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सबका साथ-सबका विकास और मानव सूचकांक में 132वां स्थान
आज दुनिया के 191 देशों और क्षेत्रों के लिए मानव विकास सूचकांक जारी किया गया है जिसमें भारत को 132वें पायदान पर जगह दी गई है. इस इंडेक्स में भारत को कुल 0.633 अंक दिए गए हैं जो भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में रखता है. वहीं 2019 में भारत को कुल 0.645 अंक दिए गए थे. यह गिरावट स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि कोरोना महामारी ने देश में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर को बुरी तरह प्रभावित किया है.
गौरतलब है कि सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के 90 फीसदी देशों ने इस बार जारी मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में कमी दर्ज की है. यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि दुनिया सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक बार फिर पिछड़ रही है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी “ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2021/22” के हवाले से पता चला है पिछले 32 वर्षों में यह पहली मौका है जब इस इंडेक्स में इतनी ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक लगातार पिछले दो वर्षों में वैश्विक स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आय और जीवन स्तर में गिरावट आई है. देखा जाए तो मानव विकास में हो रही प्रगति पांच वर्षों की गिरावट के साथ 2016 के स्तर पर वापस आ गई है.
रिपोर्ट की मानें तो इसके लिए कोविड-19, यूक्रेन में जारी युद्ध और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े कारक जिम्मेवार हैं. इन सबने मिलकर लोगों के जीवन पर व्यापक असर डाला है और मानव विकास की दिशा में हो रही दशकों की प्रगति को पलट दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक राजनैतिक, वित्तीय और जलवायु से जुड़े संकटों ने कोरोना की मार झेल रही आबादी को संभलने का मौका ही नहीं दिया.
इस बारे में यूएनडीपी प्रशासक अचिम स्टेनर का कहना है कि दुनिया एक के बाद एक आए संकटों से उबरने के लिए जद्दोजहद कर रही है. हमने रोजमर्रा की जरूरतों की बढ़ती कीमतों और ऊर्जा संकट को देखा है, जबकि हम जीवाश्म ईंधन को सब्सिडी देने जैसे त्वरित सुधारों पर ध्यान केंद्रित कर रहें हैं, ऐसे में यह तत्काल राहत लम्बे समय के प्रणालीगत उपायों की राह में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं.
यह मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ और लंबा जीवन, शिक्षा तक पहुंच और जीवन गुणवत्ता को मापता है. इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है.
इन तीन प्रमुख आयामों को देखें तो मानव विकास सूचकांक में आई हालिया गिरावट में जीवन प्रत्याशा का बहुत बड़ा हाथ रहा. आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2019 में एक व्यक्ति की औसत आयु 72.8 वर्ष थी वो 2021 में 1.4 वर्षों की गिरावट के साथ घटकर 71.4 वर्ष रह गई है.
देखा जाए तो जीवन प्रत्याशा के मामले में जो रुझान वैश्विक स्तर पर सामने आए थे उन्हें भारत से जुड़े आंकड़ों में भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. जहां 2019 में देश में प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 69.7 थी वो 2021 में 2.5 वर्षों की गिरावट के साथ 67.2 वर्ष रह गई थी. इसी तरह भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 11.9 वर्ष हैं, और स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 6.7 हैं. वहीं यदि देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को देखें तो वो करीब 6,590 डॉलर है.
भारत में यूएनडीपी के प्रतिनिधि शोको नोडा का इस बारे में कहना है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है. लेकिन इन सबके बीच अच्छी खबर भी है. आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है. दुनिया की तुलना में भारत पुरुषों और महिलाओं के बीच मानव विकास की खाई को तेजी से पाट रहा है.
भारत में यूएनडीपी के प्रतिनिधि शोको नोडा का इस बारे में कहना है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास में हो रही प्रगति पलट गई है, भारत भी गिरावट की इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है. लेकिन इन सबके बीच अच्छी खबर भी है. आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 की तुलना में मानव विकास में व्याप्त असमानता का प्रभाव कम हुआ है.
दुनिया की तुलना में भारत पुरुषों और महिलाओं के बीच मानव विकास की खाई को तेजी से पाट रहा है. इस विकास के लिए भारत ने पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को भी कम किया है. देखा जाए तो भारत में विकास की यह कहानी देश में समावेशी विकास, सामाजिक सुरक्षा, और पुरुषों के साथ महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई नीतियों पर किए निवेश को दर्शाती है.
यदि दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो इस साल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में स्विटज़रलैंड को कुल 0.962 अंकों के साथ पहले स्थान पर जगह दी गई है. जहां औसत जीवन प्रत्याशा 84 वर्ष है. वहीं यदि शिक्षा की बात करें तो वहां व्यक्ति औसतन 13.9 वर्ष शिक्षा ग्रहण करता है जबकि स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 16.5 वर्ष हैं. इसी तरह वहां एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय 66,933 डॉलर है.
वहीं इसके विपरीत इस इंडेक्स में दक्षिण सूडान को सबसे निचले 191वें पायदान पर जगा दी गई है. देखा जाए तो दक्षिण सूडान में औसत जीवन प्रत्याशा 55 वर्ष है, जबकि एक औसत व्यक्ति की सकल राष्ट्रीय आय केवल 768 डॉलर है. इसी तरह दक्षिण सूडान में एक औसत बच्चा 5.7 वर्ष स्कूल जाता है.
वैश्विक स्तर पर जहां कुछ देशों में जीवन वापस ढर्रे पर लौट रहा है वहीं कुछ देशों की स्थिति में अब भी कोई खास बदलाव नहीं आया है. साथ ही मानव विकास में असमानताओं की खाई और चौड़ी हुई है. 2021 में आए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के बावजूद दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य संकट कहीं ज्यादा गहरा गया है. इन दो वर्षों में दुनिया के दो-तिहाई देशों ने जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में और भी कमी दर्ज की है.
महामारी ने न केवल लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है साथ ही इसने अर्थव्यवस्थाओं को भी तबाह कर दिया है. इसकी वजह से लैंगिक असमानता में भी वृद्धि दर्ज की गई है. गौरतलब है कि इस दौरान वैश्विक लैंगिक असमानता में 6.7 फीसदी की वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से लोगों में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. ऐसे में अनिश्चितता से भरी इस दुनिया में हमें एक दूसरे से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता की भावना की जरूरत है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
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