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किसान महापंचायत: ‘केंद्र सरकार ने हमें धोखा दिया, हम उन्हें चेतवानी देने आए हैं’
केंद्र सरकार की वादाखिलाफी को लेकर सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘किसान महापंचायत’ का आयोजन हुआ. जिसमें देशभर से आए हजारों किसान शामिल हुए. यह महापंचायत संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) संगठन द्वारा की गई.
महापंचायत में एमएसपी को लेकर कानून बनाने, आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा देने, किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने के साथ ही लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी पर कार्रवाई करने की मांग दोहराई गई.
पंजाब से आए किसान बेअंत सिंह कहते हैं, ‘‘जिस समय हम आंदोलन करने दिल्ली आए थे, उस समय हमारी पांच मांगे थी. तीन तो काला कानून को वापस लेना था. दूसरा हमारा एमएसपी को लेकर कानून बनाना और आखिरी बिजली संशोधन विधेयक उसमें बदलाव करना था. सरकार तो कानून वापस ले ली लेकिन एमएसपी की गारंटी को लेकर कानून नहीं बना, बिजली संशोधन विधेयक में भी कोई बदलाव नहीं हुआ.’’
सिंह आगे कहते हैं, ‘‘आंदोलन के दौरान कुछ मांगे जुड़ गईं. जैसे लखीमपुर खीरी में हमारे किसान शहीद हुए. उसका जो मुख्य दोषी है, अजय मिश्र टेनी वो अभी तक भाजपा सरकार में मंत्री है. लेकिन जिन किसानों की उस वक्त वहां ड्राइवर से हाथापाई हुई उन लोगों को जेल भेज दिया गया. किसान शहीद हुए आंदोलन के दौरान उन्हें मुआवजा देना था. पंजाब सरकार को छोड़ किसी ने पांच लाख का मुआवजा नहीं दिया. तब सरकार ने वादा किया था कि केस वापस ले लेंगे, लेकिन वो भी नहीं हुआ. हम सरकार को चेतावानी देने आए हैं कि जो वादा किया था आपने उसे पूरा कर लो, हमें मजबूर ना करो यहां पक्का धरना लगाने के लिए.’’
एमएसपी को लेकर कमेटी का गठन और किसान संगठन
एक तरफ जंतर-मंतर पर किसान संगठन एमएसपी की गारंटी की मांग कर रहे थे. दूसरी तरफ सरकार द्वारा एमएसपी के लिए गठित कमेटी की आज बैठक हुई. इस कमेटी में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल होना था, लेकिन इन्होंने इंकार कर दिया.
क्या किसानों को इस कमेटी पर भरोसा है? इस सवाल पर भारतीय किसान यूनियन (खेती-किसानी) के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष जनरैल सिंह चहल कहते हैं, ‘‘उस कमेटी में सरकार ने अपने पक्ष के लोगों को रखा है. कमेटी में मेरे राज्य हरियाणा से एक किसान नेता हैं. किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकार से अपील की थी कि इस आंदोलन को फौज का और भाजपा के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल कर उठा देना चाहिए. ऐसे लोगों को सरकार ने कमेटी में शामिल किया है. फिर उनसे हम क्या उम्मीद रखेंगे.’’
जनरैल सिंह आगे कहते हैं, ‘‘किसान सगठनों से तीन लोगों को बुलाया गया. कमेटी में 26 लोग हैं. उसमें तीन हमारे लोग बैठ भी जाएं तो वो क्या बात करेंगे. बहुमत के हिसाब से सरकार सबकुछ लागू कर देगी और आने वाले समय में हम आंदोलन करेंगे तब सरकार कहेगी कि इनके नुमाइंदो के सामने हमने एमएसपी को लेकर कानून पास किया था. सरकार बड़ी चालाकी से आने वाले समय में होने वाले आंदोलनों को भी कुचलना चाहती है.’’
जनरैल सिंह पीएम मोदी से अपील करते हुए कहते हैं, ‘‘जब आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो एमएसपी की गारंटी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा था. हम चाहते हैं कि आपने जो मांग मनमोहन सिंह से की थी वो खुद लागू कर दें.’’
सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी के सवाल पर किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘कमेटी के संदर्भ में हमने सरकार को एक पत्र लिखा था. जिसमें हमने पूछा कि यह कमेटी कितने दिन चलेगी? कमेटी क्या फैसला लेगी? कमेटी का अधिकार क्षेत्र क्या होगा? कमेटी क्या सिर्फ एमएसपी पर बात करेगी या अन्य पांच मुद्दों पर भी बात करेगी? उनका कोई जवाब नहीं आया. कृषि सचिव का कुछ दिनों बाद फोन आया तो हमने कहा कि आपने हमारे पत्र का जवाब नहीं दिया. उन्होंने दोबारा पत्र भेजने के लिए कहा. हमने दोबारा भेजा उसका भी जवाब नहीं आया. उन्होंने कमेटी में शामिल होने के लिए कभी लिखित पत्र भी नहीं दिया.’’
कक्काजी आगे कहते हैं, ‘‘जिस कमेटी के बारे में सरकार हमें जानकारी देने को तैयार नहीं है उसमें शामिल होने का क्या मतलब बनता है? कमेटी की बैठक से 20 दिन पहले केंद्र सरकार के एक जवाबदेह नेता ने कहा कि कमेटी एमएसपी की गारंटी का कानून बनाएगी, ऐसा हमने वचन नहीं दिया है. इसके बाद कमेटी का क्या मतलब? कमेटी हुआ, आयोग हुए या कमीशन हुआ, ये सब मुद्दों को समयसीमा में भटकाने के लिए होते हैं. इससे कुछ हासिल नहीं होता.’’
एसकेएम में टूट
नवंबर 2020 में लाखों की संख्या में किसान दिल्ली प्रदर्शन करने पहुंचे थे. सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर उन्होंने साल भर तक तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया. यह प्रदर्शन संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम के नेतृत्व में हुआ. जिसमें देशभर के 30 से ज्यादा किसान संगठन शामिल थे. हालांकि अब एसकेएम में फुट पड़ गई. कुछ किसान संगठन अलग होकर संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) बनाए हैं. इसमें किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और शिव कुमार कक्काजी के संगठन के साथ कई दूसरे कई संगठन भी शामिल हैं.
आज जंतर-मंतर पर हुए आंदोलन में किसान नेता राकेश टिकैत, दर्शनपाल, योगेंद्र यादव समेत दूसरे कई एसकेएम के नेता नहीं पहुंचे थे. एसकेएम से अलग होकर संगठन बनाने के सवाल पर कक्काजी कहते हैं, ‘‘हमारे आंदोलन के बाद तीन काले कानून रद्द हो गए थे, लेकिन एमएसपी पर कानून नहीं बन पाया था. वो इसलिए नहीं बन पाया था क्योंकि हमारे साथ बहुत सारे ग्रुप ऐसे थे जो राजनीतिक थे. उन्हें पंजाब और अन्य प्रांतों में जाकर चुनाव लड़ना था. वो आंदोलन खत्म करने के लिए बहुत जल्दी में थे. अगर दस दिन और रुक जाते तो सरकार एमएसपी पर कानून बनाने के लिए मज़बूर हो जाती.’’
लेकिन एसकेएम के टूट से किसान आंदोलन कमजोर नहीं होगा? इस सवाल पर कक्काजी कहते हैं, ‘‘राजनीतिक विचारधारा के जो लोग होंगे वो कभी भी किसानों के पक्ष में ईमानदारी से लड़ाई नहीं लड़ पाएंगे. उनके लिए किसान आंदोलन अपनी विचारधारा को फैलाने का माध्यम था. जब मैं केरल गया प्रदर्शन करने के लिए तो 50 लोगों को इकठ्ठा होने की परमिशन नहीं दी. ये दोहरे चरित्र के लोग हैं. उनके नहीं होने से आंदोलन कमजोर नहीं होगा और तेज होगा.’’
महापंचायत खत्म होने के बाद देर शाम किसान संगठन के लोगों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा. अगर सरकार आपके ज्ञापन पर विचार नहीं करती है तो आगे का रास्ता क्या होगा? इस सवाल पर कक्काजी कहते हैं, ‘‘अगर सरकार नहीं मानती है तो किसान संगठनों से बात कर आगे कर रास्ता तय करेंगे. सड़क पर उतरेंगे. गांधीवादी तरीके से आंदोलन करेंगे.’’
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