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देश में अगले 5 सालों में 100 फीसदी इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन होने की उम्मीद

जुलाई महीने में बादलों की लुका-छिपी और बीच-बीच में हो रही बारिश के बीच मध्य प्रदेश के विदिशा शहर के लिए यह एक आम रविवार की दोपहर है. शहर की एक मुख्य सड़क के किनारे स्थित रविंद्र स्वप्निल प्रजापति की इलेक्ट्रिक दोपहिया की शोरूम में ग्राहकों की अच्छी-खासी संख्या दिख रही है. 52 वर्षीय प्रजापति मूल रूप से एक कवि हैं लेकिन प्रकृति के प्रेम ने इन्हें दो वर्ष पहले इलेक्ट्रिक शोरूम स्थापित करने की प्रेरणा दी. महज चार ग्राहकों के साथ शुरू हुआ कारवां अब सैकड़ों ग्राहकों तक पहुंच गया है.

“2020 में मैंने एक अखबार की रिपोर्ट पढ़ी, जिसमें कहा गया था कि इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) का भविष्य उज्जवल हैं. मैं यह मौका नहीं चूकना चाहता था. पेट्रोल से चलने वाले दोपहिया वाहनों की अपनी एजेंसी की तुलना में एक प्रमुख दोपहिया निर्माता की ई-बाइक एजेंसी प्राप्त करना आसान था,” प्रजापति ने हमें बताया.

प्रजापति ने कहा, “प्रकृति को लेकर मेरे स्नेह ने मुझे ई-बाइक व्यवसाय में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया. केवल दो वर्षों में मेरा व्यवसाय कई गुना बढ़ गया है और मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह बढ़ता ही रहेगा.”

प्रजापति कई वर्षों से एक गैर लाभकारी संगठन भी चला रहे हैं जिसका मूल उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना है. इसी दौरान उन्हें प्रदूषण न फैलाने वाली गाड़ियों का व्यापार करने की तरकीब सूझी.

प्रजापति इलेक्ट्रिक दोपहिया के भविष्य को लेकर काफी उम्मीद रखते हैं और उनकी उम्मीद को कई हालिया रिपोर्ट्स से और मजबूती मिल रही है. इस वर्ष जून में भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग और टेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (TIFAC) ने ‘फॉरकास्टिंग पेनेटेरेशन ऑऩ इलेक्ट्रिक टू व्हीलर्स इन इंडिया’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की. इसमें आठ अलग-अलग परिस्थितियों की परिकल्पना की गई है जिसकी मदद से इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स के भविष्य में झांकने की कोशिश की गई है.

इन परिस्थितियों में से एक कहता है कि 2027 तक सड़कों पर जो दोपहिया होंगी उसमे शत प्रतिशत संख्या इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की होगी. रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे, निर्माण क्षमता, नीतियों और तकनीकी-विकास की प्राथमिकताओं का भी जिक्र है. रिपोर्ट में कहा कि प्रौद्योगिकी या तकनीक में सुधार और बैटरी की लागत में कमी इलेक्ट्रिक गाड़ी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है.

रिपोर्ट के अनुसार, अगर वित्त वर्ष 2024 के बाद सरकार आम लोगों को ई बाइक अपनाने के लिए जो प्रोत्साहन दे रही है, उसे बंद कर देती है तो तकनीकी सुधार और दूसरे सुधारों के सहारे 2031 तक इलेक्ट्रिक दोपहिया की बाजार में पैठ 71.54 प्रतिशत तक होगी.

“अगर कोई तकनीकी सुधार नहीं हुआ और बैटरी की लागत में भी कमी नहीं आई तो ऐसी स्थिति में 2031 तक सड़क पर केवल 21.86 प्रतिशत इलेक्ट्रिक ही दिखेगी, लेकिन अगर सरकार ने इन गाड़ियों के निर्माण पर वित्तीय प्रोत्साहन जारी रखा तो तकनीकी सुधार के साथ तस्वीर बदल सकती है. अनुमान के मुताबिक दोनों के संयोजन से 2031 तक 100 फीसदी इलेक्ट्रिक दोपहिया का लक्ष्य पाया जा सकेगा,” रिपोर्ट में कहा गया है.

निर्माण प्रक्रिया में इलेक्ट्रिक स्कूटर. अनुमान है कि 2027 तक इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का मार्केट शेयर 100 प्रतिशत हो जाएगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो वित्तीय वर्ष 2028-29 में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री 220 लाख यूनिट को पार कर सकती है.

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि बैटरी की लागत को कम करने में प्रौद्योगिकी कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

“वाहनों की संख्या में वृद्धि, वाहनों का वजन, इंजनों का आकार और यात्रा की लंबाई आदि जैसे कारक बैटरी वाले दोपहियों की राह में चुनौती हैं. वर्तमान स्थिति में तकनीक के सहारे ही इन समस्याओं का हल खोजा जा सकता है और तकनीक में सुधार जारी रहा तो परिवर्तन काफी ठोस हो सकते हैं,” रिपोर्ट कहती है.

अगर इलेक्ट्रिक दोपहिया का 100 फीसदी का लक्ष्य पाना है तो बैटरी की लागत, रेंज और पावर जैसे सभी महत्वपूर्ण कारकों के संयोजन की आवश्यकता होगी. रिपोर्ट में कहा गया है, “बैटरी की लागत 8% सालाना की रफ्तार साथ घटती है और वाहनों की रेंज और शक्ति में वित्त वर्ष 2024 तक 20% की वृद्धि होती है तो परिस्थितियां बेहतर होंगी. साथ ही, वित्त वर्ष 2031 तक मांग के बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन भी जारी रखना होगा.”

भारत में दोपहिया वाहन क्यों महत्वपूर्ण हैं?

भारत में, अधिकांश आबादी के लिए दोपहिया वाहन निजी परिवहन का पसंदीदा साधन हैं. दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी इंडिया ट्रांसपोर्ट एनर्जी आउटलुक के अनुसार वास्तव में भारत एक सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता हुआ दोपहिया बाजार है. इस साल जुलाई में पेट्रोल इंजन (आंतरिक दहन इंजन या आईसीई) दोपहिया और तिपहिया वाहनों का हिस्सा है भारत में कुल वाहन बिक्री का 84 प्रतिशत है.

महानगरों की तुलना में टियर-1 और टियर-2 शहरों में दोपहिया वाहन अधिक लोकप्रिय हैं. इसकी एक बड़ी वजह है सार्वजनिक परिवहन की कमी. 2016 के एक शोध के अनुसार, इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांसपोर्ट (आईपीटी), जिसमें मुख्य रूप से तिपहिया और ई-रिक्शा शामिल हैं, शहरी यात्रा का एक आवश्यक साधन है. आईपीटी छोटे शहरों में परिवहन सेवाएं प्रदान करने में और बड़े शहरों में फीडर मोड में पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचे की कमी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

सीईईडब्ल्यू के अनुसार, 2020 में, दोपहिया वाहनों ने कुल यात्री ऊर्जा का 31 प्रतिशत खपत किया, जो किसी भी अन्य परिवहन के साधन से अधिक है. बसों और तिपहिया वाहनों ने संयुक्त रूप से कुल यात्री परिवहन ऊर्जा का 29 प्रतिशत खपत किया. दूसरी तरफ संपूर्ण यात्री परिवहन गतिविधि में कम हिस्सेदारी होने के बावजूद कुल यात्री ऊर्जा का 27 प्रतिशत चार पहिया वाहनों का था.

इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स का भविष्य

इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का भविष्य मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी सहयोग, बैटरी की लागत में कमी और गाड़ी की रेंज और शक्ति सभी पर निर्भर करता है.

“अधिक से अधिक ग्राहक इलेक्ट्रिक बाइक का रुख करना चाहते हैं, लेकिन उनकी मांगों को पूरा करने की आवश्यकता है. ग्राहक उच्च गति, बैटरी रेंज और मजबूत गाड़ी चाहते हैं,” प्रजापति ने हमें बताया.

2020 में सीईईडब्ल्यू ने दोपहिया वाहनों की बाजार में स्थिति का विश्लेषण किया और 2030 तक दोपहिया वाहनों की बिक्री में पांच प्रतिशत तक पहुंचने की भविष्यवाणी की. हालांकि, इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि अगर तकनीक, रेंज, कीमत आदि की स्थिति बेहतर हुई तो यह आंकड़ा 35 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. कोरोना महामारी के बाद परिस्थितियां काफी बदल गईं हैं. दोपहिया श्रेणी में इलेक्ट्रिक वाहनों की पहुंच में 10 गुना वृद्धि हुई है, जो 2021 में पहली बार लगभग 3 प्रतिशत (लगभग 10 गुना अधिक ईंधन की कीमतों और जागरूकता के कारण आंशिक रूप से) तक पहुंच गई है.

दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में एक निजी चार्जिंग स्टेशन.

सीईईडब्ल्यू की सीनियर प्रोग्राम लीड हिमानी जैन ने कहा, “2030 तक 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक टू व्हीलर का लक्ष्य हासिल करने के लिए मांग बढ़ाने के अलावा भी कुछ अतिरिक्त कदम उठाए जाने चाहिए.”

“फेम (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) के अलावा भी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) और गाड़ियों के कारोबार से जुड़े लोगों को कुछ दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने की कोशिश होनी चाहिए. इलेक्ट्रिक व्हीकल के विकास के लिए प्रमुख फेम सब्सिडी है, जैसा कि नीति आयोग की रिपोर्ट में भी सामने आया है,” जैन ने हमें बताया.

2015 में केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय ने भारत में इलेक्ट्रिक/हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फेम इंडिया योजना शुरू की. योजना का पहला चरण मार्च 2019 तक 895 करोड़ रुपए के बजट के साथ उपलब्ध था. फेम इंडिया योजना के इस चरण में चार प्रमुख क्षेत्र थे – तकनीकी विकास, मांग, पायलट प्रोजेक्ट और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर.

फेम योजना के दूसरे चरण के तहत फरवरी 2022 तक 231,257 इलेक्ट्रिक वाहनों को लगभग 827 करोड़ रुपए की मदद दी गई.

“चार्जिंग इकोसिस्टम बढ़ाने के लिए बैटरी स्वैपिंग या बैटरी की अदला-बदली करने वाली कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन, पार्किंग और इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने में लगने वाला समय इलेक्ट्रिक व्हीकल की राह में बाधा है. बैटरी स्वैपिंग तकनीक इस चुनौती का समाधान करती है और वाहन के लिए तेजी से दोबारा उपयोग में लाने के लिए तैयार करती है,” जैन ने ईवीएस के लिए महत्वपूर्ण बाधाओं की ओर इशारा करते हुए कहा.

नीति आयोग की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि शुरुआती चरण के दौरान, इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के लिए ग्राहकों के मन में विश्वास पैदा करना होगा. इसके लिए चार्जिंग पॉइंट अधिक से अधिक होने चाहिए.”

“जबकि बाद के चरण में, चार्जिंग पॉइंट्स की संख्या और बढ़नी चाहिए,” रिपोर्ट में कहा गया.

इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज एक और बड़ी चुनौती है. प्रजापति के मुताबिक यह एक अहम चुनौती बनकर उभरी है. “हमारे ग्राहकों को ऐसे वाहनों की जरूरत है जिनकी रेंज कम से कम 150 किलोमीटर हो. यानी एक बार चार्ज करने पर गाड़ी 150 किलोमीटर तक चले.”

नेगेव, इज़राइल के बेन गुरियन विश्वविद्यालय के पोस्ट डॉक्टरेट फेलो सुदीप्त विश्वास ने इस मामले में हमसे बातचीत की. रासायनशास्त्र के जानकार और बैटरी की तकनीक पर शोध कर रहे बिश्वास ने जोर देकर कहा कि अनुसंधान के द्वारा बैटरी की इस समस्या को ठीक किया जा सकता है. बिस्वास ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर अमरीश चंद्रा के साथ बैटरी आधारित शोध पर काम किया.

यह तकनीक सोडियम-आयन (Na-ion) पर आधारित है, और उनकी टीम ने कई नैनोमटेरियल विकसित किए हैं. वैज्ञानिकों ने सोडियम-आयन-आधारित बैटरी और सुपरकैपेसिटर विकसित करने के लिए नैनोमटेरियल्स का उपयोग किया है, जिन्हें तेजी से चार्ज किया जा सकता है. आगे इस तकनीक में और विकास होने की उम्मीद है जिसके बाद ई वाहनों की कीमतों में लगभग 25 प्रतिशत की कमी की जा सकती है.

“हमारे शोध का उद्देश्य लिथियम-आधारित भंडारण प्रणाली के विकल्प की खोज करना है. इसकी मात्रा बढ़ाकर बैटरी की रेंज बढ़ाई जा सकती है,” बिस्वास ने समझाया.

“एक और तकनीकी पर काम हो रहा है जो सोडियम -आयन बैटरी के साथ, अन्य धातु आयन-आधारित बैटरी पर होगा. वे प्रौद्योगिकियां एल्मुनियम-आयन या मैगनेशियम-आयन बैटरी हो सकती हैं, ” उन्होंने कहा.

वैज्ञानिकों ने बैटरी में लिथियम के बदले सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, जस्ता और कैल्शियम जैसी कई धातुओं पर शोध किया है. एल्युमिनियम-आयन बैटरी एक गैर-लिथियम बैटरी है जिसमें धात्विक एल्यूमीनियम का उपयोग नकारात्मक इलेक्ट्रोड के रूप में किया जाता है. इसकी चार्जिंग और डिस्चार्जिंग दोनों की दर बाकी बैटरी से अलग है. इसी तरह, मैग्नीशियम में कई गुण हैं जो लिथियम का विकल्प हो सकता है.

पिछले कुछ महीनों में इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की कई तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद इन गाड़ियों की सुरक्षा का मुद्दा तेजी से उठ रहा है. ग्राहकों के मन में इन गाड़ियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल हैं.

सुरक्षा मानकों के सवाल पर जैन ने कहा, “ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) और नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (एनएटीआरआईपी) प्रमाणन मानकों को और अधिक कठोर बनाया जा सकता है.”

भारत के लोग तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपना रहे हैं लेकिन सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की कमी एक बड़ी चुनौती है.

“यह गुणवत्ता जांच के मानकों को बढ़ाएगा और सुनिश्चित करेगा कि गाड़ी में (सेल की गुणवत्ता, शॉर्ट-सर्किट और थर्मल संवेदनशील बैटरी से बचने के लिए उचित कनेक्शन आदि) भारतीय परिचालन स्थितियों (उत्तरी भारत में गर्म, बरसात, अत्यधिक ठंड) के अनुसार हैं या नहीं. इसके अलावा, बेचे जाने वाले वाहनों में मजबूत गुणवत्ता जांच और निगरानी की आवश्यकता है,” उन्होंने आगे कहा.

प्रजापति कहते हैं, “गाड़ियों में आग लगना बाजार के लिए एक बड़ा झटका है. हालांकि, जिस निर्माता के लिए मैं काम करता हूं उसके साथ ऐसा कोई मामला नहीं हुआ, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ सुरक्षा एक बड़ी चिंता बन गई है. सुरक्षा मुद्दों के कारण दोपहिया वाहनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने के बावजूद मेरी बिक्री में कोई बदलाव नहीं आया. इसकी वजह है मैं एक प्रतिष्ठित कंपनी से जुड़ा हूं और उच्च सुरक्षा मानकों को अपनाने की वजह से हमारी गाड़ियों में आग लगने की कोई घटना सामने नहीं आई.”

“मेरा मानना ​​​​है कि भारत में हर पेट्रोल दोपहिया वाहन की जगह जल्द ही बैटरी से चलने वाले दोपहिया वाहन ले लेंगे. मैंने बदलाव को समय रहते देख लिया और अपना लेखन का काम छोड़कर नए करियर को अपना लिया. मुझे पहले पहल करने का फायदा मिला,” उन्होंने कहा.

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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