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पेगासस जासूसी: सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई पर हिंदी अखबारों का रवैया

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को देश के पत्रकारों, वकीलों, राजनेताओं, लेखकों और नागरिकों पर पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करने की जांच के लिए गठित तकनीकी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. यह समिति कोर्ट ने जासूसी के आरोपों के बाद अक्टूबर 2021 में बनाई थी.

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरवी रविंद्रन की अध्यक्षता में बनी तकनीकी समिति ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने पेगासस मामले में इस रिपोर्ट पर सुनवाई की.

सीजेआई ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया. रकार ने जो तर्क कोर्ट में लिया था, वही उसने समिति के सामने भी बरकरार रखा. सरकार ने यह बताने से भी इनकार किया की उसने पेगासस खरीदा या नहीं.

इस खबर पर हिंदी पट्टी के अखबारों का जोर इस बात पर रहा कि इस मामले में जांच कर रही समिति को कुछ हाथ नहीं लगा, यानी पेगासस से किसी की जासूसी नहीं की गई. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि इस मामले में सरकार ने समिति का कोई सहयोग नहीं किया. इसलिए यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि जासूसी हुई या नहीं.

दैनिक जागरण

हिंदी पट्टी के सबसे बड़े अखबारों में से एक दैनिक जागरण ने पेगासस जासूसी की खबर को पहले पन्ने पर जगह दी. अखबार ने लिखा, “किसी के फोन में नहीं मिला पेगासस”. इस खबर के साथ ही अखबार ने पाठकों को बता दिया कि पेगासस जैसा कुछ नहीं मिला. जबकि समिति ने साफ कहा है कि पांच फोन में मालवेयर यानि संदिग्ध सॉफ्टवेयर मिला है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता की वह पेगासस के कारण ही है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार ने यह नहीं बताया की पेगासस खरीदा गया या नहीं, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि पेगासस का उपयोग हुआ ही नहीं? इसमें अदालत की सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी थी कि सरकार ने समिति की जांच में सहयोग नहीं किया.

इतनी महत्वपूर्ण टिप्पणी को अखबार ने न तो हेडलाइन, और न ही सबहेड में लिखा गया. इस बात को नीचे खबर में अलग से लिखा गया है.

खबर में राहुल गांधी और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का बयान भी छापा गया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अन्य मामलों को लेकर हुई सुनवाइयों के बारे में भी जानकारी दी गई है.

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर ने पेगासस मामले पर सौंपी गई रिपोर्ट की खबर को दिल्ली संस्करण के देश-विदेश के पन्ने पर प्रकाशित किया है. स्पष्ट हेडलाइन है, “सीजेआई बोले - सरकार ने पेगासस पर समिति का सहयोग नहीं किया.”

भास्कर ने अपनी खबर में भी बताया कि कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने समिति को कोई सहयोग नहीं दिया, और सरकार ने यह बताने से भी इनकार किया कि उसने पेगासस खरीदा या नहीं. खबर के बाकी के हिस्से में समिति की तीन हिस्सों में दी गई रिपोर्ट के बारे में बताया गया है. साथ ही खबर में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को हुई दो अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों की सुनवाई का भी जिक्र किया गया है.

अमर उजाला

अमर उजाला ने पेगासस मामले को पहले पेज पर जगह दी है. अखबार ने हेडलाइन में बताया कि “जासूसी के सबूत नहीं पर 29 में से 5 फोन में मिला मालवेयर.” इसके नीचे सबहेड में अखबार ने लिखा कि विशेषज्ञ समिति ने सुप्रीम कोर्ट में बताया, “केंद्र ने नहीं किया जांच में सहयोग.”

अमर उजाला ने विस्तृत तरीके से पेगासस मामले को छापा है. खबर में कोर्ट द्वारा समिति की जांच रिपोर्ट पर की गई टिप्पणी के बारे में बताया गया है. साथ ही समिति ने जो सिफारिशें की हैं, उन्हें भी समझाया है.

खबर में बताया गया कि समिति ने 29 मोबाइल फोन की जांच की जिसमें से 5 में स्पाइवेयर मिले हैं, लेकिन वह क्या है यह जांच का विषय है. खबर में याचिकाकर्ता पक्ष के वकील कपिल सिब्बल के कथन को भी रखा गया है, “हमें जानने का अधिकार है कि पांच मोबाइल में किस तरह का मालवेयर पाया गया है.”

हिंदुस्तान

हिंदी पट्टी के एक अन्य अखबार हिंदुस्तान ने भी पेगासस की खबर को पहले पेज पर जगह दी है. अखबार ने खबर को तीन कॉलम में जगह दी. हालांकि खबर के बीच में अखबार ने कोर्ट के दो अन्य मामलों के बारे में भी जानकारी दी है.

हेडलाइन लिखा है, “खुलासा: पांच फोन में मालवेयर मिला पर पेगासस का सबूत नहीं.” खबर में बताया गया कि जांच समिति ने सभी फोन की जांच की है जिनमें से पांच में मालवेयर मिला है, लेकिन यह साफ नहीं है कि वह पेगासस ही है. मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में नागरिकों की निजता के अधिकार और देश की साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन करने का सुझाव दिया. खबर में राजनितिक टिप्पणियों को भी जगह दी गई है. भाजपा ने कांग्रेस से सवाल पूछा है कि क्या अब कांग्रेस माफी मांगेगी? वहीं कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ने जवाब न देकर लोकतंत्र को दागदार किया है.

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हिंदी पट्टी के अखबारों ने इतनी महत्वपूर्ण खबर को जगह तो दी, लेकिन जागरण ने खबर को अपने पाठकों के सामने ऐसे पेश किया मानो पेगासस जैसा कुछ था ही नहीं और सरकार ने कोई गलत काम नहीं किया. बाकी अखबारों ने खबर में सरकार के असहयोग की बात ज़रूर बताई, लेकिन इस मामले की मौलिक अधिकारों से जुड़ी महत्ता पर जानकारी कम ही दिखी. इस नज़रिये से अमर उजाला और हिंदुस्तान का कवरेज बेहतर रहा.

अखबारों का सारा ध्यान यह बताने पर था कि पेगासस नहीं मिला है. जबकि कोर्ट की सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी थी कि सरकार ने जांच समिति का सहयोग नहीं किया. जब सहयोग न करने को लेकर कोर्ट ने सवाल किया, तो देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं है. राजनीतिक टीका-टिप्पणियों के बीच सरकार के पक्ष और पब्लिक में भाजपा प्रवक्ता की बातों के दोगलेपन को परिभाषित करना खबर के लिए ज़रूरी था.

रिटायर्ड जज आरवी रविंद्रन की अध्यक्षता में बनी समिति में पूर्व आईपीएस आलोक जोशी और डॉ. संदीप ओबेरॉय के अलावा तकनीकी समिति में नवीन कुमार चौधरी, प्रभारन पी. और अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट ने समिति की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि जस्टिस रविंद्रन की रिपोर्ट में नागरिकों के निजता के अधिकार की सुरक्षा, भविष्य में उठाए जा सकने वाले कदमों, जवाबदेही, निजता की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन और शिकायत निवारण तंत्र पर सुझाव दिए गए हैं.

कोर्ट ने बताया कि रिपोर्ट में कुछ सुधारात्मक उपाय सुझाए गए हैं और इनमें एक यह है कि ‘‘मौजूदा कानूनों में संशोधन तथा निगरानी पर कार्यप्रणाली और निजता का अधिकार होना चाहिए.’’

दूसरा सुझाव है कि राष्ट्र की साइबर सुरक्षा बढ़ाई जाए और उसके ढांचे को बेहतर किया जाए. यह एक बड़ी रिपोर्ट है. बेंच ने कहा कि रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ही वो उसको सार्वजानिक किये जाने पर निर्णय लेंगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से रिपोर्ट जारी नहीं करने का अनुरोध किया है.

कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस तकनीकी समिति की निगरानी के लिए बनी समिति की रिपोर्ट को उसकी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जायेगा.

बता दें कि जुलाई 2021 में अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने रिपोर्ट किया था कि पेगासस स्पाइवेयर के जरिये कथित जासूसी के संभावित लक्ष्यों की सूची में 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर शामिल थे. ऑनलाइन मीडिया संस्थान द वायर ने भी इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट की थी.

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