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पढ़ाई में फिसड्डी रहे पुलकित आर्य के सर चढ़कर बोलता था सत्ता का नशा

साल 2007 में अक्षय कुमार और विद्या बालन अभिनीत फिल्म भूल भुलैया रिलीज हुई थी. उसके कुछ दृश्यों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को नाराजगी थी. हरिद्वार में एबीवीपी से जुड़े छात्र प्रदर्शन कर रहे थे, जिसका नेतृत्व पुलकित आर्य के हाथ में था. प्रदर्शन की फोटो खींचने के लिए पुलकित अपने साथ मॉडल कॉलोनी स्थित केनवुड स्टूडियो से एक फोटोग्राफर लेने पहुंचा था. व्यस्तता के कारण दुकान के मालिक ने फोटोग्राफर भेजने में असमर्थता जताई. इस पर भड़के पुलकित ने स्टूडियो पर पत्थरबाजी करा दी थी.

उस वक़्त दुकान पर मौजूद रहे केनवुड स्टूडियो के मालिक न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं. ‘‘तब कारीगर खाना खाने गए थे, मैं व्यस्त था. हमने फोटोग्राफर भेजने से इनकार कर दिया. उसने पहले धमकी दी. हमने अनसुना कर दिया. देखते-देखते एबीवीपी के 20 के करीब छात्र जमा हो गए. पुलकित के कहने पर उन्होंने दुकान में तोड़फोड़ शुरू कर दी. उसके पिता को हम जानते थे. इसलिए हमने पहले उसे समझाया, लेकिन वो सुना नहीं. हमने भी कुछ छात्रों की पिटाई की और पुलिस को बुला लिया. बाद में उसके पिता और भाई आए और शिकायत नहीं करने की बात कहते हुए माफी मांगने लगे. तब हमने पुलिस में लिखित शिकायत नहीं दी और वह जेल जाने से बच गया.’’

दुकान के मालिक अफसोस जताते हैं, ‘‘काश की हम तब शिकायत कर देते और वो जेल चला जाता तो आज अंकिता शायद बच जाती. अब तो इसे फांसी होनी चाहिए.’’

केनवुड स्टूडियो, जहां पुलकित ने की थी मारपीट

19 वर्षीय अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में जेल में बंद पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य हरिद्वार में आरएसएस का जाना-माना नाम हैं. बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए. खुद पुलकित कॉलेज के दिनों में एबीवीपी से जुड़ा रहा. कॉलेज में पढ़ाई में फिसड्डी रहे पुलकित पर 420 का मुकदमा भी दर्ज है. हालांकि वह पास तो हो गया, लेकिन यूनिवर्सिटी ने उसे डिग्री नहीं दी है.

‘आर्य 420’

पुलकित आर्य ने ऋषिकुल आयुर्वेद महाविद्यालय से बैचलर ऑफ मेडिकल साइंस (बीएएमएस) की पढ़ाई की है. यहां दाखिला लेने के लिए उसने अपनी जगह किसी और छात्र को बैठाया था, जिसको लेकर 2016 में ऋषिकुल के तत्कालीन निदेशक आदित्य नारायण पांडेय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 419, 468, 471, 34, 120B और 109 के तहत कोतवाली हरिद्वार में मामला दर्ज कराया था.

कोतवाली हरिद्वार में दर्ज मुकदमे में पुलकित नौवां आरोपी है. दर्ज एफआईआर के मुताबिक 2013 बैच (पुलकित इसी बैच का था) के 18 छात्रों ने, 2014 बैच के तीन छात्रों और तीन अन्य छात्रों ने एंट्रेंस पेपर में अपनी जगह किसी दूसरे को बैठाया था.

ऋषिकुल के वर्तमान निदेशक दिनेश चंद्र सिंह ने भी पुलकित को पढ़ाया है. वे बताते हैं, ‘‘जब शिकायत दर्ज हुई तो विश्वविद्यालय ने इन छात्रों के पढ़ाई करने और परीक्षा देने पर रोक लगा दी. इसके बाद इनमें से कुछ छात्र हाईकोर्ट चले गए. कोर्ट ने आर्डर दिया कि जब तक जांच चल रही है तब तक इन छात्रों को पढ़ने से न रोका जाए. इन छात्रों ने पढ़ाई तो की लेकिन यूनिवर्सिटी ने इनकी डिग्री रोक दी. अभी मामला कोर्ट में लंबित हैं.’’

ऋषिकुल के निदेशक दिनेश चंद्र सिंह
ऋषिकुल, जहां से पुलकित ने की है पढ़ाई

इस मामले की जांच के लिए पुलिस ने एसआईटी का गठन किया था. जांच अधिकारी समय-समय पर बदलते रहे लेकिन जांच जारी रही. एसआई रणवीर सिंह ने 21 जुलाई, 2020 को चार्जशीट दाखिल की. कोतवाली पुलिस स्टेशन के अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमारी चार्जशीट में आया कि इन छात्रों ने अपनी जगह किसी अन्य से पेपर दिलवाया था. अब कोर्ट में जिरह चल रही है. आखिरी फैसला तो कोर्ट को ही देना है.’’

‘उसकी राजनीति बस पेपर कैंसिल कराना था’

हरिद्वार में एबीवीपी का कार्यालय नरेंद्र भवन, देवपुरा में स्थित है. यहां हमारी मुलाकात एबीवीपी के एक सक्रिय कार्यकर्ता से हुई जो हरिद्वार में साल 2016 से काम कर रहे हैं. वे बताते हैं कि पुलकित कभी सक्रिय रूप से एबीवीपी का सदस्य नहीं रहा. कुछ सालों तक ज़रूर काम किया लेकिन बाद में उसने दूरी बना ली. उनका कहना है कि वे यहां बीते छह साल से काम कर रहे हैं. उन्होंने पुलकित को बस एक मीटिंग में ही देखा था.

भूल भुलैया फिल्म विवाद के बाद एबीवीपी ने पुलकित से एक तरह से नाता तोड़ लिया. संगठन के सदस्यों ने उससे दूरी बना ली, लेकिन एक छात्र ने सालों तक उसका साथ दिया. वे एबीवीपी के बैनर से हरिद्वार के एक कॉलेज से अध्यक्ष भी रहे. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब उनसे बात की तो वे बताते हैं, ‘‘दो-ढाई साल से मैं पुलकित से नहीं मिला और न ही मेरी कभी बात हुई है. उसकी पत्नी से जरूर कभी-कभार बात हो जाती थी क्योंकि वो सीए हैं. मैं बिजनेस करता हूं तो मदद के लिए बात कर लेता था. कॉलेज के दिनों में हम एक दूसरे को जानते थे. उस पर पैसे और पावर का भूत सवार रहता था, लेकिन किसी की हत्या कर देगा ये हमने कभी नहीं सोचा था. भूल भुलैया वाले मामले के अलावा कॉलेज में अक्सर इसने लड़ाइयां भी की, पर हर बार इसके पिता माफी मांगकर इसे बचा ले जाते थे.’’

ऋषिकुल में हमारी मुलाकात पुलकित के एक सीनियर से हुई. वे बताते हैं, ‘‘हमारे कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव नहीं होता है. ऐसे में यहां कोई भी छात्र संगठन सक्रिय नहीं है. पुलकित आया तो एबीवीपी का झंडा उठा लिया. पढ़ने लिखने में कमजोर था. उसकी राजनीति का एक ही मकसद था कि हर बार पेपर का डेट बढ़वाने के लिए हंगामा करना. क्लास के जो कमजोर छात्र थे उन्होंने भी उसका साथ दिया, लेकिन जो पढ़ने वाले छात्र थे वो अक्सर कहते थे कि इसने धरना प्रदर्शन कर परेशान कर रखा है.’’

सीनियर आगे बताते हैं, ‘‘क्लास आए बगैर अटेंडेंस की मांग करता था और जब शिक्षक ऐसा करने से इनकार करते थे तो उन्हें धमकी देता था.’’

ऋषिकुल के निदेशक डॉ दिनेश चंद्र सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मैंने भी उसकी क्लास को एक साल पढ़ाया है. मुझे ठीक-ठीक याद है कि एक साल में वो सिर्फ दो बार ही क्लास लेने आया था. कैंपस वो आता था, लेकिन क्लास में नहीं शामिल होता था. जहां तक शिक्षकों को धमकाने की बात है तो मुझे तो नहीं बोला कुछ कभी.’’

सिंह से जब हम बात कर रहे थे तभी एक महिला शिक्षक उनके केबिन में आईं. महिला शिक्षक की तरफ इशारा करते हुए सिंह कहते हैं, इन्होंने भी उसे पढ़ाया है. महिला शिक्षक कहती हैं, ‘‘पुलकित को तो फांसी होनी चाहिए. वो पढ़ने में जैसा भी हो, लेकिन अंकिता के साथ जो कुछ भी किया वो भयावह है. इससे लड़कियां आगे बढ़ने का सपना नहीं देख पाएंगी.’’

इन नाराज शिक्षिका ने पुलकित को एक साल तक पढ़ाया लेकिन वो उनकी क्लास में सिर्फ एक बार शामिल हुआ था. शिक्षिका बताती हैं, ‘‘वो क्लास में आकर, मैं जो पढ़ा रही थी, बातचीत कर रही थी उसे रिकॉर्ड कर रहा था. मैंने उसे क्लास से निकाल दिया. उसके बाद वो दोबारा नहीं आया.’’

वहां मौजूद एक दूसरी महिला शिक्षक जो यहां बाल रोग पढ़ाती हैं. वो बताती हैं, ‘‘मैंने उसका चेहरा सिर्फ पेपर देने वाले दिन देखा था. वो मेरी क्लास में एक रोज भी नहीं आया. क्लास में नहीं आने वाले कई छात्र पढ़ने में बेहतर भी होते हैं लेकिन पुलकित ऐसा नहीं था. वो बस पढ़ाई कर रहा था.’’

पैतृक बिजनेस

ऋषिकुल से पढ़ाई करने के बाद पुलकित आर्य ने अपने पिता का बिजनेस संभाल लिया. विनोद आर्य का स्वदेशी आयुर्वेदिक दवाइयों का कारोबार है. यह कारोबार विनोद आर्य के पिता ने शुरू किया था. आर्य मूलतः रुड़की के इमलीखेड़ा गांव के रहने वाले हैं. इनके पिता हरिद्वार आकर बस गए थे.

विनोद आर्य के पिता को हरिद्वार में शुरुआती दिनों से जानने वाले आरएसएस के एक बुजुर्ग सदस्य बताते हैं, ‘‘मैं अब उनका नाम भूल रहा, लेकिन जब वो आये तो आर्यसमाज से जुड़े हुए थे. आर्यसमाजी अक्सर एक जगह इकठ्ठा होते हैं. उसमें वे आर्य समाज की किताबें और जड़ी-बूटियां बेचा करते थे. वे बस इतनी ही जड़ी-बूटी बनाते थे, जिससे घर का खर्च चल सके. विनोद ने डेंटल की पढ़ाई की थी, लेकिन उनका करियर उसमें चला नहीं, फिर वो पिता के ही कारोबार को बड़े स्तर पर करने लगे. साथ ही वो आरएसएस से जुड़ गए. आरएसएस के लोगों ने ही उन्हें राज्य मंत्री बनाने में मदद की.’’

विनोद आर्य का घर आर्य नगर में ही है. यहां स्वदेशी आयुर्वेद फर्म की बड़ी दुकान है जहां इन दिनों ताला लटका हुआ है. इनके घर के पीछे ही आरएसएस का स्थानीय कार्यालय है. इस कार्यलय के अधिकारी, आर्य के आरएसएस से जुड़े होने की बात स्वीकार करते हुए कहते हैं कि बाद में वे बीजेपी में चले गए थे. आरएसएस साल में एक बार व्यास पूर्णिमा के दिन अपने कार्यकर्ताओं से गुरु दक्षिणा लेता है. जो बंद लिफाफे में दी जाती है. आर्य उसमें दक्षिणा देते हैं, लेकिन कितना देते हैं यह मैं नहीं बता सकता. सब अपनी क्षमता के अनुसार दान करते हैं.’’

आर्य नगर स्थित पुलकित आर्य का घर

विनोद आर्य आरएसएस से होते हुए भाजपा के राज्य मंत्री बन गए. विनोद के बड़े बेटे अंकित आर्य ने भी बीजेपी से राजनीति शुरू की. वहीं पुलकित एबीवीपी में कुछ दिनों तक रहने के बाद पैतृक कारोबार में लग गया. तब तक विनोद आर्य का राजनीतिक रसूख काफी बढ़ गया था. उन्होंने ऋषिकेश में गंगाभोगपुर में जमीन खरीदकर बड़े स्तर पर स्वदेशी का कारोबार शुरू कर दिया. यह जमीन गंगाभोगपुर के रूपेंद्र शर्मा ने आर्य को बेची थी. शर्मा अभी शिक्षा विभाग में उपनिदेशक हैं. रिसोर्ट खुलने के पहले तक स्वदेशी का कारोबार पुलकित ही देख रहा था, बाद में उनकी पत्नी देखने लगी थीं.

यहां आसपास के गांव की महिलाएं काम करती थीं. यहां काम करने वाली एक महिला सुनैना (बदला नाम) बताती हैं, "जब काम आता था तो वे हमें बुला लेते थे. 20 सितंबर को आखिरी बार मैडम (पुलकित की पत्नी) का फोन आया. उन्होंने कहा कि आकर अपने पैसे ले जाओ. जब हम वहां गए तो पुलकित और मैडम में लड़ाई हो रही थी. पुलकित कह रहा था कि अंकिता रिसोर्ट से भाग गई है. इस पर मैडम कर रही थीं कि 'तुमको हजार बार मना किया है कि किसी लड़की को काम पर मत रखो, नतीजा भुगतो अब.' थोड़ी देर बाद वहां पटवारी और दूसरे लोग आ गए. उन्होंने पूछताछ शुरू कर दी जिसके बाद मैडम ने हमें बिना पैसे दिए घर भेज दिया."

सुनैना आगे बताती हैं, ‘‘हम लोग कंपनी में काम करते थे, जो रिसोर्ट के ठीक पीछे बनी हुई है. हमें रिसोर्ट में जाने की इजाजत नहीं थी इसलिए हमने कभी अंकिता को देखा ही नहीं.’’

पुलकित ने रिसोर्ट का बिजनेस एक साल पहले ही शुरू किया था. यहां पहले बंगाल के एक दम्पति रिसोर्ट चलाते थे. बंगाली दम्पति ने अपने रिसोर्ट में गांव के आसपास के लोगों को काम पर रखा था, लेकिन जब पुलकित ने यहां कारोबार शुरू किया तो गांव के किसी भी सदस्य को काम पर नहीं रखा. उसने बिहार और उत्तर प्रदेश से काम करने वालों को बुलाया.

बंगाली दम्पति के साथ काम कर चुके एक स्थानीय निवासी नवीन पाल (बदला नाम) बताते हैं, ‘‘बंगाली दपंति ने बहुत मेहनत से रिसोर्ट को तैयार किया. उनका कारोबार जब चल पड़ा था तो पुलकित को परेशानी होने लगी. उसने उनसे लड़ाई-झगड़ा शुरू कर दिया. कुछ दिनों तक जैसे तैसे चलाने के बाद वे लोग छोड़कर चले गए. फिर पुलकित खुद वनंत्रा नाम से रिसोर्ट चलाने लगा, लेकिन हम सब को काम से हटा दिया.’’

10 साल पहले स्वदेशी फार्मेसी में काम करने वाले गंगाभोगपुर के रहने वाले सत्यम प्रसाद बताते हैं, ‘‘पुलकित क्रिमनल मानसिकता का ड्रामेबाज लड़का है. ये सारा इलाका राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आता है. फैक्ट्री के पास में ही एक तालाब है. जहां जानवर पानी पीते हैं. इसने फैक्ट्री से निकला गंदा पानी उसमें डलवाना शुरू कर दिया जिससे पानी एकदम काला पड़ गया. गांव के लोगों की शिकायत के बाद जब अधिकारी जांच करने आए, तो अधिकारियों के सामने उसने उस तालाब से पानी उठाकर पी लिया और बोला कि जब मैं इसे पीने से नहीं मर रहा तो जानवर कैसे मरेंगे. उसका ड्रामा देखकर अधिकारी वहां से चले गए. आज भी फैक्ट्री का पानी उसी में गिरता है.’’

गांव के लड़कों को काम पर नहीं रखने के सवाल पर स्थानीय उप प्रधान ऋषि प्रसाद बताते हैं, ‘‘मीडिया में रिसोर्ट को लेकर जिस तरह की खबरें आ रही हैं. खासकर एक्स्ट्रा सर्विस वाला मामला, तो अगर गांव का कोई लड़का काम करता तो बात खुलने का डर था.’’

18 दिन में एक सपने की मौत

अंकिता भंडारी का घर पौड़ी जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर है. उनके गांव बरसुड़ी जाने का रास्ता बदहाल है. उनका घर मुख्य सड़क से आधा किलोमीटर पैदल चलने के बाद जंगल के बीचोबीच है.

यहां जाने के रास्ते में हमारी मुलाकात सरिता पवार से हुई. अंकिता का परिवार पौड़ी में पांच सालों तक इनका किरायेदार रहा है. परिजनों से मिलकर लौट रही सरिता रोते हुए कहती हैं, ‘‘बहुत मेहनती बच्ची थी. मेरे घर पर रहकर ही 12वीं तक की पढ़ाई की थी. दरिंदों ने मार डाला. उन्हें फांसी होनी चाहिए.’’

घटना के बाद से ही अंकिता की मां की तबीयत बिगड़ी हुई है. उनके पिता 53 वर्षीय वीरेंद्र सिंह भंडारी की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है. सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे गांव से गिनकर लड़कियां काम करने बाहर निकली हैं. मेरे घर की पहली लड़की थी जो काम करने के लिए बाहर गई थी. 18 दिन बाद ही उसे मार दिया उन्होंने. हमारा घर देखिए. मज़दूरी करके मैं अपने बच्चों को पढ़ा रहा था. अंकिता कहती थी कि पैसे कमाकर मैं शहर में घर बनाऊंगी. यहां कोई सुविधा नहीं है. सारे सपने टूट गए.’’

अंकिता ने देहरादून के श्रीराम इंस्टीट्यूट से होटल मैनेजमेंट किया था. पुलकित के रिसोर्ट में अंकिता को छोड़ने उनके पिता ही गए थे. वे बताते हैं कि अंकिता ने 27 अगस्त को उन्हें बताया कि ऋषिकेश के एक रिसोर्ट में जगह है, मुझे वहां छोड़ दो. "मैंने एकाध दिन बाद चलने के लिए कहा तो जिद करने लगी कि वो किसी और को काम पर रख लेंगे. ऐसे में मैं 28 अगस्त को उसे छोड़ने ऋषिकेश गया. ऋषिकेश एम्स के पास कुछ लोग हमें लेने आए थे. वहां से हम उनकी गाड़ी में रिसोर्ट गए. वहां मैं पहली बार पुलकित से मिला था. उसने मुझसे ठीक से ही बात की. वहां कोई और लड़की नहीं थी, लेकिन तब मुझे ऐसा कुछ होगा इसका अहसास भी नहीं था."

रिसोर्ट जहां काम करती थीं अंकिता भंडारी
अंकिता भंडारी का घर. घर के बाहर बैठे उनके पिता रिश्तेदार से बात करते हुए.
सरिता पवार, इनके घर पर किरायेदार के रूप में रहता था अंकिता का परिवार

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘अंकिता बीच-बीच में फोन करती थी. उसकी बातचीत से लगता था कि वो वहां से निकलना चाहती है. हालांकि कभी खुलकर कोई बात नहीं बताई. 19 सितंबर की शाम को 4 बजे मेरे चाचाजी के लड़के अभिषेक को फोन आया कि अंकिता गायब है. थोड़ी देर बाद पुलकित का भी फोन आया कि अंकिता गायब है. हम भागे-भागे ऋषिकेश गए. वहां भी पुलकित ने हमें अंकिता के भाग जाने की बात बताई. आगे तो जो हुआ आप सब जानते ही हैं. 18 दिन में ही मेरी लड़की मुझसे दूर हो गई.’’

एक अक्टूबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी परिजनों से मिलने पहुंचे थे. पीड़ित परिजनों को उन्होंने 25 लाख की आर्थिक मदद दी. अंकिता के पिता ने उनसे कई कठोर सवाल पूछे. वे बताते हैं, ‘‘मैंने धामी से न्याय की मांग की. मैंने उनसे पूछा कि रिसाॅर्ट में जिस जगह अंकिता रहती थी, उसे क्यों तोड़ा गया? किसके आदेश पर तोड़ा गया? वो कौन स्पेशल लोग थे जिन्हें एक्स्ट्रा सर्विस देनी थी? उनका नाम कब तक बाहर आएगा? मुख्यमंत्री ने हमें जो पैसे दिए वो तो आम लोगों के पैसे हैं. मुझे सरकार से न्याय चाहिए. इन तीनों को कठोर सजा मिलनी चाहिए तभी हमें संतुष्टि मिलेगी.’’

अंकिता का फोन 18 सितंबर की रात आठ बजे से ही बंद था. आरोप है कि पुलकित और उसके साथियों ने उसे उसी रात नहर में फेंक दिया था. आरोपियों के मुताबिक जहां उन्होंने अंकिता को धक्का दिया, वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर चिल्ला पावर हाउस में उसका शव मिला था.

24 सितंबर को जारी पोस्टमार्टम की शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक, अंकिता को मृत्यु से पहले किसी ब्लंट (कुंद) वस्तु से चोट लगी, और उसकी मृत्यु की वजह सांस न ले पाना है, जो डूबने की वजह से हुई.

शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी जानकारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दी जाएगी. हालांकि शव मिलने के तकरीबन 10 दिन गुजर जाने के बाद भी एम्स प्रशासन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट जारी नहीं की है. अंकिता के परिजनों को प्रशासन ने जरूरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाई है. वीरेंद्र सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘उन्होंने हमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाई है पर कॉपी नहीं दी है. उन्होंने हमें पोस्टमार्टम से जुड़ी कोई भी जानकारी सार्वजनिक करने से मना किया है.’’

गुस्से में लोग- सरकार के लिए बनी चुनौती

रविवार 2 अक्टूबर को आम लोगों ने उत्तराखंड बंद का आह्वान किया था. शहरी क्षेत्रों में इस बंद का असर कम नजर आया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सब कुछ जैसे ठहर गया था. इस घटना को लेकर बात करते हुए लोग आरोपियों को फांसी दिए जाने की मांग करने लगते हैं.

एसआईटी ने तीनों आरोपियों को तीन दिन की रिमांड पर लिया था. वे इन्हें रिसोर्ट ले जाना चाहते थे ताकि घटना का सीन क्रिएट कर सकें, लेकिन लोगों की नाराजगी के कारण वे नहीं ला पाए. स्थानीय पत्रकार तीन दिनों तक एसआईटी के लोगों के आने का इंतज़ार करते रहे.

घटना के बाद से रिसोर्ट के बाहर काफी संख्या में पुलिस अधिकारी मौजूद हैं. जिस रोज आरोपियों को पुलिस पकड़कर ले जा रही थी. उस दिन गांव की महिलाओं और पुरुषों ने उनकी पिटाई कर दी. रिसोर्ट के करीब मैगी और चाय की दुकान चलाने वाले एक युवक कहते हैं, ‘‘उस दिन पुलिस ने उन्हें बचा लिया. लोग तो उन्हें जान लेने के इरादे से मार रहे थे. गुस्साए लोग रिसोर्ट में आग लगाने और उसे तोड़ने के लिए पहुंच गए थे. उसी रोज रिसोर्ट का कुछ हिस्सा जेसीबी मंगाकर तोड़ दिया गया.’’

जेसीबी को किसने मंगवाया, इसको लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है. 24 सितंबर को खुद मुख्यमंत्री धामी ने ट्वीट करके बताया, "आरोपियों के गैर क़ानूनी रूप से बने रिसोर्ट पर कल देर रात बुलडोजर द्वारा कार्रवाई की गई है.’’ इसको लेकर अधिकारी अपना बयान बदलते रहे. 28 सितंबर को जिलाधिकारी ने बताया कि अतिक्रमण की पुष्टि होने के बाद रिसोर्ट का अवैध हिस्सा तोड़ दिया गया. उन्होंने ये भी कहा कि सभी दस्तावेजों की जांच के बाद रिसोर्ट के अवैध हिस्से को नियम के अनुसार यमकेश्वर तहसील प्रशासन द्वारा ही तोड़ा गया है.

वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता (एई) ने दावा किया है कि जिला पंचायत सदस्य उमरोली, आरती गौड़ ने जेसीबी मंगवाई थी. 

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए आरती गौड़ ने इस आरोप को गलत बताया. वो कहती हैं, ‘‘मैं उस क्षेत्र की पंचायत सदस्य हूं. मुझे देर रात को स्थानीय लोगों ने फोन कर बताया कि रिसोर्ट को जेसीबी ध्वस्त कर रही है. ऐसे में मैंने जानना चाहा कि किसने भेजा है. इसके बाद मैंने पीडब्ल्यूडी के एई को फोन किया।उन्होंने मुझे बताया कि विधायक और एसडीएम ने भेजा है.’’

पौड़ी में बंद दुकानें

अवैध निर्माण को लेकर जिलाधिकारी की बात मान भी लें, तो सवाल यह उठता है कि अवैध निर्माण होने पर भी उसे देर रात अंधेरे में गिराने का क्या मतलब है? अंकिता के परिजनों का आरोप है कि सबूत मिटाने के लिए ऐसा किया गया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले से जुड़े अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन फिलहाल कोई कुछ बोल नहीं रहा है.

पुलकित के साथ गिरफ्तार आरोपी सौरभ भास्कर के परिवार के लोग घर छोड़कर कहीं और चले गए हैं.

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