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‘बुलडोजर न्याय’ की रियासत बन गया मामा का मध्य प्रदेश

यह ग्राउंड रिपोर्ट सीरीज़ एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत की जा रही है. यदि आप इस सीरीज़ को समर्थन देना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें.

भारतीय मिथकों में मामा की छवि बहुत नकारात्मक है. कंस से लेकर शकुनि तक की मिसालें दी जाती हैं. इस स्टोरी में हम जिस व्यक्ति की बात करने जा रहे हैं, वो भी खुद को मामा कहलाना पसंद करते हैं. और इनके कामकाज पर भी पक्षपात, अन्याय और एकतरफा निर्णय के आरोप हैं. हम मध्य प्रदेश के मामा कहलाना पसंद करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बात कर रहे हैं.

साल 2014 की गर्मियों में सत्ता संभालने के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के अपने मूल वैचारिक एजेंडे को एक सूत्र में पिरो कर आगे बढ़ाया. इसका आधार भारत को एक ऐसे गणतंत्र के रूप में विकसित करना है जहां हिंदुओं की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रधानता हो, अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों पर.

इसके तमाम तरीके हमने हाल के वर्षों में देखे. कभी मॉब लिंचिंग तो कभी सीएए-एनआरसी. कभी जगहों के नाम बदलने तो कभी मुसलमानों को फर्जी मामलों में जेल डालने के जरिए. कभी यह खुले तौर पर तो कभी पर्दे के पीछे से होता है.

अब इसका एक नया तरीका ईजाद हुआ है- “मुसलमानों की संपत्तियों को निशाना बनाना.” इसके पोस्टरबॉय उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ थे. आदित्यनाथ ने सीएए का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया, सार्वजनिक संपत्तियों के तथाकथित नुकसान की भरपाई के लिए उनकी संपत्तियां कुर्क की, उनके घरों पर बुलडोजर चलाया.

बुलडोज़र का संक्रमण जल्द ही उत्तर प्रदेश की सीमा पार कर मध्य प्रदेश तक पहुंच गया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी योगी का अनुसरण किया. व्यापक पैमाने पर बुलडोजर की कार्रवाईयां की. लेकिन क्या वो बुलडोज़र के पोस्टरबॉय बन पाए?

शिवराज सिंह ने दिसंबर 2020 में होशंगाबाद में सुशासन दिवस कार्यक्रम में माफियाओं को चेतावनी देते हुए पहली बार कहा, “माफिया मध्य प्रदेश छोड़ दो, नहीं तो जमीन में 10 फुट नीचे गाड़ दूंगा, कहीं पता भी नहीं चलेगा.”

तब से अब तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बुलडोजर अभियान ने प्रदेश के लगभग सभी 52 जिलों में घरों को गिराया है. ये गिराई गई संपत्तियां किसकी हैं?

यह पता लगाने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ग्राउंड पर पहुंची.

न्यूज़लॉन्ड्री ने ग्राउंड पर दर्जनों लोगों से बात की. हमने प्रदेश के आठ जिलों में बुलडोजर अभियान के तहत संपत्ति गंवाने वाले लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों से भी बात की. जमीन के दस्तावेज, बिजली के बिल, नगर निगम से मिलने वाले एनओसी पत्रों को भी हमने देखा. एकत्रित जानकारी के आधार पर हमने पाया कि बुलडोजर चलाने की कार्रवाइयों की सच्चाई, संगठित अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर चलाने के मुख्यमंत्री के दावों से अलग थी.

पिछले दो सालों में ध्वस्त की गई 332 संपत्तियों में से अधिकांश "संगठित अपराधियों" की नहीं हैं. यह संपत्तियां आम लोगों की हैं, जिनमें से अधिकांश गरीब और मुस्लिम हैं. ध्वस्त किए गए घरों में से कम से कम 223 मुसलमानों के घर हैं और इनमें से 92 घरों को केवल अप्रैल 2022 में निशाना बनाया गया. जब हिंदू समूहों द्वारा आयोजित रामनवमी जुलूसों के दौरान खरगोन और सेंधवा में दंगे हुए थे.

हमने जिन मामलों की पड़ताल की उन सबमें नियत प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था. इसके विपरीत हमने भोपाल, विदिशा, रायसेन, बड़वानी, खरगोन, जबलपुर और कटनी में पाया कि राज्य के अधिकारियों ने बेगुनाह लोगों के घरों और दुकानों को तोड़ने के लिए झूठे मामले बनाए.

सरकार द्वारा जानबूझकर की गई एकतरफा कार्रवाइयों से बेघर हुए लोगों के साथ हुए अन्याय के सबूत हमें हर जगह मिले.

“हमने सिर्फ आधी उंगली काटी है”

6 अप्रैल 2022 की दोपहर, 14 साल की नज़राना खान कक्षा 9 की अपनी अंतिम परीक्षा देने के बाद घर आ रही थीं. वो यह सोचते हुए ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट रही थीं कि घर पहुंच कर कुछ खाएंगी, थोड़ा आराम करेंगी और फिर बैडमिंटन खेलने जाएंगी.

लेकिन जैसे ही वह भोपाल के बिहारी मोहल्ला स्थित अपने घर की गली में पहुंचीं तो बिलख उठीं. नज़राना ने देखा कि उनका दो कमरों का घर मलबे के ढेर में बदल गया है और उनके परिवार के लोग सड़क पर बैठे रो रहे हैं. 10 लोगों वाला यह परिवार बेघर हो गया था.

नज़राना कहती हैं, “हम दूसरे के घरों में घूमते हुए दिन बिताते हैं और रात में यहां टूटे हुए घर में सोते हैं. हमने पूरी गर्मी बिना छत के बिताई और अब मानसून शुरू हो गया है.”

नज़राना, बुलडोजर की कार्रवाई के समय घर पर नहीं थीं, लेकिन उनकी बुआ रिज़वाना खान घटना के वक्त मौजूद थी. वह बताती हैं, “सुबह आधा दर्जन पुलिसकर्मी आए और वह सर्वेक्षण करने की तरह गली में लोगों के नाम लिखने लगे. दोपहर में वह फिर लौटे, इस बार नगर निगम के कुछ अधिकारी और एसडीएम उनके साथ थे. उन्होंने हमारी गली को बुलडोजर से बंद कर दिया, हमारे घर में घुस गए और हमें बाहर निकाल दिया. उस समय घर पर सिर्फ महिलाएं और बच्चे थे. उन्होंने हमारे घर को गिरा दिया. हमें एक भी चीज लेने नहीं दी. हमारा सब कुछ खत्म हो गया.”

रिज़वाना कहती हैं कि बुलडोजर की कार्रवाई पर महिलाएं और बच्चे रोने लगे. वे बताती हैं, “हमने अधिकारियों से यह पूछने की कोशिश की, कि उनके घर को क्यों तोड़ा जा रहा है? साथ ही बुलडोजर न चलाने की गुहार लगाई. तब एक पुलिसकर्मी ने धमकी देते हुए कहा, ‘अभी तुम लोगों की आधी उंगली कटी है, अभी पूरी काटना बाकी है.’”

नज़राना का कहना है कि उनके परिवार के साथ यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उनके एक हिंदू पड़ोसी ने उनके पिता शाहिद के खिलाफ मारपीट और उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था.

नजराना खान (सफेद कपड़ों में) दाएं सबसे आगे रिज़वाना खान

बद्री प्रसाद पाराशर नाम के उनके पड़ोसी ने 4 मार्च को भोपाल के ऐशबाग थाने में शाहिद के खिलाफ मारपीट करने को लेकर मामला दर्ज कराया था. बाद में 24 मार्च को दर्ज एक दूसरे मामले में पाराशर ने शाहिद पर मारपीट के साथ छेड़खानी का भी मामला दर्ज कराया.

शाहिद ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया. शाहिद के मुताबिक, “बद्री प्रसाद को 200 रुपए उधार देने से मना करा दिया था, जिसके कारण वह गाली-गलौज करने लगा. उसके बाद उसने पुलिस में मेरे खिलाफ मारपीट का केस दर्ज कराया.” चश्मदीदों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उसे शाहिद ने नहीं मारा, बल्कि बद्री प्रसाद अप्सरा टॉकीज के पास एक दुर्घटना में घायल हो गया था.

32 साल के प्रमोद मीना सब्जी की दुकान अप्सरा टॉकीज के पास लगाते है. वह बताते हैं, “बद्री प्रसाद को किसी ने नहीं मारा. वह शराब पीकर गाड़ी चला रहा था और उसकी स्कूटी बिजली के खंभे से टकरा गई. हमने उसकी मदद की और उसे पानी पिलाया. हम जब एम्बुलेंस को कॉल कर रहे थे तो उसने कहा कि इसकी आवश्यकता नहीं है, फिर मैंने उसे उसके घर पर छोड़ दिया.”

शाहिद खान

ऐशबाग के एसएचओ मनीषराज भदौरिया ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि शाहिद के खिलाफ पहला केस झूठा था, और पुलिस ने उसे रद्द करने के लिए अदालत में एक क्लोजर रिपोर्ट पेश की है. पहली एफआईआर रद्द होने से पहले ही बद्री प्रसाद ने शाहिद पर मारपीट का आरोप लगाते हुए एक और मामला दर्ज कराया. दूसरे मामले में शाहिद के भतीजे शाहदू खान, उसकी बहनों रिजवाना व फरजाना और उनकी दोस्त आरती राठौर का भी नाम है.

आरती का नाम क्यों?

24 मार्च 2022 को आरती ने बद्री प्रसाद की पत्नी सुशीला और बेटी सोनम के खिलाफ हबीबगंज थाने में झगड़े को लेकर एक केस दर्ज कराया था. आरती की शिकायत के प्रतिरोध में बद्री प्रसाद के परिवार ने आरती के साथ-साथ शाहिद और उनके परिवार के खिलाफ भी शिकायत (क्रॉस एफआईआर) दर्ज करा दी.

एक प्रत्यक्षदर्शी रचना कुशवाहा कहती हैं, “सोनम और सुशीला ने लड़ाई शुरू की. सोनम चुपचाप, आरती का रिजवाना और अन्य महिलाओं से बात करते हुए वीडियो बनाने लगी. जब आरती ने वीडियो बनाने का विरोध किया तो सुशीला और सोनम से झगड़ा हो गया.”

जब यह झगड़ा हुआ तब शाहिद उस समय बिहारी मोहल्ले या उसके आस-पास कहीं भी नहीं थे. वह पड़ोस के दो अन्य लोगों, कृष्णा बघेल और मुस्तफा शेख के साथ सात किमी दूर रवींद्र भवन में मुख्यमंत्री द्वारा संबोधित भाजपा के एक समारोह में शामिल होने गए थे. शाहिद द्वारा कार्यक्रम में खींचे गए फोटो में दिख रहा था कि वह 6 बजे तक रवींद्र भवन में ही मौजूद थे. जबकि एफआईआर में कहा गया कि आरती और बद्री प्रसाद की बेटी और पत्नी के बीच झगड़ा शाम करीब साढ़े पांच बजे हुआ.

बद्री प्रसाद के परिवार के खिलाफ आरती राठौर द्वारा दर्ज एफआईआर

घटनास्थल पर मौजूद न होने के बावजूद शाहिद का नाम एफआईआर में था. क्या पुलिस ने शाहिद के रवींद्र भवन में होने के दावे को सत्यापित करने के लिए सीसीटीवी फुटेज की जांच नहीं की? इस पर ऐशबाग के एसएचओ मनीषराज भदौरिया कहते हैं, “वह हमारा विषय नहीं है. हमें नहीं मतलब कि वो उस दिन कहां था, क्या कर रहा था. हमारे मुताबिक वह घटनास्थल पर था, बात ख़त्म.”

29 मार्च को बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के सदस्यों द्वारा बद्री प्रसाद के घर जाने के बाद, ऐशबाग पुलिस ने शाहिद को तलब किया. शाहिद ने कहा, “जब मैं थाने पहुंचा तो बजरंग दल और विहिप के लोग एसएचओ के केबिन में बैठे थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या माजरा है? मैंने उन्हें बताया कि बद्री प्रसाद ने मेरे खिलाफ पहले भी झूठी शिकायत लिखवाई थी. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वो समझौता करवा देंगे, लेकिन तीन-चार दिन बाद मेरे खिलाफ छेड़खानी की धारा भी लगा दी गई.”

5 अप्रैल को शिवराज सिंह चौहान के सबसे प्रभावशाली मंत्रियों में से एक विश्वास सारंग, बद्री प्रसाद से मिलने उनके घर गए. उनकी मुलाकात के अगले ही दिन शाहिद के घर पर बुलडोजर पहुंच गए, और बिना किसी चेतावनी के उनका घर तोड़ दिया.

अधिकारियों ने शाहिद का घर तोड़ने से पहले न कोई नोटिस दिया और न ही कोई कारण बताया, बस उन्हें घर से बाहर निकलने को कहा और बुलडोजर चला दिया. एसएचओ कहते हैं कि घर को इसलिए गिराया गया क्योंकि शाहिद के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है और उसका यह घर अवैध है. बता दें कि इस कॉलोनी में बने सभी घर अवैध हैं.

5 मई 2022 को, शाहिद की मां तहरुन्निसा ने घर गिराए जाने के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने अपनी याचिका में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को प्रतिवादी बनाया है.

तहरुन्निसा के वकील प्रभात यादव कहते हैं, "शाहिद का परिवार भोपाल गैस ट्रेजेडी के पहले से उस मोहल्ले में रह रहा है. सिर्फ वहीं नहीं करीब 1200 अन्य परिवार वहां सरकारी ज़मीन पर रह रहे हैं. अगर सरकार अतिक्रमण हटा रही थी तो अकेले शाहिद का मकान क्यों तोड़ा गया. अगर सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण ही साफ़ करना था तो सारे 1200 घर तोड़ देने चाहिए थे. शाहिद के माता-पिता दोनों की उम्र 70 से अधिक है. यह पूरी कार्रवाई विश्वास सारंग और भाजपा सरकार के इशारे पर की गई. कार्रवाई के जरिए सिर्फ राजनीतिक हितों को साधा गया और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के शाहिद के घर को तोड़ दिया गया.”

अपने परिवार के साथ शाहिद

इस घटना पर मंत्री विश्वास सारंग न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “उन्होंने अपराध किया. एफआईआर दर्ज है इसलिए उनके घर पर बुलडोजर चलाया गया. जो भी अपराध करेगा उसे परिणाम भुगतने होंगे.”

इस तर्क के अनुसार तो एफआईआर बहुत से लोगों के खिलाफ दर्ज है, दूसरों के घरों को क्यों नहीं तोड़ा गया? इस पर वह दोबारा कहते हैं, “उसने (शाहिद) अपराध किया है, इसलिए घर को तोड़ा गया. वैसे भी कोई पिता, किसी का सिर्फ घर गिरवाने के लिए छेड़छाड़ का झूठा मुकदमा दर्ज नहीं कराएगा.”

‘हमें कोई नोटिस नहीं दिया और न ही चेतावनी’

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 140 किलोमीटर दूर रायसेन जिले के खमरिया गांव में एक युवक द्वारा अपनी बहन को प्रताड़ित किए जाने का विरोध करने पर, शिवराज सिंह चौहान के बुलडोजर से पूरे गांव में दहशत फैल गई.

नावेद खान अपनी बहन निदा खान और दो साल की भतीजी के साथ डॉक्टर के यहां से मोटरसाइकिल पर अपने गांव खमरिया लौट रहे थे. वह 18 मार्च, होली का दिन था और शाम के करीब 4:30 बज रहे थे. गांव के मुहाने पर बने प्रतीक्षालय के पास चंदपुरा गांव के चार युवक नशे की हालत में रास्ते को घेर कर खड़े थे. नावेद के हॉर्न बजाने पर चारों युवकों और उनके बीच बहस हो गई. नावेद ने इस दौरान फोन कर अपने कुछ दोस्तों को बुला लिया. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच की बहस, झगड़े में बदल गई.

आसपास मौजूद कुछ लोगों ने लड़ाई को खत्म कराया और उसके बाद सब अपने-अपने घर चले गए. खमरिया गांव के रहने वाले 24 साल के आकिल खान बताते हैं, “बुजुर्गों ने लड़ाई को सुलझाया और हम घर चले आए. हमें लगा कि मामला रफा-दफा हो चुका है. लेकिन शाम करीब साढ़े पांच बजे चंदपुरा के 40 से 50 लोग लाठी वगैरह लेकर खमरिया पर हमला करने आ गए. वह लोग नावेद को मारने के लिए ढूंढ़ रहे थे. हमारे सरपंच ने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने.”

खमरिया गांव की आबादी करीब 350 है. जिसमें से 160 मुसलमान हैं. वहीं चंदपुरा की मुख्यतः: आबादी आदिवासी है जिनकी जनसंख्या लगभग 450 है.

24 साल के आकिल खान

खमरिया में भीड़ के आने के कुछ देर बाद ही पास के जथारी थाने से चार पुलिसकर्मी पहुंचे. उन्होंने भीड़ को शांत करवाने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए. जैसे ही चंदपुरा और इलाके के अन्य आदिवासी गांवों में लड़ाई की बात व्हाट्सएप के जरिए पहुंची, खमरिया गांव के पास भीड़ और बढ़ गई.

व्हाट्सएप पर जो मैसेज वितरित हुआ वह आरएसएस से जुड़े पप्पू ठाकुर ने लिखा था. मैसेज में कहा गया, "आप सभी को सूचित किया जाता है कि आदिवासी चंदपुरा और मुसलमान खमरिया के बीच बहुत बड़ी लड़ाई जंग हो गई है. आप सभी क्षेत्रवासियों से निवेदन है कि जल्द से जल्द खमरिया पहुंचें”.

आरएसएस से जुड़े पप्पू ठाकुर का मैसेज

रात 9 बजे तक करीब 3,000 लोग खमरिया गांव पहुंच गए थे. एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी भी मौके पर थे लेकिन वह भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पाए. भीड़ ने बिजली के ट्रांसफार्मर में आग लगा दी जिससे गांव में अंधेरा हो गया. इस बीच भीड़ ने गांव के प्रवेश द्वार पर स्थित तीन दुकानों में आग लगा दी, घरों पर पथराव किया और गाड़ियों पर तोड़फोड़ की. इस दौरान सिलवानी थाने की एसएचओ माया सिंह समेत अन्य पुलिसकर्मियों के साथ भी भीड़ ने मारपीट की.

खमरिया के ग्रामीणों ने जवाब देते हुए भीड़ पर पथराव किया, जिससे हिंसा और बढ़ गई. इस बीच एक गोली चली जिससे भीड़ तितर-बितर हो गई. चंदपुरा के सरपंच शिवराज बारिवा कहते हैं, “हमारे गांव के एक व्यक्ति की गोलीबारी में मौत हो गई और 14 घायल हो गए. हम यह नहीं बता सकते कि गोली किसने चलाई, क्योंकि वहां अंधेरा था.”

इस घटना के बाद खमरिया और चंदपुरा के ग्रामीणों ने एक दूसरे के खिलाफ केस दर्ज कराया लेकिन पुलिस ने केवल खमरिया के 21 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया. चंदपुरा गांव से किसी की गिरफ्तारी नहीं होने के सवाल पर पर सिलवानी के एसडीओपी राजेश तिवारी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “हमारी जांच चल रही है. अभी हम सबूत इकट्ठा कर रहे हैं.”

खमरिया के ग्रामीण

खमरिया के लोगों के लिए अगली सुबह, पुलिस कार्रवाई के साथ शुरू हुई. नर्मदापुरम क्षेत्र की आईजी दीपिका सूरी और रायसेन के पुलिस अधीक्षक विकास शाहवाल, 100 से अधिक पुलिसकर्मी, रायसेन कलेक्टर अरविंद दुबे, भाजपा के स्थानीय विधायक रामपाल राजपूत, सिलवानी नगर परिषद और वन विभाग के अधिकारी गांव में बुलडोजर लेकर आ गए.

खमरिया गांव के लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर

दोपहर में करीब 2.30 बजे, बिना किसी चेतावनी के बुलडोजर ने काम करना शुरू कर दिया. रात में हुई हिंसा के लिए पुलिस ने मोहम्मद नईम को मुख्य अपराधी बनाया. जिसके बाद उसकी फर्नीचर की दुकान और घर को गिरा दिया गया. बता दें कि नईम 40 प्रतिशत विकलांग हैं. उनका एक ही हाथ ही काम करता है.

नईम की पत्नी गुलब्शा बी कहती हैं, "सरकारी अधिकारी कह रहे थे कि हमारी फर्नीचर की दुकान अवैध है, जबकि हमारे पास उस दुकान को चलाने के लिए वन विभाग और मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिया गया आधिकारिक लाइसेंस है. लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी और बुलडोज़र से दुकान और घर को उजाड़ दिया. उन्होंने हमें कोई नोटिस नहीं दिया और न ही कोई चेतावनी दी.”

दाएं खड़ी मोहम्मद नईम की पत्नी गुलब्शा बी

खमरिया के सरपंच भगवत सिंह कहते हैं कि अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उनके पास "कई घरों को ध्वस्त करने का आदेश" हैं, लेकिन अधिकारी से घंटों विनती और गुजारिश करने के बाद उन्होंने बाकी घरों को नहीं गिराया.

वह कहते हैं, “यह वास्तव में बच्चों के बीच एक छोटी सी लड़ाई थी जिसे चंदपुरा के लोगों ने बड़ा किया था. उन्होंने हंगामा किया और फिर बाहरी लोगों ने इसे हिंदू बनाम मुस्लिम बना दिया. प्रशासन कई घरों को ध्वस्त करना चाहता था. उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास सरकार से आदेश हैं. हमने उनके साथ लगभग दो घंटे तक बात की. उसके बाद विधायक और अधिकारियों ने भोपाल में बात की, जिसके बाद वह अन्य घरों पर बुलडोजर नहीं चलाने के लिए सहमत हुए.”

कलेक्टर अरविंद दुबे दावा करते है कि नईम के घर और उसकी फर्नीचर की दुकान को इसलिए तोड़ा गया “क्योंकि उसके पास वैध दस्तावेज नहीं थे.” जब हमने उन्हें बताया कि उनके पास वैध कागजात हैं, तो दुबे ने कहा, “उन्होंने बाद में जाली कागजात बनवाया होगा.” इसके बाद उन्होंने फोन रख दिया और हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया.

चंदपुरा गांव के लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर

22 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चंदपुरा में मृतक राजू आदिवासी के परिवार से मिले. इसके बाद उन्होंने मंच से गुंडों और बदमाशों को चेतावनी देते हुए कहा, “मैं सभी अपराधियों से आज यह साफ कह रहा हूं कि गरीब, कमजोर पर हाथ उठा तो मकान खोदकर मैदान बना दूंगा. मैं चैन से नहीं रहने दूंगा.”

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने घरों पर भी बुलडोजर

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्री बुलडोजर की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहते हैं कि घरों को इसलिए गिराया गया क्योंकि वह अवैध रूप से बने हैं. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने इन दावों की धरातल पर जाकर पड़ताल की और पाया कि यह सही नहीं है.

विदिशा जिले के इस्लामनगर गांव को ही लीजिए. यहां रहने वाले 80 साल के अब्दुल खान खेत में मजदूरी कर गुजर-बसर करते हैं. वह गांव के किनारे एक झोपड़ी में रहते थे, लेकिन साल 2016-17 में उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत पक्का घर मिल गया. लगभग चार साल बाद, 20 मार्च, 2021 को शिवराज सिंह की सरकार ने घर को अवैध घोषित कर दिया और उस पर बुलडोजर चलवा दिया.

धरगा पंचायत के सहायक सचिव मुकेश कुमार कहते हैं, “अब्दुल खान का नाम 2016-17 में प्रधानमंत्री आवास योजना की लिस्ट में आया. उनकी जमीन को चार बार ‘जियोटैग’ किया गया और उन्हें घर बनाने के लिए तीन किश्तों में 1,20,000 रुपये दिए गए थे. सरकार ने उस इलाके में बिजली आने पर उन्हें कनेक्शन भी दे दिया और पानी के लिए हैंडपंप भी लगवा दिया था. लेकिन पिछले साल (2021 में) अचानक से प्रशासन और वनविभाग ने उनके घर को अवैध बता कर तोड़ दिया. वो उस इलाके में 40 सालों से रह रहे थे. अब अचानक वो जगह अवैध हो गई? अब वो बेचारे सड़क पर आ गए हैं. प्रशासन ने इस दौरान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने कई अन्य घरों पर भी बुलडोजर चलवा दिया.”

80 साल के अब्दुल खान

45 वर्षीय शफ़ीक़ खान का घर भी पीएम आवास योजना के तहत ही बना था. वह कहते हैं, “हमारा घर तैयार हो गया था. हम उसमें रहने के लिए जाने ही वाले थे कि उसके पहले ही हमारे मकान पर बुलडोजर चल गया. जिस दिन मेरा घर गिरा उस दिन मैं मजदूरी करने के लिए शाजापुर में था. पत्नी ने फोन पर बताया कि मकान पर बुलडोजर चला दिया गया है. हमें यह घर सरकार ने दिया था, पंचायत ने जांच की थी, सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी की थी. लेकिन अचानक फिर रातों रात वह जगह अवैध हो गई? अगर अवैध ही थी तो पंचायत ने घर बनाने की वहां इजाजत क्यों दी?"

सवाल यह है कि एक सरकारी योजना के तहत स्वीकृत और निर्मित घर, सत्यापन के बाद कैसे अवैध हो सकते हैं? इसका जवाब सरकार के पास नहीं है.

अवैध जमीन बताकर मुस्लिम परिवारों के घरों को तोड़ा गया लेकिन शायद असल वजह ये नहीं थी.

बुलडोजर आने से दो दिन पहले, इस्लामनगर से करीब चार किलोमीटर दूर मुरवास के सरपंच, संतराम धौलपुरिया की हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने हत्या के आरोप में फकीर मोहम्मद खान और उसके परिवार के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया था.

हिंदू सरपंच की हत्या के अगले दिन भाजपा और विहिप के कार्यकर्ताओं ने मुरवास में विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शन का परिणाम यह हुआ कि सरकार ने मुरवास, इस्लामनगर और आसपास के गांवों में 42 घरों पर बुलडोजर चला दिए. इन घरों में 13 घर ऐसे थे जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने थे.

भाजपा सरकार ने एक अपराध के लिए स्थानीय मुस्लिम समुदाय को दंडित किया. उन्होंने घरों पर बुलडोजर चलाने के लिए मुस्लिम घरों को चुना और उनके ठीक बगल में बने हिंदू घरों को कुछ नहीं किया.

इस्लामनगर के 32 वर्षीय मोहम्मद हसीन का भी घर तोड़ दिया गया. वह कहते हैं, "अगर यहां के सारे घर अवैध थे तो सारे घर क्यों नहीं तोड़े? ऐसा तो हो नहीं सकता कि एक मोहल्ले में एक ही जगह बने हुए चार घर अवैध हों और एक घर वैध हो.”

हसीन जिस वैध घर की बात कर रहे थे वह उनके पड़ोसी वीरेंद्र सिंह का है. ये उस इलाके में बना एकमात्र पक्का घर है जो अभी भी खड़ा है. जब हम वहां पहुंचे तो वीरेंद्र घर पर नहीं थे. यह पूछे जाने पर कि उनके घर पर बुलडोजर क्यों नहीं चला? वह कहते हैं, “सभी के मकान तोड़ दिए गए थे, हमारा घर भी तोड़ दिया गया था. बस थोड़ा सा हिस्सा बचा था.”

इस्लामनगर गांव में वीरेंद्र सिंह का घर

एक तरफ शिवराज सिंह चौहान की सरकार मुसलमानों के खिलाफ ही सामूहिक बुलडोजर की कार्रवाई कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मुरवास में हुई घटना के जैसे या उससे भी बड़े वीभत्स अपराध करने वाले हिंदुओं के साथ उनका व्यवहार अलग है.

इसका एक ताजा उदाहरण मई 2022 का है, जब भाजपा कार्यकर्ता दिनेश कुशवाहा ने “मुसलमान” होने के संदेह में एक बुजुर्ग व्यक्ति को पीट-पीट कर बेरहमी से मार डाला. बाद में मृतक की पहचान 65 साल के भंवरलाल जैन के रूप में हुई. जैन अपने परिवार के साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के किले की यात्रा के दौरान लापता हो गए थे. भंवरलाल के छोटे भाई राजेश जैन कहते हैं, “मेरे भाई को बेरहमी से पीटा जा रहा था. वीडियो बहुत छोटा था. हमने हत्या का पूरा सीसीटीवी फुटेज देखा. उस आदमी ने मेरे भाई को प्रताड़ित कर मार डाला.”

वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने भाजपा कार्यकर्ता के घर पर एक बुलडोजर भेजा और धमकी दी कि अगर कुशवाहा ने आत्मसमर्णण नहीं किया तो वह उनके घर पर बुलडोजर चला देंगे. जिसके बाद 21 मई को कुशवाहा ने आत्मसमर्पण कर दिया. उनके आत्मसमर्पण करने पर पुलिस ने बुलडोजर को वापस बुला लिया.

मानसा पुलिस स्टेशन के थाना प्रभारी केएल डांगी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ”हमने घर को नहीं गिराया क्योंकि वह घर कुशवाहा के पिता, मां और भाई के नाम पर है. हम उन घरों को नहीं गिरा सकते जिसका मालिकाना हक कई लोगों के पास है. अगर यह घर सिर्फ कुशवाहा के नाम पर होता तो हम इस पर बुलडोजर चला देते.”

राजेश जैन कहते हैं, "एक बार के लिए भी गृह मंत्री या मुख्यमंत्री या उनके कार्यालय से किसी ने हमसे संपर्क नहीं किया. अगर आरोपी मुस्लिम होता तो उसका घर निश्चित रूप से गिरा दिया गया होता, बिना किसी जांच के कि घर उसके नाम पर है या नहीं. कुशवाहा ने बेरहमी से मेरे भाई की हत्या की है.”

जब मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से पूछा गया कि भंवरलाल के हत्यारे के घर पर बुलडोजर क्यों नहीं चला? तो जवाब में नरोत्तम मिश्रा ने कहा, “आरोपी को पकड़ लिया गया है. मृतक जैन समाज के व्यक्ति थे. वे भटक गए थे और भटकने के बाद में वो अपना परिचय ठीक से नहीं दे पा रहे थे. वो कुछ शब्दों पर अटकते थे. मृतक के परिवार वालों ने यह जानकारी दी कि वो मंदबुद्धि थे.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने मिश्रा को उनकी सरकार द्वारा मुसलमानों की संपत्तियों को चुन-चुन कर गिराने, और “बुलडोजर न्याय” की वैधता को लेकर विस्तार से प्रश्न भेजे हैं. उनकी ओर से कोई भी जवाब आने पर इस खबर में जोड़ दिया जाएगा.

मुख्यमंत्री के कार्यालय से सवाल किया गया कि सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत बने घरों को क्यों गिराया?. इस पर मुख्यमंत्री के ओएसडी सत्येंद्र खरे कहते हैं, "मुझे लगता है कि आपको गलत जानकारी मिली है. अगर पीएमएवाई के तहत बनाए गए इतने घरों पर बुलडोजर चला दिया गया होता? तो यह सार्वजनिक रूप से सामने आ जाता. हमें एक पीएमएवाई घर के गिराए जाने के बारे में एक शिकायत मिली और हमने इसके पुनर्निर्माण को मंजूरी दी. मैं आपको जवाब देने को बाध्य नहीं हूं, लेकिन मैं आपके सवालों को मुख्यमंत्री को भेज दूंगा.”

हालांकि, वकील एहतेशाम हाशमी कहते हैं कि "बुलडोजर अभियान" अवैध है. उन्होंने बुलडोजर अभियान के तहत गिराए गए घरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

वह कहते हैं, “हमारा देश संविधान द्वारा शासित होता है. हम पुलिस राज्य नहीं हैं. संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को जीवित रहने और स्वतंत्रता का अधिकार है. जिसका अर्थ है कि बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी को भी दंडित नहीं किया जा सकता है. बीजेपी सरकार देश में पुलिस राज लाने पर आमादा है. अगर आप इस तरह की प्रथाओं का पालन करना चाहते हैं तो संविधान को फाड़ दो, और अदालतों को बंद कर दो.”

उन्होंने नारे लगाए ‘मुल्ले काटे जाएंगे’

इस्लामनगर के हसीन को अभी भी यह समझ में नहीं आया कि शिवराज सिंह चौहान के प्रशासन ने उनके गांव में घरों को क्यों तोड़ा? वह कहते हैं, “हमारा गांव मुरवास से 3-4 किमी दूर है और हममें से कोई भी वहां हुई हिंसा में शामिल भी नहीं था. यहां तक ​​कि हमारी पंचायत भी अलग है.”

हसीन याद करते हुए बताते हैं कि 20 मार्च की मनहूस सुबह कुछ पुलिसकर्मी उनके गांव आए और ग्रामीणों से कहा कि वे अपने घर छोड़ दें, क्योंकि उन्हें तोड़े जाने के लिए चिह्नित किया गया था. उन्होंने न तो कोई आदेश दिखाया और न ही कोई कारण बताया.

हसीन बताते हैं, “बीस मिनट बाद गांव में लगभग 200 पुलिसकर्मी थे. उनके पास बंदूकें और आंसू गैस के गोले थे. मैंने 20-25 वन विभाग और स्थानीय अधिकारियों को भी देखा. वे दो ट्रैक्टर और तीन बुलडोजर साथ लाए थे. हमारे कुछ बुजुर्गों ने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. कुछ पुलिस वाले हमारा मजाक उड़ाकर हंस रहे थे.”

हसीन ने आरोप लगाया कि अधिकारियों के साथ आए कुछ अन्य लोग मुसलमानों को लूटने और मारे दिए जाने के लिए चिल्ला रहे थे. उन लोगों ने, "लूट लो इन कटुओं को" और "मुल्ले काटे जाएंगे" जैसे शब्दों का प्रयोग किया.

इस्लामनगर के 32 वर्षीय मोहम्मद हसीन

वैसे तो शिवराज सरकार के निशाने पर ज्यादातर मुसलमान ही हैं लेकिन कई हिंदुओं को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा है. कटनी के सावरकर वार्ड में रहने वाली 60 साल की निराशा बाई लोगों के घरों में बर्तन धोकर अपना जीवन यापन करती हैं. इस साल 20 अप्रैल को रामनवमी के जुलूसों के बाद प्रदेश के कई हिस्सों में हिंसा हुई. जैसा अन्य जगहों पर किया गया, वैसे ही निराशा के घर को भी अवैध घोषित किया गया और फिर उस पर बुलडोजर चला दिया गया.

हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने यह कहते हुए उनके घर को गिराया कि उनका पोता अवैध शराब के कारोबार में शामिल है. वह कहती हैं, “मेरे घर को गिराने से लगभग एक महीने पहले एक नोटिस मिला था. यह मेरे पोते के नाम पर था. जो कि अजीब है, क्योंकि वह यहां रहता नहीं है और यह घर मेरे नाम पर है. दो दर्जन पुलिसकर्मी और एक दर्जन अधिकारी और एसडीएम मेरे घर आए. उन्होंने कहा कि वे इसे तोड़ रहे हैं क्योंकि मेरा पोता अवैध शराब का कारोबार करता था. मैंने उन्हें बताया कि यह घर उसका नहीं है, वह मेरे साथ नहीं रहता. लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी. बुलडोजर चलाने के बाद वह मुझे साथ ले गए और वृद्धाश्रम में छोड़ दिया.”

अंतरधार्मिक विवाह के बाद बुलडोजर

मंडला जिले के डिंडोरी इलाके में हलीम खान के घर और तीन दुकानों पर अप्रैल 2022 में बुलडोजर चला. उनका गुनाह था कि उनके बेटे आसिफ खान ने अपने बचपन की दोस्त साक्षी साहू से भाग कर शादी की.

खान के घर बुलडोजर तब आया जब साक्षी के माता-पिता ने भाजपा और बजरंग दल के स्थानीय नेताओं के साथ, आसिफ पर "लव जिहाद" का आरोप लगाते हुए एक एफआईआर दर्ज कराई. इस शादी के विरोध में हिंदू समूहों के कार्यकर्ताओं ने डिंडोरी में विरोध प्रदर्शन किया और सड़कों पर चक्का जाम किया.

हलीम न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “यह एक बुरा सपना था. हर कोई अचानक मेरा दुश्मन बन गया. पुलिस, बीजेपी, बजरंग दल, सब मेरे पीछे आए. उन्होंने मेरे बेटे और पूरे परिवार के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कराया और मुझे थाने बुलाया. मैंने उन्हें समझाया कि यह अपहरण का मामला नहीं है. आसिफ और साक्षी से भी बात कराई. पुलिस अधिकारियों और मैंने भी उन्हें वापस लौटने के लिए मनाने की कोशिश की क्योंकि स्थिति तनावपूर्ण थी. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से पुलिस को बताया कि वे अपनी मर्जी से भागे थे.”

हलीम बताते हैं, “पुलिस ने मुझे तीन दिनों तक थाने में रखा और उस दौरान उन्होंने मेरे घर और दुकानों पर बुलडोजर चला दिया. उसके बाद भी स्थानीय मीडिया ने मुझे और मेरे परिवार को बदनाम करना बंद नहीं किया. मेरा पूरा परिवार बिखर गया. मेरे छोटे बेटे अकील और मैंने 12 दिन जंगलों, पहाड़ों और बस स्टॉप पर छिपकर बिताए. साक्षी ने 10 अप्रैल को मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए एक वीडियो जारी किया और बताया कि उसने अपनी मर्जी से आसिफ से शादी की है, और वह वापस आ सकते हैं.”

आखिर में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में 23 अप्रैल को आसिफ और साक्षी को सुरक्षा प्रदान की.

अप्रैल महीने में शिवराज सिंह के बुलडोजर अभियान में सेंधवा की सकीना इस्माइल खान का घर भी तोड़ दिया गया. सकीना ने कहा कि अधिकारियों ने उन्हें बताया कि यह उनके बेटे शाहबाज खान के "राम नवमी दंगे" में शामिल होने की सजा है.

प्रशासन ने सकीना को कोई नोटिस या आदेश नहीं दिखाया. इतना ही नहीं दंगे के वक्त शाहबाज सेंधवा जेल में बंद था. यह विचारणीय बात है कि जब वह पहले से ही जेल में बंद था, तो दंगे में कैसे शामिल हुआ? पुलिस ने शाहबाज और दो अन्य लोगों को 5 मार्च को फायरिंग की एक घटना के सिलसिले में गिरफ्तार किया था, साथ ही पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी पर घोषणा करते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी.

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(इस स्टोरी के दूसरे हिस्से में हम शिवराज सिंह चौहान के "बुलडोजर अभियान" के पीछे उनकी राजनीतिक मजबूरियों की समीक्षा करेंगे.)

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