का मजाक उड़ाने वाली उनकी व्यंग्यात्मक वेबसाइट दहेज कैलकुलेटर को ब्लॉक किए जाने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. ठाकुर के मामले के परिणामस्वरूप, पहली बार गोपनीय ब्लॉक करने के आदेश, बिचौलियों से परे इंटरनेट के एक व्यक्तिगत इस्तेमाल करने वाले के साथ साझा किए गए थे.

सूचना व प्रसारण मंत्रालय के ब्लॉक करने के अधिकार को लेकर असमंजस

आईटी नियम 2021 का भाग 3 समाचार प्रकाशकों और ऑनलाइन क्यूरेटेड सामग्री (स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म) के प्रकाशकों से संबंधित है. नवंबर 2020 के व्यापार नियमों के आवंटन में संशोधन के बाद, संबंधित मंत्रालय सूचना व प्रसारण मंत्रालय है, जिसे इस संशोधन ने ऑनलाइन ऑडियो और वीडियो सामग्री और डिजिटल समाचार प्रकाशकों पर नियंत्रण दिया.

पिछले साल पूरे देश में, इस भाग 3 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई थीं. अगस्त 2021 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने नियम 9(1) और 9(3) पर रोक लगा दी - 9(1) के अनुसार डिजिटल प्रकाशकों को आचार संहिता का पालन करना आवश्यक है, और 9 (3) के अनुसार डिजिटल प्रकाशकों के लिए एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र निर्धारित करना आवश्यक है.

सितंबर 2021 में, इस भ्रम के कारण कि क्या बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का पूरे भारत में प्रभाव होगा, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट के नियमों (नियम 9 सहित) का पालन करने के आदेश के बाद प्रकाशकों को नोटिस जारी किए गए थे, मद्रास उच्च न्यायालय ने भी सितंबर 2021 में नियम 9(1) और 9(3) पर लगे स्टे की पुष्टि की.

लेकिन नियम 9(3) पर रोक का क्या मतलब है, इस पर दो अलग-अलग विचारधाराएं हैं.

पहले विचार के हिसाब से, भाग 3 पर पूरी तरह से स्टे है, क्योंकि सूचना व प्रसारण मंत्रालय की अध्यक्षता में एक अंतर-विभागीय समिति का गठन - जो शिकायत निवारण तंत्र का तीसरा स्तर है - नियम 9(3) से ही अपना अस्तित्व हासिल करती है. इस समिति और इसके अध्यक्ष के अस्तित्व के बिना आपातकालीन अवरोधन आदेश कैसे जारी किए जा सकते हैं? इस प्रकार, जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश प्रभावी है, तब तक सूचना व प्रसारण मंत्रालय के पास ब्लॉक करने की शक्तियां नहीं होंगी.

दूसरी विचारधारा का मानना ​​है कि केवल त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र को ही निलंबित किया गया है, जबकि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास आपातकालीन ब्लॉक के आदेश जारी करने की शक्तियां अभी भी हैं. इसका मतलब यह भी है कि स्व-नियामक निकाय - तंत्र के दूसरे स्तर का गठन करते हुए - किसी भी शिकायत को टियर थ्री, यानी अंतर-विभागीय समिति को नहीं भेज सकते. इतना ही नहीं, इसका मतलब यह भी होगा कि स्व-नियामक निकायों का गठन और एमआईबी के साथ उनका पंजीकरण भी आवश्यक नहीं है, क्योंकि ये सभी बाध्यताएं नियम 9(3) के लागू होने से ही पैदा हुई हैं.

एक अच्छी बात ये है कि अभी तक कोई भी शिकायत वास्तव में तीसरे स्तर तक नहीं पहुंची है. लेकिन प्रत्येक पंजीकृत स्व-नियामक निकाय टियर वन (प्रकाशक द्वारा नियुक्त शिकायत अधिकारी) से आगे बढ़ गई शिकायतों से निपट रहा है.

जिन विशेषज्ञों से हमने बात की, वे इस बात से सहमत थे कि त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र निलंबित है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दो उच्च न्यायालयों द्वारा स्व-नियामक निकाय बनाने और पंजीकृत करने की बाध्यता के बावजूद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ पंजीकृत आठ स्व-नियामक निकायों में से छह ने, बॉम्बे हाईकोर्ट के स्टे के बाद ही अपना पंजीकरण कराया. ये सभी काम करना जारी रखे हुए हैं, जिसका मुख्य कारण गैर-अनुपालन या आज्ञा न मानने वाला कहे जाने का डर है.

मंत्रालय के पास कौन सी शिकायत जाती है?

यह काफी हद तक स्पष्ट है. किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और "समस्याग्रस्त" वेबसाइटों पर उपयोगकर्ता-जनित सामग्री का निर्णय, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के तहत धारा 69A समिति द्वारा किया जाता है.

समाचार और करंट अफेयर्स के प्रकाशकों और ऑनलाइन क्यूरेट की गई सामग्री के प्रकाशकों की सभी सामग्री, सूचना व प्रसारण मंत्रालय के तहत अंतर-विभागीय समिति के पास जाती है.

लेकिन सब कुछ स्पष्ट नहीं है.

उदाहरण के लिए, यदि कोई आम व्यक्ति फेसबुक पर विवादास्पद सामग्री पोस्ट करता है, तो उसकी पोस्ट इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के पास जाएगी. अगर न्यूज़लॉन्ड्री की वेबसाइट या उसके यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक चैनलों पर न्यूज़लॉन्ड्री की सामग्री के साथ कोई समस्या है, तो यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास जाएगी.

लेकिन अगर मैं, न्यूज़लॉन्ड्री में कार्यरत एक पत्रकार, का एक व्यक्तिगत ट्विटर अकाउंट है जिसका उपयोग मैं काम के लिए और इधर-उधर की पोस्ट करने के लिए करती हूं - तो मेरी संभावित विवादास्पद सामग्री किस मंत्रालय में जाएगी? मैं अपनी रिपोर्ट पोस्ट करने और अनर्थक राय व्यक्त करने के लिए अपने ट्विटर अकाउंट का उपयोग करती हूं. यह बात, ज्यादातर पत्रकारों के सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए सत्यता है.

इसी तरह, किसी सोशल मीडिया अकाउंट को एक समाचार प्रकाशक के खाते के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा क्या है? अगर आईटी नियमों के नियम 18 के तहत सूचना और प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण ही सीमा है (जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय को सूचना प्रस्तुत करना अनिवार्य करता है), तो क्या इसका मतलब यह है कि कोई भी खाता जो वर्तमान मामलों से संबंधित है लेकिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ पंजीकृत नहीं है, वह इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय में जाएगा?

ऐसा लगता तो नहीं है. उदाहरण के लिए, यूट्यूबर ध्रुव राठी के वीडियो को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 23 सितंबर को ब्लॉक कर दिया था. राठी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन उनकी सामग्री आमतौर पर करंट अफेयर्स से संबंधित होती है. और इंटरनेट पर, कौन समाचार प्रकाशक है कौन नहीं, इसको लेकर स्पष्ट सीमाओं के अभाव में, आईएएस उम्मीदवारों को ध्यान में रखकर बने सभी यूट्यूब चैनल सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आएंगे - लेकिन ऐसा है नहीं.

भारत के नक़्शे से जुडे विवाद

सरकार अक्सर भारत के नक्शे के गैर-भारतीय संस्करणों का उपयोग करने वाली वेबसाइटों और सोशल मीडिया सामग्री के खिलाफ धारा 69 ए के तहत ब्लॉक करने के आदेश जारी करती है. यह विशेष रूप से उन नक्शों के लिए सच है, जो जम्मू और कश्मीर की सीमाओं को भारत द्वारा मान्यता प्राप्त सीमाओं से अलग दर्शाते हैं, या अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दिखाते हैं.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोई अन्य देश या अंतर्राष्ट्रीय निकाय, मानचित्र के भारतीय संस्करण को मान्यता नहीं देता है. नतीजतन, अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन और वेबसाइटें अक्सर ऐसे संस्करण प्रकाशित करती हैं, जो भारत के संस्करण के अनुरूप नहीं हैं.

इसी वजह से ध्रुव राठी के वीडियो को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हटा दिया था, और विकिपीडिया और ट्विटर को अतीत में इसके लिए आड़े हाथों लिया गया है.

राठी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि "मानचित्र को गलत तरीके से चित्रित करने का मेरा इरादा नहीं था", उन्होंने इशारा किया कि उसी वीडियो में पाकिस्तानी मानचित्र के भारत के संस्करण का भी इस्तेमाल किया गया था.

उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि सही नक्शा क्या है और क्या नहीं है, मैं हमेशा अपने संपादकों को इसके बारे में सतर्क रहने के लिए कहता हूं. अब यह बात एक विवाद बन गई है, यूट्यूब पर इस बारे में बात करने और गलत नक्शा दिखाने वाले कई वीडियो हैं. क्या वे वीडियो भी हटा दिए जाएंगे?”

राठी के मामले में, उन्होंने कहा कि जैसे ही यूट्यूब ने कानूनी शिकायत के बारे में उनसे संपर्क किया, उन्होंने कार्रवाई की. उन्होंने कहा कि उन्होंने सूचित किए जाने के एक दिन के भीतर ही नक्शे को धुंधला कर दिया, लेकिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने दो दिन बाद भी उनके वीडियो को ब्लॉक कर दिया.

उन्होंने कहा, "यहां क्या प्रक्रिया है? सबसे पहले, उन्हें ये स्पष्ट करना जरूरी है. अगर कोई समस्या है, तो क्या वे वीडियो को हटा ही देंगे? क्या वे लोगों को अपनी गलतियों को सुधारने का समय देंगे? सच कहूं तो कुछ भी स्पष्ट नहीं है."

भारत के नक्शे के आसपास के मुद्दे ने भी पर्याप्त स्व-सेंसरशिप का काम किया है. उदाहरण के लिए, टॉम क्रूज़ के मिशन इम्पॉसिबल: फॉलआउट का आखिरी हिस्सा कश्मीर को लेकर था. क्रूज का किरदार वास्तव में जगह का उल्लेख करता है और फिल्म एक नक्शा दिखाती है, जिसमें टीम की यूरोप से कश्मीर तक की यात्रा को दर्शाया गया है. लेकिन यह नक्शा भारतीय संस्करण नहीं था. नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅान प्राइम, दोनों ने ही भारत में फिल्म को संपादित किया ताकि फिल्म में कश्मीर का कोई उल्लेख न हो या नक्शा न दिखाई दे.

क्या प्रभावित लोगों के लिए कोई रास्ता है?

धारा 69ए और आईटी नियमों के तहत ब्लॉकिंग नियम एक नामित अधिकारी और एक अधिकृत अधिकारी देते हैं, जो विवादित सामग्री के पीछे के व्यक्ति को खोजने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास करते हैं, ताकि वो व्यक्ति संबंधित समितियों के समक्ष उपस्थित हो सके. लेकिन हकीकत में ऐसा कम ही होता है. फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसे बड़े बिचौलिए ही उनके सामने पेश होते हैं, कोई व्यक्ति नहीं.

इसके बाद एकमात्र सहारा रिट याचिकाओं के साथ अदालतों का दरवाजा खटखटाना है. ऐसा केवल चार बार हुआ है: फेसबुक ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में धारा 69ए के आदेश को चुनौती दी; ट्विटर ने कर्नाटक हाई कोर्ट में ब्लॉकिंग ऑर्डर को चुनौती दी; तनुल ठाकुर ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया; और श्रेया सिंघल ने उसी याचिका में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसमें आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को हटा दिया गया था.

व्यक्तियों और छोटे संगठनों के लिए इन आदेशों को चुनौती देना कठिन है. इसके अलावा, अगस्त 2022 की एक आरटीआई में मिले जवाब से पता चलता है कि 2009 में ब्लॉकिंग नियम पारित होने के बाद से, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय की समीक्षा समिति ने सामग्री के एक हिस्से तक को भी अनब्लॉक नहीं किया है, जिससे यह संदेश जाता है कि ब्लॉक हमेशा के लिए हैं और सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है.

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