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टीवी चैनलों का सहारा लेकर सत्ता के करीबी कैसे बने जगदीश चंद्रा

नरेंद्र मोदी का एक वीडियो है जो उनके विरोधी नियमित रूप से शेयर करते रहते हैं. यह वीडियो 2014 के लोकसभा चुनाव परिणामों की घोषणा से कुछ दिन पहले, ईटीवी न्यूज़ नेटवर्क के साथ उनके एक साक्षात्कार का ऑफ-रिकॉर्ड हिस्सा है. जैसे ही कैमरा शुरू होता है, एक कर्मचारी मोदी को एक गिलास पानी देता है. पानी लेकर वह उसे सख्त स्वर में कहते हैं, "जल्दी बाहर जा".

लेकिन यह वीडियो एक दूसरा पक्ष भी दिखाता है जिसे आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है. बातचीत के दौरान पत्रकार भावी प्रधानमंत्री से कहते हैं कि उनके टीवी समाचार नेटवर्क ने मोदी द्वारा पूर्व में ईटीवी समूह के तेलुगु दैनिक इनाडू को दिए गए एक साक्षात्कार का कवरेज किया, जो चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन करता था, क्योंकि मतदान के 48 घंटे पहले सभी उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार रोक देना होता है. साक्षात्कारकर्ता के अनुसार इनाडू को इंटरव्यू देना मोदी का "शानदार निर्णय" था. उन्होंने इनाडू का जिक्र करते हुए कहा, "इसकी अकेले आंध्र में 20 लाख प्रतियां बिकती हैं. हमने इसे चार बार चलाया, चुनाव से पहले वाली रात को भी. हमें चुनाव आयोग से भी नोटिस भी मिला.”

इस साक्षात्कारकर्ता का नाम जगदीश चंद्रा है, जो सत्ता के करीबी हैं और उन्हें खुश करना आसान है. चंद्रा के करीबी उन्हें 'कातिल' बुलाते हैं. यह उपाधि उन्हें कॉलेज के दौरान उन्हें बेहतरीन वाद-विवाद के कौशल के लिए मिली थी. हालांकि चंद्रा ने मीडिया क्षेत्र में देर से प्रवेश किया, लेकिन पिछले 14 वर्षों में देश के क्षेत्रीय समाचार उद्योग में उन्होंने अपनी एक जगह बनाई है.

चंद्रा ने 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर ईटीवी समूह के सीईओ के तौर पर मीडिया क्षेत्र में प्रवेश किया. और समूह के 15 क्षेत्रीय टीवी समाचार चैनलों के नियंत्रण का काम अपने हाथ में लिया. उनका इरादा अब क्षेत्रीय से राष्ट्रीय स्तर पर कदम रखने का है. अगस्त में उन्होंने एक हिंदी टीवी समाचार चैनल भारत-24 शुरू किया, जो खुद को "नए भारत की नजर" कहता है.

इस चैनल को स्वतंत्रता दिवस पर सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय की मौजूदगी में शुरू किया गया. भारत-24 के प्रचार के लिए देश के कई शहरों में लगाए गए पोस्टरों में मोदी को "द मैन ऑफ़ यूनिवर्स" और "युग पुरुष ऑफ़ द 2019 कश्मीर रेवॉल्यूशन" बताया गया.

दिल्ली में बीजेपी ऑफिस के बाहर लगा भारत 24 का पोस्टर

चंद्रा को जानने वाले बताते हैं कि उन्हें काम करने की लत है और उन्हें ताकतवर लोगों को प्रभावित करना बखूबी आता है. चंद्रा का जन्म 1950 में राजस्थान के बीकानेर में एक पंजाबी शरणार्थी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपना बचपन पाकिस्तान की सीमा से करीब 20 किलोमीटर दूर रायसिंहनगर में बिताया.

60 के दशक में वे उच्च-शिक्षा के लिए जयपुर आ गए और 1975 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए. 15 साल बाद उन्हें आईएएस में पदोन्नत किया गया.

वर्तमान में चंद्रा, ताज में भोजन करते हैं. वह हर सुबह ट्रेडमिल पर पांच किलोमीटर दौड़ने का दावा करते हैं. जिस दिन वह ऐसा नहीं कर पाते, उस दिन वह अपने ड्राइवर को गंतव्य से काफी पहले ही गाड़ी रोकने को कहते हैं और बाकी की दूरी पैदल चलते हैं. दिल्ली में वह चाणक्यपुरी के ताज मानसिंह होटल में मिल सकते हैं. जयपुर में वह नियमित रूप से रामबाग पैलेस में मिलते हैं, जहां पिछले हफ्ते मेरी उनसे मुलाकात दोपहर के खाने पर हुई.

काली पैंट, सफेद कमीज और पीले रंग का दुपट्टा पहने चंद्रा ने कहा, "शुरुआत से ही मीडिया मेरा जुनून रहा है. एक नौकरशाह के रूप में भी मैं अक्सर पत्रकारों की संगति में रहता था. समाचार आपको ज्यादा प्रासंगिकता और मान्यता देते हैं, और इसलिए यह आपको आईएएस से ज्यादा ताकतवर बनाता है”.

इस शक्ति का प्रदर्शन कुछ ही समय में हो गया. जब हम अमेरिकन चॉपसूई का लुत्फ़ उठा रहे थे, तभी एक व्यक्ति फ़ोन लेकर आया और लाइन पर योग गुरु रामदेव थे. चंद्रा ने उनसे स्पीकर पर बात की और दुआ-सलाम के बाद उनसे अगले महीने एक साक्षात्कार का अनुरोध किया, जिसके लिए रामदेव तुरंत मान गए.

आज भी अविवाहित और संतानहीन चंद्रा ने कहा, “आईएएस संतोषजनक था. मुझे कोई पछतावा नहीं है, लेकिन न्यूज़ जीवन है. और मैं एक न्यूज़मैन हूं.”

नौकरशाही में चंद्रा ने आपातकाल के दौरान जयपुर के उप-मंडल मजिस्ट्रेट से लेकर सेवानिवृत्ति के पहले तक राजस्थान के परिवहन आयुक्त के रूप में काम किया. चंद्रा के करियर से परिचित उनके एक मित्र ने मुझे बताया कि वह "बहुत ही फोकस्ड नौकरशाह थे, जो अपने पद से आगे बढ़ कर काम करते थे". उन्होंने कहा, "वह जो चाहते थे उसे हासिल करने के लिए एक विशेष साहस रखते थे."

"पत्रकार उनके और वह पत्रकारों के करीब हुए क्योंकि वह ख़बरों के एक मुख्य स्रोत थे. उनकी ख़बरें सत्ताधारी लोगों के एक समूह के लिए उपयोगी होती थीं और प्रतिद्वंदियों के खिलाफ इस्तेमाल की जा सकती थीं, लेकिन वह हमेशा तथ्यात्मक होती थीं."

नौकरशाही तंत्र के भीतर ही चंद्रा ने उस मंत्र को सिद्ध किया, जिसके लिए वह आज भी जाने जाते हैं - निरंतर और निसंकोच चापलूसी. उनके एक दोस्त ने बताया, "1980 और 1990 के दशक में भी वह जयपुर के प्रभावशाली लोगों को फूल और मिठाइयां भेजा करते थे. चमचागिरी में उनका मुकाबला कोई नहीं कर पाता था."

बीते वर्षों में चंद्रा हाई-प्रोफाइल राजनेताओं की सफलतापूर्वक चापलूसी करते रहे हैं. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और यहां तक ​​कि कांग्रेस के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल हैं.

अप्रैल में जयपुर के प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत के दौरान गहलोत ने चंद्रा की इस आदत पर चुटकी ली. उन्होंने चंद्रा का जिक्र करते हुए कहा, "मैं लंदन जाता हूं, तो कभी-कभी उनका भेजा गया फूलों का गुलदस्ता मुझ तक पहुंच जाता है. जब मैं मुंबई में उतरता हूं, तो मुझे एक गुलदस्ता मिलता है जिस पर 'जगदीश चंद्रा' लिखा होता है. आपको उनसे कुछ सीखना चाहिए. वह चापलूसी में माहिर हैं."

जगदीश चंद्रा ने 2008 में रिटायरमेंट लेकर न्यूज इंडस्ट्री में कदम रखा था

हालांकि, इस तरह के बर्ताव की कीमत भी चुकानी पड़ती है. चंद्रा के मित्र कहते हैं, "कातिल साहब गर्व से कहते थे कि सिस्टम से जुड़े होने की वजह से उन्हें एक भ्रष्ट नौकरशाह के रूप में देखा जाता था. लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस बात की परवाह थी कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं."

चंद्रा दो न्यूज़ चैनल चलाते हैं. वह भारत-24 के सीईओ और मुख्य संपादक हैं और राजस्थान स्थित चैनल फर्स्ट इंडिया न्यूज के मुख्य संपादक और प्रबंध निदेशक हैं.

उन्होंने मुझसे कहा कि उनका संपादकीय नज़रिया सरल है: "समाचार निष्पक्ष और स्वतंत्र होना चाहिए, लेकिन उसमें सत्ताधारी सरकार का समर्थन भी चतुराई से छुपा होना चाहिए.” ठीक यही बात उनसे जुड़े लोगों ने भी मुझसे कही. नौकरशाह से मीडिया मालिक बने चंद्रा का मानना ​​है कि एक मीडिया संगठन को सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए.

चंद्रा कहते हैं, "हम विपक्ष को साथ लेकर चलते हैं, लेकिन सरकार के खिलाफ पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए. विशेष रूप से राज्य सरकार के विरुद्ध, क्योंकि वह केंद्र की तुलना में समाचार चैनलों के राजस्व में अधिक योगदान करते हैं. सरकारें जनता के जनादेश से बनती हैं. मीडिया को इसका सम्मान करना चाहिए."

फर्स्ट इंडिया न्यूज़ और भारत 24 के यूट्यूब आर्काइव्स पर एक नजर डालने से पता चलता है कि चंद्रा इस विचार पर कैसे अमल करते हैं. फर्स्ट इंडिया न्यूज़ गहलोत, उनकी पार्टी और राहुल गांधी पर ख़बरों से भरा हुआ है. दूसरी ओर भारत-24 लगभग पूरी तरह से मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के कसीदे पढ़ने के लिए समर्पित है.

चंद्रा के साथ 2008 से 2018 के बीच संपादकीय और प्रशासनिक भूमिकाओं में काम कर चुके पत्रकार खुर्शीद रब्बानी ने बताया कि "कातिल सर" का कोई राजनीतिक झुकाव नहीं है. रब्बानी याद करते हुए कहते हैं, ''वह हमें बताते थे कि सरकारें बदलती हैं, हम नहीं बदलते, और हमें सरकार के साथ रहना था. उनका मानना ​​था कि सरकारी नीतियों को लोगों तक पहुंचाना मीडिया का काम है.”

भारत-24 खोजी पत्रकारिता नहीं करता. भोजन के दौरान हमने चंद्रा से एक काल्पनिक प्रश्न पूछा: मान लीजिए कि भारत-24 के एक रिपोर्टर को एक ठोस खबर मिलती है कि अमित शाह ने अपनी सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग किया है, क्या चंद्रा इसे दिखाएंगे? उन्होंने टाल-मटोल करते हुए कहा, "हम उसका मूल्यांकन करेंगे और खबर की गुणवत्ता के आधार पर निर्णय लेंगे".

भारत-24 के मुख्य संपादक के अनुसार उनका चैनल "पट्टी मॉडल" पर चलता है.

"पट्टी" से तात्पर्य है टीवी चैनलों पर स्क्रीन के नीचे चलने वाला न्यूज़ टिकर. भारत-24 के कर्मचारियों को हर दिन कम से कम एक हजार यूनिक टिकर चलाने होते हैं. चंद्रा ने कहा कि इस काम के लिए उनके पास देश भर में 4,123 संवाददाताओं की एक टीम है-- प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक.

ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं. लेकिन ईटीवी पर "पट्टियां" एकत्रित करने वाले कंट्रोल रूम के संचालक रह चुके रब्बानी बताते हैं कि चंद्रा जिसे "संवाददाता" कहते हैं, वह एक शहर या कस्बे में केवल एक "मुखबिर" है, जिसे प्रति माह एक निश्चित संख्या में "पट्टियां" देने के लिए 2,000 रुपए दिए जाते हैं. चंद्रा उन्हें "फ्रीलांसर" कहना पसंद करते हैं.

ईटीवी पर रब्बानी को प्रतिदिन 10 से 15 पट्टियां देनी होती थीं. अन्य पत्रकारों और संपादकीय कर्मचारियों की भी "औसत पट्टी दर" थी. उनके टिकर का दैनिक कोटा दर्ज किया जाता था.

पट्टियों में सामान्य समाचार से लेकर विचित्र जानकारियां तक होती थीं: किसी राजनेता का आंदोलन; मौसम की जानकारी; यहां तक ​​कि होम लोन की ब्याज दरें भी. रब्बानी याद करते हैं, "एक बार जब कातिल सर विदेश की यात्रा कर रहे थे, तो उन्होंने कंट्रोल रूम में फोन किया और हमें एक विचित्र पट्टी चलाने के लिए कहा. पट्टी में वह जिस देश की यात्रा कर रहे थे उस देश में यौनकर्मियों द्वारा वसूले जाने वाले दर का विवरण था. उसे आज भी ईटीवी के सबसे विवादास्पद समाचार टिकर के रूप में याद किया जाता है."

जब हमने चंद्रा से इस तरह के टिकर के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं है. "लेकिन मैंने फल खरीदने के तुरंत बाद जयपुर में फलों की कीमतों पर एक टिकर जरूर चलाया था," उन्होंने चुटकी ली.

चंद्रा "पट्टी मॉडल" को हल्के में नहीं लेते. "जो लोग समाचार टिकर को कुछ नहीं समझते हैं वह गलत हैं," उन्होंने मुझसे कहा. “पट्टी समाचारों की जननी है. यह आम दर्शक को दुनिया से जोड़ता है. मैंने इस मॉडल का आविष्कार किया क्योंकि मुझे लगता है कि टीवी समाचार पर हमेशा सीधा प्रसारण होना चाहिए."

लेकिन "पट्टी" का इतना बखान करने के बावजूद, चंद्रा का दावा है कि उन्होंने ईटीवी में अपने आठ साल के लंबे कार्यकाल के दौरान हर साल वेतन के रूप में केवल एक रुपया लिया. वह कहते हैं, "मीडिया घाटे में चल रहा उद्योग है, और मैंने रामोजी राव से कहा था कि घाटे में चल रहे उद्यम से वेतन लेना पाप है."

राव तब ईटीवी नेटवर्क के मालिक थे, जिसका एक बड़ा हिस्सा बाद में नेटवर्क-18 में मिल गया.

चंद्रा से जुड़ी तमाम अनोखी बातों के बावजूद उनके पूर्व सहयोगियों ने मुझे बताया कि उनके व्यक्तित्व के कुछ असाधारण पक्ष भी हैं. "उनकी पत्रकारिता सरकार विरोधी नहीं है, लेकिन वह अल्पसंख्यक विरोधी भी नहीं है," रब्बानी ने कहा.

ईटीवी में उनके कार्यकाल के दौरान चंद्रा ने रब्बानी को अपना खुद का शो बनाने के लिए प्रेरित किया, जो भारतीय मुसलमानों की समस्याओं पर बात करे. इस शो को 'अधूरे ख़्वाब' के नाम से जाना जाने लगा. यह न केवल ईटीवी उर्दू बल्कि उत्तर भारत के सभी ईटीवी चैनलों पर प्राइमटाइम स्लॉट पर चलता था जिन पर हिंदी कार्यक्रम आते थे.

बाद में ज़ी हिंदुस्तान में रब्बानी ने 'हमारी आवाज़' नामक एक शो की एंकरिंग की, जो ऐसे ही मुद्दों पर आधारित था.

रब्बानी ने बताया, “उन दोनों कार्यक्रमों में मुसलमानों को सकारात्मक रूप से दिखाया गया था. कातिल सर ने पटना, मुंबई, बैंगलोर, जयपुर में पांच सम्मेलनों का भी आयोजन किया, जिनमें अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर चर्चा की गई. उनमें से कुछ को मैंने संबोधित किया. यह एक दुर्लभ दृश्य था: एक पांच-सितारा होटल में आयोजित कार्यक्रम जिसमें मुस्लिम समुदाय की समस्याओं पर चर्चा की गई.”

शायद भारत-24 के दर्शकों को उस सांप्रदायिक जहर से मुक्ति मिले जो ज़ी न्यूज़, न्यूज़18 इंडिया और न्यूज़ नेशन जैसे हिंदी न्यूज़ चैनलों पर नियमित रूप से परोसा जाता है. चंद्रा यही दावा करते हैं: “हम हिंदुओं और मुसलमानों के साथ समान व्यवहार करते हैं. हमारे चैनल पर बहस सभ्य और सम्मानजनक होगी."

2010 से 2014 के बीच चंद्रा के साथ 'ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी' के तौर पर काम कर चुकी अरूब अज़ीज़ ने मुझे बताया कि चंद्रा अल्पसंख्यकों के लिए 'सॉफ्ट कॉर्नर' रखते हैं. अजीज ने कहा, "जब मैंने उनके साथ काम किया तो मुझे लगा कि वह मुस्लिम दर्शकों को खुश रखना चाहते हैं." अज़ीज़ अपने पूर्व बॉस को "एक अच्छा इंसान" बताती हैं.

अरूब, कर्मचारियों के साथ चंद्रा के सख्त लेकिन नरम संबंधों के कारण उनकी प्रशंसा करती हैं. वे बताती हैं, “वह सख्ती से काम लेने वाले बॉस थे जो चाहते थे कि हर कोई हमेशा काम के लिए तैयार रहे. अगर उन्हें एक दिन में 300 ईमेल मिलते हैं, तो मुझसे उम्मीद की जाती थी कि मैं सभी का जवाब दूं. प्रत्येक ईमेल का जवाब 20 मिनट के भीतर देना होता था. कर्मचारी उनसे डरते थे लेकिन चंद्रा कभी उन पर चिल्लाते नहीं थे. दूसरी ओर, अगर कोई स्पॉट बॉय भी उन्हें अपनी शादी में आमंत्रित करता तो वह पहुंच जाते.”

2017 की शुरुआत में चंद्रा ईटीवी छोड़कर ज़ी के साथ जुड़ गए. रब्बानी के अनुसार 2014 में रिलायंस समूह ने ईटीवी की गैर-तेलुगु संपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया, जिनके संचालक चंद्रा थे. इसके बाद चंद्रा को नेटवर्क 18 के प्रबंध निदेशक राहुल जोशी को रिपोर्ट करना होता था. दोनों में बनी नहीं और चंद्रा ने इस्तीफ़ा दे दिया.

ज़ी में उन्होंने इसके क्षेत्रीय समाचार चैनलों और दैनिक समाचार पत्र डीएनए के सीईओ के रूप में पदभार संभाला. उनका कार्यकाल केवल एक वर्ष का रहा. 2018 में वह फर्स्ट इंडिया न्यूज़ से जुड़े. चंद्रा दावा करते हैं, “चैनल संघर्ष कर रहा था, लेकिन मैंने उसे सफलतापूर्वक लाभप्रद बना दिया है. यह अब राजस्थान में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला समाचार चैनल है.”

लेकिन चैनल को मुनाफा इस साल ही हुआ है. केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, फर्स्ट इंडिया न्यूज़ चलाने वाली कंपनी फर्स्ट इंडिया न्यूज़ इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने 2020-2021 में टैक्स के बाद 1.2 करोड़ रुपए का मुनाफा दर्ज किया. 2019-2020 में चैनल ने टैक्स के बाद 1.7 करोड़ रुपए का घाटा दर्ज किया था. 2018-19 में ये घाटा 3.6 करोड़ रुपए था. केवल 34 करोड़ रुपए तक की शेयर पूंजी और रिज़र्व वाली कंपनी के लिए यह नगण्य नहीं है.

फर्स्ट इंडिया की बैलेंस शीट के अनुसार, चंद्रा को 2020-21 में 1.3 करोड़ रुपए का वार्षिक "वेतन और बोनस" मिला.

जगदीश चंद्रा के साथ साल 2010 से 2014 तक काम करने वाली अरूब अज़ीज़.

एक राजनेता जिनकी चापलूसी जगदीश चंद्रा नहीं कर सके वह थे दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली, जो केवल दिल्ली के चुनिंदा पत्रकारों के एक समूह की सुनते थे.

जनवरी 2017 में ज़ी से जुड़ने के बाद चंद्रा जयपुर से अधिक समय दिल्ली में बिताने लगे. यहीं पर उन्होंने अपने क्षेत्रीय समाचार मॉडल को राष्ट्रीय बनाने की कोशिश की. जिन पूर्व ज़ी कर्मचारियों से हमने बात की, उन्होंने कहा कि वह संपादकीय मामलों में चंद्रा के हस्तक्षेप से चिंतित थे.

चंद्रा डीएनए की संपादकीय बैठकों में कभी-कभार ही हिस्सा लेते थे. वह पत्रकारों से शीर्ष राजनेताओं की पल-पल की खबर रखने के लिए कहते थे. नियमित रूप से बैठकों में जाने वाले एक पत्रकार ने बताया, “एक बार उन्होंने सुझाव दिया कि हम मोदी के घर के बाहर के पेड़ पर एक कैमरा लगाएं. उन्होंने एक अनुभवी रिपोर्टर से कहा था कि वह अमित शाह पर हर जगह दिन-ब-दिन, मिनट-दर-मिनट नज़र रखें. वह चाहते थे कि हर रिपोर्टर, न्यूज़ चैनलों को रोजाना 20-25 पट्टियां दे. यह बेतुका था.”

ज़ी में चंद्रा का शुरूआती टकराव डीएनए स्पोर्ट्स रिपोर्टर चंद्र शेखर लूथरा के साथ हुआ. जब चंद्रा आए तो लूथरा दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ, दिल्ली में क्रिकेट की शासी निकाय के संचालन पर रिपोर्टिंग कर रहे थे. वह डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार की ख़बरों की पड़ताल कर रहे थे. डीडीसीए में जेटली और उनके दोस्त और इंडिया टीवी के अध्यक्ष रजत शर्मा का बोलबाला था.

दिलचस्प बात यह है कि डीडीसीए में लूथरा की जांच को ज़ी के संस्थापक और अध्यक्ष सुभाष चंद्रा का समर्थन था, जो डीएनए में अक्सर जेटली पर कीचड़ उछाला करते थे.

दिल्ली में, अपने मोबाइल से हमेशा एक पुराना टेलीफोन रिसीवर जोड़े रहने वाले चंद्रा, गुलदस्तों वाले अपने पुराने नुस्खे के साथ भाजपा के वरिष्ठ राजनेताओं से मिलने लगे. डीएनए के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया, "वह वास्तव में अमित शाह की नज़रों में आना चाहते थे. और जिस भी राजनेता को वह प्रभावित करना चाहते थे, उन्हें लगातार ट्रैक करने और गुलदस्ते भेंट करते रहने के लिए वह पत्रकारों को नियुक्त करते थे."

लेकिन जेटली के आवास पर उनसे एक मुलाकात, चंद्रा की योजना के अनुसार नहीं चली. हाथ में गुलदस्ता लिए प्रसिद्ध "कातिल" को एक घंटे से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा. जब उन्होंने अपना डीएनए कार्ड भेजा, तो नाराज जेटली आखिरकार सामने आए.

पूर्व डीएनए कर्मचारी ने बताया, "जेटली ने उनसे पूछा कि वह वहां क्या कर रहे थे.” उन्होंने कहा, “तुम्हारा अख़बार मेरे पीछे पड़ा है, और तुम यहां गुलदस्ता लेकर आए हो?”

इसके बाद के महीनों में जगदीश चंद्रा ने लूथरा के काम पर बारीकी से नज़र रखी. इन पूर्व कर्मचारी के अनुसार, उन्होंने लूथरा से छुटकारा पाने के लिए रेजिडेंट एडिटर पर भी दबाव डाला - लेकिन सुभाष चंद्रा की वजह से उनका यह अनुरोध ठुकरा दिया गया. न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के अनुसार इसके बाद जगदीश चंद्रा सीधे लूथरा के पास गए, और उन्हें जेटली से मिलकर सुलह करने को कहा. लूथरा ने मना कर दिया और उनसे कहा कि वह अपने काम से काम रखें.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस जानकारी की पुष्टि करने के लिए लूथरा से बात की. उन्होंने चंद्रा का जिक्र करते हुए कहा, "मैं ऐसे लोगों के बारे में बात नहीं करना चाहता जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है. मैं अपना काम कर रहा था, जो किसी भी तरह की दलाली को नहीं करना है."

Bharat 24 plays on a large public screen in Jaipur.

चार महीने बाद ही चंद्रा से डीएनए का प्रबंधन वापस ले लिया गया. अखबार गिरती बिक्री से जूझ रहा था और चंद्रा के आने से बैलेंस शीट पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा. लेकिन संपादकों के साथ उनकी उलझी हुई राजनीति के कारण आखिरकार उन्हें ज़ी से बाहर होना पड़ा.

तब डीएनए के मुख्य संपादक टाइम्स समूह से आए द्वैपायन बोस थे और कार्यकारी संपादक मनीष छिब्बर थे, जो इंडियन एक्सप्रेस से आए थे. हमने जिस पूर्व डीएनए पत्रकार से बात की, उसने दावा किया कि चंद्रा को एक गंभीर समाचार पत्र चलाने की समझ नहीं थी. मई 2017 में हिंदी समाचार चैनल ज़ी हिंदुस्तान लॉन्च करने के तुरंत बाद, चंद्रा ने डीएनए संपादकीय बोर्ड से कहा कि नए चैनल की टीम भी अख़बार में योगदान देगी.

वे पत्रकार याद करते हुए बताते हैं, "मनीष ने उन्हें बताया कि हिंदी चैनल के कर्मचारी अंग्रेजी पेपर के लिए नहीं लिख सकते हैं, लेकिन चंद्रा टस से मस नहीं हुए. उन्होंने कहा कि ज़ी हिंदुस्तान के एंकर जो ऑन एयर बोलेंगे, बाकी कर्मचारी वही डीएनए में लिख देंगे.

छिब्बर और चंद्रा के टकराव का यह पहला वाकया नहीं था. 2017 में छिब्बर के आने के तुरंत बाद, चंद्रा ने उन्हें एक बैठक में बुलाया और डीएनए के दिल्ली ब्यूरो में ऐसे संपादकीय कर्मचारियों की सूची लाने को कहा, जिन्हें हटाया जा सकता है. हालांकि छिब्बर खाली हाथ गए. बातचीत की जानकारी रखने वाले पूर्व डीएनए पत्रकार के अनुसार, चंद्रा ने उन पत्रकारों का नाम लेना शुरू कर दिया जिन्हें वह हटाना चाहते थे.

पत्रकार ने बताया, "मनीष ने उनसे कहा कि उनकी मंजूरी के बिना किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला जाएगा. चंद्रा ने तब तक मुंबई ब्यूरो के कई कर्मचारियों को निकाल दिया था और उन्होंने मनीष से कहा कि ऐसा नहीं होगा. लेकिन मनीष अपनी बात पर अड़े रहे. सौभाग्य से दिल्ली की टीम से कोई छंटनी नहीं हुई”

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब छिब्बर से डीएनए में चंद्रा के साथ के वर्ष पर टिप्पणी लेने के लिए बात की तो उन्होंने मना कर दिया, उन्होंने कहा, “मैं अपने पिछले सहकर्मियों के बारे में बात नहीं करना चाहता.”

उसी साल जून में सीईओ चंद्रा ने चेयरमैन चंद्रा को पत्र लिखा. 26 जून, 2017 को एक ईमेल में, सीईओ ने अध्यक्ष के सामने डीएनए संपादकों की भर्त्सना की.

सबसे खराब समीक्षा मुख्य संपादक के हिस्से में आई. चंद्रा ने चेयरमैन से कहा कि बोस एक "पारंपरिक बंगाली संपादक" हैं, जो "न्यूज़मैन नहीं" हैं, अपितु केवल "डिजाइनिंग और पृष्ठ क्रमांक के" व्यक्ति हैं जो अपना काम नहीं कर सकते.

चंद्रा ने लिखा कि बोस को अस्थाई रूप से "संपादकीय सलाहकार" के रूप में पदावनत किया जाना चाहिए. उन्होंने सलाह दी कि छिब्बर को भी हटा दिया जाना चाहिए. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ईमेल के अंत में थी: सीईओ चंद्रा डीएनए के मुख्य संपादक बनना चाहते थे.

केवल उनकी मांगे ही अस्वीकार नहीं करी गईं, बल्कि अध्यक्ष चंद्रा ने पूर्व नौकरशाह को डीएनए के प्रभार से पूरी तरह मुक्त कर दिया. पत्रकार याद करते हुए कहते हैं, "हमें लगा था, अच्छा हुआ छुटकारा मिला. वह हर दिन अखबार के पहले पन्ने पर मोदी या शाह की तस्वीर चाहते थे.” उन्होंने अखबार के लगभग आधे कर्मचारियों को निकाल दिया. डीएनए की हालत खराब थी लेकिन जगदीश ने इसे और खराब कर दिया. वह पत्रकार नहीं हैं. वह एक सेल्समैन हैं जो बड़े-बड़े नाम लेकर रौब ज़माने की कोशिश करते हैं और अफवाहों को हवा देते हैं.”

2018 की शुरुआत में सुभाष चंद्रा ने विनम्रता से जगदीश चंद्रा को ज़ी छोड़ने के लिए कहा. पूर्व डीएनए पत्रकार के अनुसार, एंकर सुधीर चौधरी सहित अन्य कर्मचारियों के साथ उनके तीखे संबंधों ने इस कदम को प्रोत्साहित किया. ज़ी प्रबंधन ने यह भी महसूस किया कि सीईओ बेहतर राजस्व के अपने वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं.

अप्रैल 2018 में एक बयान में ज़ी ने स्वीकार किया कि जगदीश चंद्रा ने "हमारे क्षेत्रीय चैनलों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई", लेकिन उसने कहा कि "उनके मूल्य ज़ी मीडिया के सात मूल सिद्धांतों के साथ मेल नहीं खाते.”

जब हमने मैंने चंद्रा से ज़ी के साथ उनके संबंधों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि यह बयान समूह के मानव संसाधन विभाग के साथ "संवादहीनता" का परिणाम था. उन्होंने कहा, “मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मेरे अभी भी श्री सुभाष चंद्रा के साथ मित्रवत संबंध हैं. हमें हर कीमत पर शांति का प्रयास करना चाहिए. शांति कभी बहुत महंगी नहीं होती.”

इस महीने की शुरुआत में भड़ास4मीडिया ने खबर दी थी कि रिलायंस समूह भारत-24 में 33 फीसदी हिस्सेदारी लेने के लिए बातचीत कर रहा है. हालांकि, चंद्रा ने मुझे बताया कि यह जानकारी "तथ्यात्मक रूप से गलत" है, लेकिन यह भी कहा कि "कोई नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा.” फ़िलहाल उनका टीवी समाचार चैनल केवल 45 करोड़ रुपए का स्टार्टअप है, जो "समान विचारधारा वाले निवेशकों की टीम" द्वारा वित्त पोषित है.

चंद्रा सप्ताह में तीन बार, फर्स्ट इंडिया न्यूज़ पर 'द जेसी शो' में दिखाई देते हैं जहां वह राजनीतिक विषयों पर अपने विचार साझा करते हैं, जो ज्यादातर सरकार समर्थक विचार ही होते हैं. यूट्यूब पर उनके अधिकांश एपिसोड्स के 2,000 से 30,000 के बीच व्यूज़ मिलते हैं.

72 साल की उम्र में यह पूर्व नौकरशाह कहते हैं कि उनके पास अभी भी इतनी ऊर्जा है कि समाचार उद्योग को अगले पांच वर्ष और दे सकें. चंद्रा मुस्कुराते हुए हमारे भोजन का भुगतान करने के लिए नोट गिनते हैं (वह भुगतान हमेशा नकद ही करते हैं) और कहते हैं. “जब मैं ईटीवी और ज़ी में था, मैं चाहता था मुझे मालिक के रूप में देखा जाए. भारत-24 के साथ यह लक्ष्य पूरा हो गया है. अब मेरा लक्ष्य है कि हर दिन जीवन पिछले दिन की तुलना में बेहतर हो. मैं इसे समाचार के जरिए प्राप्त करता हूं. आप मुझे पसंद करें या नहीं, आपको मेरी बात सुननी तो पड़ेगी.”

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