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हरियाणा में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ सड़कों पर किसान, बीजेपी और जेजेपी नेताओं की गांवों में नो एंट्री

अरावली की पहाड़ी के आसपास बसे कासन गांव में मंगलवार से तीन दिन का मेला शुरू हुआ. मेले के चकाचौंध के बीच हमारी नजर एक पोस्टर पर पड़ी, जिस पर लिखा हुआ है, ‘‘गांव कासन के समस्त किसान, बीजेपी और जेजेपी नेताओं का गांव में पहुंचने पर पूर्ण बहिष्कार करते हैं.’’ इस मेले के पहले दिन स्थानीय बीजेपी विधायक सत्यप्रकाश जरावता को आना था, लेकिन वे किसानों के विरोध के कारण नहीं आए.

जेजेपी यानी जननायक जनता पार्टी, जो हरियाणा सरकार में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है.

दरअसल हरियाणा की मनोहरलाल सरकार कासन गांव में 1810 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने वाली है, जिसको लेकर किसान बीते तीन महीने से मानेसर तहसील ऑफिस के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान कई बार सड़क भी जाम कर चुके हैं. मंगलवार को तहसील ऑफिस पर किसानों ने पंचायत की जिसमें फैसला लिया गया कि 18 सितंबर को दिल्ली-जयपुर हाईवे को जाम कर पंचायत करेंगे. इस इस दौरान सरकार पर अवार्ड (जमीन अधिग्रहण को लेकर सरकार की तरफ से अंतिम फैसला) वापस लेने का दबाव बनाएंगे और अगर ऐसा नहीं होता है तो उचित मुआवजा देने पर ही हम अपनी जमीन देंगे.

बीते तीन महीने से चल रहा है कासन और आसपास के गांवों के किसानों का प्रदर्शन

जमीन बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले चल रहे इस प्रदर्शन में सैकड़ों की संख्या में महिलाएं भी हिस्सा ले रही हैं. 38 वर्षीय गीता यादव इन्हीं महिलाओं में से एक हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गीता रोने लगती हैं. वो कहती हैं, ‘‘अगर इस बार भी सरकार अधिग्रहण कर लेती है तो चौथी बार हमें घर बनाना पड़ेगा. इससे पहले हुए अधिग्रहण में तीन बार मेरा मकान टूट चुका है. मेरे दादा राव फतेह सिंह आज़ाद हिंद फौज के सिपाही थे. साल 2004-05 में जब हमारे जमीन का अधिग्रहण हुआ और घर टूटा तो उनका अटैक की वजह से निधन हो गया. उन्होंने 40 किला जमीन खरीदी थी. उसमें से आधी तो पहले ही सरकार ने ले ली. बचा था 18 किला. अब उसे भी लेने वाली है. अगर ये भी चला जाएगा तो हम अपने बच्चों को क्या देकर जाएंगे. खट्टर हमें बर्बाद करना चाहता है.’’

हरियाणा में एक किला एक एकड़ के बराबर होता है. कासन गांव और उसके लगे गांवों में इससे पहले सात बार हरियाणा सरकार जमीन अधिग्रहण कर चुकी है. गीता आगे बताती हैं, ‘‘सरकार जमीन के बदले मुआवजा दे देती है, लेकिन घर के बदले क्या देती है? पिछली बार जब हमारा घर टूटा सरकार की तरफ से चार लाख 50 हजार रुपए मुआवजा दिया गया. जबकि घर बनाने में हमने 16 लाख रुपए खर्च किए थे. पैसे से ज्यादा घर से लगाव की बात है. इस बार भी सरकार जो 1810 हेक्टेयर लेने वाली है उसमें सैकड़ों घर, स्कूल और दुकानें हैं. सब कहां जाएंगे. अबकी मर जाएंगे लेकिन अपना घर नहीं देंगे.’’

प्रदर्शन स्थल पर गीता देवी (बीच में) और मुकेश देवी (दाएं तरफ)

गीता के साथ ही प्रदर्शन स्थल पर बैठी 43 वर्षीय मुकेश देवी की यहां जमीन तो नहीं है लेकिन आधे किले में बना घर है. सरकार के अधिग्रहण में इनका भी घर आ रहा है. नाराज मुकेश कहती हैं, ‘‘एक-एक रुपया जोड़कर हमने घर बनाया है. वो हमारा घर तोड़ना चाहते हैं. हम अपना घर जभी तोड़ेंगे जब खट्टर अपना और अपने मंत्रियों का घर तोड़ दें. तीन महीने से बैठे हुए हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. सरकार को जमीन देने से बेहतर हम मर ही जाएं. इसलिए हमने सामूहिक आत्मदाह की मांग की है.’’

किसानों ने 31 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु और सामूहिक आत्मदाह की मांग की थी.

1810 एकड़ जमीन अधिग्रहण का इतिहास

कासन गांव के जिस 1810 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ किसान संघर्ष कर रहे हैं, सरकार द्वारा इसे लेने की शुरुआत साल 2011 से हुई. तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. उस वक्त सरकार ने गांव में 1128 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर भी लिया, लेकिन 1810 एकड़ को लेकर आठ किसान सुप्रीम कोर्ट चले गए. तब सुप्रीम कोर्ट ने इसके अधिग्रहण पर स्टे दे दिया.

महेंद्र पटवारी, जमीन बचाओ, किसान बचाओ संघर्ष समिति के खजांची हैं और कानूनी मामले देखते हैं, वे बताते हैं, ‘‘1810 एकड़ के लिए सरकार 2011 में सेक्शन 4 (जमीन अधिग्रहण की प्रारंभिक अधिसूचना) की. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अधिग्रहण पर स्टे रहा. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए देखा कि मामला हाईकोर्ट गया ही नहीं है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में मामले को भेज दिया.

2019 में हरियाणा सरकार ने हाईकोर्ट में लिखकर दिया कि हम एक कमेटी बनाएंगे जो किसानों से बात करेगी. किसानों से बातचीत के बाद ही जमीन के अधिग्रहण पर बात आगे बढ़ेगी. जिसके बाद हाईकोर्ट ने हमारा केस रद्द कर दिया. सरकार कमेटी तो नहीं बनाई लेकिन 17 अगस्त 2020 को जमीन पर सेक्शन 6 (भूमि एक सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक है कि घोषणा ) जारी कर दिया. दो साल बाद बीते अगस्त महीने में अवार्ड (जमीन अधिग्रहण का अंतिम चरण जिसके बाद सरकार मुआवजा देकर जमीन ले लेती है) कर दिया गया.

सरकार से किसानों की नाराजगी का कारण है, सरकार द्वारा उचित मुआवजा नहीं दिया जाना. नानवाल गांव के रहने वाले भीड़ सिंह कि 4 कनाल (आधा एकड़) जमीन अधिग्रहण में जा रही है. वे बताते हैं कि सरकार 55 लाख रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे रही है. जबकि आज हमारे यहां 3 से लेकर 11 करोड़ रुपए तक एक एकड़ जमीन बिक रही है. ऐसे में इतने सस्ते दर पर हम अपनी जमीन क्यों दें? सरकार ने साल 2011 में जिन जमीनों का अधिग्रहण कर लिया था. उन्हें बीते साल ब्याज के साथ पैसे दिए गए. ब्याज के साथ उन्हें कुल 90 लाख रुपए एकड़ मिला है. हम अगर जमीन देते हैं इतने ही पैसे मिलेंगे. सरकार जितने में हमारी जमीन लेगी उतने में इसी जगह पर बना एक फ्लैट तक हम नहीं खरीद सकते हैं.

वो इलाका जो अधिग्रहण के क्षेत्र में आएगा. इसमें कई घर और स्कूल भी है.

उचित मुआवजे के अलावा किसानों की मांग हैं कि उनके घर को ना तोड़ा जाए. गीता यादव हों या मुकेश देवी सबकी चिंता घर के टूटने की है. इसको लेकर ग्रामीण मुख्यमंत्री से लेकर तमाम जिम्मेदारों से अपील कर चुके हैं. 6 सितंबर को जब किसान पंचायत कर रहे थे तभी स्थानीय विधायक सत्यप्रकाश जारवाल ने मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से मिलकर किसानों का घर नहीं तोड़ने का आग्रह किया.

गुरुग्राम जिले के जनसंपर्क अधिकारी रणवीर सिंह सांगवान बताते हैं कि सरकार यह जमीन आईएमटी मानेसर के विस्तार के लिए ले रही हैं. आईएमटी यानी औद्योगिक मॉडल टाउनशिप. इसके अंतर्गत सरकार कंपनियों को जमीन उपलब्ध कराती है ताकि वे व्यवसाय कर सकें.

सांगवान न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए यह बात स्वीकार करते हैं कि किसानों को 2011 के हिसाब से मुआवजा मिल रहा है. वे कहते हैं, ‘‘किसानों की जमीन का जो अवार्ड सुनाया गया है वो कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए सुनाया गया है. किसानों का पक्ष सुनने के बाद ही अवार्ड सुनाया गया है. दूसरी बात यहां के किसान मुख्यमंत्री जी से भी दो बार मिल चुके हैं. सीएम साहब ने भी इनको ऑफर दिया था. (ऑफर क्या था यह सांगवान नहीं बताते) किसान उस ऑफर से संतुष्ट थे लेकिन उसके बाद इनके दिमाग में कुछ और आ गया. तब से ये प्रदर्शन कर रहे हैं.’’

मुआवजे के सवाल पर सांगवान कहते हैं, ‘‘मुआवजा किसानों को पुराने हिसाब से ही दिया जा रहा है. क्योंकि सरकार ने यह जमीन अभी नहीं ली है. 2011 में इसका अधिग्रहण हुआ था. बाद में मामला कोर्ट में चला गया. उसके बाद सरकार अपनी प्रक्रिया पूरा कर अधिग्रहण करेगी.’’

किसानों की जमीन का अधिग्रहण, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत हुआ है या पुराने कानून के तहत. क्योंकि किसानों का आरोप है कि सरकार 1894 एक्ट के तहत जमीन का अधिग्रहण कर रही है. इस पर सांगवान कहते हैं, ‘‘ये किसान सीएम साहब से मिल चुके हैं. उस दौरान सीएम साहब ने कहा कि जो मार्किट रेट हैं, उसके आसपास आपको मुआवजा दिलाने की कोशिश करेंगे. अब समझ से परे है कि ये आंदोलन क्यों कर रहे हैं. इस पूरे विवाद का हल बातचीत से ही निकलेगा.’’

महेंद्र पटवारी इसे गलत बताते हैं. उनके मुताबिक जमीन का अधिग्रहण, 2013 में बने कानून के तहत होना चाहिए. वे कहते हैं, ‘‘इसी आधार पर हम जमीन के अवार्ड को चुनौती सुप्रीम कोर्ट में देंगे.’’

बीजेपी नेताओं से ग्रामीणों में नाराजगी

सिर्फ कासन गांव में नहीं बल्कि आसपास के लगभग 25 गांवों में बीजेपी और जेजेपी के नेताओं के पूर्ण बहिष्कार के बैनर लगे हुए हैं. मंगलवार को पंचायत में बीजेपी नेताओं पर लोगों ने नाराजगी जाहिर की. मंच से बोलते हुए वक्ताओं ने कहा, बीजेपी की सरकार बनवाने में दक्षिणी हरियाणा ने बड़ी भूमिका निभाई.

कासन के रहने वाले हेमचंद्र यादव कहते हैं, ‘‘हमारे यहां से बीजेपी के विधायक हैं. हमारे सांसद राव इंद्रजीत सिंह बीजेपी से हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं. बगल के जिला फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्जर बीजेपी के सांसद हैं और केंद्र सरकार में मंत्री हैं. बीजेपी संसदीय समिति में शामिल होने वाली सुधा यादव भी हमारे यहां से हैं लेकिन आज हमारी कोई नहीं सुनने वाला है.’’

सिर्फ कासन गांव में नहीं बल्कि आसपास के लगभग 25 गांवों में बीजेपी और जेजेपी के नेताओं के पूर्ण बहिष्कार के बैनर लगे हुए हैं.

पंचायत में आप नेता नवीन जयहिंद, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे अजय यादव समेत दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं ने इस प्रदर्शन को समर्थन दिया है. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार जबरदस्ती उनसे जमीन नहीं छीन सकती है. अगर वो ऐसा करती है तो अहीरवाल (दक्षिणी हरियाणा) से बीजेपी का एक पार्षद भी नहीं जीत पाएगा.

रेवाड़ी से पांच बार के विधायक और पूर्व मंत्री अजय यादव ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहा कि हमारे यहां के युवा सेना में जाते थे या खेती करते थे. अग्निवीर योजना लाकर सरकार ने युवाओं का सेना में जाने का सपना तोड़ दिया और जमीन लेकर खेती से भी दूर करना चाहती है. मैं खट्टर साहब से मांग करता हूं कि वे किसानों की बात सुनें और उनकी मांग के मुताबिक फैसले लें. यह प्रदेश के हित में होगा.’’

जमीन बचाओ किसान बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष रोहतास यादव बताते हैं, ‘‘हम तीन महीने से बैठे हुए हैं. सरकार अगर नहीं मानती तो हम आगे भी बैठेंगे. सरकार बार-बार हमें उजाड़ नहीं सकती है. हम सबके पास मदद के लिए गए पर कोई सुनने वाला नहीं है.’’

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