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इंटरनेट गतिविधि के बल पर गोरखनाथ हमले के संदिग्ध को आतंकी बता रही यूपी पुलिस

वह “आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के द्वारा समर्थित इस्लाम की श्रेष्ठता स्थापित करना चाहता था” क्योंकि वह “वैश्विक जिहाद की धारणा से प्रभावित था” जिसके अनुसार “जो लोग इस्लाम में विश्वास नहीं करते हैं वे मूर्तिपूजक या काफिर हैं” और इसलिए उन्हें “मारकर नर्क भेज दिया जाना चाहिए.”

ऐसा उत्तर प्रदेश पुलिस ने अहमद मुर्तजा अब्बासी के खिलाफ 26 अगस्त को दायर चार्जशीट में लिखा है. अब्बासी को अप्रैल में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के सुरक्षा कर्मियों पर हमला करने लिए गिरफ्तार किया गया था. चार्जशीट के अनुसार उपरोक्त "वैश्विक जिहाद की धारणा" ने ही अब्बासी को इस हमले के लिए प्रेरित किया था. हमले के कुछ दिनों बाद सामने आए एक वीडियो में भी अब्बासी ने कथित तौर पर दावा किया कि वह नए नागरिकता कानून और कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध का विरोध करने वाले "मुसलमानों के उत्पीड़न" से भड़का हुआ था, जो उसके हमले की वजह बना.

गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ हैं. अब्बासी के उपकरणों, इंटरनेट सर्च हिस्ट्री और सोशल मीडिया गतिविधियों से एकत्र की गई सामग्री के बल पर पुलिस आईएसआईएस से उसके कथित संबंध और मंदिर पर हमले के मकसद को लेकर उपरोक्त निष्कर्ष पर पहुंची. यह सबूत लखनऊ की एक अदालत में दायर की गई 2,000 पन्नों की चार्जशीट का हिस्सा हैं. चार्जशीट में अब्बासी पर आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के साथ-साथ हत्या के प्रयास और विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने से जुड़ी धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं.

अब्बासी के आईएसईएस से संबंध की ओर इशारा करने वाले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों में उसके आईफोन, मैकबुक, हार्ड डिस्क और जीमेल हैं. पुलिस ने दावा किया है कि उसके हार्ड डिस्क पर "दबिक और रुमियाह के विभिन्न संस्करणों से संबंधित पीडीएफ" मिले हैं. यह आईएसआईएस के मीडिया विंग अल हयात मीडिया सेंटर द्वारा प्रकाशित ई-पत्रिकाएं हैं, जिनका उपयोग यह समूह प्रोपगैंडा और आतंकियों की भर्ती के लिए करता है.

पुलिस का यह भी दावा है कि उन्हें कुछ चित्र भी मिले हैं जिनके कैप्शन इस प्रकार हैं: "जस्ट टेरर टैक्टिक्स नाइफ अटैक यानी मान्य आंतकी तरीके चाकू से हमला", "इस्लामिक स्टेट के विलायत से चुने गए दस वीडियो" और "काफिर का खून तुम्हारे लिए हलाल है, इसलिए उसे बहाओ" आदि. आखिरी कैप्शन लगभग छह साल पहले रुमिया में प्रकाशित एक लेख की हेडलाइन है.

यूपी पुलिस का दावा है कि हार्ड डिस्क में 2016 में अमेरिकी सैनिकों द्वारा मारे गए आईएसआईएस के प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल-अदनानी के भाषणों के लिखित संस्करण भी हैं. साथ ही, आतंकियों से संबंध रखने के आरोपी अमेरिकी मौलवी अनवर अल-अवलाकी के भाषणों के लिखित स्वरूप भी थे. अवलाकी 2011 में एक ड्रोन हमले में मारा गया था.

अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने 30 अप्रैल को मीडिया से बातचीत में कहा था कि अब्बासी से प्राप्त उक्त सामग्री से पता चलता है कि वह आईएसआईएस के समर्थकों और लड़कों के "संपर्क में" था. उन्होंने यह विस्तार से नहीं बताया कि एक चरमपंथी समूह से संबंधित सामग्री रखने मात्र से अब्बासी का उससे संबंध कैसे सिद्ध होता है. अक्टूबर 2021 में कथित रूप से माओवादियों से संबंध रखने के लिए गिरफ्तार हुए पत्रकारिता के छात्र थवाहा फासल की गिरफ्तारी की चुनौती पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक आतंकवादी समूह को सदस्य के रूप में या किसी और प्रकार से केवल समर्थन देना, यूएपीए के तहत आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

थवाहा फासल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए दिल्ली के वकील अरीब उद्दीन अहमद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट किया है कि किसी आतंकवादी संगठन से संबंध या उसका 'समर्थन', आतंकी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के इरादे से ही होना चाहिए."

पुलिस का दावा है कि अब्बासी के आईफोन पर उसे बुकमार्क किए गए वेब पेज और सर्च हिस्ट्री मिली है, जो दर्शाती है कि उसने आईएसआईएस, अंसार ग़ज़वत-उल-हिंद, एम4 कार्बाइन और टैंक-रोधी मिसाइलों के विषय में लेख देखे थे. चार्जशीट में "कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा" से प्रभावित लेखों का भी उल्लेख है, जिनमें से ज्यादातर अहमद मूसा जिब्रील द्वारा लिखे गए हैं. जिब्रील ने कथित तौर पर 2017 के लंदन ब्रिज आतंकी हमले को "प्रेरित" किया था.

अब्बासी की सोशल मीडिया गतिविधि का पता लगाने के बाद, पुलिस ने दावा किया कि वह "आईएसआईएस समर्थकों और उससे सहानुभूति रखने वालों को फॉलो" करता था, जैसे मेहदी मसरूर बिस्वास द्वारा कथित रूप से संचालित आईएसआईएस समर्थक हैंडल @shamiwitness. बेंगलुरु के इंजीनियर बिस्वास को 2014 में एक आतंकवादी संगठन को "सहायता देने और उकसाने" के लिए यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था.

चार्जशीट में दावा किया गया है कि अब्बासी के "बिस्वास के साथ ऑनलाइन जुड़े" होने के कारण, "आरोपी, ट्वीट और रीट्वीट के माध्यम से, आईएसआईएस द्वारा समर्थित जिहादी विचारधारा का प्रचार करने की कोशिश कर रहा था."

बिस्वास का ट्विटर अकाउंट 2014 में उसकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद बंद कर दिया गया था, इसलिए पुलिस ने अब्बासी का कथित आतंकी संबंध सिद्ध करने के लिए 2013 में इस्लाम अवेकनिंग नामक एक मंच पर पोस्ट किए गए उसके एक कमेंट को आधार बनाया.

पुलिस ने जिस कमेंट को आधार बनाया है वह अब्बासी ने "मूसा सेरोन्टनियो: ग्रेट इस्लामिक एम्पायर इन पॉलिटिक्स, जिहाद एंड करंट अफेयर" नामक थ्रेड का जवाब देते हुए लिखा था: "मुझे लगा था कि आतंकवाद (जिस रूप में उसे आज पश्चिम समझता है) गलत काम करने वालों के लिए इस्लामिक स्टेट की विदेश नीति है. यह कहने की जरुरत नहीं है." पुलिस का दावा है कि "गलत काम करने वालों" से अब्बासी का मतलब "गैर-मुसलमानों" से है.

'संदिग्ध लेनदेन'

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के अलावा चार्जशीट में अब्बासी के कुछ आर्थिक लेनदेन का विवरण दिया गया है, जिसे पुलिस ने संदिग्ध पाया है. इसमें ऑनलाइन भुगतान प्लेटफॉर्म पेपैल द्वारा 23 जुलाई 2020 को अब्बासी को भेजे गए एक ईमेल का ज़िक्र है, जिसमें कहा गया है कि उनके खाते को "संदिग्ध भुगतान करने के कारण" प्रतिबंधित कर दिया गया है.

पुलिस का दावा है कि उसे पेपैल से उन 14 खातों की सूची मिली है, जिन्हें अब्बासी ने पैसे भेजे थे. ऐसी संभावना है कि ये भुगतान "आतंकी फंडिंग से जुड़े" थे, लेकिन "इसकी पुष्टि नहीं हुई है, यह केवल एक संदेह है."

चार्जशीट में आरोप है कि अब्बासी ने 2018 से 2020 के बीच जर्मनी, स्वीडन, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में आईएसआईएस से जुड़े समूहों को 6,69,841 रुपए भेजे. अब्बासी के परिवार के एक करीबी ने पुष्टि की कि उसने वास्तव में विदेश पैसा भेजा था. अब्बासी को पैसा कैसे मिला, यह बताते हुए उन्होंने कहा, "वह अपने पिता से विदेशों में मस्जिदों के निर्माण के लिए पैसा दान करने को कहता था." लेकिन नाम न लेने की शर्त पर बात करने वाले इस व्यक्ति ने यह बताने से इनकार कर दिया कि अब्बासी ने कितना पैसा ट्रांसफर किया, और क्या यह वास्तव में उसी मकसद के लिए इस्तेमाल किया गया था जैसा बताया जा रहा है.

पैसों के इस लेनदेन पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अबू बक्र सब्बाक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इस बात की "संभावना" है कि अब्बासी अपने परिचित लोगों को विदेश में पैसा भेज रहा था. उन्होंने कहा, "लेकिन इस मामले में, मध्यस्थ[पेपैल] ने पेमेंट प्रोसेस करने से मना कर दिया. इसलिए जांच में यह स्थापित करने की आवश्यकता है कि क्या जिन खातों में पैसा भेजा जा रहा था, वह किसी तरह से हैक तो नहीं हुए थे."

सब्बाक आगे कहते हैं, "जब तक आप किसी साजिश का हिस्सा नहीं हैं, तब तक केवल संबंध होने को यूएपीए के तहत अपराध का आधार नहीं बनाया जा सकता है."

आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अब्बासी ने अप्रैल 2018 तक गुजरात के जामनगर में नायरा एनर्जी रिफाइनरी में काम किया, जिसके दौरान उसे एक मानसिक दौरा पड़ा. उसके पारिवारिक करीबी ने दावा किया वह 12 साल की उम्र से मानसिक बीमारी से पीड़ित था और उसने 2018 के दौरे के बाद मनोचिकित्सक से इलाज भी कराया.

अब्बासी के वकीलों ने 9 सितंबर को मामले की पिछली सुनवाई में दंड संहिता की धारा 84 और सीआरपीसी की धारा 328 के तहत एक निर्वहन याचिका दायर की, जिसके तहत मानसिक अस्वस्थता के आधार पर राहत मिल सकती है. उनके वकीलों ने दावा किया है कि अब्बासी का सुरक्षा गार्डों पर हमला बाइपोलर डिसॉर्डर और स्कित्ज़ोफ्रेनिआ जैसी मानसिक समस्याओं का नतीजा था.

जामनगर में अब्बासी का इलाज करने वाले मनोचिकित्सक डॉ अरुण खत्री ने मरीज की गोपनीयता और अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

लेकिन अब्बासी के मेडिकल रिकॉर्ड देखने वाले गोरखपुर के मनोचिकित्सक डॉ अशोक जाह्नवी प्रसाद ने पुष्टि की कि वह मानसिक बीमारी से पीड़ित है. उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति एक साल तक ट्रैंक्विलाइज़र दवाइयों के भारी डोज़ पर था, हालांकि वह नियमित रूप से दवा नहीं लेता था."

डॉ प्रसाद ने मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर चिंता व्यक्त की. डॉ प्रसाद ने कहा, "उन्होंने एक स्थानीय आर्थोपेडिक सर्जन से प्रमाणपत्र लिया है. उन्हें अपराध की मंशा (mens rea) स्थापित करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड में जाना चाहिए था."

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