Report
दिल्ली विश्वविद्यालय: 200 छात्राओं को हॉस्टल खाली करने के लिए किया जा रहा प्रताड़ित
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक फरमान ने विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली करीब 200 छात्राओं को संकट में डाल दिया है. छात्राओं का आरोप है कि प्रशासन हॉस्टल खाली करवाने के लिए पिछले कई दिनों से उन्हें प्रताड़ित कर रहा है. इतना ही नहीं 25 अगस्त को राजीव गांधी हॉस्टल परिसर में एक नोटिस भी लगाया गया जिसमें लिखा था कि जो भी छात्राएं 1 सितंबर तक हॉस्टल खाली नहीं करेंगी, उनको प्रतिदिन के हिसाब से 200 रुपए अतिरिक्त शुल्क देना होगा.
दरअसल 22 अगस्त को दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव गांधी पीजी हॉस्टल की प्रोवोस्ट की तरफ से एमए प्रथम वर्ष की छात्राओं को ईमेल के जरिए कहा गया कि 15 दिन के भीतर सभी छात्राओं को हॉस्टल खाली करना होगा. ईमेल में लिखा था, “आपको सूचित किया जाता है कि छात्रावास आगामी सत्र से नियमित रूप से प्रवेश प्रारम्भ करने पर विचार कर रहा है, इसलिए छात्रावास को कमरे खाली करने की आवश्यकता होगी. प्रवेश प्रक्रिया को देखते हुए आपको 15 दिनों के भीतर छात्रावास खाली करने का निर्देश दिया जाता है.”
राजीव गांधी हॉस्टल परिसर दिल्ली विश्वविद्यालय का एक आवासीय महिला छात्रावास है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए फर्स्ट ईयर की छात्रा वॉयलीना ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहा, “22 अगस्त की दोपहर जब मैं परीक्षा देकर कॉलेज से बाहर निकली, तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई. तीन महीने पहले ही मैंने हॉस्टल में एडमिशन लिया था और अब हमसे परीक्षा के बीच में हॉस्टल खाली करने को बोला जा रहा था. जब मुझे नोटिस मिला उसके दो दिन बाद मेरा एक और पेपर था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं परीक्षा दूं या फिर हॉस्टल ढूंढूं. मैं असम की रहने वाली हूं. मेरे घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि मैं प्राइवेट हॉस्टल लेकर रहूं. विश्वविद्यालय का हॉस्टल ही है जहां पर रहकर मैं पढ़ाई कर सकती हूं. अब अगर यह हॉस्टल भी हमसे छीन लिया जाएगा तो फिर हम कहां रहेंगे.”
हॉस्टल कांप्लेक्स में एमए प्रथम वर्ष की लगभग 200 छात्राएं रहती हैं. इनमें से ज्यादातर छात्राएं देश के दूरदराज क्षेत्रों से आई हुई हैं. अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाली इन छात्राओं में से तीन छात्राएं दृष्टिबाधित हैं.
एमए प्रथम वर्ष की छात्रा सोनाली आंखों से देख नहीं सकतीं. सोनाली ने हमें बताया कि जब वह अपनी दोस्तों के साथ इस मामले में हॉस्टल की प्रोवोस्ट से बात करने गईं तो उन्हें डांट कर चुप करा दिया गया. साथ ही कहा गया कि, “तुम दृष्टिबाधित हो तो क्या तुम्हें अलग से कोई स्पेशल ट्रीटमेंट मिलेगी? तुमको भी हॉस्टल खाली करना पड़ेगा.”
सोनाली बताती हैं, "मेरे जैसे स्टूडेंट्स के लिए यूनिवर्सिटी का हॉस्टल ही सबसे सुरक्षित और सुविधाजनक होता है. प्राइवेट पीजी दृष्टिबाधित छात्रों के सुविधानुसार नहीं होते हैं. मैं बहुत मेहनत करके यहां तक पहुंची हूं. मैं पढ़ना चाहती हूं ताकि जिंदगी में कुछ कर सकूं. यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहते हैं तो पढ़ाई भी अच्छी हो जाती है और पेरेंट्स भी चिंता मुक्त रहते हैं. लेकिन अगर हमें हॉस्टल से निकाल दिया जाएगा तो मैं पढ़ाई नहीं कर पाऊंगी क्योंकि फिर मुझे दिल्ली छोड़ कर अपने शहर लौटना पड़ेगा."
22 अगस्त को हॉस्टल खाली करने के नोटिस आने के बाद से ही छात्राओं को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. 27 अगस्त को छात्राओं ने दिल्ली महिला आयोग को पत्र लिखकर बताया कि राजीव गांधी हॉस्टल की प्रोवोस्ट पूनम सिलोटिया, वार्डन प्रतिमा राय, रेजिडेंट ट्यूटर सुनीता यादव द्वारा छात्राओं को जबरन हॉस्टल से निकाला जा रहा है. जिस पर आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय को नोटिस जारी करके छात्राओं से जबरन हॉस्टल खाली कराने पर आपत्ति जताई है.
हॉस्टल में रहने वाली एक अन्य छात्रा श्रेया महाजन बताती हैं, "27 अगस्त को मुझे अपने घर जम्मू जाना था, मेरी टिकट कंफर्म थी. एक दिन पहले जब मैंने मैम को बताया कि मैं एक हफ्ते के लिए घर जा रही हूं, तो उन्होंने मुझसे कहा कि आप पहले हॉस्टल खाली कर दो फिर घर जाओ. मुझे हॉस्टल से बाहर जाने के लिए गेट पास नहीं दिया गया. जब मैं बाहर जाने लगी तो गेट पर खड़े गार्ड ने कहा कि आप हॉस्टल से बाहर नहीं जा सकतीं, पहले आपको वार्डन से गेट पास लेकर आना होगा. फिर जब पूरे हॉस्टल की छात्राएं इकट्ठी हो गईं और सब ने मिलकर मेरे लिए आवाज उठाई तब जाकर उन्होंने मुझे जाने दिया. साथ में चेतावनी भी दी कि एक दिन के लिए जाने दे रहे हैं उसके बाद आप अपना देख लेना."
बता दें कि करीब दो वर्षों के लॉकडाउन के बाद, फरवरी 2022 से दिल्ली विश्वविद्यालय में ऑफलाइन कक्षाएं शुरू हुईं. मार्च में हॉस्टल में दाखिला लेने की प्रक्रिया शुरू हुई, और मेरिट के आधार पर चुनी हुई छात्राओं को हॉस्टल में दाखिला दिया गया. इसके अलावा कोविड-19 के कारण विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कैलेंडर में भी काफी बदलाव हुआ. जहां पहले अप्रैल-मई में परीक्षाएं खत्म हो जाने के बाद दो महीने गर्मियों की छुट्टी होती थी, वहीं अब नए कैलेंडर के हिसाब से इन छुट्टियों को घटा कर एक हफ्ता कर दिया गया.
हॉस्टल में रहने वाली दिव्या बताती हैं, "प्रथम वर्ष की परीक्षाएं खत्म होने के एक हफ्ते बाद ही द्वितीय वर्ष की कक्षाएं लगने लगीं. हर दिन क्लास जाना होता है. ऐसे में शैक्षणिक सत्र के बीच में हॉस्टल खाली करने का आदेश देना, हमारे शिक्षा के अधिकार का हनन है. छात्राओं ने विश्वविद्यालय प्रशासन से बार-बार अनुरोध किया कि सत्र के बीच में हमसे हॉस्टल न खाली करवाया जाए, क्योंकि यह शैक्षणिक रूप से सही नहीं है, इससे छात्राओं की पढ़ाई बाधित होगी. लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है."
छात्रावास प्रशासन का तर्क है कि आने वाले सत्र में नए छात्राओं को हॉस्टल में प्रवेश देना है, इसलिए वर्तमान छात्राओं से हॉस्टल खाली करना होगा और उन्हें फिर से आवेदन करना होगा. जबकि छात्राओं का कहना है कि वर्तमान में जो छात्राएं हॉस्टल में रह रही हैं, उनको इस सत्र के खत्म होने तक हॉस्टल में रहने दिया जाए क्योंकि इनका दाखिला कुछ महीने पहले ही हुआ है.
राजीव गांधी गर्ल्स हॉस्टल में कुल 700 सीटें हैं जिनमें से केवल 250 सीट ही भरी गई हैं. हर साल हॉस्टल लगभग 250 के लगभग छात्राओं के एडमिशन स्वीकृत करता है. छात्राओं का कहना है कि जब हर सत्र में 250 दाखिले ही लिए जाते हैं, तो फिर वर्तमान छात्राओं को हॉस्टल में सीटें खाली होते हुए भी दोबारा ऐसा करने के लिए क्यों बोला जा रहा है?
वहीं दूसरी तरफ हॉस्टल की फीस भी बढ़ा दी गई है. पिछले महीने तक छात्राओं को प्रतिमाह 7,473 रुपए फीस के रूप में देने पड़ते थे. लेकिन अब सितंबर महीने से फीस में 1,915 रुपए की वृद्धि कर दी गई है, यानी अब छात्राओं को प्रतिमाह 9,388 रुपए फीस के रूप में भरने होंगे.
इस घटना के संदर्भ में हमने राजीव गांधी हॉस्टल की प्रॉवोस्ट पूनम सिलोटिया से बात की. उन्होंने बताया, “छात्राओं को हॉस्टल खाली करने का नोटिस दिया गया था, जिसे फिलहाल रोक दिया गया है. सब कुछ नियम के मुताबिक हो रहा है. छात्राओं की मांगों पर विचार किया जा रहा है. 9 सितंबर को मैनेजमेंट की मीटिंग होनी है जिसमें तय किया जाएगा कि वर्तमान सत्र की छात्राओं के साथ क्या करना है.”
वहीं फीस बढ़ाए जाने पर पूनम का कहना है कि बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखकर यह फैसला लिया गया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष अक्षित दहिया ने कहा, “छात्राओं की मांग बिल्कुल जायज है. हमारी मांग है कि फाइनल ईयर की स्टूडेंट्स को एक्सटेंशन दिया जाए और फर्स्ट ईयर से सेकेंड ईयर में गई स्टूडेंट्स को हॉस्टल में नियमित किया जाय. इसके अलावा फीस वृद्धि, अतिरिक्त शुल्क और छात्राओं को साथ हो रहे दुर्व्यवहार को रोका जाए. हमने विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्राओं की मांग को लेकर ज्ञापन दिया है. अगर प्रशासन हमारी मांगों पर सकारात्मक कार्यवाही नहीं करेगा तो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ उग्र प्रदर्शन करेगा.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन(स्टूडेंट वेलफेयर) पंकज अरोड़ा से बात करने की कोशिश की लेकिन जवाब नहीं मिला. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं जवाब आने पर खबर में अपडेट कर दिया जाएगा.
Also Read
-
From doomscrolling to dissent: Story of Gen Z’s uprising in Nepal
-
BJP’s new political frontier: Fusion of Gujarat Hindutva model with Assam anti-immigration politics
-
Standing Committee recommends ombudsman, harsher penalties for media to curb ‘fake news’
-
20 months on, no answers in Haldwani violence deaths
-
नेपाल: अंतरिम सरकार के गठन की चर्चाओं के बीच क्या सच में उठी हिंदू राष्ट्र की मांग?